11 महिलाओं की टीम पर दांव लगाने वाले पीएम
स्पेन के प्रधानमंत्री पेद्रो सांचेज 2 जून को जब अपने पद की शपथ ले रहे थे तब उनके जेहन में आठ मार्च को हुए महिला आंदोलन की तस्वीरें ताज़ा थीं.
सांचेज ने अपना मंत्रिमंडल तय किया और मंत्रिमंडल के 17 में से 11 अहम पदों के लिए महिलाओं को चुनकर नया रिकॉर्ड बना दिया.
स्पेन के प्रधानमंत्री ने कैबिनेट में महिलाओं को 61 फ़ीसद से ज़्यादा प्रतिनिधित्व देने के लिए देश में हुई महिलाओं की
स्पेन के प्रधानमंत्री पेद्रो सांचेज 2 जून को जब अपने पद की शपथ ले रहे थे तब उनके जेहन में आठ मार्च को हुए महिला आंदोलन की तस्वीरें ताज़ा थीं.
सांचेज ने अपना मंत्रिमंडल तय किया और मंत्रिमंडल के 17 में से 11 अहम पदों के लिए महिलाओं को चुनकर नया रिकॉर्ड बना दिया.
स्पेन के प्रधानमंत्री ने कैबिनेट में महिलाओं को 61 फ़ीसद से ज़्यादा प्रतिनिधित्व देने के लिए देश में हुई महिलाओं की पहली आम हड़ताल (फेमिनिस्ट स्ट्राइक) का जिक्र किया.
"आठ मार्च को फेमनिस्ट मूवमेंट के ज़रिए स्पेन में बदलाव की जो लहर दिखी, ये मंत्रिमंडल उसका प्रतिबिंब है."
महिलाओं के सपनों को मिले नए पंख
सांचेज साल 2014 में सोशलिस्ट पार्टी के मुखिया बने थे. उसके पहले उनका नाम कभी ज़्यादा चर्चा में नहीं रहा.
सांचेज ने पार्टी को दोबारा सत्ता में लाने का वादा किया था. साल 2015 और 2016 के चुनावों में मिली हार के बाद उन्हें पार्टी की कमान छोड़नी पड़ी लेकिन वो लौटे और भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरी पीपुल्स पार्टी के प्रधानमंत्री मारियानो रखॉय के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव लाए.
रखॉय हटे और स्पेन की बागडोर सांचेज के हाथ आ गई. सांचेज ने अपनी कैबिनेट के जरिए देश की आधी से ज़्यादा आबादी को नए ख्वाब दे दिए.
महिलाओं की मांग का असर
उनके मंत्रिमंडल में महिलाओं के दबदबे पर अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार प्रोफेसर हर्ष पंत कहते हैं, "इसका काफ़ी सांकेतिक महत्व है. मुझे लगता है कि नीचे से एक मांग उठ रही थी कि महिलाओं का इतना कम प्रतिनिधित्व क्यों है, ख़ासकर उन देशों में जहां महिला आंदोलन काफ़ी मजबूत रहे हैं. मुझे लगता है कि इससे सरकार और राजनीतिक तबकों पर दबाव पड़ रहा है और हम इस तरह के बदलाव देख रहे हैं."
लेकिन, स्पेन में महिलाओं को सरकार में बड़े पैमाने पर प्रतिनिधित्व पहली बार नहीं मिला है. यूरोप की राजनीति पर नज़र रखने वाली और पेरिस में मौजूद वरिष्ठ पत्रकार वैजू नरावने बताती हैं कि सोशलिस्ट पार्टी की सरकारों में महिलाओं को अहमियत मिलती रही है.
वो कहती हैं, "हमने ये देखा है कि जब होज़े लुइस ज़पातेरो सोशलिस्ट पार्टी की ओर से स्पेन के प्रधानमंत्री बने थे, तब उन्होंने भी काफ़ी सारी औरतों को बहुत बड़े पदों पर नामित किया था. तब स्पेन में पहली बार एक महिला (कारमैन चकोन) रक्षामंत्री थीं."
