
राजनीतिक अस्थिरता, दिवालिएयन का खतरा, भारत से अलग होकर पाकिस्तान एक फेल राष्ट्र बन गया?
इस्लामाबाद, मई 16: पाकिस्तान के अपदस्त प्रधानमंत्री इमरान खान ने 20 मई तक देश में चुनाव का ऐलान करवाने की मांग करने के साथ चेतावनी दी है, कि अगर देश में जल्द चुनाव नहीं करवाए गये, तो पाकिस्तान का हाल भी श्रीलंका की तरफ हो सकता है और देश दिवालिया हो सकता है। पाकिस्तान में भारी राजनीतिक अस्थिरता के बीच पाकिस्तानी विश्लेषकों को देश के अंदर आने वाले दिनों में भीषण हिंसा का डर सता रहा है, जिससे निवेशकों में और भय का माहौल बनेगा और पाकिस्तान दिवालिएपन की तरफ तेजी से जा सकता है। तो फिर सवाल ये उठता है, कि भारत से अलग होने की जो जिद जिन्ना ने पाली थी, वो नाकामयाब हो चुकी है और क्या पाकिस्तान एक नाकामयाब देश बन गया है?

पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार गिरा
पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार बुरी तरह से गिर रहा है और देश में महंगाई दर काफी ज्यादा बढ़ रही है। वहीं, पाकिस्तानी रुपया भी गिरकर 190 को पार करने वाला है और चालू वित्त वर्ष में पाकिस्तान रुपया डॉलर के मुकाबले 21.72 प्रतिशत गिरा है। पाकिस्तान के आर्थिक विशेषज्ञ और विश्लेषक आर्थिक बदहाली को देखते हुए देश में आर्थिक आपातकाल लगाने की मांग कर रहे हैं, ताकि आर्थिक चुनौतियों से निपटा जाए। आर्थिक विशेषज्ञों का कहना है कि, कॉरपोरेट सेक्टर को टैक्स में छूट देने के लिए जो 800 अरब रुपये रखे हए हैं, वो वापस ली जाएगा और भूमि और प्रॉपर्टी व्यवसाय पर नये सिरे से ज्यादा टैक्स लगाए जाएं। इसके साथ ही आर्थिक विश्लेषकों ने कहा है कि, पाकिस्तान को फौरन गैर-लड़ाकू रक्षा खर्च में कटौती करने की जरूरत है और बिजली बिलों को दोगुना तक बढ़ाकर कई अत्यंत सख्त कदम उठाने चाहिए, तभी देश आर्थिक बदहाली में फंसने से बच सकता है।

क्या कहते हैं आर्थिक विश्लेषक?
इस्लामाबाद स्थित पाकिस्तानी राजनीतिक वैज्ञानिक, अर्थशास्त्री और वित्तीय फारुख सलीम ने एशिया टाइम्स से बात करते हुए कहा कि, 'डॉलर के प्रवाह में कमी और चीन, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) सहित मित्र देशों से समर्थन की कमी के कारण रुपये पर काफ दबाव बढ़ रहा है'। उन्होंने कहा कि, "अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के 6 अरब डॉलर के बेलआउट पैकेज मिलने में देरी ने भी देश में विदेशी मुद्रा भंडार को कम कर दिया है।"

रिकॉर्ड स्तर पर गिरा पाकिस्तानी रुपया
उन्होंने कहा कि, पाकिस्तानी रुपया, डॉलर के मुकाबले रिकॉर्ड निचले स्तर पर आ चुका है, जिसकी वजह से पाकिस्तान स्टॉक एक्सचेंज अतिरिक्त 900 अंक गिरा है। फारुख सलीम के मुताबिक, पाकिस्तान के वित्त बाजार में लगातार हादसे हो रहे हैं और स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान (एसबीपी) के पास केवल 10.44 अरब डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार बचा है, जिसमें सऊदी अरब, चीन और संयुक्त अरब अमीरात से मिले 6 अरब डॉलर का कर्ज शामिल है। और अगर इन्हें बाहर निकाल दें, तो पाकिस्तान के पास सिर्फ 4.44 अरब डॉलर का ही कर्ज बचा है और आप समझ सकते हैं, कि पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति क्या है। फारुख ने इस स्थिति से निपटने के लिए वित्तीय आपातकाल का आह्वान किया है।

