अब ज़िम्बाब्वे के राष्ट्रपति रॉबर्ट मुगाबे के महाभियोग की तैयारी
आज महाभियोग का प्रस्ताव लाया जाएगा, कल तक हटाए जा सकते हैं रॉबर्ट मुगाबे
ज़िम्बाब्वे की सत्तारूढ़ पार्टी ज़ानू-पीएफ़ राष्ट्रपति रॉबर्ट मुगाबे पर महाभियोग चलाने की तैयारी कर रही है. राष्ट्रपति मुगाबे पर आरोप है कि उन्होंने अपनी पत्नी को "संवैधानिक सत्ता में दखल देने" की इजाज़त दी.
इस सिलसिले में मंगलवार को संसद में प्रस्ताव पेश किया जाएगा.
पार्टी के वरिष्ठ सदस्य पॉल मंगवाना ने बताया कि यह काम सिर्फ़ दो दिन में हो सकता है यानी राष्ट्रपति मुगाबे को बुधवार तक अपने पद से हटाया जा सकता है.
ज़ानू-पीएफ़ पार्टी ने मुगाबे को इस्तीफ़ा देने के लिए सोमवार तक का समय दिया था, लेकिन मुगाबे ने ऐसा नहीं किया.
मुगाबे ख़ुद न हटे तो चलेगा महाभियोग
जल्दी ही मनंगावा से मिल सकते हैं मुगाबे
दूसरी तरफ़ सेना के अधिकारियों ने बताया कि ''उन्होंने राष्ट्रपति मुगाबे के लिए आगे का रास्ता सोच लिया है और बर्ख़ास्त किए गए पूर्व उपराष्ट्रपति इमरसन मनंगावा जल्द ही वापस लौट सकते हैं.''
मुगाबे की पत्नी ग्रेस और पूर्व उपराष्ट्रपति मनंगावा को उम्रदराज़ राष्ट्रपति का उत्तराधिकारी माना जा रहा था, लेकिन कुछ दिन पहले मुगाबे ने मनंगावा को पद से हटा दिया. इसके बाद उनकी पत्नी की उम्मीदवारी का रास्ता साफ़ हो गया, लेकिन सेना को यह पसंद नहीं आया. 16 नवंबर को सेना ने मुगाबे को घर में नज़रबंद कर सारे फ़ैसले अपने हाथ में ले लिए.
देश के बड़े सैन्य अधिकारियों के मुताबिक़ राष्ट्रपति मुगाबे और पूर्व उपराष्ट्रपति मनंगावा एक-दूसरे के संपर्क में हैं और जल्द ही उनकी मुलाक़ात भी हो सकती है.
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राष्ट्रपति मुगाबे पर क्या आरोप हैं?
ज़िम्बाब्वे के संविधान के मुताबिक़ गंभीर दुर्व्यवहार, नाक़ाबिलियत, संविधान की अनदेखी या इसे मानने, बनाए रखने और इसकी सुरक्षा करने में असफल रहने पर महाभियोग का मामला चलाया जा सकता है.
पार्टी मीटिंग से निकलते हुए वरिष्ठ नेता पॉल मंगवाना ने बताया कि "राष्ट्रपति मुगाबे पर मुख्य आरोप है कि उन्होंने अपनी पत्नी को सरकार से जुड़े संवैधानिक मामलों में दखल देने की इजाज़त दी जबकि उनकी पत्नी के पास ऐसा करने का कोई अधिकार नहीं था. उनकी पत्नी सरकारी अधिकारियों और उपराष्ट्रपति का सार्वजनिक रैलियों में अपमान करती रहीं. ये लोग सेना की आलोचना भी करते रहे हैं. ये सब मुख्य आरोप हैं."
आगे बोलते हुए पॉल ने कहा कि मुगाबे ने "ज़िम्बाब्वे के संविधान को लागू करने से इंकार कर दिया है - प्रांतीय परिषद के चुनाव कराए गए, लेकिन अब तक भी किसी ने काम नहीं संभाला है. उनकी उम्र हो गई है. अब उनमें सरकार चलाने के लिए ताक़त भी नहीं बची. वे एक ज़िद्दी आदमी हैं. उन्हें पता है लोग क्या कह रहे हैं लेकिन वो सुनने को तैयार नहीं हैं."
