
पाकिस्तान तालिबान ने तोड़ा संघर्षविराम, क्या जनरल बाजवा के रिटायरमेंट से है कोई कनेक्शन?
तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान यानी टीटीपी पिछले 14 साल से देश में कड़े इस्लामी कानून लागू करने के लिए लड़ रहा है.

पाकिस्तान में नया संकट
- तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान यानी टीटीपी ने सरकार से संघर्षविराम समझौता तोड़ा
- टीटीपी के सदस्यों को पाकिस्तान में जगह-जगह हमले के आदेश
- पाकिस्तान सरकार मुसीबत टालने के लिए अफ़ग़ान तालिबान के पास पहुंची
- विदेश राज्य मंत्री हिना रब्बानी खर तालिबान से बात करने के लिए काबुल गईं
- टीटीपी का ये ऐलान पाकिस्तान की आतंरिक सुरक्षा के लिए नई मुसीबत
पाकिस्तान में शहबाज़ शरीफ़ की मुश्किलें और बढ़ती दिख रही हैं. इमरान खा़न के लॉन्ग मार्च से पैदा सियासी तनातनी और नए सेनाध्यक्ष की नियुक्ति को लेकर अनिश्चितता खत्म हुई ही थी कि चरमपंथी संगठन तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) ने सरकार के साथ संघर्षविराम के खात्मे का ऐलान कर दिया.
टीटीपी ने इस ऐलान के साथ ही अपने सदस्यों को देश भर में हमला करने का आदेश दिया है.
इस ऐलान के बाद पाकिस्तान में सेना और टीटीपी के बीच एक और खू़नी जंग का ख़तरा अब और बढ़ गया है.
इसके साथ ही नागरिकों पर भी टीटीपी के हमले का ख़तरा बढ़ गया है. टीटीपी देश में अल्पसंख्यकों, महिलाओं और उदारवादियों पर हमले करता रहा है.
साल 2012 में टीटीपी के चरमपंथियों ने नोबेल पुरस्कार विजेता मलाला यूसुफ़जई पर गोलियां चलाई थीं.
तहरीक -ए- तालिबान पाकिस्तान ने ऐसे वक्त में सीजफायर तोड़ने का ऐलान किया है, जब जनरल कमर जावेद बाजवा की जगह आसिम मुनीर पाकिस्तान सेना की कमान संभालने जा रहे हैं. इसके साथ ही इंग्लैंड की क्रिकेट टीम 17 साल बाद अपनी पहली टेस्ट सिरीज़ खेलने यहां पहुंची है.
सीज़फायर तोड़ने का ऐलान करते हुए टीटीपी ने कहा है कि वो पांच महीने पुराना सीजफायर तोड़ने जा रहा है क्योंकि सेना ख़ैबर पख़्तूनख़्वा प्रांत के बन्नू और लक्की मारवात इलाकों में उसके ख़िलाफ ताबड़तोड़ हमले कर रही है.
टीटीपी ने एक बयान में कहा, '' हम सेना की ओर से सीज़फायर के उल्लंघन पर बार-बार चेताते रहे हैं. इस बीच हमने काफी संयम का परिचय दिया है और कोई जवाबी हमला नहीं किया है. ताकि शांति प्रक्रिया को चोट पहुंचाने का इल्जाम हम पर न लगे.''
सीज़फायर तोड़ने को लेकर टीटीपी ने और क्या कहा?
पाकिस्तान में प्रतिबंधित इस चरमपंथी संगठन ने संघर्षविराम को तोड़ने के समर्थन में दी गई दलीलों में कहा है, ''हमारे चुप रहने के बावजूद पाकिस्तानी सेना और खुफिया एजेंसियों ने हमले जारी रखे. लेकिन अब हमने जवाबी कार्रवाई करने का फ़ैसला किया है. अब हम पूरे देश में जवाबी हमले शुरू करेंगे. ''
पाकिस्तान ने पिछले साल अफगानिस्तान की अंतरिम तालिबान सरकार की मदद से टीटीपी से बातचीत शुरू की थी लेकिन यह नाकाम रही थी.
इस साल मई में बातचीत फिर शुरू हुई और जून में सीज़फायर लागू हो गया . टीटीपी को उम्मीद थी कि सरकार ख़ैबर पख़्तूनख़्वा में आस-पास के जनजातीय इलाकों को मिलाने के अपने फैसले को रद्द कर देगी. लेकिन उसने ऐसा करने से इनकार कर दिया.
इसके बावजूद टीटीपी उम्मीद लगाए रहा कि सरकार मान जाएगी. एक संगठन के तौर पर टीटीपी सेना पर हमले तो नहीं कर रहा था. लेकिन इसमें शामिल अलग-अलग गुटों की ओर से हमले जारी रहे. टीटीपी इन हमलों की जिम्मेदारी लेने से इनकार करता रहा.