अलग राग अलापते इमरान खान
एक तरफ पाकिस्तान वित्तयी संकट के दलदस में फंस चुका है, तो दूसरी तरफ पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान अलग ही धुन बजा रहे हैं। पूर्व प्रधान मंत्री इमरान खान, जिन्हें पिछले महीने उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव के बाद पद से हटा दिया गया था, वो लगातार जनसभाओं में भारी भीड़ खींच रहे हैं, और पाकिस्तानी जनता को "अमेरिकी आधिपत्य और उसके खिलाफ" खड़ा होने के लिए उकसा रहे हैं। इमरान खान लगातार अमेरिका पर उनकी सत्ता के खिलाफ साजिश रचने का आरोप लगा रहे हैं। रविवार को एक रैली के दौरान इमरान खान ने तो यहां तक कह दिया, कि अमेरिका पाकिस्तान के गले में पट्टा डालकर भारत के सामने गुलामी करवाएगा। इमरान खान, जो 2018 में पाकिस्तान की सत्ता में विवादास्पद तरीके से आए थे, जिसके बारे में आलोचकों का दावा है कि पाकिस्तान की प्रमुख जासूसी एजेंसी, इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (ISI) द्वारा धांधली, निगरानी और हेरफेर के बाद इमरान खान को सत्ता में लाया गया था।

अत्यंत खराब राजनीतिक स्थिति
जिस सेना ने पाकिस्तानी समाज को अलग अलग मुद्दों के आधार पर बांटा, वो पाकिस्तानी सेना आज खुद कई हिस्सों में बंट चुकी है और ऐसा पहली बार हुआ है, कि पाकिस्तानी सेना इतनी कमजोर नजर आ रही है और इमरान खान आक्रामक दिख रहे हैं। इमरान खान लगातार पाकिस्तानी सेना के 'न्यूट्रल' रवैये पर सवाल उठा रहे हैं और उन्होंने यहा तक कहा है, कि उन्होंने पाकिस्तानी सेना के कई अधिकारियों के फोन नंबर ब्लॉक कर दिए है। इमरान खान ने पाकिस्तानी सेना पर आरोप लगाते हुए कहा कि, 'मैंने सेना को बताया था, कि अगर मेरी सत्ता गई और साजिश कामयाब हुई, तो पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था चरमरा जाएगी'।

विदेशी मुद्रा भंडार और ईंधन सब्सिडी
पिछले महीने सत्ता में आई संयुक्त गठबंधन की शहबाज शरीफ सरकार के लिए सबसे बड़ी चिंता यह है, कि देश में लगातार खत्म होते विदेशी मुद्रा भंडार के क्षरण को कैसे रोका जाए और अविश्वास मत से कुछ दिन पहले पिछली सरकार द्वारा दी गई गैर-वित्त पोषित ईंधन सब्सिडी को कैसे वित्तपोषित किया जाए। इमरान खान ने सत्ता से जाने से पहले बिजली बिलों पर बड़ी सब्सिडी दे दी थी और अब शहबाज शरीफ के सामने मुश्किल ये है, कि वो बिजली बिलों से सब्सिडी कैसे हटा लें, क्योंकि कुछ महीनों बाद चुनाव हैं और अगर सब्सिडी नहीं हटाते हैं, तो विदेशी मुद्रा भंडार और ज्यादा रफ्तार से गिरेगा। स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान के पास अब सिर्फ 10.3 अरब डॉलर बचे हैं और इतने पैसे से पाकिस्तान सिर्फ एक महीने का ही आयात बिल भर सकता है। वहीं, आर्थिक आपातकाल और अर्थव्यवस्था की खराब स्थिति को भांपते हुए पीएमएल-एन सुप्रीमो नवाज शरीफ ने 10 मई को प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और पार्टी के संघीय मंत्रियों सहित पार्टी के शीर्ष नेताओं को परामर्श के लिए लंदन बुलाया था।

शहबाज शरीफ ले पाएंगे कठिन फैसले?
इमरान खान सत्ता से जा चुके हैं और शहबाज शरीफ की सरकार आगे कुआं, पीछे खाई वाली स्थिति में फंस गई है और सवाल ये हैं, कि चुनाव से पहले क्या शहबाज शरीफ अलोकप्रिय फैसले ले पाएंगे, ताकि देश को पटरी पर लाया जाए? एशिया टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, पाकिस्तान सरकार के अंदरूनी सूत्रों का दावा है कि पीएमएल-एन आलाकमान, इमरान खान के 'बर्बाद वर्षों' की राजनीतिक कीमत चुकाने के बजाय संसद सत्र को भंग करने और नए चुनाव कराने की मांग करेगा। मार्च में देश का चालू खाता घाटा लगभग दोगुना हो गया है और चालू वित्त वर्ष में पाकिस्तान का चालू घाटा का अंतर बढ़कर 13 अरब डॉलर से अधिक हो गया है। स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान की रिपोर्ट के मुताबिक, संकलित आंकड़ों से पता चला है कि नौ महीनों के दौरान पाकिस्तान का आयात बढ़कर 41.3 प्रतिशत हो गया है, जो पिछले साल 11.5 प्रतिशत थी।

