मिलिए शाकाहारी और बौद्ध धर्म को मानने वाले श्रीलंका के नए राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे से
कोलंबो। गोटाबाया राजपक्षे अब श्रीलंका के सांतवें राष्ट्रपति हैं। सोमवार को उन्होंने अपना पदभार संभाल लिया है। शनिवार को श्रीलंका में चुनाव हुए और राजपक्षे को 52 प्रतिशत से ज्यादा वोट हासिल हुए। चीन के करीबी राजपक्षे को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरफ से बधाई संदेश भी दिया गया है। श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे के भाई, गोटाबाया राजपक्षे एक सैनिक रह चुके हैं और लेफ्टिनेंट कर्नल के तौर पर रिटायर हुए। उनका भारत से भी गहरा संबंध है और उनके मिलिट्री करियर में यहां के सैन्य संस्थानों का खासा योगदान रहा है। अगले पांच साल तक उनके हाथ में श्रीलंका की कमान होगी ऐसे में उनसे जुड़ी कुछ खास बातों को जानना बहुत जरूरी है।
प्रभावी राजनीतिक खानदान से संबंध
राजपक्षे का जन्म श्रीलंका के पलटुवावा में हुआ और वह हंबनटोटा जिले में आने वाले गांव वीराकतिया में बड़े हुए। नौ भाई-बहनों में पांचवें नंबर के राजपक्षे देश के एक प्रभावशाली राजनीतिक परिवार से आते हैं। उनके पिता डीए राजपक्षे, श्रीलंका के प्रभावी राजनेता थे। पिता डीए राजपक्षे सांसद रहे और साथ ही विजयनंदा धन्यनायके की सरकार में कृषि मंत्री रहे। उनके बड़े महिंदा राजपक्षे भी साल 2004 में श्रीलंका के प्रधानमंत्री बने तो साल 2005 में वह इस देश के राष्ट्रपति चुने गए। उनके दो और बड़े भाई चमाल और बसिल राजपक्षे भी इस समय सांसद हैं। गोटाबया, बौद्ध धर्म के अनुयायी हैं और शाकाहारी खाने के शौकीन हैं।
रावलपिंडी के मिलिट्री कॉलेज में ली ट्रेनिंग
कोलंबो के आनंद कॉलेज से प्राइमरी और सेकेंडरी शिक्षा हासिल करने के बाद 26 अप्रैल 1971 को राजपक्षे एक कैडेट ऑफिसर के तौर पर सिलोन आर्मी में शामिल हुए। यह वह दौर था जब श्रीलंका ब्रिटिश शासन के अधीन था। दियातालावा में बेसिक आर्मी ट्रेनिंग हासिल करने के बाद वह 25 मई 1972 को सेकेंड लेफ्टिनेंट के तौर पर सिलोन सिग्नल कोर में कमीशंड हुए। इसके बाद इसी वर्ष वह पाकिस्तान के रावलपिंडी में स्थित मिलिट्री कॉलेज ऑफ सिग्नल्स में भी ट्रेनिंग के लिए आए।
ऊटी के डिफेंस स्टाफ कॉलेज से किया कोर्स
यहां से निकलकर उन्होंने श्रीलंका की सिन्हा रेजीमेंट और राजराता राइफल्स में सेवाएं दीं। सन् 1980 में राजपक्षे असम में स्थित जंगल वॉरफेयर स्कूल आए और यहां पर उन्होंने कांउटर-इनसर्जेंसी का कोर्स किया। इसके बाद सन् 1983 में वह तमिलनाडु के वेलिंगटन स्थित डिफेंस सर्विसेज स्टाफ कॉलेज पहुंचे। यहां पर उन्होंने कमांड और स्टाफ कोर्स को पूरा किया। इसके अलावा उनके पास मद्रास यूनिवर्सिटी से डिफेंस स्टडीज में मास्टर्स की डिग्री भी है।
लिट्टे को चटाई धूल
श्रीलंका वापस लौटने के बाद उन्होंने गजाबा रेजीमेंट की पहली बटालियन को कमांड किया। 1983 से 1984 यह वही दौर था जब गजाबा की फर्स्ट बटालियन को जाफना में तैनात किया गया था। इसके बाद फिर सन् 1985 में जब श्रीलंका में सिविल वॉर बढ़ने पर इसी बटालियन को तैनात किया गया था। राजपक्षे ने ऑपरेशन लिब्रेशन में हिस्सा लिया और उनकी आक्रामक नीतियों की वजह से सन् 1987 में लिट्टे को वादरमाराची को छोड़कर जाना पड़ा था।
तीन राष्ट्रपतियों से मिला वीरता पुरस्कार
राजपक्षे को तीन दशक से देश में जारी युद्ध को खत्म करने का श्रेय भी दिया जाता है। 20 साल के मिलिट्री करियर में राजपक्षे को श्रीलंका के तीन राष्ट्रपतियों की तरफ से वीरता पुरस्कार हासिल हुआ है। नवंबर 1991 में गोटाबया ने सेना छोड़ दी और अमेरिका चले गए। इसके बाद साल 2005 में अपने भाई के लिए चुनाव प्रचार करने के मकसद से वह श्रीलंका वापस आ गए। इसके बाद वह रक्षा मंत्री बने और श्रीलंका में एलम वॉर और तमिल चरमपंथ को खत्म करने के लिए हमेशा उन्हें श्रेय दिया जाता है।