बाइडन प्रशासन में अधिक भारतीयों के होने से ‘परेशान’ हैं पाकिस्तानी?
जो बाइडन की सरकार में भारतीय मूल के तक़रीबन 20 भारतीय-अमेरिकी शामिल हैं. वहीं कमला हैरिस की मां का संबंध भारत से है. क्या इससे पाकिस्तानी-अमेरिकी समुदाय में कोई चिंता है
नीरा टंडन (डायरेक्टर ऑफ़ मैनेजमेंट एंड बजट), डॉक्टर विवेक मूर्ति (यूएस सर्जन जर्नल), सबरीना सिंह (व्हाइट हाउस डिप्टी प्रेस सेक्रेटरी), वनीता गुप्ता (एसोसिएट अटॉर्नी जनरल), उज़रा ज़िया (अंडर सेक्रेटरी ऑफ़ स्टेट फ़ॉर सिविलियन सिक्यॉरिटी, डेमोक्रेसी एंड ह्यूमन राइट्स), विनय रेड्डी (व्हाइट हाउस डायरेक्टर ऑफ़ स्पीचराइटिंग), समीरा फ़ाज़िली (व्हाइट हाउस में नेशनल इकोनॉमिक काउंसिल की डिप्टी डायरेक्टर) और इसके अलावा भी बहुत से नाम हैं.
तक़रीबन 20 अमेरिकी-भारतीय बाइडन-हैरिस प्रशासन में महत्वपूर्ण पदों पर अपनी सेवाएं दे रहे हैं इनमें उप-राष्ट्रपति कमला हैरिस भी शामिल हैं जिनकी मां भारत में पैदा हुई थीं.
इसके मुक़ाबले इस एक महीने पुराने प्रशासन में पाकिस्तानी-अमेरिकी लोगों की संख्या सिर्फ़ दो है.
न्यूयॉर्क स्थित पाकिस्तानी मूल के पत्रकार मोविज़ सिद्दीक़ी कहते हैं कि यह पाकिस्तानी-अमेरिकियों के लिए एक 'चिंता' का विषय है.
वो कहते हैं, "ऐसा माना जा रहा है कि अगर कभी किसी के हित का मुद्दा आएगा तो वे (प्रशासन में मौजूद भारतीय-अमेरिकी) पाकिस्तानी हित की जगह भारत का हित देखेंगे."
इस बातचीत में जम्मू-कश्मीर पर अमेरिकी नीति भी शामिल है.
सिद्दीक़ी ने कहा, "पाकिस्तानी-अमेरिकी लोग पाकिस्तानी होने के साथ-साथ मुस्लिम होने की बात भी करते हैं. इस प्रशासन में मुसलमान भी बेहद कम हैं."
"पाकिस्तानी-अमेरिकियों ने इस बार (डेमोक्रेट्स के लिए) बहुत सारा पैसा जुटाया था. उन्होंने बहुत सी चीज़ें की थीं लेकिन उनके शामिल नहीं होने से चिंता बढ़ रही है."
ह्यूस्टन से पाकिस्तानी-अमेरिकी व्यवसायी और फ़ंड इकट्ठा करने वाले ताहिर जावेद ने मुझसे कहा कि उनके समुदाय ने इस बार 1 करोड़ डॉलर के क़रीब फ़ंड इकट्ठा किया था, हालांकि यह संख्या और भी अधिक हो सकती है.
कई लोगों को उम्मीद थी कि वो भी नवनियुक्त लोगों की सूची में शामिल होंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
न्यूयॉर्क स्थित अमेरिकन पाकिस्तानी पब्लिक अफ़ेयर कमिटी के डॉक्टर एजाज़ अहमद को लेकर भी उम्मीद जताई गई थी कि वो प्रशासन में शामिल होंगे लेकिन उनको नहीं लिया गया.
सिद्दीक़ी कहते हैं, "इसको लेकर चिंताएं हैं लेकिन लोग इस पर खुलकर नहीं बोल रहे हैं. भारतीय-अमेरिकी और पाकिस्तानी-अमेरिकी समुदायों में एक प्रतियोगिता की भावना है."
हालांकि, कुछ ऐसे पाकिस्तानी-अमेरिकी भी हैं जो किसी भी 'चिंता' को ख़ारिज करते हैं.
पाकिस्तानी-अमेरिकी समुदाय से आने वाले सलमान अहमद ने अमेरिकी विदेश मंत्रालय में पॉलिसी प्लानिंग स्टाफ़ के डायरेक्टर के तौर पर ज़िम्मेदारी संभाली है. वहीं अली ज़ैदी डिप्टी नेशनल क्लाइमेट एडवाइज़र बनाए गए हैं.