पाकिस्तान का बढ़ा व्यापार घाटा
पाकिस्तान के बढ़ते आयात ने देश के व्यापार घाटे को काफी बढ़ा दिया है और देश की करेंसी का एक्सचेंज रेट भी बुरी तरह से गिर गया है। चालू वित्त वर्ष के पहले नौ महीनों (जुलाई-मार्च) की अवधि में कुल व्यापार घाटा बढ़कर 35.52 अरब डॉलर हो गया, जो पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में 20.8 अरब डॉलर था। यानि कुल मिलाकर, व्यापार घाटा 15 अरब डॉलर से ज्यादा बढ़ गया, जो बाहरी खाते की बिगड़ती स्थिति को दर्शाता है। इतने घाटे के साथ, पाकिस्तान के आने वाले महीनों में भुगतान संतुलन संकट में फंस जाएगा, क्योंकि उसके पास विदेशी कर्ज चुकाने के लिए पैसे ही नहीं रहेंगे। वहीं, पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) की उपाध्यक्ष मरियम नवाज ने एक जनसभा के दौरान कहा कि, 'पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था, जो वेंटिलेटर पर है, उसकी वजह पूर्ववर्ती इमरान खान की सरकार है'। मरियम नवाज रैली में कहती हैं, कि हमें इमरान खान की विफलता का बोझ नहीं ढोना चाहिए और इमरान खान को उनके किए की सजा मिलनी चाहिए। लेकिन क्या ये संभव है? क्योंकि अब चुनाव में नवाज शरीफ की पार्टी सत्ताधारी पार्टी और इमरान खान, विपक्षी पार्टी के नेता के तौर पर जाएंगे।

इमरान खान ने डूबो दी अर्थव्यवस्था?
हालांकि, पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था तो कभी भी ठीक नहीं रही है, लेकिन इमरान खान ने उस संकट को और ज्यादा बढ़ाया है। मरियम नवाज ने दावा किया कि पूर्व प्रधानमंत्री खान द्वारा बनाई गई राजनीतिक और आर्थिक गड़बड़ी को ठीक करने में महीनों नहीं, बल्कि बल्कि वर्षों लगेंगे। वहीं, नवाज शरीफ ने कहा कि, इमरान खान ने देश को विभाजित किया, अर्थव्यवस्था को कमजोर किया, सरकारी संस्थानों को बदनाम किया और जनता पर अत्यधिक करों का बोझ डालने के लिए मौद्रिक एजेंसियों से निर्देश लिया। आंतरिक मोर्चे पर, 17% की भारी खाद्य मुद्रास्फीति ने गरीब और मध्यम वर्ग के जीवन के साथ कहर बरपाया है, जो एक कठिन परिस्थिति में अपना गुजारा करने की कोशिश कर रहे हैं। विश्लेषकों का दावा है कि जब सरकार, ईंघन पर सब्सिडी खत्म करेगी, तो देश में महंगाई की नई लहर आएगी।

सहयोगी देशों से मदद नहीं
प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के नेतृत्व में नई सरकार, जो सत्ता संभालने के साथ ही सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात की यात्रा पर गई थी, वो कोई राहत पाने में विफल रही है। वहीं, चीन ने अभी भी कुल 4 अरब डॉलर के ऋण को फिर से जारी करने के फैसले को अभी तक लागू नहीं किया है, जिसे पाकिस्तान ने मार्च महीने में लौटाया था। चीनी अधिकारी भी पाकिस्तान सरकार के अनुरोध के बाद भी पैसा लौटाने के मूड में नहीं दिख रहे हैं। सिटीग्रुप के इमर्जिंग मार्केट इनवेस्टमेंट के पूर्व प्रमुख यूसुफ नज़र ने ट्वीट्स की एक श्रृंखला में कहा कि, आईएमएफ और अन्य मित्र देश तब तक बहुत आवश्यक वित्तीय सहायता प्रदान नहीं करेंगे, जब तक कि सरकार पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों में वृद्धि नहीं करती। उन्होंने दावा किया कि यह कदम महंगाई को बढ़ावा देगा और श्रमिक वर्गों को और भी अधिक नुकसान पहुंचाएगा। यानि, पाकिस्तान की स्थिति कैसे सुधरेगी, अभी कहा जाना काफी मुश्किल है, लेकिन सवाल अब यही उठते हैं, कि क्या पाकिस्तान के नाकामयाब मुल्क बन चुका है और पूरी दुनिया के ऊपर एक बोझ गया है?
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