नरेंद्र मोदी की जीत मुस्लिम दुनिया के मीडिया में 'चिंता या उम्मीद'
मोदी की जीत मुसलमानों ने के लिए क्या मायने रखती है? एजाज़ सईद ने लिखा है, ''यह तय है कि इस प्रचंड बहुमत के दम पर मोदी भारतीय गणतंत्र और संविधान को अपने हिसाब से आकार देंगे. पिछले पाँच सालों के कार्यकाल में मोदी पर सुप्रीम कोर्ट, यूनिवर्सिटी और अन्य संस्थानों को अपने हिसाब से तोड़ने-मोड़ने के आरोप लगते रहे हैं.
भारत की सतरहवीं लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी की प्रचंड जीत को दुनिया भर के मीडिया में तवज्जो मिली है.
वैश्विक मीडिया में मोदी की जीत को हिन्दू राष्ट्रवादी पार्टी की जीत कहा जा रहा है. मुस्लिम देशों के मीडिया में भी मोदी जीत को काफ़ी अहमियत दी गई है.
अरब न्यूज़ ने अपने एक वैचारिक स्तंभ में लिखा है कि मोदी ने अपने पहले कार्यकाल में खाड़ी के देशों से बहुत ही मज़बूत रिश्ते कायम किए थे और यह आगे भी जारी रहेंगे.
अरब न्यूज़ ने लिखा है, ''भारत की ऊर्जा सुरक्षा और विकास खाड़ी के देशों से तेल आपूर्ति पर बहुत हद तक निर्भर है. भारत 80 फ़ीसदी पेट्रोलियम ज़रूरतों की पूर्ति खाड़ी के देशों से करता है. इसके साथ ही भारत के इन्फ़्रास्ट्रक्चर के विकास में खाड़ी के देशों का निवेश काफ़ी अहम है.''
अरब न्यूज़ ने लिखा है, ''खाड़ी के देशों में लाखों भारतीय काम करते हैं. यही कारण है कि मोदी खाड़ी के देशों को काफ़ी महत्व देते हैं. मोदी ने अपने पहले कार्यकाल में इन मुस्लिम देशों का दौरा किया था. यहां तक कि संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब ने मोदी को अपने देश का सर्वोच्च सम्मान भी दिया.''
अरब न्यूज़ ने लिखा है कि खाड़ी के देशों से भारत का संबंध पुरानी सभ्यताओं से ही रहा है और मोदी की इस प्रचंड जीत के बाद ये संबंध और मज़बूत होंगे.
पाकिस्तानी मीडिया में मोदी की जीत की चर्चा तो है ही लेकिन साथ में भोपाल से प्रज्ञा सिंह ठाकुर की जीत को भी काफ़ी अहमियत दी गई है.
द एक्सप्रेस ट्रिब्यून ने लिखा है, ''भारत में मुसलमानों के ख़िलाफ़ बम हमले की अभियुक्त हिन्दू योगी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को भी भोपाल से हिन्दू राष्ट्रवादी दल बीजेपी के टिकट पर जीत मिली है. यह पहली बार है कि कोई आतंकी हमलों में शामिल होने का आरोप झेल रही शख़्स भारतीय संसद में चुनकर पहुंचेगी.''
पाकिस्तान के मशहूर अख़बार डॉन ने अपनी संपादकीय में मोदी की जीत पर कड़ी टिप्पणी की है.
डॉन ने अपनी संपादकीय में लिखा है, ''दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र ने बता दिया है कि वहां सांप्रदायिक राजनीति काफ़ी फल-फूल रही है और भारतीय गणतंत्र के भविष्य पर इसका असर दिखेगा. राजनीतिक विश्लेषक भविष्यवाणी कर रहे थे कि मोदी अपने वादे पूरे करने में असफल रहे हैं और मतदान में उन्हें इसका नुक़सान होगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ और मोदी को बड़ी जीत मिली. चुनावी नतीजे चकित करने वाले हैं और यह साबित हो रहा है कि धार्मिक नफ़रत और सांप्रदायिक राजनीति से मतदाताओं का दोहन किया जा सकता है.''
