कीड़े खाकर पेट भर रहे हैं इस देश के लोग, मंडरा रहा सबसे बड़ा खाद्य संकट
सना। इंसान रोजमर्रा के जीवन में जो भी कमाता है, उसका पहला उद्देश्य यही होता है कि वो पेट भरकर खाना खा सके। इसके बाद ही वो अन्य किसी जरूरत पर ध्यान देता है। लेकिन अगर किसी देश में खाने की ही कमी हो जाए तब क्या हो। आज हम आपको एक ऐसे ही देश के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां के लोगों के लिए खाना एक सपने में तब्दील होता जा रहा है। हालात ये हैं कि यहां के लोगों को पत्ते और कीड़े खाकर खुद को जिंदा रखना पड़ रहा है।
हम बात कर रहे हैं मध्यपूर्वी देश यमन की। यमन के हूती विद्रोहियों का सऊदी अरब के नेतृत्व वाली गठबंधन सेनाओं के साथ हिंसक संघर्ष आज भी चल रहा है। जिससे यमन में हालात बेहद खराब हो गए हैं। अब यमन को विश्व का सबसे खराब मानवीय संकट वाला देश बताया जा रहा है। यहां लोगों के पास खाने को कुछ नहीं है, जिससे बीमारी और महामारी फैलती जा रही है। हर दिन लोग मर रहे हैं। मानवाधिकार का तो यहां वजूद ही नहीं रहा, कभी किसी के शादी समारोह पर हमला हो जाता है तो कभी स्कूल और अस्पतालों पर।
हजारों लोगों की मौत
संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि यहां 2015 के बाद से अब तक 10 हजार लोगों की मौत हो गई है। जबकि एजेंसियों का कहना है कि ये संख्या 70 हजार है। लाखों की संख्या में लोग विस्थापित हो चुके हैं। फिलहाल यहां खाने के लिए सबसे ज्यादा टिड्डों का इस्तेमाल किया जा रहा है। चार साल से युद्ध की आग में जल रहे यमन के लोगों के पास अब जिंदा बचे रहना का एक यही जरिया है। लोगों का मानना है कि टिड्डों में प्रोटीन होता है और इससे बेहतर कुछ नहीं हो सकता। जहां कुछ किसान इन टिड्डों को अपना दुश्मन मानते हैं, वहीं यमन के लोगों के लिए ये किसी वरदान से कम नहीं हैं।
अदला बदली में हो रहा टिड्डों का इस्तेमाल
टिड्डों का इस्तेमाल अब सामान की अदला बदली के लिए भी हो रहा है। इनके बदले में लोग अन्य जरूरत का सामान ले रहे हैं। यहां रहने वाली एक महिला का कहना है कि युद्ध के समय जीवित रहने के लिए पैसे कमाना काफी मुश्किल होता है, इसलिए वह कीड़े मकोड़े इकट्ठा करती है। इन्हें बेचकर वह अन्य सामान खरीद लेती है, जैसे गेहूं। यहां की हालत इसलिए भी ऐसी है क्योंकि जो खाने का सामान विश्व खाद्य कार्यक्रम के तहत भेजा जाता है, उसे विद्रोही लोगों तक पहुंचने ही नहीं देते।
खाने का बड़ा संकट
एजेंसियों का कहना है कि जो सामान भेजा जाता है, उसे उसके सही हकदारों तक पहुंचने ही नहीं दिया जाता। जबरन सामान को बाजारों में बेच दिया जाता है। संयुक्त राष्ट्र के आंकड़े बताते हैं कि यमन में दो करोड़ लोग खाद्य संकट का सामना कर रहे हैं। इनमें से एक करोड़ लोग तो ऐसे भी हैं, जिन्हें इतना भी नहीं पता होता कि उन्हें अगले वक्त खाना मिल भी पाएगा या नहीं। हालांकि विद्रोहियों ने इन आरोपों पर कुछ भी नहीं कहा है। वो यह कहकर पल्ला झाड़ लेते हैं कि वो सामान का रास्ता नहीं बदल रहे हैं।
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