क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

पाकिस्तान को कोसना बंद करें, अफ़ग़ानिस्तान से बोले इमरान ख़ान

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान के हाल में दिए गए बयान काफ़ी चर्चा में हैं. अब उन्होंने एक अमेरिकी अख़बार में लेख लिखा है जिसकी चर्चा हो रही है.

By BBC News हिन्दी
Google Oneindia News
इमरान ख़ान
Reuters
इमरान ख़ान

अफ़ग़ानिस्तान में शांति स्थापित करने के मुद्दे के बीच एक बार फिर पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान ख़ान का बयान सामने आया है.

ग़ौरतलब है कि हाल ही में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री शाह महमूद क़ुरैशी के अफ़ग़ानिस्तान, तालिबान और अमेरिका पर दिए बयान काफ़ी चर्चा में रहे हैं.

रविवार को एचबीओ मैक्स पर प्रसारित हुए इमरान ख़ान के इंटरव्यू के बाद उनके कई बयानों पर चर्चा जारी है. यह इंटरव्यू अमेरिकी समाचार वेबसाइट AXIOS ने लिया था.

इस दौरान इंटरव्यू लेने वाले पत्रकार जोनाथन स्वैन ने इमरान ख़ान से पूछा था कि क्या अफ़ग़ानिस्तान से इस साल 11 सितंबर को अमेरिकी सेना के चले जाने के बाद पाकिस्तान उसे अपने बेस का इस्तेमाल करने देगा.

इसके जवाब में इमरान ख़ान ने कहा था कि वो इसकी इजाज़त नहीं देंगे.

इसके अलावा इमरान ख़ान ने पाकिस्तान की अफ़ग़ानिस्तान में शांति स्थापित करने की भूमिका और चरमपंथ के ख़िलाफ़ लड़ाई पर भी काफ़ी कुछ बोला था.

पाकिस्तान अफ़ग़ानिस्तान में अपनी मज़बूत पकड़ रखना चाहता है लेकिन साल 2001 में अमेरिका के अफ़ग़ानिस्तान में घुसने के बाद और तालिबान को सत्ता से हटाने के बाद उसकी पकड़ कमज़ोर हुई है.

लेकिन पाकिस्तान शांति वार्ता के ज़रिए और तालिबान-अमेरिका के बीच समझौता कराने के उद्देश्य से अफ़ग़ानिस्तान में अपनी पकड़ मज़बूत रखना चाहता है.

इमरान ख़ान ने अमेरिकी अख़बार में दिया तर्क

इमरान ख़ान
Reuters
इमरान ख़ान

पाकिस्तान के शीर्ष नेता लगातार अफ़ग़ानिस्तान को लेकर बयान दे रहे हैं. इसी कड़ी में पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद क़ुरैशी और अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) हम्दुल्लाह मोहिब के बीच काफ़ी 'तू-तू मैं-मैं' भी देखी जा चुकी है.

अफ़ग़ानिस्तान के NSA कह चुके हैं कि पाकिस्तान जान-बूझकर अफ़ग़ानिस्तान के मामले में दख़ल दे रहा है. और वो पाकिस्तान पर अक्सर ही अफ़ग़ान तालिबान को समर्थन और मदद देने का आरोप लगाते रहे हैं.

यह भी पढ़ें: पाकिस्तान के विदेश मंत्री महमूद क़ुरैशी ने कहा- मेरा ख़ून खौल रहा है

हालांकि, इस बात को माना भी जाता है कि जब तक अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान प्रभावी रहा तब तक पाकिस्तान का दख़ल काफ़ी रहा लेकिन 9/11 के हमले के बाद स्थिति बदली और अफ़ग़ानिस्तान में चुनी हुई सरकार आई.

चुनी हुई सरकार आने के बाद से पाकिस्तान की स्थिति अफ़ग़ानिस्तान में कमज़ोर हुई है. अमेरिका और तालिबान के बीच शांति वार्ता में अफ़ग़ानिस्तान की सरकार शामिल नहीं रही थी और जानकारों का कहना है कि पाकिस्तान भी यही चाहता था.

