ऐसा प्रधानमंत्री तो देखा ही नहीं ! ट्रंप, जॉनसन और मोदी जैसे नेता भी फेल
विलिंगटन। ऐसा प्रधानमंत्री तो देखा ही नहीं। 39 साल की महिला ने वो कर दिखाया जो बड़े-बड़े महारथी नहीं कर सके। जब सारी दुनिया कोरोना के खौफ से सहमी हुई है तब इस देश की युवा पीएम ने अपने नागरिकों को तबाही की लहर से बचा लिया। अब कोरोना के पांव इस देश में उखड़ रहे हैं जिसकी वजह से यहां लॉकडाउन में ढील दी जा रही है। अगले सोमवार यानी 27 अप्रैल से स्कूल खुल जाएंगे। निर्माण, उत्पादन और वानिकी से जुड़े उद्योग शुरू हो जाएंगे। इस देश में अभी तक कोरोना से मात्र 12 मौत ही हुई है। संक्रमितों की संख्या भी 1105 है। नये मामलों की दर एक फीसदी से भी कम है। इसलिए यहां लॉकडाउन में ढील दी जा रही है। इस महिला प्रधानमंत्री ने त्वरित फैसला लेने में डोनाल्ड ट्रंप, बोरिस जॉनसन और नरेन्द्र मोदी को भी पीछे छोड़ दिया है।
27 अप्रैल से खुल जाएंगे स्कूल
न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री जेसिंडा अर्डर्न अभी 39 साल की हैं लेकिन सूझबूझ और योग्यता के मामले में उन्होंने दुनिया के तपेतपाये नेताओं को भी पीछे छोड़ दिया है। सोमवार को जेसिंडा मीडिया से मुखातिब हुईं और लॉकडाउन में ढील देने के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि अब कोरोना अलर्ट लेबल -4 के कठोर प्रतिबंध 27 अप्रैल से हटा लिये जाएंगे। इसके आगे अलर्ट लेबल -3 जारी रहेगा। इसका मतलब हुआ कि न्यूजीलैंड में स्कूल खुल जाएंगे। उत्पादन और वानिकी से जुड़े उद्योग- धंधे शुरू हो जाएंगे। सड़क और भवन निर्माण का काम शुरु हो जाएगा। रेस्तरां खुल जाएंगे लेकिन कोई खाना पैक करा कर घर ले जा सकता है। शादी या अंतिम संस्कार में अधिकतम 10 लोग जमा हो सकते हैं। पीएम जेसिंडा ने कहा कि इस ढील की कैबिनेट समीक्षा करेगी इसके बाद आगे फैसला लिया जाएगा। उन्होंने कहा कि फिजिकल डिस्टेंसिंग का हर हाल में पालन करना होगा। हमने अभी तक जो सफलता पायी है वह फिजिकल डिस्टेंसिंग और आइसोलेशन की वजह से मिली है।
कोरोना पर कंट्रोल
न्यूजीलैंड में लॉकडाउन के कठोर प्रतिबंध (लेबल-4) 26 मार्च को लागू किये गये थे। उस समय वहां कोरोना संक्रमितों की संख्या केवल 363 थी। जब कि भारत में 23 मार्च को लॉकडाउन लागू किया गया था। तब भारत में कोरोना के करीब 500 मरीज थे। अब 20 अप्रैल को दोनों ही देशों के लॉकडाउन में ढील दी गयी है। लेकिन हालात बिल्कुल अलग अलग हैं। भारत में कोरोना से मरने वालों की संख्या 540 के पार पहुंच गयी है जब कि न्यूजीलैंड में यह आंकड़ा केवल 12 है। न्यूजीलैंड में कोरोना संक्रमितों की संख्या 1105 है तो भारत में इनकी तादाद 17 हजार के पार पहुंच गयी है। भारत और न्यूजीलैंड में लगभग एक समय और एक ही परिस्थिति में ल़ॉकडाउन लागू किया गया था। लेकिन ऐसा क्या हुआ कि कोरोना से लड़ाई में न्यूजीलैंड जीत गया और भारत पिछड़ गया ? 39 साल की प्रधानमंत्री जेसिंडा ने अनुभवी नरेन्द्र मोदी को कैसे पीछे छोड़ दिया ? नरेन्द्र मोदी ही क्यों जेसिंड ने तो ट्रंप और बोरिस जॉनसन को भी मात दे दी।
