प्रेस स्वतंत्रता दिवसः मेरी मां की हत्या और उन्हें न्याय दिलाने की लड़ाई
जब उनकी हत्या हुई उस समय उनकी उम्र 53 साल थी और एक पत्रकार के तौर पर काम करते हुए उन्हें 30 साल हो चुके थे.
हमेशा कुछ महीनों के भीतर एक ना एक बार मुझे उस शख़्स के साथ बैठना पड़ता है जो मेरी की हत्या की जांच कर रहा है. हमारे परिवार से उस शख़्स का पहला राब्ता छह साल पहले हुआ, जब वो हमारे घर मेरी मां को गिरफ़्तार करने आया.
दरअसल मतदान वाले दिन मेरी मां ने प्रधानमंत्री पद के एक उम्मीदवार पर एक मज़ाक़िया ब्लॉग लिखा था. उस उम्मीदवार के एक समर्थक ने मेरी मां के इसी ब्लॉग के ख़िलाफ़ रिपोर्ट दर्ज करवाई थी.
इसके बाद आधी रात में उस पुलिस अधिकारी को हमारे घर भेजा गया. वह मेरी मां का गिरफ़्तारी वॉरेंट लेकर आए थे. मेरी मां का जुर्म सिर्फ़ इतना था कि उन्होंने एक उम्मीदवार के ख़िलाफ़ अपने विचार प्रकट किए थे.
मैं उस वक़्त किसी दूसरी जगह काम कर रहा था. लोगों ने मुझे वीडियो भेजने शुरू किए जिसमें दिख रहा था कि क़रीब 1.30 बजे मेरी मां को पुलिस स्टेशन से रिहा किया जा रहा है, उन्होंने मेरे पिता की शर्ट पहनी हुई थी.
रिहा होने के कुछ ही घंटों बाद, मेरी मां एक बार फिर ऑनलाइन आईं और उन्होंने अपने ब्लॉग पर दोबारा लिखना शुरू कर दिया. उन्होंने बताया कि नए प्रधानमंत्री कितना असुक्षित महसूस करते हैं.
उन्होंने लिखा, ''मैं इस बेतरतीबी के लिए माफ़ी मांगती हूं, लेकिन जब पुलिस का एक दल आपको गिरफ़्तार करने आपके घर पहुंचता है तो आपके दिमाग़ में सिर्फ़ अपने बाल संवारने, चेहरे पर लगे पाउडर और ब्लशर को हटाना और ख़राब हो चुके कपड़ों को ठीक करना ही चल रहा होता है.''
जिस अधिकारी ने मेरी मां को गिरफ़्तार किया था, वही अब मेरी मां की हत्या की जांच भी कर रहा है.
मेरी मां का नाम डाफने करुआना गैलिसिया था. जिस दिन उनकी हत्या हुई उस दिन वो बैंक में अपना खाता दोबारा खुलवाने गई थीं. दरअसल मौजूदा सरकार के कहने पर उनके बैंक खाते को बंद कर दिया गया था.
जब उनकी हत्या हुई उस समय उनकी उम्र 53 साल थी और एक पत्रकार के तौर पर काम करते हुए उन्हें 30 साल हो चुके थे.
उनकी कार की सीट के नीचे आधा किलो का विस्फोटक रखा गया था.
उनकी मौत के बाद सरकार के समर्थकों ने जश्न मनाया, इस जश्न को देखकर मुझे उन लोगों की याद आई जो तुक्रिश-अमरीकी संपादक रैंट डिंक की मौत के बाद जश्न मना रहे थे.
कुछ लोगों ने यहां तक कहा कि मेरी मां ने अपनी मौत की तैयारी ख़ुद ही की थी.
यह बात बिलकुल उसी तरह थी जैसे अमरीकी संवाददाता जेम्स फ़ोली के लिए कही गई थी जिनकी हत्या सीरिया में कर दी गई थी.
डाफने करुआना गैलिसिया की हत्या
- अक्तूबर 2017: खोजी पत्रकार डाफने करुआना गैलिसिया की एक कार बम धमाके में मौत हुई.
- प्रधानमंत्री जोसेफ मस्कट ने इस हत्या को वीभत्स करार दिया. गैलिसिया के परिवार ने माल्टा के नेताओं को उनके अंतिम संस्कार में शामिल नहीं होने दिया.
