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पाकिस्तान की उलझन: भारत विरोधी चरमपंथियों का क्या करे?

यहां के कर्मचारी वही हैं जो पहले थे. वो बताते हैं कि सिर्फ़ एक ही बदलाव हुआ है कि अब स्थानीय अधिकारी कभी-कभी जांच के लिए आते हैं. इस मदरसे को पैसा दान के बजाए सरकार से मिलता है.

मदरसे के दरवाज़े पर खड़े सुरक्षा गार्ड ने पारंपरिक सलवार कमीज़ पहन ली है. उस पर अभी भी अधिकारिक रूप से प्रतिबंधित जमात-उद-दावा का ही नाम लिखा है.

By BBC News हिन्दी
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सांकेतिक तस्वीर
EPA
सांकेतिक तस्वीर

इस्लामाबाद के बाहरी इलाक़े में स्थित एक मदरसे के दरवाज़े पर एक कठोर नौजवान हाथों में शक्तिशाली ऑटोमैटिक राइफल लिए खड़ा था. उसकी एक आंख नहीं थी.

मदरसे के प्रबंधन में शामिल एक व्यक्ति ने स्वीकार किया कि 'ये कहा जाता है कि इसे जैश-ए-मोहम्मद चलाता है.'

14 फ़रवरी को भारत प्रशासित कश्मीर के पुलवामा में सीआरपीएफ़ के काफ़िले पर हुए हमले की ज़िम्मेदारी इसी संगठन में ही है. इस हमले में चालीस से अधिक भारतीय जवान मारे गए थे.

लेकिन जिस धर्म गुरू से हमने बात की उनका कहना था कि ये आरोप ग़लत हैं और मदरसा सिर्फ़ धार्मिक शिक्षा का केंद्र हैं.

उनके पीछे दीवार पर लगे एक छोटे पोस्टर में इस्लामिक इतिहास के प्रमुख युद्ध में कहे गए एक नारे का ज़िक्र था. ये बंदूकों के बीच लिखा था.

बाहर धूल भरी सड़क पर लगे एक पोस्टर पर कश्मीर के समर्थन में रैली का आह्वान था. इसमें जैश-ए-मोहम्मद का काला-सफ़ेद झंडा बना था.

हाल के दिनों में पाकिस्तान सरकार ने जैश-ए-मोहम्मद और अन्य संगठनों पर कार्रवाई की है और उनसे जुड़े सैकड़ों मदरसों और अन्य इमारतों को अपने नियंत्रण में लिया है.

जैश के संस्थापक मसूद अज़हर के भाई को एहतियात के तौर पर हिरासत में ले लिया गया है, उनके अन्य रिश्तेदार और दर्जनों चरमपंथी भी पकड़े गए हैं.

हालांकि इस्लामाबाद के इस मदरसे में अभी सुरक्षा बल की ओर से किसी ने संपर्क नहीं गया है.

'अज़हर सुरक्षित हिरासत में'

मसूद अज़हर
AFP
मसूद अज़हर

माना गया है कि अज़हर भी साल 2016 से पाकिस्तान में ही 'सुरक्षित हिरासत' में हैं. हालांकि वो बीच-बीच में ऑडियो मैसेज जारी करते रहते हैं.

इसी सप्ताह पत्रकारों से बात करते हुए पाकिस्तान के गृहमंत्री शहरयार ख़ान आफ़रीदी ने कहा था कि पाकिस्तान अपनी ज़मीन का इस्तेमाल किसी को नुक़सान पहुंचाने के लिए नहीं होने देगा.

उन्होंने कहा कि सरकार ये क़दम किसी बाहरी दबाव में नहीं उठा रही है बल्कि ये सरकार की अपनी नीति है.

लेकिन ये पहली बार नहीं है कि पाकिस्तान में इन संगठनों पर कार्रवाई की जा रही है. पहले भी पाकिस्तान में ऐसा होता रहा है.

हालांकि बाद में मस्जिदें और मदरसे उनके असली मालिकों को लौटाए जाते रहे हैं और जिन्हें पकड़ा गया उन्हें सबूतों के अभाव में छोड़ा जाता रहा है.

ऐसे में बहुत से लोगों को शक़ है कि इस ताज़ा कार्रवाई से पाकिस्तान से होने वाली भारत केंद्रित चरमपंथी गतिविधियां रुक जाएंगी.

ये भी माना जाता रहा है कि पाकिस्तान के ऐसे समूहों को देश की ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई का समर्थन मिलता रहा है.

भारतीय अधिकारियों ने बीबीसी से कहा है कि वो पहले भी ये सब देख चुके हैं.

मसूद अज़हर ने साल 2000 में जैश-ए-मोहम्मद की स्थापना की थी. इसके कुछ समय पहले ही चरमपंथियों ने भारतीय विमान को अग़वा करके उन्हें भारतीय जेल से रिहा करवाया था.

1990 के दशक में अज़हर प्रभावशाली चरमपंथी थे. उनके अफ़ग़ानिस्तान और कश्मीर संघर्ष से संबंध थे.