अफ़ग़ानिस्तान को लेकर अब इमरान ख़ान ने अमेरिकी अख़बार 'द वॉशिंगटन पोस्ट' में एक लेख लिखा है, जिसका शीर्षक है 'अफ़ग़ानिस्तान में पाकिस्तान शांति के लिए साझेदार बनने को तैयार है, लेकिन हम अमेरिकी बेस के मेज़बान नहीं होंगे.'

इससे एक बात फिर साफ़ हो गई है कि पाकिस्तान अमेरिका के अफ़ग़ानिस्तान से जाने के बाद वो अपनी ज़मीन को उसे इस्तेमाल नहीं करने देगा.

वो इसकी इजाज़त क्यों नहीं देगा इसका तर्क देते हुए इमरान ख़ान ने लिखा है, "अगर पाकिस्तान अमेरिकी बेस की मेज़बानी की अनुमति दे देता है जहां से अफ़ग़ानिस्तान पर बम गिराए जाएं तो फिर एक और अफ़ग़ान गृह युद्ध छिड़ेगा, पाकिस्तान से बदला लेने के लिए आतंकी उसे निशाना बनाएंगे. हम इसे बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं. हम पहले ही बहुत बड़ी क़ीमत इसकी दे चुके हैं. वहीं, अगर अमेरिका इतिहास की सबसे शक्तिशाली सैन्य मशीन के साथ अफ़ग़ानिस्तान के अंदर 20 साल बाद भी युद्ध नहीं जीत सकता तो फिर वो हमारे बेस से कैसे जीत जाएगा?"

अफ़ग़ानिस्तान से तनातनी भी झलकी

इमरान ख़ान
Reuters
इमरान ख़ान

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान लगातार अफ़ग़ानिस्तान में शांति की बात कर रहे हैं.

लेकिन दूसरी ओर अफ़ग़ानिस्तान की सत्ता में बैठे नागरिक सरकार के वरिष्ठ नेताओं के बयान अक्सर पाकिस्तान के ख़िलाफ़ रहते हैं, जिससे साबित होता है कि वो पाकिस्तान को इन सबके बीच में नहीं आने देना चाहते हैं.

उनका आरोप रहा है कि पाकिस्तान की ज़मीन का इस्तेमाल अभी भी चरमपंथी अफ़ग़ानिस्तान में हमले के लिए कर रहे हैं. वहीं, पाकिस्तान कहता आया है कि उसने चरमपंथ की भारी क़ीमत चुकाई है.

दोनों देशों के बीच तनातनी की झलक इमरान ख़ान के लेख में भी देखने को मिली है.

इमरान ख़ान ने लिखा, "अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिका और पाकिस्तान के हित एक जैसे हैं. हम बातचीत के ज़रिए शांति चाहते हैं न कि गृह युद्ध. हम स्थिरता चाहते हैं और दोनों देशों में आतंकवाद को ख़त्म करना चाहते हैं. हमने उस समझौते का समर्थन किया है जो अफ़ग़ानिस्तान में दो दशकों में हुए विकास को संरक्षित रखेगा. हम आर्थिक विकास चाहते हैं और मध्य एशिया से कनेक्टिविटी चाहते हैं ताकि व्यापार बढ़े और हमारी अर्थव्यवस्था ऊपर उठे. अगर आगे गृह युद्ध हुआ तो हम सभी बह जाएंगे."

इसके अलावा इमरान ख़ान ने अपने लेख में पाकिस्तान को तालिबान और अमेरिका को बातचीत के लिए एक टेबल पर लाने का श्रेय दिया.

