चीन के हड्डी-पसली तोड़ने वाली चेतावनी के बाद अमरीका का एक और दांव
हॉन्ग कॉन्ग में लोकतंत्र के समर्थन में चल रहे विरोध-प्रदर्शनों पर अमरीका के हाउस ऑफ़ रिप्रेजेंटेटिव्स में एक बिल पास किया गया है. इस बिल के बाद अमरीका सालाना समीक्षा करेगा कि हॉन्ग कॉन्ग में पर्याप्त स्वायत्तता है कि नहीं और इसी आधार पर विशेष कारोबारी दर्जे का भी भविष्य तय होगा. हाउस ने जिस बिल को पास किया है उसका नाम है 'हॉन्ग कॉन्ग ह्यूमन राइट्स एंड डेमोक्रेसी एक्ट'.
हॉन्ग कॉन्ग में लोकतंत्र के समर्थन में चल रहे विरोध-प्रदर्शनों पर अमरीका के हाउस ऑफ़ रिप्रेजेंटेटिव्स में एक बिल पास किया गया है.
इस बिल के बाद अमरीका सालाना समीक्षा करेगा कि हॉन्ग कॉन्ग में पर्याप्त स्वायत्तता है कि नहीं और इसी आधार पर विशेष कारोबारी दर्जे का भी भविष्य तय होगा.
हाउस ने जिस बिल को पास किया है उसका नाम है 'हॉन्ग कॉन्ग ह्यूमन राइट्स एंड डेमोक्रेसी एक्ट'. अमरीका का यह रुख़ हॉन्ग कॉन्ग की स्थानीय सरकार और चीन के लिए झटका है.
पिछले हफ़्ते ही चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने नेपाल के दौरे पर कहा था कि जो वन चाइन पॉलिसी नहीं मानेगा और चीन को तोड़ने की कोशिश करेगा उसकी हड्डी-पसली तोड़ दी जाएगी.
साल 1997 में जब हॉन्ग कॉन्ग को चीन के हवाले किया गया था तब बीजिंग ने 'एक देश-दो व्यवस्था' की अवधारणा के तहत कम से कम 2047 तक लोगों की स्वतंत्रता और स्थानीय क़ानून-व्यवस्था बनाए रखने की गारंटी दी थी. हॉन्ग कॉन्ग चीन का एक स्वायत्त द्वीप है और चीन इसे अपने संप्रभु राज्य का हिस्सा मानता है.
पिछले चार महीनों से हॉन्ग कॉन्ग में लोकतंत्र के समर्थन में विरोध-प्रदर्शन चल रहा है. लाखों लोग सड़क पर निकल चीन की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार के ख़िलाफ़ शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे हैं. चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने इसे लेकर ही नेपाल में कड़ी चेतावनी दी थी.
इस बिल का असर
इस बिल को सीनेट में भी लाया जाएगा लेकिन अभी कोई तारीख़ तय नहीं की गई है. ट्रंप प्रशासन और अमरीकी कांग्रेस की तरफ़ से चीन के ख़िलाफ़ लगातार सख़्त क़दम उठाए जा रहे हैं.
इससे पहले अमरीका ने चीन में मुस्लिम आबादी के साथ होने वाले उत्पीड़न की वजह से चीनी अधिकारियों पर वीज़ा प्रतिबंध लगाने की घोषणा की थी.
अमरीका ने चीन के शिनजियांग प्रांत में वीगर मुसलमानों के साथ उत्पीड़न के मामले में अमरीका में काम कर रहे 28 चीनी संस्थानों को भी ब्लैकलिस्ट कर दिया था.
अमरीका के विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो ने कहा था कि चीन की सरकार 'एक अत्यंत दमनकारी अभियान' चला रही है.
अमरीकी हाउस में हॉन्ग कॉन्ग पर बिल पास किए जाने के बाद चीन की भी तीखी प्रतिक्रिया आई है. चीन ने कहा कि यह अमरीकी हाउस की साज़िश है जिसके ज़रिए चीन की प्रगति को रोकने की कोशिश की जा रही है.
इस बिल के आधार पर अमरीका हॉन्ग कॉन्ग की स्थानीय सरकार पर राजनयिक और आर्थिक प्रतिबंध लगा सकती है. चीन का कहना है कि यह उसके आंतरिक मामले में हस्तक्षेप है. इस बिल के ज़रिए व्यक्तियों पर भी प्रतिबंध लगाया जा सकता है. कहा जा रहा है कि यह बिल सीनेट में भी आसानी से पास हो जाएगा.
