पद छोड़ने के लिए तैयार हुए नेपाल के PM ओली, लेकिन रखी ये शर्त
नई दिल्ली- नेपाल में सत्ताधारी नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी में नेपाली प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के विरोधियों का ही दबदबा है। स्टैंडिंग कमेटी की बैठक में उनसे इस्तीफे की मांग हो चुकी है। सेंट्रल कमेटी में भी उन्हें समर्थन नहीं है। इसलिए, ओली सिर्फ नए-नए बहाने खोजकर अपने लिए समय का जुगाड़ करते जा रहे हैं। कुर्सी छोड़ने के चौतरफा दबाव के बाद उन्होंने एक नई शर्त लगा दी है कि नया प्रधानमंत्री उन्हीं की पुरानी पार्टी से होना चाहिए। नेपाल में उनकी सियासी चालबाजियों को समझने वाले लोग मान रहे हैं कि यह उनकी एक और चाल है, जिससे वो कुछ और दिन तक कुर्सी से चिपके रह सकें।
नेपाली पीएम ओली का नया पैंतरा
नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने नेपाल की सत्ताधारी नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी से पड़ रहे दबाव के बाद अपना ट्रैक थोड़ा सा बदला है। यानि उन्होंने पद छोड़ने से पहले अपनी रिप्लेसमेंट को लेकर एक बड़ी शर्त लगा दी है। हालांकि, अपनी शर्त को उन्होंने सुझाव के तौर पर गुरुवार को पूर्व प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल 'प्रचंड' के साथ हुई बैठक में दी है। अब ओली ने यह शर्त लगाई है कि उनकी जगह नया नेता सीपीएन (एकीकृत मार्कवादी-लेनिनवादी) गुट से ही होना चाहिए। माना जा रहा है कि यह ओली की चाल है और नेताओं के विरोधी गुटों में इस बात को लेकर वो विवाद पैदा करना चाहते हैं। नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के एक नेता ने कहा है कि,'यह उनके विरोधियों को बांटने और दहल एवं माधव नेपाल को आपस में लड़ाने की एक चाल है। लेकिन, मुझे नहीं लगता कि इसमें सफल हो पाएंगे। वे (माधव नेपाल और दहल) इस बात पर अड़े हुए हैं कि पहले प्रधानमंत्री को पद छोड़ना होगा। '
प्रचंड को रोकने के लिए ओली की चाल
गौरतलब है कि अबतक यही माना जा रहा है कि ओली की छुट्टी के बाद पूर्व नेपाली पीएम 'प्रचंड' को ही कुर्सी मिलेगी, जो कि सीपीएन (माओइस्ट सेंटर) गुट के नेता हैं। बता दें कि सीपीएन (एकीकृत मार्कवादी-लेनिनवादी) और सीपीएन (माओइस्ट सेंटर) दो अलग-अलग पार्टियां हैं, जिन्होंने 2018 में आपस में विलय करके नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी बना ली थी। शुरू में ओली प्रचंड के साथ सत्ता में 50-50 की हिस्सेदारी पर डील करके प्रधानमंत्री बने थे। लेकिन, पिछले साल नवंबर में इन दोनों के बीच एक नया समझौता हुआ, जिसके तहत नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी की कमान दहल को मिली और ओली पीएम की कुर्सी पर जमे रहे। लेकिन, बाद में सत्ताधारी पार्टी की तिकड़ी पूर्व पीएम दहल, माधव नेपाल और झाला नाथ खनाल ने उनके पद छोड़ने के लिए दबाव बनाना शुरू कर दिया।
सत्ता बचाने के लिए भारत से ले चुके हैं पंगा
नेपाली पीएम ओली के खिलाफ पार्टी में विद्रोह का बिगुल पहली बार अप्रैल-मई महीने में ही फूंक दिया गया था। लेकिन, तब उन्होंने भारत के 80 किलोमीटर नए रोड के बहाने नक्शा विवाद छेड़कर अपने खिलाफ उठ रही आवाज को राष्ट्रवाद की उन्माद में शांत करा दिया था। बाद में जब उनके विरोधियों ने पार्टी की स्टैंडिंग कमेटी के जरिए उन्हें हटाने की कोशिशें शुरू कर दीं तो उन्होंने यह आरोप लगाना शुरू कर दिया कि ये सब उनके खिलाफ भारत के इशारे पर हो रहा है। जबकि नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी की स्टैंडिंग कमेटी में उनके विरोधियों का ही दबदबा है। इसलिए, वो पद न छोड़ना पड़े इसलिए कोई न कोई नया हथकंडा अपना रहे हैं।
अब 19 जुलाई को स्टैंडिंग कमेटी की बैठक
ओली को अब अंदाजा हो चुका है कि 44 सदस्यीय स्टैंडिंग कमेटी की अगली बैठक से बच निकलना उनके लिए बहुत ही मुश्किल हो चुका है। इसकी पिछली बैठक 2 जुलाई को हुई थी और शुक्रवार को भी होने वाली थी। लेकिन, अब इसे 19 जुलाई तक के लिए टाल दिया गया है। लेकिन, गुरुवार को प्रचंड के साथ हुई आखिरी बैठक में ओली ने जो अपनी जगह नया नेता को लेकर दांव खेला है, उसने सबको चौंका दिया है। कुछ लोगों का मानना है कि ऐसा करके वह सिर्फ कुछ और वक्त तक कुर्सी पर बने रह लेना चाहते हैं। अब एक चर्चा ये भी हो रही है कि क्यों न अब इस मामले को 445 सदस्यों वाली सेंट्रल कमेटी में रख दिया जाय, जिसका फैसला ओली को मानना ही होगा; और इस कमेटी में भी ओली विरोधियों का ही दबदबा है।
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