अब उत्तर कोरिया के परमाणु हथियारों का क्या होगा?
पिछले साल अगस्त तक अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप उत्तर कोरिया पर 'फायर एंड फ्यूरी' की भाषा में बात करते थे. लेकिन इस साल जून में उनका अंदाज़, उनके शब्द-चयन उलट गए.
सिंगापुर में उत्तर कोरियाई नेता किम जोंग उन से मुलाक़ात के बाद अमरीकी राष्ट्रपति ने कहा, "बीता हुआ कल हमारा वर्तमान तय करे, यह ज़रूरी नहीं. अतीत के विवाद को भविष्य के युद्ध में नहीं बदलने दिया जा सकता.
चेयरमैन किम और मैंने अभी एक साझा समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं,
पिछले साल अगस्त तक अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप उत्तर कोरिया पर 'फायर एंड फ्यूरी' की भाषा में बात करते थे. लेकिन इस साल जून में उनका अंदाज़, उनके शब्द-चयन उलट गए.
सिंगापुर में उत्तर कोरियाई नेता किम जोंग उन से मुलाक़ात के बाद अमरीकी राष्ट्रपति ने कहा, "बीता हुआ कल हमारा वर्तमान तय करे, यह ज़रूरी नहीं. अतीत के विवाद को भविष्य के युद्ध में नहीं बदलने दिया जा सकता.
चेयरमैन किम और मैंने अभी एक साझा समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसमें उन्होंने कोरियाई प्रायद्वीप में पूर्ण परमाणु निरस्त्रीकरण की अपनी अटल प्रतिबद्धता दोहराई है. हम इस समझौते को जल्द से जल्द लागू करने के लिए सशक्त बातचीत करने पर भी सहमत हुए हैं."
डोनल्ड ट्रंप और किम जोंग उन की तस्वीरों ने विश्व राजनीतिक पटल पर बेशक कुछ उम्मीदें पैदा की हैं. दोनों देशों के बीच तनाव का ग्राफ कुछ महीनों में ही नीचे आ गया है. लेकिन सवाल ये है कि क्या इस मुलाक़ात ने अब तक उफान मार रही सभी आशंकाओं को भी ख़त्म कर दिया है?
साफ़ नीयत, सही निरस्त्रीकरण?
अमरीकी विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो कह चुके हैं उत्तर कोरिया की ओर से निरस्त्रीकरण दर्शाने के बाद ही उस पर लगी आर्थिक पाबंदियां हटाई जाएंगी. लेकिन क्या यह अप्रत्याशित मुल्क़ वाक़ई उस दिशा में साफ़ नीयत से काम करेगा?
जेएनयू में कोरियन स्टडीज़ की प्रोफेसर वैजयंती राघवन इससे इत्तेफाक़ नहीं रखतीं.
वैजयंती कहती हैं कि अंतरराष्ट्रीय संबंधों और सुरक्षा मसलों में जब परमाणु निरस्त्रीकरण की बात होती है तो इसका मतलब है कि एक-एक करके परमाणु हथियार नष्ट किए जाएं और कोई अंतरराष्ट्रीय एजेंसी आकर उसकी जांच करे.
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उनके मुताबिक, "लेकिन जहां तक उत्तर कोरिया की बात है, मुझे नहीं लगता कि परमाणु निरस्त्रीकरण अपने कड़े रूप में अमल में आ पाएगा. इस समझौते में फ़िलहाल सिर्फ़ प्रतिबद्धता की बात कही गई है और इसका ये मतलब हो सकता है कि परमाणु कार्यक्रम को आगे नहीं बढ़ाया जाएगा और नए मिसाइल परीक्षण नहीं किए जाएंगे. हमें इस परमाणु निरस्त्रीकरण को सीमित अर्थों में ही लेना चाहिए."
अमरीकी अपेक्षाएं पूरी होंगी?
ट्रंप और किम के बीच हुए इस समझौते में पूरे कोरियाई प्रायद्वीप के पूर्ण निरस्त्रीकरण की बात कही है. मतलब, दक्षिण कोरिया में भी अगर अमरीका की परमाणु पनडुब्बियां और हथियार हैं तो वे भी अमरीका को वापस लेने होंगे.
लेकिन उत्तर कोरिया के परमाणु हथियारों और तकनीक को लेकर अमरीका की क्या अपेक्षाएं होंगी? अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार और अमरीका की यूनिवर्सिटी ऑफ डेलावेयर में प्रोफेसर मुक़्तदर ख़ान कहते हैं, "ये हो सकता है कि उत्तर कोरिया के जो हथियार हैं वो चीन को दे दें, या अमरीका या रूस को दे दें या उसे वैज्ञानिक तरीक़े से डीग्रेड कर दें."
हालांकि मुक़्तदर ख़ान परमाणु हथियार बनाने की दुर्लभ तकनीक की अहमियत को रेखांकित करते हैं. वह बताते हैं कि परमाणु तकनीक का सबसे अहम हिस्सा यूरेनियम का संवर्धन है.
