'पुरानी आदतें जल्द नहीं मरतीं', पाकिस्तानी आर्मी चीफ के US से कर्ज मांगने पर पाकिस्तान में बवाल
सेना प्रमुख के इस फोन कॉल के बाद पाकिस्तान में उनकी काफी आलोचना हो रही है, खासकर इमरान खान के समर्थकों ने जनरल बाजवा की तुलना 'कुत्ते' से करनी शुरू कर दी है।
इस्लामाबाद, अगस्त 01: पाकिस्तान के आर्मी चीफ जनरल कमर जावेद बाजवा के अमेरिकी अधिकारी को फोन करना और पाकिस्तान के लिए लोन मांगने की घटना के बाद पाकिस्तान की राजनीति में उबाल मच गया है और पाकिस्तान में कई लोगों का कहना है, कि 'आर्मी की भीख मांगने की पुरानी आदत है, ये जल्द खत्म नहीं होगी'। पाकिस्तानी मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, पाकिस्तान की सेना के मुखिया, जनरल कमर बाजवा ने देश की बीमार अर्थव्यवस्था की मदद के लिए आईएमएफ फंड के संवितरण को सुरक्षित करने के लिए एक वरिष्ठ अमेरिकी विदेश अधिकारी को फोन किया था और उनसे आग्रह किया था, कि पाकिस्तान को लोन जल्द जारी करने में मदद की जाए।
सेना प्रमुख की भारी आलोचना
सेना प्रमुख के इस फोन कॉल के बाद पाकिस्तान में उनकी काफी आलोचना हो रही है, खासकर इमरान खान के समर्थकों ने जनरल बाजवा की तुलना 'कुत्ते' से करनी शुरू कर दी है। समाचार एजेंसी एएनआई की एक रिपोर्ट के मुताबिक, निक्केई एशिया की एक रिपोर्ट से पता चला है कि, कैसे पाकिस्तान के सबसे शक्तिशाली व्यक्ति जनरल बाजवा ने व्हाइट हाउस और ट्रेजरी विभाग से, आईएमएफ को लगभग 1.2 मिलियन अमरीकी डालर की आपूर्ति करने के लिए प्रेरित करने की अपील की है, जो पाकिस्तान को फिर से शुरू किए गए ऋण कार्यक्रम के तहत प्राप्त होने वाला है। पाकिस्तानी जनरल ने अमेरिका से कर्ज जारी करने की अपील उस वक्त की है, जब पाकिस्तान गंभीर आर्थिक संकट से गुजर रहा है और अगर उसे लोन नहीं मिलता है, तो वो बहुत जल्द डिफॉल्टर हो जाएगा।
वेंडी शेरमेन को किया था फोन
पाकिस्तानी मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, जनरल बाजला ने पिछले हफ्ते अमेरिकी उप विदेश मंत्री वेंडी शेरमेन को फोन किया था और उनसे अपील की थी, कि वो आईएमएफ को मनाए, कि वो पाकिस्तान को लोन जारी करे। हालांकि, पाकिस्तान में लोगों का कहना है, कि भले ही आर्मी चीफ ने जो फोन किया, वो अच्छी नीयत से किया हो, लेकिन जब उन्होंने खुद कहा था, कि देश की सेना का देश की राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है, तो फिर उन्होंने फोन क्यों किया? एक अगस्त को प्रकाशित पाकिस्तानी अखबार डॉन के संपादकीय में जनरल बाजवा के इस कदम पर सवाल उठाए गया है और पूछा गया है, कि क्या जनरल बाजवा ने अमेरिकी अधिकारी को फोन कर संस्थागत सीमाओं का उल्लंघन नहीं किया है? जबकि, खुद पाकिस्तानी सेना संस्थागत सीमाओं का सम्मान करने का दावा करती है। डॉन अखबार ने कहा है कि, पाकिस्तान में हालिया राजनीतिक घटनाक्रम इस दावे के इर्द-गिर्द घूमता है।
'मुश्किल से मरती हैं पुरानी आदतें'
पाकिस्तानी अखबार डॉन ने अपने संपादकीय में लिखा है, कि "...लेकिन पुरानी आदतें मुश्किल से मरती हैं। और 'चरवाहे' की ये आदत एक बार फिर से लोगों के सामने आ गई है'। डॉन ने आर्मी चीफ बाजवा की आलोचना करते हुए लिखा है कि, 'पाकिस्तान में पिछले कई सालों के दौरान संस्थागत सीमाएं धुंधली होती चली गईं और और सैन्य अधिग्रहण के चलते देश में खेदजनक स्थिति पैदा हुई हैं, जबकि नागरिक सरकारों को सुरक्षा प्रतिष्ठानों के लिए भी जिम्मेदार माना जाता है, जो स्वतंत्र फैसले लेने का अधिकार नहीं रखते हैं'। डॉन अखबार के संपादकीय में कहा गया है कि, सेना ने अपनी जबरदस्त शक्ति और अधिकार की भावना का इस्तेमाल किया है जो पाकिस्तान के इतिहास के अधिकांश हिस्सों में ड्राइविंग सीट पर रहने से आया है, और पाकिस्तान की सेना ने पूरी तरह से नागरिकों के क्षेत्र में अपना रास्ता बनाया है।
जनरल बाजवा ने और आगे बढ़ाया कदम
पाक अखबार के अनुसार, जनरल बाजवा ने अपने पूर्ववर्तियों की तुलना में सुरक्षा के दायरे से बाहर के मामलों में और भी आगे कदम बढ़ाया है। हाल ही में अपदस्थ पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान ने बाजवा को फटकार लगाते हुए कहा था, कि आर्थिक मामलों से निपटना सेना प्रमुख का काम नहीं है और ये सरकार का काम है, कि वो लोन के लिए कैसे डील करती है। द एक्सप्रेस ट्रिब्यून से बात करते हुए इमरान खान ने कहा था, कि अगर ये रिपोर्ट सही है और सेना प्रमुख जनरल बाजवा ने आईएमएफ से कर्ज लेने के लिए अमेरिका से मदद मांगी है, तो इसका मतलब है, कि देश कमजोर हो रहा है। इमरान खान ने आगे कहा कि,'मौजूदा हालात में अगर अमेरिका हमारी मदद करता है तो वह मदद के बदले क्या मांगेगा? मुझे डर है कि देश की सुरक्षा कमजोर हो जाएगी।'
इमरान खान ने भी बनाया 'सलाहकार'
पाकिस्तानी अखबार डॉन ने लिखा है कि, हालांकि, इमरान खान ने अमेरिकी अधिकारी से संपर्क करने के लिए जनरल बाजवा की भले ही आलोचना कर दी, लेकिन ये वही इमरान खान थे, जिन्होंने प्रधानमंत्री के रूप में जनरल बाजवा को वित्तीय सहायता मांगने के लिए सऊदी अरब और चीन की यात्राओं पर भेजा था। अखबार ने कहा कि, आर्थिक कूटनीति में बजावा का प्रवेश चिंता से प्रेरित हो सकता है, लेकिन यह देश के मामलों में उनकी संस्था के बड़े पैमाने पर बढ़ते कदम को भी रेखांकित करता है।
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