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सबसे आगे स्पेन
जपातेरो की कैबिनेट में 50 फ़ीसदी महिलाएं थीं जबकि सांचेज ने उनसे 11 फ़ीसद ज़्यादा महिलाओं को जगह देकर नया रिकॉर्ड बना दिया है. महिलाओं को कैबिनेट में बराबरी की जगह देने वाले कनाडा, स्वीडन और फ्रांस जैसे देशों से स्पेन काफ़ी आगे निकल गया है.
वैजू नरावने कहती हैं, "यूरोप में जो देश सबसे ज़्यादा प्रगतिशील कहे जाते हैं, उनमें औरतों को आगे लाने की सोच दिखती है. लेकिन अगर इस मामले में हम अमरीका समेत बाक़ी देशों की तरफ देखें तो वो काफ़ी पीछे रह गए हैं."
संयुक्त राष्ट्र की ओर से दुनिया भर की सरकारों पर एक रिपोर्ट तैयार की गई जिसे जनवरी 2017 में जारी किया गया. रिपोर्ट के मुताबिक उस वक्त किसी भी देश की कैबिनेट में 52.9 फ़ीसदी से ज़्यादा महिलाएं नहीं थीं.
सिर्फ़ छह ऐसे देश थे जिनके मंत्रिमंडल में पचास फ़ीसदी या उससे ज़्यादा महिलाएं थीं और तेरह ऐसे देश थे जिनके मंत्रिमंडल में कोई महिला ही नहीं थी.
दुनिया में बढ़ा रुतबा
ख़ुद स्पेन के तब के पीएम रखॉय की कैबिनेट में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 38 फ़ीसदी था.
लेकिन, बॉस्केटबॉल के खिलाड़ी रह चुके सांचेज अब राजनीतिक खेल के नियम बदलना चाहते हैं. सांचेज की पहचान अर्थशास्त्री की है लेकिन वो खुद को 'नारीवादी' बताते हैं.
स्पेन के प्रधानमंत्री सांचेज की 'फ़ेमिनिस्ट कैबिनेट' को लेकर हर्ष पंत कहते हैं, "वैश्विक पैमाने पर देखें तो ये काफ़ी ऐतिहासिक पहल है. इससे स्पेन का रुतबा काफ़ी बढ़ा है. इसने दुनिया में स्पेन को काफ़ी ऊंचाई दिलाई है."
सांचेज का सुरक्षित दांव
स्पेन की संसद की 350 सीटों में से सांचेज की पार्टी के पास सिर्फ़ 84 सीटें हैं लेकिन महिलाओं को आगे बढ़ाकर वो कोई जोख़िम नहीं ले रहे हैं.
वैजू नरावने कहती हैं, "ऐसा नहीं है कि स्पेन के प्रधानमंत्री ने सिर्फ़ नाम के लिए ही महिलाओं को ले लिया है. उन्होंने ऐसी औरतों को चुना है जिनकी शैक्षणिक योग्यता बहुत जबरदस्त है. जिनका तजुर्बा काफ़ी है. जो पहले भी मंत्री रह चुकी हैं.
प्रधानमंत्री सांचेज ने अपनी करीबी मार्गारीता राबलेस को रक्षा मंत्री बनाया है. ईयू कमीशन में चीफ़ ऑफ़ बजट रहीं नादिया काल्वीनो को अर्थव्यवस्था की ज़िम्मेदारी दी है. चरमपंथ रोधी अभियोजक रहीं डॉलर्स डेल्गाथो न्याय मंत्री हैं. शिक्षा के क्षेत्र में लंबा अनुभव रखने वाली इज़ाबेल सेला शिक्षा मंत्री बनाई गई हैं.
सबसे अहम जिम्मेदारी पाने वाली कारमैन कोल्वो पहले भी संस्कृति मंत्री रह चुकी हैं. उन्हें अब उप प्रधानमंत्री और समता मंत्री (इक्वैलिटी मिनिस्टर) के दो पद दिए गए हैं.
सांजेच की महिला मंत्रियों की तारीफ हो रही है लेकिन क्या वो स्पेन के सामने मौजूद चुनौतियों का समाधान करने में कामयाब होंगी, इस सवाल पर हर्ष पंत कहते हैं, "स्पेन के सामने चुनौतियां काफ़ी हैं. वो यूरोप की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है. लेकिन अब भी स्पेन अपने पुराने स्तर तक नहीं पहुंच सका है. देश का आर्थिक संकट बरक़रार है और असमानता भी काफी ज़्यादा है."