पाकिस्तानी विश्लेष अहम रशीद के मुताबिक उन दिनों में जैश के जेहादी बेहद प्रशिक्षित और समर्पित लड़ाके थे. उनका पाकिस्तान के साथ सीधा संबंध नहीं था इसलिए भारत भी इसे लेकर स्पष्ट नहीं था कि उनके हमलों का जबाव कैसे दिया जाए. पाकिस्तान हमेशा ही उनसे अपने संबंधों को नकारता रहा.

माना जाता है कि कश्मीर से जुड़े एक और चरमपंथी संगठन लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) को भी पाकिस्तानी सैन्य बलों का समर्थन मिलता रहा है.

9/11 हमलों के बाद जब अंतरराष्ट्रीय समुदाय जिहादी चरमपंथ पर सख़्त हुआ तो पाकिस्तान ने इन दोनों ही संगठनों पर प्रतिबंध लगा दिया.

हालांकि इनके नेताओं को कभी किसी अपराध का दोषी नहीं सिद्ध दिया गया. दोनों ही संगठनों ने नए नाम भी रख लिए. लश्कर-ए-तैयबा, जमात-उद-दावा हो गया. हालांकि वो अपने आप को अलग बताते रहे.

पुलवामा
Reuters
पुलवामा

2007 में इस्लामाबाद में चरमपंथियों और पाकिस्तानी बलों के बीच हुए ख़ूनी संघर्ष ने आख़िरकार पाकिस्तानी सरकार और चरमपंथियों के रिश्ते को चकनाचूर कर दिया.

इसके बाद से जिहादी संगठन दो गुटों में बंट गए- पाकिस्तान समर्थक और पाकिस्तान विरोधी.

पाकिस्तान विरोधी गुटों ने सुरक्षा बलों और नागरिकों को निशाना बनाया. हज़ारों लोग मारे गए.

पाकिस्तान समर्थक चरमपंथी अफ़ग़ानिस्तान में अमरीकी बलों और भारत प्रशासित कश्मीर में भारतीय सेना पर हमले करते रहे.

जमात-उद-दावा और जैश-ए-मोहम्मद के नेता पाकिस्तान सरकार के प्रति निष्ठावान रहे. हालांकि जैश के बहुत से लड़ाके सरकार विरोधी गुटों में शामिल हो गए.

पाकिस्तान तालिबान के एक शीर्ष कमांडर ने बीबीसी से कहा कि जैश के बहुत से जिहादी उनके संगठन से जुड़े और पाकिस्तानी सैन्यबलों पर हमले कए.

हालांकि बाद में से इनमें से भी बहुत सो ने अपना मन बदल लिया. लेकिन अभी भी तालिबान और अल-क़ायदा जैसे अन्य समूहों में जैश के पूर्व लड़ाके शामिल हैं.

सरकार विरोधी चरमपंथियों पर लगाम

पाकिस्तानी सुरक्षा बल बहुत हद तक सरकार विरोधी चरमपंथियों की क्षमताओं को सीमित करने में कामयाब रहे हैं.

पाकिस्तान इंस्टीट्यूट ऑफ़ पीस स्टडीज़ के मुताबिक पाकिस्तान में साल 2013 में 2500 लोग चरमपंथी हमलों में मारे गए थे. साल 2018 में ऐसे हमलों में 595 लोग मारे गए.

लेकिन अभी भी ये सवाल बना हुआ है कि जैश और जमात उद दावा जैसे निष्ठावान संगठनों के साथ क्या किया जाए? इन संगठनों पर भारत के ख़िलाफ़ हमले करते रहने के आरोप हैं.

मदरसा
BBC
मदरसा

माना जाता है कि साल 2016 में जैश ने भारत प्रशासित कश्मीर में दो बड़े हमले किए, जबकि लश्कर के संस्थापक हाफ़िज़ सईद पर साल 2008 में मुंबई पर हमला करने के आरोप हैं. हालांकि वो इन आरोपों को ख़ारिज करते हैं.

उस समय आरोप लगे थे कि पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसी भी इस हमले में शामिल थी, हालांकि उन्होंने इन आरोपों को खारिज किया लेकिन संदिग्ध के ख़िलाफ़ कार्रवाई संदेहास्पद रूप से बेहद धीमी रही है.

प्रधानमंत्री इमरान ख़ान घोषित तौर पर कह चुके हैं कि उनका मक़सद भारत के साथ संबंध बेहतर करना है. और इन संगठनों की गतिविधियां इस मक़सद की राह में रोड़ा अटकाती दिख रही हैं.

चरमपंथी संगठनों पर कार्रवाई करने में नाकाम रहने की वजह से ही पाकिस्तान को फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स की ग्रे लिस्ट में डाल दिया गया है.

ग्रे लिस्ट का मतलब ये है कि अंतरराष्ट्रीय कंपनियां पाकिस्तान के साथ व्यापार करने से पहले दो बार सोच सकती हैं. और इस समय पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को बाहरी निवेश की भारी ज़रूरत है.

