पाकिस्तान : कुलभूषण से पहले भारत के कितने 'जासूस'
पाकिस्तान में कथित भारतीय जासूस कुलभूषण जाधव के बारे में हेग स्थित अंतरराष्ट्रीय अदालत अपना फ़ैसला सुना सकती है. पाकिस्तान की अदालत ने 2017 में उन्हें जासूसी करने का दोषी पाया था और मौत की सज़ा सुनाई थी. लेकिन वह पहले ऐसे भारतीय नागरिक नहीं हैं जिन्हें जासूसी के आरोप में पाकिस्तान में सज़ा सुनाई गई है.
पाकिस्तान में कथित भारतीय जासूस कुलभूषण जाधव के बारे में हेग स्थित अंतरराष्ट्रीय अदालत अपना फ़ैसला सुना सकती है. पाकिस्तान की अदालत ने 2017 में उन्हें जासूसी करने का दोषी पाया था और मौत की सज़ा सुनाई थी.
लेकिन वह पहले ऐसे भारतीय नागरिक नहीं हैं जिन्हें जासूसी के आरोप में पाकिस्तान में सज़ा सुनाई गई है.
हालांकि वो शायद भारतीय सेना के पहले अधिकारी थे जो जासूसी के आरोप में गिरफ़्तार हुए.
पाकिस्तान में पिछले चार दशकों में एक दर्जन से अधिक ऐसे लोगों को सज़ा हुई है जिन्हें कथित तौर पर भारतीय जासूस समझा जाता है.
इनमें कुछ को मौत की सज़ा सुनाई गई, लेकिन उनकी सज़ा पर कभी अमल नहीं किया गया. अलबत्ता उनमें कई लोग जेल में ही 'मार दिए' गए.
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कुलभूषण जाधव
पाकिस्तान ने मार्च, 2016 में कुलभूषण जाधव की गिरफ़्तारी की ख़बर के साथ कथित इकबालिया बयान वाला एक वीडियो भी जारी किया.
वीडियो में कुलभूषण कथित तौर पर कहते हैं कि वे भारतीय नौसेना के सेवारत अधिकारी हैं और बलूचिस्तान में उनके आने का मकसद बलूच अलगाववादियों को भारत की मदद पहुंचाना था.
रिपोर्टों के अनुसार कुलभूषण जाधव ने पाकिस्तान में अपना नाम हुसैन मुबारक पटेल रखा था और वे बलूचिस्तान में ईरान की सीमा से दाखिल हुए थे.
पाकिस्तान ने कुलभूषण जाधव की गिरफ़्तारी के बाद ईरान से मांग की थी कि वह अपनी धरती को पाकिस्तान के ख़िलाफ़ इस्तेमाल न होने दे.
कुलभूषण जाधव शायद पहले ऐसे भारतीय 'जासूस' थे जो पंजाब से बाहर पकड़े गए. अतीत में कई बार भारतीय नागरिक पंजाब के विभिन्न क्षेत्रों से गिरफ्तार हुए हैं और उनमें से अधिकांश का संबंध भारतीय पंजाब से था.
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सरबजीत सिंह
सरबजीत सिंह को पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसियों ने अगस्त 1990 में गिरफ़्तार किया था.
भारत का कहना था कि नशे में धुत एक पंजाबी किसान खेतों में हल चलाते हुए ग़लती से सीमा पार कर गया था.
पाकिस्तान ने सरबजीत सिंह के ख़िलाफ़ फ़ैसलाबाद, मुल्तान और लाहौर में धमाकों के आरोप में मुकदमा चलाया और उन्हें मौत की सज़ा सुनाई गई.
सैन्य शासक परवेज़ मुशर्रफ़ के कार्यकाल के दौरान जब भारत-पाकिस्तान के बीच समग्र वार्ता का सिलसिला जारी था, उस समय भारत में कुछ ग़ैर सरकारी संगठनों ने सरबजीत सिंह की रिहाई की मुहिम चलाई.
कई बार ऐसा लगा कि पाकिस्तान सरकार उन्हें रिहा कर देगी, लेकिन वार्ता की विफलता के बाद सरबजीत सिंह की रिहाई भी खटाई में पड़ गई.
सरबजीत 2013 में कोट लखपत जेल में कैदियों के हमले में घायल हो गए और अस्पताल में उनकी मौत हो गई.
सरबजीत के शव को भारत के हवाले किया गया और भारत सरकार ने सरबजीत के पार्थिव शरीर का राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया.
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कश्मीर सिंह
कश्मीर सिंह 1973 में पाकिस्तान में कथित जासूसी के आरोप में गिरफ़्तार हुए. पाकिस्तान की जेलों में 35 साल बिताने के बाद उन्हें 2008 में रिहा किया गया तो भारत में उनका शानदार स्वागत किया गया.
कश्मीर सिंह की रिहाई में मानवाधिकार कार्यकर्ता अंसार बर्नी की कोशिशों की बड़ी भूमिका थी.
