Special Report: भारत-अमेरिका की मजबूत दोस्ती से चिंता में पाकिस्तान, जो बाइडेन से भी टूटी उम्मीदें
भारत-अमेरिका मजबूत संबंध ने पाकिस्तान के माथे पर चिंता की लकीरें खींच दी है। पाकिस्तान मानने लगा है कि अब भारत को रोकना नामुमकिन है।
इस्लामाबाद/नई दिल्ली: भारत-अमेरिका की बढ़ती दोस्ती ने पाकिस्तान के माथे पर चिंता की लकीरें खींच दी हैं। खासकर जो बाइडेन के राष्ट्रपति बनने के बाद उनकी टीम में 25 से ज्यादा भारतीय मूल के नागरिकों के आने के बाद पाकिस्तान टेंशन में आ गया है। पाकिस्तान ने कहा है कि बाइडेन प्रशासन में भारतीयों का शक्तिशाली प्रभुत्व पाकिस्तान के लिए बेहद चिंता की बात है। पाकिस्तानी एक्सपर्ट्स ने कहा है कि अब भारत को रोकना पाकिस्तान के वश की बात नहीं है और पाकिस्तान को कश्मीर मसले पर अमेरिका का साथ नहीं मिलने वाला है।
भारत-अमेरिका मजबूत संबंध
जो बाइडेन प्रशासन अब जबकि पदभार संभालने के बाद काम में लग गया है उस वक्त बाइडेन प्रशासन के अंदर पाकिस्तान को लेकर अच्छी छवि नहीं है। खासकर आतंकवाद, मानवाधिकार उल्लंघन और पाकिस्तान में अल्पसंख्यक धार्मिक हिंसा ने अमेरिका की नजरों में पाकिस्तान की छवि को काफी खराब कर रखा है। पाकिस्तान का मानना है कि अमेरिका-रूस के बीच कोल्ड वार खत्म होने के बाद रणनीतिक तौर पर अमेरिका के लिए पाकिस्तान का महत्व खत्म हो गया। इसके अलावा पिछले कुछ सालों में अमेरिका और भारत के बीच बनते काफी अच्छे संबंध ने पाकिस्तान को अमेरिका से और भी ज्यादा दूर कर दिया है। पाकिस्तान के रिटायर्ड एंबेसडर जाविद हुसैन ने पाकिस्तानी अखबार 'द डॉन'में लिखा है कि अमेरिका के लिए चीन को रोकना बेहद जरूरी है और इसलिए भारत अमेरिका के लिए काफी ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है। इसके साथ ही चीन और पाकिस्तान की बढ़ती दोस्ती, खासकर CPEC समझौते के बाद अमेरिका के लिए पाकिस्तान और ज्यादा दूर हो चुका है।
पाकिस्तानी एक्सपर्ट के मुताबिक अमेरिका की नजर में भारत की महत्ता पाकिस्तान से कहीं ज्यादा है। भारत की जीडीपी 2.6 ट्रिलियन डॉलर है तो पाकिस्तान की जीडीपी सिर्फ 285 बिलियन डॉलर है। (पाकिस्तानी एक्पपर्ट ने भारत की जीडीपी 2.6 ट्रिलियन डॉलर बताई है जबकि भारत की जीडीपी अभी 2.9 ट्रिलियन डॉलर है) जिसकी वजह से भारत का विश्व की राजनीति में प्रभुत्व पाकिस्तान के मुकाबले काफी ज्यादा है। वहीं, यूनाइटेड नेशंस सिक्योरिटी काउंसिल और G-20 में भी भारत का काफी ज्यादा प्रभाव है। इन सबसे अलावा भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। जबकि पाकिस्तान की राजनीतिक अस्थिरता और अस्थिर लोकतांत्रिक व्यवस्था ने पाकिस्तान की स्थिति को वैश्विक राजनीति में काफी कमजोर कर दिया है। हालांकि, इसके बाद भी पाकिस्तान का न्यूक्लियर पावर होना और मजबूत मिलिट्री होना पाकिस्तान के पक्ष में जाता है। लेकिन, बावजूद इसके अमेरिका के लिए पाकिस्तान की उपयोगिता भारत की तुलना में बेहद कम है।
बाइडेन की नजर में भारत
पाकिस्तान का मानना है कि भारत को लेकर अमेरिका एक मजबूत पॉलिटिकल रास्ते से काम कर रहा है लिहाजा अमेरिका में कोई भी सरकार आ जाए, उसके लिए भारत के साथ अच्छे संबंध बनाए रखना मजबूरी है। लिहाजा जो बाइडेन भी भारत के साथ अच्छे संबंध को ही और मजबूत करेंगे। खासकर अमेरिका के सामने चीन खड़ा है और भारत-चीन दुश्मन देश हैं। लिहाजा अमेरिका के लिए भारत स्वाभाविक पार्टनर हो जाता है। ऐसे में अमेरिका की हर विदेश नीति चीन को ध्यान में रखते हुए है और जहां चीन है वहां भारत मौजूद है। यही वजह है बिल क्लिंटन से लेकर जॉर्ज बुश तक और बराक ओबामा से लेकर डोनाल्ड ट्रंप तक... हर अमेरिकी राष्ट्रपति का जोर भारत के साथ अच्छा संबंध बनाने को लेकर रहा है। और इसमें कतई आश्चर्य की बात नहीं है कि अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने भारत और अमेरिका की सस्केस स्टोरी एक साथ बताया है तो अमेरिका के रक्षामंत्री लॉयड एस्टन ने अमेरिकी सीनेट को भरोसा दिलाया है कि उनकी पहली प्रायोरिटी भारत के साथ डिफेंस स्ट्रेटजी और मजबूती से आगे ले जाने को होगी।