- दिसंबर 2017: इस मामले में तीन लोगों की गिरफ़्तारी हुई. अभियोजक ने जांच के आदेश दिए और इस बात की संभावना जताई कि कुछ लोगों को इस हत्या की सुपारी दी गई होगी.
- जुलाई 2018: माल्टा सरकार की तरफ़ से की गई जांच में मजिस्ट्रेट ने प्रधानमंत्री और उनकी पत्नी को भ्रष्टाचार के उस मामले में क्लीन चिट दे दी जिसके आरोप डाफने करुआना गैलिसिया ने अपनी रिपोर्ट में लगाए थे.
- अगस्त 2018: डाफने करुआना गैलिसिया के परिवार ने पूरे मामले की सार्वजनिक जांच की मांग की.
हत्या का यह मामला इतना अहम क्यों है?
यूरोपीयन राजदूतों के सामने मेरे भाई ने कहा, ''तथ्य और विचारों का प्रसार रुकना नहीं चाहिए, पत्रकारों की जमात समाज में मौजूद विचार और लोगों की आवाज़ होती है.''
''पत्रकारों और खुले विचारों के चलते ही एक समाज जीने लायक़ बन सकता है.''
मां की हत्या के बाद हमें लोगों के समर्थन की ज़रूरत थी. हम चाहते थे कि लोग हमारे इस दुख में हमारा साथ दें.
एक बार मेरे एक दोस्त ने मुझसे कहा कि अच्छे लोग हमारे चारों तरफ़ होते हैं बस हमें उन्हें खोजना होता है.
हम सभी चाहते हैं कि एक ऐसे समाज में रहें जहां सभी के लिए क़ानून एकसमान हों. मानवाधिकारों की रक्षा की जाए. लेकिन हमारी अधिकतर ख़्वाहिशें कभी पूरी नहीं हो पातीं.
जब तक हमें इस बात का एहसास होता है कि हमारे आस पास जो बुरे लोग मौजूद हैं वो किसी बीमारी की तरह हैं, तब तक अक्सर देरी हो जाती है.
हमारी मां की मौत के बाद मेरे भाइयों, मेरे पिता और मैंने अपने लिए कई लक्ष्य तय किए. मैं अपनी मां को न्याय दिलाना चाहता था, उनकी हत्या की जांच करवाकर यह सुनिश्चित करना चाहता था कि इस तरह की घटना दोबारा कभी ना हो.
इन तमाम कामों के चलते हमारे पास दूसरे कामों के लिए बहुत कम वक़्त बचता था.
हम अपने परिवार में ही अक्सर बात करते हैं कि हमारे भीतर दूसरों की निष्क्रियता और उदासीनता को सहने के लिए कितना धैर्य बचा है, ख़ासकर प्रशासनिक पदों पर बैठे लोगों के प्रति.
हमने पाया कि उन लोगों के आलस भरे स्वभाव के लिए उन पर अधिक ग़ुस्सा ना करें.
तुर्की के खोजी पत्रकार यूगर मुमकू के बच्चों ने मुझे बताया था कि जब उनके पिता की कार बम धमाके में हत्या की गई तो पुलिस प्रमुख ने उस हत्या की जांच करने से इंकार कर दिया था.
पुलिस प्रमुख ने कहा था, ''हम कुछ नहीं कर सकते क्योंकि हमारे सामने बहुत बड़ी दीवार खड़ी है.''
उस खोजी पत्रकार की पत्नी ने पुलिस प्रमुख को जवाब दिया था, ''आप एक-एक कर ईंट हटाना शुरू कीजिए, जब तक की पूरी दीवार नहीं हट जाती.''
कुछ-कुछ ऐसा ही काम हम भी कर रहे हैं, जब से हमारी मां की हत्या हुई.
शुरुआत में मेरा मानना था कि मैं जो भी करूं उसमें सबसे बेहतरीन कर सकूं. लेकिन अब मेरा मानना है कि जितना महत्वपूर्ण किसी काम का नतीजा होता है उतना ही महत्वपूर्ण उस काम की प्रक्रिया भी होती है.
हम आज़ाद ख्याल का विचार फैलाने की कोशिश कर रहे हैं. हम चाहते हैं कि सरकार और उसके नुमाइंदे अपना काम सही तरीक़े से करें.
इस अभियान में कई लोग हमारे साथ आए हैं, ये सभी लोग चाहते हैं कि दुनिया में मानवाधिकार और स्वतंत्र विचारों का सम्मान होता रहे.
