यूरोप के लोगों को लगा मेंढक की टांग खाने का चस्का, भारत भुगत रहा नुकसान
चीन के अलावा यूरोप और अमेरिका में मेंढकों की खूब मांग है। ऐसा कहा जाता है कि अब यूरोप में तेजी से चिकन की जगह मेंढक लेता जा रहा है।
नई दिल्ली, 26 जूनः क्या आपने गौर किया है कि हमारे आसपास मेंढकों ने टर्राना कम ही नहीं किया, बल्कि लगभग बंद कर दिया है। वर्ना कुछ साल पहले तक कई इलाके ऐसे थे जहां सालों भर मेंढक टर्राते रहते थे। केवल भारत में नहीं, पूरी दुनिया से मेंढक तेजी से लुप्त हो रहे हैं। इसके लिए जल भंडारों के नष्ट होने, जंगलों के कटने, जलवायु परिवर्तन और बीमारियां तो जिम्मेदार हैं ही, व्यावसायिक लाभ के लिए सामूहिक हत्या से भी उनकी संख्या घटती जा रही है।
चिकन की जगह ले रहा मेंढक
चीन तो जीव-जंतुओं को मार कर खाने के लिए कुख्यात है ही यूरोप भी इस मामले में बराबर उसका साथ दे रहा है। चीन के अलावा यूरोप और अमेरिका में मेंढकों की खूब मांग है। ऐसा कहा जाता है कि अब यूरोप में तेजी से चिकन की जगह मेंढक लेता जा रहा है।
इंडोनेशिया, भारत और बंगलादेश निर्यातक देश
इंडोनेशिया, भारत और बंगलादेश मेढ़क के सबसे बड़े निर्यातक देश हैं। वहीं, जर्मनी, फ्रांस व अमेरिका इसके सबसे बड़े आयातक देश हैं। मेढ़क की टांगे विदेशों में खासकर यूरोप में बड़े चाव से खाई जाती है। यूरोप में मेंढक की भूख के कारण लगभग पूरे एशिया से यह शानदार जीव गायब होने के कगार पर है। भारत में करीब 20 करोड़ मेढ़क प्रतिवर्ष मारे जा रहे हैं।
इंडोनेशिया से सबसे अधिक निर्यात
यूरोप को मेंढक सप्लाई करने की लिस्ट में भारत तीसरे स्थान पर है। पहले इस लिस्ट में बांग्लादेश टॉप पर होता था लेकिन बीते कुछ सालों में इंडोनेशिया ने उसे पछाड़ कर यह जगह हथिया ली है। एक रिपोर्ट के मुताबिक सिर्फ इंडोनेशिया से यूरोप को 30 हजार टन मेंढक सप्लाई होता है। हालांकि यह आंकड़ा 2010 से 2019 तक का है। हाल के वर्षों में यह कहीं अधिक बढ़ा है।
फ्रांस में लगता है मेंढक मेला
फ्रांस में औसतन प्रति साल 4,000 टन प्रति वर्ष मेंढकों का आयात होता है। यहां मेंढक के मांस के शौकीन लोगों के लिए मेंढक मेला लगता है जहां अलग-अलग प्रकार के मेंढकों को विभिन्न तरीकों से पकाया जाता है। कोविड के कारण 2 सालों तक इस मेंढक मेले पर रोक लगी थी लेकिन इस बार जब यह मेंढक मेला खुला तो यहां 20 हजार लोग पहुंचे।
जर्मनी मेंढक खाने में सबसे आगे
मेंढकों को खाने के मामले में फ्रांस से भी कुख्यात देश जर्मनी बन चुका है। एक रिपोर्ट के मुताबिक जर्मनी ने 2020 में मेंढकों के निर्यात के मामले में फ्रांस को पीछे छोड़ दिया है। यहां हर साल लगभग 4,070 टन मेंढकों का आयात किया जाता है। औसतन 200 मिलियन मेंढक को यहां के लोग साल भर में खा जाते हैं।
तुर्की में वैज्ञानिकों ने दी चेतावनी
ऐसा नहीं है कि मेंढकों के लुप्त होने की घटना सिर्फ दक्षिणी एशियाई देशों में हो रही है। मेंढकों के खत्म होने से तुर्की भी परेशान है। तुर्की में वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि अगर जंगली आबादी की रक्षा के लिए कदम नहीं उठाए गए तो 2032 तक देशी जंगली मेंढक विलुप्त हो जाएंगे। मेंढकों की विलुप्ति के कारण कई प्रकार के नुकसान सामने आने लगे हैं। मच्छरों की बढ़ती फौज, जिससे बीमारियां भी बढ़ने लगी हैं। मच्छर खाने वाले मेंढक खत्म हो रहे हैं, जिससे मच्छरों की आबादी और उनका प्रकोप बढ़ने लगा है।
सर्पदंश की संख्या बढ़ी
प्रकृति में सभी जीवों का एक दूसरे के साथ रिश्ता इतने गहरे तौर पर जुड़ा हुआ है कि एक के साथ छेड़छाड़ होने का असर दूसरी जगह दिखाई देता है। पिछले कुछ साल से देश में सांप कांटने से मरने वालों की संख्या में अप्रत्याशित बढ़ोतरी हुई है। वन्यजीव विशेषज्ञों का कहना है कि पिछले वर्षों में इस इलाके से बड़ी संख्या में मेढकों को पकड़ कर गैरकानूनी ढंग से दूसरे देश भेजा गया है, जिसका दुष्प्रभाव अब सर्पदंश की घटनाओं में वृद्धि के रूप में दिखाई दे रहा है।
मेंढक का मानव संग गहरा संबंध
दरअसल सांपों के भोजन के रूप में प्राकृतिक तौर पर उपलब्ध मेंढकों के घटने से मामला गड़बड़ा गया है। मेढ़क की तलाश में सांप मानव के और नजदीक आ पहुंचे जिससे ऐसी घटनाएं बढ़ने लगी हैं। भारत सहित दुनिया की सभी संस्कृतियों में मेंढकों का मानव समाज के साथ गहरा संबंध रहा है। हमारे यहां सूखा पड़ने पर वर्षा के लिए उनकी शादी कराकर प्रसन्न तक करने की परंपरा रही है। मेंढकों के घटते जाने का जो नतीजा हम भोग रहे हैं, उसे देखते हुए स्पष्ट है कि मेंढकों का होना हमारे लिए बहुत जरूरी है।
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