अमेरिका के रक्षामंत्री ने अमेरिकन सीनेट के सामने ये भी कहा था कि चीन को रोकने के लिए वो क्वाड को और मजबूत करेंगे और बगैर भारत के सहयोग के अमेरिका चीन को रोकने में कामयाब नहीं हो सकता है। यानि, जो बाइडेन प्रशासन ने सत्ता संभालने के साथ ही पाकिस्तान को संदेश देना शुरू कर दिया कि उसके लिए भारत की अहमियत पाकिस्तान के मुकाबले काफी ज्यादा है।
भारत को रोकना नामुमकिन
जो बाइडेन एडमिनिस्ट्रेशन में 23 से ज्यादा भारतीय मूल के नागरिकों के आने से भी पाकिस्तान को गहरा सदमा लगा है। पाकिस्तान का मानना है कि जो बाइडेन प्रशासन में मजबूत भारवंशियों के होने से भारत की स्थिति अब इतनी मजबूत हो चुकी है, जो पाकिस्तान के लिए चिंता की बात है। खासकर अब जो बाइडेन प्रशासन भारत के साथ डिफेंस डील, न्यूक्लियर डील और पॉलिटिकल संबंधों को और ज्यादा मजबूत करने पर ध्यान देगा, जिसकी वजह से साउथ एशिया का संतुलन खराब होगा। पाकिस्तान को डर है कि अब अमेरिका की वजह से हिंदुस्तान इंडो पैसिफिक रीजन में सेन्ट्रल कमांड की भूमिका में आ सकता है और अगर अमेरिका इंडो पैसिफिक क्षेत्र में भारत के हाथ में लीडिंग कमांड सौंपता है तो क्वाड देशों में भी भारत और मजबूत हो जाएगा। क्वाड में भारत और अमेरिकाक के अलावा जापान और ऑस्ट्रेलिया हैं।
पाकिस्तान की चिंता जापान और ऑस्ट्रेलिया को लेकर भी है। जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ भारत के संबंध पहले से ही अच्छे रहे हैं। जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे बतौर प्रधानमंत्री कई बार भारत के दौरे पर आ चुके हैं। साथ ही अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से बातचीत के दौरान QUAD को फिर से एक्टिवेट करने और इंडो पैसिफिक रीजन में चीन को रोकने की प्लानिंग पर चर्चा की है, जो पाकिस्तान के लिए चिंता की बात है।
पाकिस्तान जानता है कि जो बाइडेन शासनकाल में अमेरिका किसी भी तरह से पाकिस्तान के साथ लार्ज स्केल व्यापारिक संबंध और मिलिट्री संबंध को बहाल करने वाला नहीं है। इसके साथ ही पाकिस्तान ये भी जानता है कि जो बाइडेन शासनकाल में भी अमेरिका कश्मीर मसले पर या तो चुप रहेगा या फिर भारत के साथ खड़ा नजर आएगा। पाकिस्तान अब यहां तक मानने लगा है कि भारत को रोकने की स्थिति में अब खुद अमेरिका ही नहीं है और अमेरिका भारत के ऊपर इतना निर्भर हो चुका है कि वो भारत के खिलाफ एक शब्द भी नहीं बोलेगा, इसीलिए कश्मीर के मुद्दे पर अमेरिका सिर्फ और सिर्फ शांति की ही बात करेगा। अमेरिकन एक्सपर्ट्स का मानना है कि पाकिस्तान को इस कड़वे सच के लिए तैयार रहना चाहिए।
तालिबान से पाकिस्तान को उम्मीदें
भारत से हर क्षेत्र में पिटने के बाद अब पाकिस्तान ने अमेरिका से अफगानिस्तान को लेकर उम्मीदें पाल रखी हैं। अफगानिस्तान में तालिबानी आतंकियों को फिर से आतंक फैलाना पाकिस्तान के पक्ष में जा रहा है। पाकिस्तान का मानना है कि तालिबान के बहाने अफगानिस्तान में शांति समझौता करवाने की बात उसे अमेरिका के नजदीक लाता है। अमेरिका इस वक्त तालिबान-अमेरिका डील पर फिर से विचार कर रहा है। अफगानिस्तान से बचे हुए अमेरिकी फौज को बाहर निकाला जाए या नहीं, उसे लेकर अभी अमेरिका विचार कर रहा है।
ऐसे में पाकिस्तान उम्मीद पाले हुए बैठा है कि अफगानिस्तान के मुद्दे पर अमेरिका को पाकिस्तान का साथ मांगना ही पड़ेगा। पाकिस्तान का कहना है कि वो इस शांति समझौते में अहम भूमिका निभा सकता है और आतंकी संगठन तालिबान से वो बातचीत को आगे बढ़ा सकता है। पाकिस्तान और आतंकी संगठन तालिबान के संबंध के बारे में पूरी दुनिया को पता है। इसी महीने अफगानिस्तान के राष्ट्रपति भी बिना नाम लिए पाकिस्तान पर तालिबान को बढ़ावा देने का आरोप लगा चुके हैं। यानि, एक आतंकवादी संगठन को सपोर्ट कर पाकिस्तान अमेरिका से खैरात पाने की उम्मीदें फिर से लगा बैठा है और भारत-अमेरिका के बीच के मजबूत संबंध से जल रहा है।
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