ट्रंप के समर्थक और मुस्लिम वॉयसेस फ़ॉर ट्रंप के सह-अध्यक्ष साजिद तरार सिर्फ़ दो पाकिस्तानी-अमेरिकी लोगों को प्रशासन में जगह देने को 'निरर्थक' बताते हैं.
पाकिस्तानी-अमेरिकी समुदाय के लोगों की कम भागीदारी की बनाई गई छवि से बहुत से लोग असहमत भी हैं.
बाल्टिमोर के रिपब्लिकन नेता तरार कहते हैं, "पाकिस्तान की राजनीतिक स्थिति अमेरिका में दिखाई दे रही है. यहां पर (समुदाय के भीतर) शिक्षा, राजनीतिक जागरूकता की कमी है."
प्रशासन में नई जगहों की संभावनाएं हैं?
मानवाधिकार अधिवक्ता और कांग्रेस के पूर्व उम्मीदवार क़ासिम राशिद का मानना है कि आने वाले दिनों में बाइडन प्रशासन का विस्तार होगा और उसमें पाकिस्तानी-अमेरिकियों को अधिक जगह मिलेगी.
पहली पीढ़ी के पाकिस्तानी-अमेरिकी क़ासिम को कांग्रेस चुनाव के लिए जो बाइडन ने समर्थन दिया था. वो कहते हैं, "मुझे लगता है कि 4400 नियुक्तियों होनी हैं और अगर मैं ग़लत नहीं हूं तो अभी तक 400 से कम लोगों को नियुक्त किया गया है."
ताहिर जावेद भी बेहद सकारात्मक हैं. वो कहते हैं, "मुझे नहीं लगता है कि बाइडन प्रशासन समुदाय विशेष के प्रतिनिधित्व को देख रहा है."
वो कहते हैं कि उनके समुदाय की भारतीय समुदाय से तुलना को बंद कर दिया जाना चाहिए.
पाकिस्तानी-अमेरिकी समुदाय की जनसंख्या तक़रीबन 10 लाख है वहीं भारतीय-अमेरिकी लोगों की संख्या 45 लाख बताई जाती है.
भारतीय-अमेरिकी लोग प्रशासन में पाकिस्तानी-अमेरिकियों से भी पहले रहते आए हैं.
अमेरिकी कांग्रेस में इस समय चार भारतीय-अमेरिकी हैं जबकि उसमें कोई पाकिस्तानी-अमेरिकी शामिल नहीं है. उप-राष्ट्रपति कमला हैरिस की मां का संबंध भी भारत से है.
जावेद कहते हैं, "अगर अमेरिका में दक्षिण एशियाई समुदाय मज़बूत होगा तो पाकिस्तानी भी उसके ज़रिए सशक्त होंगे. अगर मुस्लिम समुदाय सशक्त होगा तो पाकिस्तानी भी उसके ज़रिए सशक्त होने चाहिए."
भारतीय-अमेरिकियों से तुलना को वो 'बचकानी बात' कहते हैं.
वो कहते हैं, "मैं उन्हें भारतीय-अमेरिकियों की तरह नहीं देखता हूं. मैं उन्हें अल्पसंख्यक लोगों के तौर पर देखता हूं जिनके हिंदू नाम हैं."
भारतीय-अमेरिकी लोगों को लेकर 'चिंता' जायज़ है?
सितंबर 2019 के एक यूट्यूब वीडियो में कमला हैरिस से भारत प्रशासित कश्मीर में संचार माध्यम पर प्रतिबंध लगाए जाने और लोगों को हिरासत में लिए जाने को लेकर सवाल पूछा गया था.
इस वीडियो के डिस्क्रिप्शन में लिखा है कि वो राष्ट्रपति उम्मीदवार के लिए टेक्सस के ह्यूस्टन में आयोजित एक कार्यक्रम में बोल रही थीं.
इसमें सवाल का जवाब देते हुए उन्होंने कहा, "लोगों को यह याद दिलाना ज़रूरी है कि वे अकेले नहीं हैं, हम उन्हें देख रहे हैं."
"अक्सर जब हम मानवाधिकारों के उल्लंघन को देखते हैं, चाहे वो यहां हो रहे हों या दुनिया के किसी भी देश में हो रहे हों. अत्याचार करने वाला उन लोगों को यह विश्वास दिलाता है कि जो उनके साथ हो रहा है उसकी कोई परवाह नहीं करता."