उन्होंने लिखा है, "तालिबान को बातचीत की मेज़ पर लाने के लिए हमने वास्तविक कूटनीतिक कोशिशें की हैं. सबसे पहले अमेरिका के साथ और फिर अफ़ग़ान सरकार के साथ. हम जानते हैं कि अगर तालिबान सैन्य जीत घोषित करता है तो इसके कारण न समाप्त होने वाला रक्तपात शुरू होगा. हम आशा करते हैं कि अफ़ग़ान सरकार भी बातचीत में अधिक लचीलापन दिखाएगी और पाकिस्तान को दोष देना बंद करेगी. जैसा कि हम सबकुछ कर रहे हैं हम सैन्य कार्रवाई भी कम कर सकते हैं."

भारत से डरे हुए हैं इमरान ख़ान?

इमरान ख़ान
Reuters
इमरान ख़ान

अफ़गानिस्तान में पाकिस्तान के अलावा रूस और चीन की भी ख़ासी रुचि है और इसका ज़िक्र इमरान ख़ान के लेख में भी मिलता है.

लेकिन उधर भारत के अफ़ग़ानिस्तान से मज़बूत रिश्ते पाकिस्तान को परेशान करते रहे हैं.

पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमूद क़ुरैशी के अफ़ग़ान टीवी चैनल टोलो न्यूज़ को दिए इंटरव्यू में भारत की अफ़ग़ानिस्तान में मौजूदगी पर सवाल उठाए थे.

टोलो न्यूज़ ने क़ुरैशी से पूछा कि अफ़ग़ानिस्तान में भारत के कितने काउंसलेट हैं? इस पर क़ुरैशी ने कहा, ''आधिकारिक रूप से तो चार हैं लेकिन अनाधिकारिक रूप से कितने हैं, ये आप बाताएंगे. मुझे लगता है कि अफ़ग़ानिस्तान की सरहद भारत से नहीं मिलती है. ज़ाहिर है कि अफ़ग़ानिस्तान का भारत से एक संप्रभु राष्ट्र के रूप में संबंध है.''

यह भी पढ़ें: इमरान ख़ान को कुलभूषण जाधव का वकील क्यों बता रहा विपक्ष

शाह महमदू क़ुरैशी
Reuters
शाह महमदू क़ुरैशी

''दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंध हैं. ये आपका अधिकार है कि भारत के साथ द्विपक्षीय संबंध रखें. दोनों देशों के बीच कारोबार भी है और इसमें हमें कोई दिक़्क़त नहीं है. लेकिन मुझे लगता है कि अफ़ग़ानिस्तान में भारत की मौजूदगी जितनी होनी चाहिए उससे ज़्यादा है क्योंकि दोनों देशों के बीच कोई सीमा भी नहीं लगती है.''

वहीं, भारत के विदेश मंत्रालय ने दो सप्ताह पहले साफ़ किया था कि वो अफ़ग़ान शांति प्रक्रिया के साझेदारों के साथ संपर्क में हैं. भारत किस-किस साझेदार के संपर्क में है यह साफ़ नहीं है लेकिन ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि भारत की तालिबान के नेताओं से भी बातचीत हुई है.

ये सब बातें पाकिस्तान के लिए ख़ास मायने रखती हैं इसीलिए वो बेहद सावधानी से इस मामले में आगे बढ़ रहा है. इमरान ख़ान ने अपने लेख में कुछ ग़लतियों को भी स्वीकार किया है.

उन्होंने लिखा है, "पहले पाकिस्तान अफ़ग़ानिस्तान में विभिन्न पक्षों को चुनने में ग़लती कर चुका है और उससे उसने सीखा. हमारा कोई चहेता नहीं है और हम किस भी सरकार के साथ काम करना चाहेंगे जिसने अफ़ग़ानी लोगों के भरोसे को जीता हो. इतिहास से साबित हो चुका है कि अफ़ग़ानिस्तान को बाहर से नियंत्रित नहीं किया जा सकता है."

इमरान ख़ान ने कहा है कि अफ़ग़ानिस्तान में युद्ध से पाकिस्तान को काफ़ी नुक़सान उठाना पड़ा है और उसके कारण 70,000 से अधिक पाकिस्तानी मारे गए हैं.

(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)

BBC Hindi
Comments
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
English summary
pakistan won't host us bases in afghanistan say prime minister imran khan
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X