टीटीपी क्या है?
तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान पिछले 14 साल से देश में कड़े इस्लामी कानून लागू करने के लिए लिए लड़ रहा है. टीटीपी चाहता है कि सरकार कैद में डाले गए उसके सदस्यों को रिहा करे और पहले के जनजातीय इलाकों में सेना की मौजूदगी घटाए.
चूंकि इन इलाकों में टीटीपी अपना वर्चस्व बढ़ाने में लगा है इसलिए वो इन इलाकों में फौज नहीं चाहता. टीटीपी यहां अपना हुकूमत चलाना चाहता है और इस वजह से फौज उसका टकराव होता रहता है.
टीटीपी को पाकिस्तान का तालिबान कहा जाता है. 2007 में बने इस संगठन के तहत कई छोटे-छोटे ग्रुप हैं.
वरिष्ठ पत्रकार सकलैन इमाम कहते हैं, '' तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान कोई एक संगठन नहीं है. इसमें छोटे-छोटे कई गुट हैं. देश के फाटा और पड़ोसी खैबर पख्तूनख्वा इलाके में ये पाकिस्तान का असर कम करना चाहता है. पाकिस्तान सरकार चाहती है कि इन्हें शांत करा कर इनका असर कम किया जाए.
वो कहते हैं, '' इसके लिए इसने टीटीपी के सदस्यों को स्वात ,बाजौर और कुर्रम एजेंसियों में इन्हें बसाना भी शुरू किया लेकिन वहां उनका शिया पठानों जैसे अल्पसंख्यक समुदायों के लोगों से टकराव होने लगा. टीटीपी ने अल्पसंख्यकों को निशाना भी बनाना शुरू किया. जिससे पाकिस्तान सरकार को एक बार फिर इनके खिलाफ कड़ा रुख अपनाना पड़ा ''
कुल मिलाकर टीटीपी पाकिस्तान में इस्लामी साम्राज्य स्थापित करना चाहता है. इसके लिए उसे पाकिस्तानी की मौजूदा सत्ता को उखाड़ फेंकना होगा. लिहाजा पाकिस्तान की सरकार और सेना से उसका टकराव लाजिमी है.

टीटीपी के ऐलान की टाइमिंग
टीटीपी ने युद्धविराम तोड़ने का ऐलान ऐसे समय में किया है जब जनरल बाजवा सेनाध्यक्ष के पद से हट रहे हैं और उनकी जगह असिम मुनीर लेने जा रहे हैं. बाजवा ने ही मई में टीटीपी के साथ सीजफायर को अनुमति दी थी
सकलैन इमाम कहते हैं, '' टीटीपी को लगता है कि ये अपना रुख आक्रामक करने का सही वक्त है. इसके अलावा इसमें सेना के भीतर चल रही अंदरुनी खेमेबाजी का भी हाथ हो सकता है. पाकिस्तानी सेना में ऐसे तत्व हो सकते हैं जो नए सेना प्रमुख की मुश्किलें बढ़ाने के लिए टीटीपी को उकसा सकते हैं.''
साफ है कि नए सेनाध्यक्ष के लिए टीटीपी का सीजफायर तोड़ना का फैसला एक नया सिरदर्द होगा.
पाकिस्तान के वरिष्ठ पत्रकार हारुन रशीद बीबीसी हिंदी से बातचीत में कहते हैं, '' टीटीपी के साथ सीजफायर की वजह से पिछले चार-पांच महीने शांति के रहे थे. अफगानिस्तान में नई तालिबान सरकार के आने के बाद से पाकिस्तान में टीटीपी के हमले बढ़ गए थे. ''
वो कहते हैं, ''टीटीपी चाहता था कि पाकिस्तान जनजातीय इलाकों को उनके पहले का दर्जा दे दिया जाए और सेना वहां स हट जाए. लेकिन तालिबान का सहयोगी होने की वजह से पाकिस्तान सरकार ने अफ़ग़ान तालिबान पर दबाव डाल कर टीटीपी को समझौते की मेज पर लाने में सफलता हासिल की. देखना है कि सेना अब बदले हालात को कैसे संभालती है.''
पाकिस्तानी सरकार टीटीपी को काबू करने में कहां तक कामयाब होगी?
इस सवाल पर हारुन रशीद कहते हैं, ''सरकार को इसमें कितनी सफलता मिलती है ये देखने वाली बात होगी. पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो कह चुके हैं कि इस मुद्दे को सुलझाने में अफगान तालिबान मदद कर सकता है. विदेश राज्यमंत्री हिना रब्बानी खर इसी मकसद से काबुल गई हैं. लेकिन यह कदम कितना कामयाब होगा कहा नहीं जा सकता.
वो कहते हैं, ''अफगान तालिबान टीटीपी को ज्यादा नाराज नहीं करना चाहेगा. आखिरकार टीटीपी ने उसके साथ मिल कर पश्चिमी देशों की सेनाओं से काफी लड़ाई लड़ी है और पाकिस्तान सरकार भी जनजातीय इलाकों को टीटीपी को प्लेट में सजा कर नहीं दे सकती.''
टीटीपी के दबाव की क्या है वजह ?
हारुन रशीद कहते हैं,'' देखिए सरकार और टीटीपी के बीच तो ताजा तनाव है वह डेरा इस्माइल ख़ान में छह पुलिसवालों के एक हमले की मौत के बाद शुरू हुआ. माना गया कि ये वहां पाकिस्तानी सुरक्षा बलों की ओर से चलाए जा रहे अभियान का जवाबी हमला है.''
वो टीटीपी के मौजूदा रुख के पीछे एक और वजह बताते हैं. वो कहते हैं, '' टीटीपी के अंदर भी एक दबाव बनता जा रहा था. यहां ये बात महसूस की जा रही थी कि जब से अफगान तालिबान अफगानिस्तान में सत्ता में आए तब से संगठन पाकिस्तान सरकार के प्रति कुछ ज्यादा ही नरम हो गया है. दूसरे, अफगानिस्तान में टीटीपी के नेता एक-एक कर मारे जा रहे थे. टीटीपी को शक है इसमं पाकिस्तानी सेना या उसकी खुफिया एजेंसियों का हाथ है. इस वजह से टीटीपी में टूट की आशंका बढ़ने लगी थी. शायद इसलिए भी टीटीपी ने पाकिस्तान सरकार के खिलाफ नए सिरे से आक्रामक रुख अपनाया है. ''