डॉन ने लिखा है, ''महीनों चले चुनावी प्रचार में मोदी ने मुस्लिम और पाकिस्तान विरोधी नैरेटिव का ख़ूब इस्तेमाल किया. भारत ने पाकिस्तान के भीतर एयर स्ट्राइक कर राष्ट्रवादी भावना उकसाने का काम किया. अब चुनाव ख़त्म हो गया है और उम्मीद है कि मोदी ने जिस हिन्दू अतिवाद का सहारा लिया उसे क़ाबू में रखेंगे ताकि अल्पसंख्यकों में मन में भी सुरक्षा की भावना कायम रहे. हम उम्मीद करते हैं कि इस उपमहाद्वीप में स्थायी शांति और विकास के लिए काम करेंगे. ये भी उम्मीद है पाकिस्तान के साथ बातचीत फिर से शुरू होगी.''
पाकिस्तानी न्यूज़ वेबसाइट 'द न्यूज़' में वहां के वरिष्ठ पत्रकार एजाज़ सईद ने लिखा है, ''विपक्षी पार्टियां और 20 करोड़ मुसलमानों के लिए 2014 की जीत की तुलना में मोदी की यह जीत ज़्यादा अहम है. जब अयोध्या में राम मंदिर के लिए आंदोलन चल रहा था तब भी बीजेपी को इतनी बड़ी जीत नहीं मिली थी. ज़ाहिर है इस जीत में प्रधानमंत्री मोदी और उनके वफ़ादार अमित शाह का अहम योगदान है. लेकिन क्या मोदी जिस मंत्र को बार-बार दोहराते हैं सबका साथ सबका विकास उसे वाक़ई ज़मीन पर उतार पाएंगे?''
मोदी की जीत मुसलमानों ने के लिए क्या मायने रखती है? एजाज़ सईद ने लिखा है, ''यह तय है कि इस प्रचंड बहुमत के दम पर मोदी भारतीय गणतंत्र और संविधान को अपने हिसाब से आकार देंगे. पिछले पाँच सालों के कार्यकाल में मोदी पर सुप्रीम कोर्ट, यूनिवर्सिटी और अन्य संस्थानों को अपने हिसाब से तोड़ने-मोड़ने के आरोप लगते रहे हैं. भारत के मुसलमानों के मन में विश्वास पैदा करना भी मोदी के इस जनादेश की ज़िम्मेदारी है.''
गल्फ़ न्यूज़ ने अपने एक ऑपिनियन पीस में लिखा है कि मोदी अपने पहले कार्यकाल से ज़्यादा साहसिक क़दम उठा सकते हैं. क़तर के मशहूर मीडिया नेटवर्क अल-जज़ीरा ने भी मोदी की जीत को बड़ी प्रमुखता से जगह दी है.
अल-जज़ीरा ने लिखा है, ''बीजेपी ने पूरे चुनावी कैंपेन को ऐसे चलाया मानो अमरीका में राष्ट्रपति का चुनाव हो रहा हो. बीजेपी के एजेंडा में हिन्दूवादी राजनीति प्रमुखता से रही. इतने प्रचंड बहुमत से मोदी की सत्ता में वापसी मुसलमानों के लिए चिंता का विषय है क्योंकि पिछले पाँच सालों में अतिवादी हिन्दू समूहों ने मुसलमानों पर कई हमले किए हैं.''
अल-जज़ीरा ने लिखा है, ''हालांकि खेती-किसानी और बेरोज़गारी से जु़ड़े कई संकट होने के बावजूद बीजेपी को इतनी बड़ी जीत मिली है. बीजेपी न केवल सीटें बढ़ीं बल्कि वोट पर्सेंटेज भी 10 फ़ीसदी से ज़्यादा बढ़ा है. मोदी की जीत में राष्ट्रीय सुरक्षा और पाकिस्तान से तनाव अहम मुद्दा रहा है.''