एक महिला PM ने ट्रंप, जॉनसन और मोदी को पछाड़ा
जब चीन में कोरोना ने मौत का तांडव शुरू किया था तब जेसिंडा ने ही सबसे पहले उसके संकट को पहचाना था। न्यूजीलैंड ने 22 जनवरी से ही कोरोना की जांच शुरू कर दी थी। जब कि जनवरी में भारत, अमेरिका और इंग्लैंड जैसे आधिकांश देश आराम की मुद्रा में थे। इन देशों में सघन जांच की व्यवस्था लागू नहीं हो पायी थी। 22 जनवरी को तो अमेरिका में कोरोना का पहला मरीज सामने आ गया था लेकिन ट्रंप ने लॉकडाउन की तरफ ध्यान ही नहीं दिया। 28 फरवरी को इंग्लैंड में कोरोना के तीन केस मिल चुके थे। फिर भी बोरिस जॉनसन सतर्क नहीं हुए। अमेरिका- इंग्लैंड साधन और वैज्ञानिक शोध के मामले में न्यूजीलैंड से बहुत आगे थे। फिर भी ट्रंप और जॉनसन समय पर सख्त फैसला न ले सके। भारत में कोरोना का पहला केस 30 जनवरी को मिला था। भारत जैसे बड़े देश में जांच की प्रक्रिया बहुत धीमी रही। इसलिए कोरोना संक्रमण की वास्तविक संख्या का पता नहीं चल पाया। भारत में कोरोना का संक्रमण विदेश से आये लोगों से फैला। यहां क्वारेंटाइन और फिजिकल डिस्टेंसिंग का सही अनुपालन नहीं होने से मामला बिगड़ गया। जब कि न्यूजीलैंड में प्रधानमंत्री जेसिंडा की अपील के बाद लोगों ने ईमानदारी के साथ सोशल डिस्टेंसिंग और सेल्फ आइसोलेशन का पालन किया।
सटीक फैसला
जब न्यूजीलैंड ने जनवरी में जांच शुरू की थी तब कोई संक्रिमत नहीं मिला था। इसके बाद भी जांच प्रक्रिया शिथिल नहीं की गयी थी। कोरोना का मरीज मिले या नहीं मिले, जांच जारी रही। यह सावधानी कम आयी। एक महीने दो दिन के बाद यानी 26 फरवरी को न्यूजीलैंड में पहला पोजिटिव केस मिला। इसके बाद सतर्कता और बढ़ा दी गयी। 14 मार्च से पानी में चलने वाले-बड़े बड़े व्यापारिक क्रूज जहाजों का परिचालन बंद कर दिया गया। विदेश से आने वाले सभी लोगों को अनिवार्य रूप से 14 दिन के क्वारेंटाइन में भेजा जाने लगा। विदेशी नागरिकों के आने पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया गया। न्यूजीलैंड के लोगों ने जिस तरह सरकार का साथ दिया वह भी अभूतपूर्व है। यहां के नागरिकों ने सरकार के निर्देशों का अक्षरश: पालन किया। लोगों ने खुशी-खुशी अपने को घरों में कैद कर लिया। न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री जेसिंडा को मालूम था कि उनके पास बड़ी संख्या में आइसीयू वाले अस्पताल नहीं हैं। संसाधन भी कम हैं। इसलिए फिजिकल डिस्टेंसिंग के अनुपालन पर ही जोर देना जरूरी है। इसमें वे कामयाब भी हुईं। न्यूजीलैंड की कामयाबी में तीन चीजों का अहम योगदान है- भौगोलिक स्थिति, कम आबादी और समय पर फैसला। न्यूजीलैंड एक द्वीप है। दुनिया के अन्य देशों से इसकी आमद-रफ्त कम है। यहां बहुत कम फ्लाइट्स आती हैं। न्यूजीलैंड की आबादी करीब 50 लाख ही है। यानी न्यूजीलैंड भारत के बेंगलुरू शहर से भी छोटा है। इतनी कम आबादी वाले देश में कोरोना को कंट्रोल करना आसान था।
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