हालांकि पाकिस्तानी अधिकारी ये चिंता भी ज़ाहिर कर चुके हैं कि जैश और जमात-उद-दावा से सीधे टकराव से हिंसा भी बढ़ सकती है.

विश्लेषकों के मुताबिक बीते साल पाकिस्तानी सेना ने चरमपंथी समूहों को मुख्यधारा में लाने का विचार भी पेश किया था.

इसके कुछ ही दिन बाद, जमात-उद-दावा के समर्थकों ने आम चुनावों से ठीक पहले एक राजनीतिक पार्टी भी बना ली थी. इन चुनावों में इमरान ख़ान की पार्टी की जीत हुई थी.

हालांकि उन्होंने एक भी सीट नहीं जीती, उनसे निबटना जैश के मुक़ाबले आसान होगा.

बीते कुछ सालों में हाफ़िज़ सईद ने पाकिस्तान में एंबुलेंसों और अस्पतालों का एक नेटवर्क खड़ा किया है. अब इनमें से कई को सरकार नियंत्रण में ले रही है.

पाकिस्तान के चरमपंथी
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पाकिस्तान के चरमपंथी

पाकिस्तान इंस्टीट्यूट ऑफ़ पीस स्टडीज़ से जुड़े विश्लेषक आमिर राणा कहते हैं कि प्रशासन इस संगठन की जबावी कार्रवाई को लेकर बहुत चिंतित नहीं है.

जमात-उद-दावा यानी जेयूडी ने भी कहा है कि वो सरकार की इस कार्रवाई को अदालत में चुनौती देगी.

राणा कहते हैं कि अधिकारी जैश की ओर से आक्रामक कार्रवाई को लेकर ज़्यादा चिंतित हैं. साल 2002 में जब जैश पर प्रतिबंध लगाया गया था तो इससे जुड़े गुटों ने तत्कालीन सैन्य शासक परवेज़ मुशर्रफ़ की हत्या करने की कोशिश की थी.

हाल ही में पाकिस्तानी सेना और राजनेताओं के बीच एक बैठक हुई. सूत्रों ने बीबीसी को बताया है कि सेना ने सरकार को भरोसा दिया है कि चरमपंथी समूहों से निबट लिया जाएगा.

ताक़त से निबटना संभव नहीं

हालांकि सैन्य अधिकारियों का ये भी मानना है कि ये चरमपंथी इतने ज़्यादा हैं कि इनसे सिर्फ़ ताक़त से नहीं निबटा जा सकता. इनमें से कुछ को मुख्यधारा में लाना ही होगा.

सरकार के पास आए कुछ प्रस्तावों में इन चरमपंथियों के लिए डी-रेडिकेलाइज़ेशन केंद्र खोलना और नौकरियां देना भी शामिल हैं. इन्हें अर्ध-सैनिक बल के तौर पर इस्तेमाल करने की अजीब सलाह भी सरकार को मिली है.

एक वरिष्ठ नेता ने बीबीसी से कहा है कि अब सरकार में ये समझ बन रही है कि इन प्रॉक्सी ताक़तों के कश्मीर में इस्तेमाल की नीति के नतीजे उल्टे मिल रहे हैं और कश्मीर में भारत की ओर से हो रहे मानवाधिकार उल्लंघन का मुद्दा इनसे दब रहा है.

मसूद अज़हर
BBC
मसूद अज़हर

हालांकि उनका ये भी कहना था कि सरकार की प्राथमिकता चरमपंथियों से शांति से निबटने की है.

चरमपंथियों से जुड़े मदरसों और मस्जिदों को नियंत्रण में लेने से पाकिस्तानी सरकार को कुछ दिन सकारात्मक सुर्ख़ियां ज़रूर मिलेंगी, लेकिन मायने ये रखता है कि वो इसके बाद क्या करती हैं.

क्या वाक़ई में इन लोगों पर मुक़दमे चलेंगे? क्या इन समूहों को सीमा पार जाकर गतिविधियां करने से रोका जा सकेगा. क्या इन्हें मुख्यधारा में लाने के प्रयासों का मतलब जिहादियों को हिंसा से दूर करना होगा. या क्या ये सब सिर्फ़ उन्हें वैधता का नकाब पहनाने के लिए किया जा रहा है?

मैं इस्लामाबाद के एक और ग़रीब इलाक़े के एक मदरसे में गया. इसे बीते साल हाफ़िज़ सईद की संस्था से सरकार ने अपने नियंत्रण में लिया था.

यहां के कर्मचारी वही हैं जो पहले थे. वो बताते हैं कि सिर्फ़ एक ही बदलाव हुआ है कि अब स्थानीय अधिकारी कभी-कभी जांच के लिए आते हैं. इस मदरसे को पैसा दान के बजाए सरकार से मिलता है.

मदरसे के दरवाज़े पर खड़े सुरक्षा गार्ड ने पारंपरिक सलवार कमीज़ पहन ली है. उस पर अभी भी अधिकारिक रूप से प्रतिबंधित जमात-उद-दावा का ही नाम लिखा है.

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English summary
Pakistans confusion What do anti terrorist extremists do
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