पाकिस्तान में मौजूदगी के दौरान कश्मीर सिंह हमेशा ये कहते रहे कि वो निर्दोष हैं, लेकिन जब वो भारतीय सरजमीं पर पहुंचे तो उन्होंने कथित तौर पर स्वीकार किया कि वो जासूसी के लिए पाकिस्तान गए थे.
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रवींद्र कौशिक
रवींद्र कौशिक एक ऐसे भारतीय नागरिक थे जो 25 साल तक पाकिस्तान में रहे. रवींद्र कौशिक राजस्थान में पैदा हुए थे. जब उन्हें भारतीय कंपनियों ने भर्ती किया तो वह एक थिएटर कलाकार थे.
पाकिस्तान में दावा किया जाता है कि उर्दू भाषा और इस्लाम धर्म के बारे में विशेष शिक्षा के बाद उन्हें नबी अहमद शाकिर नाम से पाकिस्तान भेजा गया और वे बेहद कामयाबी के साथ कराची यूनिवर्सिटी में दाखिला पाने में सफल रहे और सेना में रहे.
रवींद्र कौशिक की गिरफ़्तारी के बाद उन्हें पाकिस्तान की विभिन्न जेलों में सोलह वर्ष तक रखा गया और 2001 में उनकी मौत जेल में हुई.
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रामराज्य
2004 में कथित तौर पर लाहौर में पकड़े गए रामराज्य शायद एकमात्र ऐसे भारतीय व्यक्ति थे जो 'पाकिस्तान पहुंचते ही गिरफ़्तार हो गए'.
उन्हें छह साल क़ैद की सज़ा हुई और जब वह अपनी सज़ा काटकर वापस भारत पहुंचे तो कहा जाता है कि भारतीय संस्थाओं ने उन्हें पहचानने से इनकार कर दिया.
सुरजीत सिंह
सुरजीत सिंह ने 30 साल पाकिस्तानी जेलों में बिताए.
सुरजीत सिंह को 2012 में लाहौर की कोट लखपत जेल से रिहा किया गया. वह वापस भारत पहुंचे तो कश्मीर सिंह के विपरीत उनका किसी ने स्वागत नहीं किया.
सुरजीत सिंह दावा करते रहे कि वह पाकिस्तान में 'रॉ' के एजेंट बनकर गए थे, लेकिन किसी ने उनकी बात पर यक़ीन नहीं किया.
सुरजीत सिंह ने अपनी रिहाई के बाद बीबीसी संवाददाता गीता पांडे से बात करते हुए भारत सरकार के व्यवहार पर दुख और ग़ुस्से का इज़हार किया था.
उन्होंने कहा कि भारत सरकार उनकी अनुपस्थिति में उनके परिवार को 150 रुपए के मासिक पेंशन का भुगतान करती थी. दावा किया गया कि ये इस बात का सबूत है कि वह 'रॉ' के एजेंट थे. ये भी दावा किया गया कि गिरफ़्तारी से पहले वो 50 बार पाकिस्तान का दौरा कर चुके थे जहां वे दस्तावेज़ हासिल कर कथित तौर पर उन्हें वापस ले जाते थे.
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गरबखश राम
गरबखश राम को 2006 में 19 अन्य भारतीय कैदियों के साथ कोट लखपत जेल से रिहाई मिली.
गरबखश राम पाकिस्तान में कथित तौर पर शौकत अली के नाम से जाने जाते थे. 18 साल तक पाकिस्तानी जेलों में रहे.
दावा है कि गरबखश राम को 1990 में उस समय गिरफ्तार किया गया था जब वह कई साल पाकिस्तान में बिताने के बाद वापस भारत जा रहे थे, लेकिन पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसियों के हाथ लग गए.
भारतीय अख़बार 'टाइम्स ऑफ़ इंडिया' में प्रकाशित होने वाली एक रिपोर्ट के अनुसार गरबखश राम ने राज्य सरकार पर आरोप लगाया है कि उन्हें वो सुविधाएं नहीं दी जा रही हैं जो कथित तौर पर सरबजीत के परिवार को मिली हैं.
उनका दावा है कि उन्होंने पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल से भी मुलाकात की, लेकिन उन्हें सरकारी नौकरी नहीं दी गई है.
विनोद सानखी
विनोद सानखी 1977 में पाकिस्तान में गिरफ़्तार हुए और 11 साल पाकिस्तानी जेलों में बिताने के बाद उन्हें 1988 में रिहा किया गया.
विनोद सानखी ने भारत में पूर्व जासूसों की भलाई के लिए एक संगठन बनाया था.
अपनी कहानी बताते हुए उन्होंने दावा किया था कि, "वो टैक्सी ड्राइवर थे जब उनकी मुलाकात एक भारतीय जासूस से हुई. उसने उन्हें सरकारी नौकरी की पेशकश की."
उन्हें कथित तौर पर पाकिस्तान भेजा गया, लेकिन जब वह पाकिस्तानी जेल से रिहा हुए तो दावे के अनुसार सरकार ने उनकी मदद नहीं की.