रॉबर्ट मुगाबे को पार्टी ने बर्ख़ास्त किया
अब क्या होगा
माना जा रहा है कि मंगलवार से महाभियोग की कार्रवाई शुरू होगी जिस पर नेशनल असेंबली और सीनेट में वोट डाले जाएंगे.
इसके बाद दोनों सदन आरोपों की जांच के लिए एक संयुक्त समिति बनाएंगे.
अगर समिति भी महाभियोग का सुझाव देती है और दोनों सदन दो-तिहाई बहुमत के साथ इस पर सहमति जताते हैं तो राष्ट्रपति को हटाया जा सकता है.
मनंवाना के मुताबिक़ "हम मंगलवार को प्रस्ताव लाने की कोशिश कर रहे हैं. आरोप बिल्कुल साफ़ हैं इसलिए उम्मीद है कि बुधवार तक संसद में वोटिंग हो जाएगी."
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इस बार बड़ी मुश्किल में हैं मुगाबे
विपक्षी पार्टी एमडीसी-टी एक बार पहले भी राष्ट्रपति मुगाबे पर महाभियोग चलाने की नाक़ामयाब कोशिश कर चुकी है.
लेकिन इस बार नतीजा मुगाबे के ख़िलाफ़ जाने की पूरी संभावना है क्योंकि मुगाबे की पार्टी ज़ानू-पीएफ़ का दोनों सदनों में बहुमत है.
अगर महाभियोग सफल रहा तो सेना कह सकती है कि मुगाबे को सेना ने नहीं, क़ानून ने हटाया. ऐसा हुआ तो मौजूदा उपराष्ट्रपति फ़िलीक ज़ेलम फ़ोको को गद्दी संभालनी चाहिए.
लेकिन फ़िलीक ज़ेलम फ़ोको ग्रेस मुगाबे के समर्थक माने जाते हैं. सेना उनके बजाय पूर्व उपराष्ट्रपति इमरसन मनंगावा को राष्ट्रपति बनाना चाहेगी. मनंगावा को रविवार को ज़ानू-पीएफ़ पार्टी का अध्यक्ष भी बना दिया गया है.
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कहां से हुई शुरुआत
ज़िम्बाब्वे का मौजूदा संकट दो हफ़्ते पहले तब शुरू हुआ जब 93 साल के मुगाबे ने मनंगावा को बर्ख़ास्त कर दिया. सेना इस फ़ैसले से बहुत नाराज़ हुई क्योंकि इसका मक़सद ग्रेस मुगाबे की दावेदारी को मज़बूत करना था.
कई साल से आर्थिक संकट से गुज़र रहे ज़िम्बाब्वे में राष्ट्रपति मुगाबे की लोकप्रियता वैसे भी घटी है.
पिछले हफ़्ते सेना ने सरकारी टेलीविज़न का नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया और मुगाबे को घर में नज़रबंद कर दिया. लेकिन सेना इसे तख़्तापलट नहीं मानती.
मुगाबे को तब से उनके राजधानी में मौजूद घर ब्लू रूफ़ में रखा गया है.
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मुगाबे ने मन बदला
रविवार को देश के नाम एक संबोधन में बोलते हुए मुगाबे ने इस्तीफ़े का ज़िक्र तक नहीं किया जिससे सबको बड़ी हैरानी हुई.
सेना के जनरलों से घिरे, मुगाबे ने कहा कि सेना ने सत्ता का नियंत्रण लेकर और उन्हें नज़रबंद करके कुछ ग़लत नहीं किया. इसके बाद उन्होंने कहा कि वह दिसंबर में होने वाली पार्टी बैठक की अध्यक्षता करेंगे.
बीबीसी के अफ़्रीका मामलों के संपादक फ़रगल कीन के मुताबिक़ माना जा रहा था कि उस संबोधन में मुगाबे को इस्तीफ़ा देना था, लेकिन उन्होंने अपना मन बदल लिया.
37 साल से सत्ता चला रहे मुगाबे के पास अब किसी का समर्थन नहीं बचा. उनकी अपनी पार्टी भी विपक्ष, सेना, भूतपूर्व सैनिकों और आम नागरिकों की तरह उनके ख़िलाफ़ खड़ी नज़र आ रही है.