साल 2017 में मालदीव के प्रसिद्ध लेखक यमीन रशीद की हत्या उनके घर के बाहर कर दी गई थी. उनकी हत्यी से पांच दिन पहले उन्होंने हमसे कहा था, ''आज़ादी की शुरुआत हमारे मन की आज़ादी के साथ होती है.''
उन्होंने सवाल किया था, ''जब तक आपका मन-मस्तिष्क ही आज़ाद नहीं होगा, तब तक आप किसी भी दूसरी आज़ादी का क्या करेंगे?''
मेरी मां की तरह ही यमीन रशीद की हत्या ने भी साबित किया दुनिया के कई देशों में आज़ाद ख्यालों का सम्मान नहीं है.
इसकी ज़िम्मेदारी दरअसल हर एक शख़्स पर है, जिसकी हत्या हुई उसके परिवार पर, गर्लफ्रेंड, ब्वायफ्रेंड और दोस्तों पर भी.
भले ही यह ज़िम्मेदारी हमने अपने कंधों पर उठाई है लेकिन इसका भार हम अकेले वहन नहीं कर सकते. हम अपने चारों तरफ़ अच्छे लोगों को चाहते हैं.
विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस
- संयुक्त राष्ट्र ने साल 1993 में 3 मई को विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस (डब्ल्यूपीएफ़डी) के तौर पर मान्यता दी.
- साल 2019 की थीम पत्रकारिता और चुनाव के दौर में ग़लत सूचनाओं का प्रसार है.
- डब्ल्यूपीएफ़डी को मनाने का मक़सद दुनिया भर में आज़ाद विचारों और पत्रकारिता का बचाव करना साथ ही उन पत्रकारों को श्रद्धांजलि देना है जो स्वतंत्र पत्रकारिता करते हुए मारे गए.
- अंतरराष्ट्रीय पत्रकारिता फ़ेडरेशन के मुताबिक़ पिछले साल 95 पत्रकारों और मीडिया से जुड़े लोगों की मौत हत्या, बम धमाके और सीमा पर होने वाली फ़ायरिंग में हुई.
मुझे पता है मेरे जैसे और भी बहुत से लोग हैं. हमें सऊदी के पत्रकार जमाल ख़ाशोज्जी भी याद हैं जिन्हें दुनियाभर के लोगों का प्यार मिला.
सिर्फ़ एक व्यक्ति की नफ़रत के चलते उनकी हत्या कर दी गई.
उनके जैसे तमाम पत्रकार, जिसमें मेरी मां भी शामिल है. उनकी हत्या सिर्फ़ इसलिए कर दी गई क्योंकि उन्होंने किसी एक व्यक्ति या व्यवस्था के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई.
उनकी हत्या के आरोपियों को सज़ा दिलाने की कोशिश तक नहीं की गईं.
यही वजह है कि हमने उस दीवार की पहली ईंट हटाने की शुरुआत कर दी है. हमने माल्टा सरकार से मेरी मां की हत्या की सार्वजनिक जांच करवाने की मांग की है.
इसके बाद हम दूसरी ईंट हटाएंगे.
हर रोज़, मैं प्रार्थना करता हूं कि काश मेरी मां ने यह बलिदान न दिया होता तो शायद वो आज हमारे बीच ज़िंदा होतीं.
लेकिन जैसा कि अज़रबैज़ान की जेल में बंद पत्रकार ख़दीजा इस्मालोवा ने कहा है, ''अगर हम किसी से प्यार करते हैं तो हम उन्हें वैसे ही बने रहने देना चाहते हैं जैसे वो हक़ीक़त में होते हैं. और यही सच है कि मेरी मां एक फ़ाइटर और हीरो थीं.''
एक बात जो मेरी मां को नहीं पता होगी वह यह है कि उनकी मौत के बाद भी उन्होंने माल्टा में हज़ारों लोगों को प्रेरित किया.
और मैं हमेशा चाहता हूं कि मेरी मां किसी ना किसी तरीके से दूसरे बहादुर पत्रकारों की प्रेरणा बनीं रहें.
लेखक के बारे में
(मैथ्यू करुआना गैलिसिया एक खोजी पत्रकार हैं. वो पत्रकार डाफने करुआना गैलिसिया के बेटे हैं, जिनकी मौत अक्टूबर 2017 में एक कार बम धमाके में हो गई थी. आप उन्हें ट्विटर पर फॉलो कर सकते हैं.)