चीन की कड़ी प्रतिक्रिया
हॉन्ग कॉन्ग स्टेट काउंसिल के प्रवक्ता यांग गुआंग ने अमरीका में बिल पास होने की कड़ी निंदा करते हुए कहा, ''इस तरह का व्यवहार चीन के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप है. यह हॉन्ग कॉन्ग में अतिवादियों का समर्थन है. अमरीका हॉन्ग कॉन्ग के ज़रिए चीन की प्रगति को रोकना चाहता है. हॉन्ग कॉन्ग इसलिए अशांत है क्योंकि अमरीका चीन विरोधी धड़ों का समर्थन कर रहा है. अमरीका को यह बिल तत्काल रोकना चाहिए. बिना अमरीकी हस्तक्षेप के हॉन्ग कॉन्ग ज़्यादा संपन्न और स्थिर रहेगा.''
यांग ने कहा, ''हॉन्ग कॉन्ग में 'एक मुल्क दो सिस्टम' सफलता पूर्वक काम कर रहा है. हॉन्ग कॉन्ग की मिनी संविधान भी काम कर रहा है.''
चीन की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी के मुखपत्र पीपल्स डेली ने लिखा है कि अमरीका में इस बिल के पास होने से चीन का कोई नुक़सान नहीं होने जा रहा बल्कि इससे अमरीका के ही आर्थिक हित प्रभावित होंगे.
पीप्लस डेली ने लिखा है, ''हॉन्ग कॉन्ग में अमरीकी नागरिकों और कारोबार इस बिल से प्रभावित होगा. जब अमरीका और चीन में बातचीत की कोशिश चल रही है ऐसे में इस बिल से विवाद और बढ़ेंगे. टेड क्रूज़ और जोश हैवली जैसे रिपब्लिकन सांसद चीन को लेकर दुर्भावना से काम कर रहे हैं.''
अमरीका में पास हुए इस बिल का रिपब्लिकन और डेमोक्रेट्स दोनों सांसदों ने समर्थन किया है. हाउस की स्पीकर नैंसी पलोसी ने कहा, ''अगर हम अपने व्यावसायिक हितों के कारण चीन में हो रहे मानवाधिकारों के उल्लंघन के ख़िलाफ़ नहीं बोलेंगे तो दुनिया मे कहीं भी मानवाधिकारों के उल्लंघन पर बोलने का नैतिक अधिकार खो देंगे.''
डेमोक्रेट सांसद बेन रैय लुजान ने कहा, ''हाउस ने बिल पास कर कड़ा संदेश दिया है कि वो हॉन्ग कॉन्ग के लोगों के साथ खड़ा है.''
हॉन्ग कॉन्ग में जिस बात पर शुरू हुआ विरोध-प्रदर्शन
इसी साल जून महीने में प्रत्यर्पण क़ानून में संशोधन के विरोध में प्रदर्शन शुरू हुआ था. यह क़ानून पास होने ही वाला था कि भारी विरोध-प्रदर्शन के बाद सरकार को यू-टर्न लेना पड़ा था.
प्रस्तावित क़ानून के मुताबिक़ अगर कोई शख़्स अपराध करके हॉन्ग कॉन्ग भाग जाता है तो उसे जांच प्रक्रिया में शामिल होने के लिए चीन भेजा जाता.
हॉन्ग कॉन्ग की सरकार फ़रवरी के महीने में मौजूदा प्रत्यर्पण क़ानून में संशोधन का प्रस्ताव लेकर आई थी. ताइवान में एक व्यक्ति अपनी प्रेमिका की कथित तौर पर हत्या कर हॉन्ग कॉन्ग वापस आ गया था.
इसके बाद ही इस क़ानून में संशोधन का प्रस्ताव लाया गया था. हॉन्ग कॉन्ग का ताइवान के साथ प्रत्यर्पण संधि नहीं है, इस वजह से हत्या के मुक़दमे के लिए उस शख़्स को ताइवान भेजना मुश्किल था.
यह क़ानून चीन को उन क्षेत्रों से संदिग्धों को प्रत्यर्पित करने की अनुमति देता, जिनके साथ हॉन्ग कॉन्ग के समझौते नहीं है. हॉन्ग कॉन्ग में अंग्रेज़ों के समय का कॉमन लॉ सिस्टम है और इसका एक दर्जन से अधिक देशों के साथ प्रत्यर्पण संधि है. इनमें अमरीका, ब्रिटेन और सिंगापुर भी शामिल हैं.
साल 2014 में हॉन्गकॉन्ग में 79 दिनों तक चले 'अम्ब्रेला मूवमेंट' के बाद लोकतंत्र का समर्थन करने वालों पर चीनी सरकार कार्रवाई करने लगी थी. इस आंदोलन के दौरान चीन से कोई सहमति नहीं बन पाई थी. विरोध प्रदर्शनों में शामिल लोगों को जेल में डाल दिया गया था. आज़ादी का समर्थन करने वाली एक पार्टी पर प्रतिबंध लगा दिया गया और उस पार्टी के संस्थापक से इंटरव्यू करने पर एक विदेशी पत्रकार को वहां से निकाल दिया गया था.