वह कहते हैं, "अमरीका का मक़सद ये होगा कि जिस प्लांट में यूरेनियम का 99 फीसदी तक संवर्धन यानी शुद्धिकरण किया जाता है - जो ईरान अभी तक नहीं बना सका है- वो बंद कर दें. यानी उसके सेंट्रीफ्यूजेस को नष्ट कर दिया जाए. इसका मतलब ये है कि दस साल बाद अगर कोई नई हुक़ूमत भी उत्तर कोरिया में आ जाती है तो उन्हें शुरू से शुरू करना होगा. ये अमरीका चाहता है. लेकिन क्या ये होगा? बिल्कुल ही नहीं. परमाणु हथियार गंवाने के साथ उत्तर कोरिया अपनी एकमात्र ताक़त भी गंवा देगा. अमरीका साबित कर चुका है कि उस पर भरोसा नहीं किया जा सकता. ईरान के मामले में वह परमाणु समझौता तोड़ चुका है."
पेच लीबिया के मॉडल का
सिर्फ़ ईरान ही नहीं है, जिसकी मिसाल किम जोंग उन के दिमाग में होगी. वह लीबिया के बारे में भी सोच रहे होंगे, जिसका ज़िक्र इस मुलाक़ात से पहले सबसे पहले किया था अमरीका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन बोल्टन ने.
उत्तर कोरिया को लेकर अमरीकी आकांक्षाओं पर बात करते हुए बोल्टन ने एक टीवी चैनल से कहा था, "मुझे लगता है कि ये सही है. मुझे लगता है कि हम लीबिया मॉडल की ओर देख रहे हैं. मतलब सभी परमाणु हथियारों से पीछा छुड़ाना, उन्हें नष्ट करना और उसे अमरीका के टेनेसी स्थित ओक रिज ले जाया जाना."
जॉन बोल्टन 2003 में बुश कार्यकाल के समय लीबियाई नेता कर्नल मुअम्मर ग़द्दाफ़ी के साथ निरस्त्रीकरण पर हुए समझौते का ज़िक्र कर रहे थे. लेकिन इसने लगे हाथ उस वक़्त के लीबियाई प्रशासक कर्नल मुअम्मर ग़द्दाफ़ी के हश्र की यादें ताज़ा कर दीं.
समझौते के आठ साल बाद 2011 में ग़द्दाफ़ी को अपने मुल्क़ में एक पश्चिम समर्थित हथियारबंद विद्रोह का सामना करना पड़ा. ग़द्दाफ़ी ने भी जवाबी हिंसा से इसका प्रतिवाद किया.
लेकिन अंतत: ये लड़ाई ग़द्दाफी हार गए. हथियारबंद विद्रोही लड़ाकों ने सिर्त की एक सड़क पर उनकी हत्या कर दी.
ग़द्दाफ़ी के हश्र की यादें
बीबीसी के उस वक़्त के उत्तरी अमरीका एडिटर मार्क मार्डेल के मुताबिक, जब हिलेरी क्लिंटन को ग़द्दाफ़ी की मौत की ख़बर दी गई तो उन्होंने कहा, 'वाओ'.
हालांकि प्रोफेसर मुक़्तदर ख़ान कहते हैं कि जॉन बोल्टन उत्तर कोरिया के संबंध में जिस लीबियाई मॉडल का ज़िक्र कर रहे थे, उसे ग़लत समझा गया.
वह बताते हैं, "जॉन बोल्टन का जो संदर्भ था वह 2003 का था. उस वक़्त लीबिया का परमाणु कार्यक्रम शुरुआती स्तर पर था. यूं समझिए कि वह गाड़ी बनाना चाहता था और उसने टायर बनाया और कहा कि मैं टायर बनाना छोड़ देता हूं, आप मुझे अंतरराष्ट्रीय समुदाय में दाख़िल कर लें, आर्थिक सहायता दे दें, वगैरह वगैरह. इसलिए 2003 के समझौते के बाद लीबिया में परमाणु हथियारों की ओर लौटने का कोई रास्ता भी नहीं बचा था. तो वो मॉडल जॉन बोल्टन चाहते थे कि निरस्त्रीकरण के बाद उत्तर कोरिया के पास भी वापस लौटने का कोई रास्ता ही न हो. लेकिन लोगों ने ये समझा कि वो कह रहे हैं कि देखिए कर्नल ग़द्दाफ़ी का जो हाल हुआ, किम जोंग उन का भी वही हाल होगा."
लीबिया और उत्तर कोरिया में अंतर
उत्तर कोरिया को अपनी लीबिया से तुलना इसलिए भी पसंद नहीं आई क्योंकि लीबिया का परमाणु कार्यक्रम उस वक़्त बेहद शुरुआती चरण में था. जबकि डिफेंस एंड इंटेलीजेंस एजेंसी के अनुमान के मुताबिक, उत्तर कोरिया के पास 2017 में ही क़रीब साठ परमाणु हथियार थे.
