कोरोना के खिलाफ 95 फीसदी सफल पाई गई Sputnik V वैक्सीन, गेमेलिया इंस्टीट्यूट ने जारी किए ट्रायल के नतीजे
नई दिल्ली। कोरोना वायरस संकट के बीच रूस की वैक्सीन स्पुतनिक वी (Sputnik V) को लेकर बड़ी राहत की खबर सामने आई है। रूस की राजधानी मॉस्को में स्थित गैमलेया नेशनल सेंटर ऑफ एपिडेमियोलॉजी एंड माइक्रोबायोलॉजी ने रोजना किए जाने वाले परीक्षण के क्लिनिकल ट्रायल के नतीजे जारी किए हैं जिसमें यह पता चला है कि स्पुतनिक वी वैक्सीन 28 दिनों के बाद कोरोना वायरस पर 91.4 प्रतिशत प्रभावकारी रही है। संस्थान ने आगे कहा कि स्पुतनिक वी वैक्सीन की पहली डोज दिए जाने के 42 दिन बाद कोरोना वायरस के खिलाफ इसकी प्रभावकारिता बढ़कर 95 फीसदी से भी अधिक हो जाती है।
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बता दें कि रूस की वैक्सीन स्पुतनिक वी भारत में भी क्लिनिकल ट्रायल चल रहा है, गैमलेया इंस्टीट्यूट के नतीजे जारी होने के बाद वैक्सीन के नतीजों को लेकर भारत को शोधकर्ता भी काफी खुश हैं। कोरोना वायरस से निपटने के लिए रूस द्वारा विकसित की गई वैक्सीन Sputnik V का दूसरे और तीसरे चरण का ह्यूमन ट्रायल हैदराबाद स्थित देश की दिग्गज फार्मा कंपनी डॉक्टर रेड्डीज द्वारा किया जा रहा है। भारत में वायरस की सुरक्षा और प्रभावकारिता को समझने के लिए वैक्सीन के 2 और 3 चरण का परिक्षण किया जा रहा है।
Second interim analysis of clinical trial data showed a 91.4% efficacy for the Sputnik V vaccine on day 28 after the first dose; vaccine efficacy is over 95% 42 days after the first dose: The Gamaleya National Center of Epidemiology and Microbiology, Moscow, Russia. #COVID19 pic.twitter.com/ymCBpu4FM9
— ANI (@ANI) November 24, 2020
वैक्सीन
की
कीमत
को
लेकर
किया
जा
रहा
ये
दावा
इस
बीच
यह
भी
दावा
किया
जा
रहा
है
कि
वैक्सीन
स्पुतनिक
वी
(Sputnik
V)
दुनिया
की
सबसे
सस्ती
वैक्सीन
होगी।
हालांकि
सरकार
ने
अभी
किसी
वैक्सीन
की
कीमत
का
खुलासा
नहीं
किया
है,
लेकिन
रूस
की
स्पूतनिक-V
(Sputnik-V)
वैक्सीन
को
बनाने
वाली
कंपनी
ने
दावा
किया
है
कि
उनकी
ये
वैक्सीन
दुनिया
की
सबसे
सस्ती
वैक्सीन
होगी।
वैक्सीन
की
कीमत
को
लेकर
किए
जा
रहे
दावों
के
बीच
पीएम
मोदी
ने
भी
एक
ट्वीट
किया
है।
उन्होंने
लिखा,
'अभी
तक
यह
फैसला
नहीं
हुआ
है
कि
कौन
सी
वैक्सीन
कितने
रुपए
में
आएगी,
हालांकि
भारत
से
संबंधित
2
वैक्सीन
भी
रेस
में
आगे
चल
रही
हैं।
हम
ग्लोबल
फर्म्स
के
साथ
भी
काम
कर
रहे
हैं।
कई
साल
तक
दवाई
मौजूद
रहने
के
बाद
भी
लोगों
को
पर
इसका
विपरीत
प्रभाव
पड़
जाता
है।
इसलिए
वैज्ञानिक
तौर
पर
एक
फैसला
लेने
की
जरूरत
है।'
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