कमला हैरिस के इस बयान की समीक्षा करते हुए कइयों ने कहा कि यह कश्मीर पर एक बड़ा बयान है.
भारतीय-अमेरिकी सांसद प्रमिला जयपाल को जम्मू-कश्मीर पर भारतीय नीति की घोर आलोचक रही हैं.
कमला हैरिस की भांजी मीना हैरिस के किसान प्रदर्शनों पर किया गया ट्वीट भारत में ख़बर बना था.
भारतीय-अमेरिकी समुदाय के एक तबके ने पिछले कुछ महीनों में पूरे अमेरिका में नरेंद्र मोदी सरकार के कुछ फ़ैसलों के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन किया है. इनमें नागरिकता क़ानून, जम्मू-कश्मीर, एनआरसी, कथित गोरक्षकों की हिंसा, लिंचिंग और दूसरे मुद्दे शामिल हैं.
कमला हैरिस और जयपाल का उदाहरण देते हुए पाकिस्तानी-अमेरिकी पॉलिटिकल एक्शन कमिटी के राव कामरान अली कहते हैं, "ऐसा नहीं है कि सभी भारतीय-अमेरिकी सिर्फ़ एकतरफ़ा हैं. यहां पर ऐसे भारतीय-अमेरिकी भी हैं जो मानवाधिकारों की परवाह करते हैं और यह भी देखते हैं कि क्या ग़लत है और क्या सही है."
विश्लेषक कहते हैं कि प्रशासन में मौजूद दूसरी पीढ़ी के भारतीय-अमेरिकी लोगों में अपने पहली पीढ़ी के बाप-दादाओं के मुक़ाबले भारत के मुद्दों की जगह अमेरिका की चिंता अधिक दिखाई देती है.
बॉस्टन यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर आदिल नजम का मानना है कि भारतीय-अमेरिकी किसी भी भेदभाव के आरोपों से बचते हुए दिखाना चाहेंगे कि उनका ध्यान काम पर है.
वो कहते हैं, "गूगल जैसी कंपनियों को देखिए जहां पर शीर्ष पदों पर भारतीय-अमेरिकी हैं, उन्होंने अपने लोगों को यह यक़ीन दिलाने में कितना संघर्ष किया होगा कि वे अमेरिकी हैं."
प्रशासन में पाकिस्तानी-अमेरिकी कैसे जगह बनाएंगे?
पत्रकार मोविज़ सिद्दीक़ी कहते हैं कि पाकिस्तानी-अमेरिकियों में भारतीयों की राह पर चलने को लेकर काफ़ी चर्चाएं हो रही हैं.
वो कहते हैं, "सवाल पूछे जा रहे हैं कि हम उस तरह से पहुंच क्यों नहीं बना सकते हैं जैसे कि भारतीय-अमेरिकी लोगों ने बनाई है?"
स्थानीय अमेरिकी राजनीति में इस समुदाय की भागीदारी के लिए पाकिस्तान की घरेलू राजनीति में गहरी दिलचस्पी को भी ज़िम्मेदार ठहराया जाता है.
अमेरिका में पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ़ के प्रतिनिधि जॉनी बशीर वर्जीनिया में रहते हैं. वो कहते हैं, "यहाँ के घरों में जब भी आप टीवी खोलते हैं तो पाकिस्तान की स्थानीय राजनीति की बात हो रही होती है."
पीटीआई की अमेरिका में 13 शाखाएं हैं और अगले साल तक इसके 20 होने की संभावना है.
अधिकतर शाखा के सदस्य 40 साल की आयु से अधिक के हैं. दूसरी पीढ़ी के युवा पाकिस्तानी-अमेरिकी स्थानीय राजनीति में अधिक शामिल हैं.
बशीर के अनुसार, पीटीआई की यह शाखाएं निवेश और शिक्षा के क्षेत्र में मौक़ों की संभावनाएं खोजने की जगह अमेरिका में पाकिस्तानी नेताओं के स्वागत, तस्वीरों, पार्टियों और डिनर के लिए हैं.
वो कहते हैं, "पीटीआई नेता होने के नाते मैं कहूंगा कि इनसे अधिक लाभ नहीं है."
हालांकि, क़ासिम राशिद को उम्मीद है कि अर्थशास्त्री आतिफ़ मियां और संक्रामक रोग विशेषज्ञ डॉक्टर फ़हीम यूनुस जैसे पाकिस्तानी-अमेरिकी विस्तार होने पर बाइडन प्रशासन में जगह बनाएंगे.