"कैटेलोनिया की आज़ादी का मुद्दा भी कहीं नीचे खदबदा रहा है. राजनीतिक अस्थिरता भी अभी ख़त्म नहीं हुई है. मुझे लगता है कि ये जो समस्याएं हैं, ये महिला या पुरुष के खांचों से ऊपर हैं और अगर राजनीतिक नेतृ्त्व प्रतिबद्ध है तो वो इनका समाधान कर पाएगा. चाहे वो महिला हो या फिर पुरुष."
पटरी पर अर्थव्यवस्था
स्पेन का इतिहास और संस्कृति विविधता से भरी रही है. फुटबॉल के लिए दीवानगी रखने वाला ये देश बुलफ़ाइटिंग को धरोहर की तरह सहेजता है. इसके पास 16 वीं से 19 वीं सदी तक दुनिया के ताक़तवर देशों में शुमार होने का गौरव है तो 1936 से 1939 तक गृहयुद्ध का ताप झेलने का अनुभव भी है. बीसवीं सदी के चौथे से सातवें दशक तक इसने तानाशाही को भी देखा है.
वैजू नरावने कहती हैं कि स्पेन का प्रगतिशील समाज बीते चार सालों की आर्थिक दुश्वारियों को भी पीछे छोड़ चुका है.
वो बताती हैं, "पिछले तीन- चार बरस स्पेन के लोगों को बहुत कुछ सहना पड़ा. वेतन बढ़ाने पर रोक थी. समाज कल्याण के कामों और स्वास्थ्य सेवाओं में भी काफी कटौती हुई थी. लोगों का बुरा हाल था. लेकिन अब स्पेन की अर्थव्यवस्था मजबूत हो गई है."
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चुनाव में कितना फ़ायदा?
सांचेज अगले दो साल के दौरान चुनाव कराने के इरादे में हैं और बेहतर होते हालात उनके लिए माकूल साबित हो सकते हैं.
लेकिन क्या उन्हें महिलाओं को वरीयता देने का फ़ायदा चुनाव में भी मिलेगा?
हर्ष पंत कहते हैं, "मुझे लगता है कि चुनाव अभियान लिंग के आधार पर नहीं होगा. मुक़ाबला मुद्दे के आधार पर होगा. अगर ये मंत्रिमंडल समस्याओं का समाधान नहीं कर सका तो पेद्रो सांचेज को इतना फ़ायदा नहीं होगा."
लेकिन वैजू नरावने की राय इससे अलग है. वो कहती हैं कि आयरलैंड से लेकर फ्रांस तक महिला मुद्दों पर आवाजें लगातार तेज़ हो रही हैं. हर चुनाव में ये विषय प्रमुखता से उठाए जा रहे हैं. कैबिनेट में महिलाओं को ज़्यादा प्रतिनिधित्व देकर सांचेज उनके साथ सीधे जुड़ सकते हैं.
वो कहती हैं, "हमने देखा है कि औरतें ज़्यादा वोट करती हैं. ऐसे में औरतों का वोट बहुत महत्वपूर्ण वोट हो गया है. महिलाओं के #MeToo मूवमेंट, फ़ेमिनिस्ट मूवमेंट और यौन उत्पीड़न के ख़िलाफ अभियान बहुत असरदार हैं. हम देख रहे हैं कि अब ज़्यादा औरतें कहती हैं कि हमें समानता चाहिए."
ऐसे दौर में स्पेन की महिला मंत्रियों को ऐसा मौका मिला है जब वो पुरुषों के सामने चुनौती रख सकें कि वो समानता हासिल करने के लिए उनके साथ संघर्ष करें.
ये मुक़ाबला यक़ीनन दिलचस्प होगा. अगले दो साल स्पेन के लिए नई ऊंचाई छूने और इतिहास बदलने का मौका बनाएंगे. बदलाव माकूल रहा तो ये प्रयोग दुनिया भर के राजनीतिज्ञों के लिए नज़ीर बन सकता है.
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