टीपीपी का युद्धविराम तोड़ना पाकिस्तान को कितना नुकसान पहुंचाएगा?
पाकिस्तान के लिए ये कितना बड़ा संकट है? इस सवाल के जवाब में हारुन रशीद कहते हैं, '' पाकिस्तान इस वक्त भारी आर्थिक संकट से गुजर रहा है. जनवरी-फरवरी में पाकिस्तान को अपने कर्ज का एक हिस्सा चुकाना है. हालांकि पाकिस्तान के विदेशी मुद्रा भंडार की स्थिति अच्छी नहीं है. लेकिन शहबाज सरकार ने कहा है कि हालात इतने खराब नहीं है. वो इसे संभाल लेगा. लेकिन इस बिगड़े आर्थिक हालात में अगर आंतरिक सुरक्षा की दिक्कतें पैदा हो जाए तो ये बड़ी मुसीबत बन जाएगी. ''
हालांकि रशीद ये भी कहते हैं कि टीटीपी में बड़े हमले कर पाकिस्तानी सेना को अस्थिर करने की ताकत नहीं है. लेकिन टीटीपी ने आक्रामक रुख ने सरकार के लिए संकट में एक और मोर्चा तो खोल ही दिया है. '

सकलैन इमाम के मुताबिक पाकिस्तानी सेना के पास टीटीपी की चुनौती का हल नहीं है.
इसकी वजह बताते हुए कहते हैं, '' पाकिस्तानी सेना में आला अफसरों के कई गुट बने हुए हैं. ऊपर से भले ये न दिखता हो लेकिन अंदर जबरदस्त टकराव है. पाकिस्तान की सरकार इलजाम तो लगाती है कि टीटीपी को भारत मदद कर रहा है या अफगानिस्तान मदद कर रहा है. लेकिन सच है कि पाकिस्तानी तालिबान को सेना के नाराज़ गुट से ही मदद मिलती है. सेना के भीतर लड़ने वाले एक गुट एक दूसरे के खिलाफ टीटीपी का इस्तेमाल करते हैं.
टीटीपी के बड़े हमले
- 2008 में इस्लामाबाद में मेरियट होटल पर बमों से हमला
- 2009 में पूरे सेना के मुख्यालयों समेत पूरे पाकिस्तान में हमले
- 2012 में नोबेल विजेता मलाला युसूफजई पर हमला
- 2014 में पेशावर में आर्मी स्कूल पर भीषण हमला
- इस हमले में 131 स्टूडेंट्स समेत 150 लोगों की मौत
- पूरी दुनिया में इस हमले की भारी निंदा हुई थी
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