वैजयंती राघवन बताती हैं कि उत्तर कोरिया का परमाणु कार्यक्रम जिस चरण तक पहुंचा बताया जाता है, उतना आगे पहुंचकर अब तक किसी देश ने निरस्त्रीकरण नहीं किया है.
ट्रंप इस मामले को बिगड़ने नहीं देना चाहते थे. इसलिए उन्होंने ना सिर्फ़ बोल्टन के बयान को ख़ारिज किया बल्कि न्यूयॉर्क टाइम्स में छपी एक ख़बर एक मुताबिक, अपने मंत्रिमंडल से भी कहा कि वे उत्तर कोरिया पर अनाप शनाप बोलने से बचें.
'परमाणु हथियार नहीं हैं तो भी अमरीका से पंगा न लें'
जॉन बोल्टन को भले ही ग़लत समझ गया, लेकिन जाने अनजाने इसने समूची दुनिया को ग़द्दाफी की कहानी तो याद दिला ही दी. लेकिन प्रोफेसर मुक़्तदर ख़ान को लगता है कि उत्तर कोरिया लीबिया वाली ग़लती नहीं करेगा.
उन्होंने कहा, "उत्तर कोरिया इतना बेवक़ूफ नहीं है. मुझे याद है कि जब पहले खाड़ी युद्ध में अमरीका ने इराक़ को चंद दिनों में हरा दिया था तो भारत के उस वक़्त के रक्षा मंत्री से पूछा गया था कि आपके लिए इसमें क्या सबक हैं? तो उन्होंने कहा था कि अगर आपके पास परमाणु हथियार नहीं हैं तो अमरीका से ज़्यादा झगड़ा न करें."
मुक़्तदर यही मानते हैं कि उत्तर कोरिया यह जानता है कि अगर उसके पास परमाणु हथियार नहीं होते तो उसका भी वही हाल हो सकता है जो ईरान का हो रहा है. पाबंदियों के बोझ तले वो सत्ता में बदलाव के लिए मज़बूर हो जाएंगे.
वह कहते हैं, "अगर उत्तर कोरिया का नेतृत्व मुझसे सलाह मांगे तो मैं यही कहूंगा कि किसी भी सूरत में निरस्त्रीकरण न करें, वरना आपकी कोई हैसियत ही नहीं रहेगी."
फिर विवाद की आशंकाएं
प्रोफेसर ख़ान ये भी कहते हैं कि अमरीका की राजनीतिक ज़मात का एक हिस्सा इस समझौते से ख़ुश नहीं है क्योंकि अमरीका को इससे ज़्यादा कुछ हासिल नहीं हुआ.
वैजयंती राघवन मानती हैं कि दोनों देशों के बीच कई ऐसे द्वंद्व हैं जो निकट भविष्य में फिर उभरकर आ सकते हैं और स्थितियों को बिगाड़ सकते हैं.
वह कहती हैं, 'अब ट्रंप ने ये कहा है कि हम दक्षिण कोरिया में सैन्य अभ्यास छोड़ देंगे. मुझे नहीं लगता कि ये बात उन्होंने दक्षिण कोरिया से बात करके कही. अब दक्षिण कोरिया को लग सकता है कि ट्रंप दक्षिण कोरिया के साथ सहयोग की प्रतिबद्धता से हट रहे हैं.'
हालांकि अतीत में ऐसे भी उदाहरण हैं जब देशों ने सफलतापूर्वक निरस्त्रीकरण किया है और इसका उन्हें लाभ भी मिला है.
मुक़्तदर ख़ान कहते हैं, "ब्राज़ील और अर्जेंटीना, दक्षिण अफ्रीका और स्वीडन इसकी मिसाल हैं. सोवियत संघ के बाद के दौर में कज़ाकस्तान, बेलारूस, यूक्रेन. इनके पास भी सौ से ज़्यादा परमाणु हथियार थे, लेकिन उन्होंने सब कुछ दे दिया और इसके बदले उन्हें पश्चिम से कई बिलियन डॉलर की आर्थिक मदद मिली. उत्तर कोरिया का भी बहुत फायदा हो सकता है अगर वो इस बातचीत को अच्छी तरह मैनेज करे. चरणबद्ध तरीक़े से इसे आगे बढ़ाए."
फ़िलहाल सब कुछ स्थिर और शांत लगता है. लेकिन किम से मुलाक़ात के बाद सिंगापुर में जब डोनल्ड ट्रंप ने एक लंबा संबोधन दिया तो सभी सकारात्मक पक्षों के साथ उन्होंने एक पंक्ति में यह भी बता दिया कि किम जोंग उन के वादे पर उनके मन की आशंकाएं अभी भी छँटी नहीं हैं.
उन्होंने कहा था, "मुझे लगता है कि वो ये चीज़ें करेंगे. मैं ग़लत भी हो सकता हूं. हो सकता है कि छह महीने में मैं आपके सामने खड़ा होकर ये कहूं कि हां मैं ग़लत था. मुझे पता नहीं कि मैं कभी ये स्वीकार करूंगा या नहीं, लेकिन मैं कोई बहाना खोज लूंगा."