नरेंद्र मोदी या इमरान ख़ान, डोनल्ड ट्रंप ने किसे पहुंचाया फ़ायदा? : नज़रिया
भारत और पाकिस्तान दोनों, अमरीका के सामने बराबर तवज्जो पाने की एक बचकानी लड़ाई में लगे हुए थे. उन्हें कुडलो के बयान पर ध्यान देना चाहिए. नरेंद्र मोदी और डोनल्ड ट्रंप की मुलाक़ात हो या फिर इमरान ख़ान और ट्रंप की मुलाक़ात, दोनों का निष्कर्ष यह है कि ट्रंप ने दोनों से बाज़ी जीत ली. भारत-पाकिस्तान की 'बंदर-बांट' में सबसे अधिक तवज्जो मिली डोनल्ड ट्रंप को.
अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप की आर्थिक नीति में सहायक और राष्ट्रीय आर्थिक परिषद की निदेशक लॉरेंस कुडलो ने कहा है, ''ट्रंप ने वादा किया था कि 'अमरीका फ़र्स्ट' की विदेश नीति राष्ट्र हित में है, न कि पुराने सम्बन्धों की याद में है."
भारत और पाकिस्तान दोनों, अमरीका के सामने बराबर तवज्जो पाने की एक बचकानी लड़ाई में लगे हुए थे. उन्हें कुडलो के बयान पर ध्यान देना चाहिए.
नरेंद्र मोदी और डोनल्ड ट्रंप की मुलाक़ात हो या फिर इमरान ख़ान और ट्रंप की मुलाक़ात, दोनों का निष्कर्ष यह है कि ट्रंप ने दोनों से बाज़ी जीत ली.
भारत-पाकिस्तान की 'बंदर-बांट' में सबसे अधिक तवज्जो मिली डोनल्ड ट्रंप को. उन्होंने भारत की ओर से किसी बात को न ही स्वीकार किया और न ही उन्होंने पाकिस्तान को कोई छूट दी.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत में अमरीकी कंपनियों को निवेश करने के लिए जो भाषण दिया वह भी सफल नहीं हुआ और भारत व्यापारिक सौदा करने में नाकाम रहा.
भारत क्यों रहा नाकाम?
मोदी सरकार ने आम चुनाव से पहले चिकित्सा उपकरणों (स्टेंट, घुटनों के इम्प्लांट्स, डायलिसिस मशीन) के दामों को कम कर दिया था जिसको लेकर अमरीका बेहद चिंतित है.
अमरीका का मानना है कि यह क़दम बाज़ार की व्यवस्था में एक हस्तक्षेप है और अगर ऐसा दूसरे क्षेत्रों में भी होता है तो फिर आगे क्या होगा?
नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण के दौरान इस बात पर ध्यान दिलाया था कि भारत में डेटा ट्रांसमिशन की लागत बेहद कम है जिससे अमरीकी कंपनियों के लिए भारत में कारोबार करना फ़ायदेमंद रहेगा.
लेकिन अमरीकी सरकार का मानना है कि भारतीय निवेशक सरकार द्वारा नियंत्रित सब्सिडी पर ज़्यादा भरोसा करते हैं क्योंकि सरकार द्वारा निर्देशित डेटा ट्रांसमिशन की नीतियां विदेशी निवेशकों को व्यवसाय स्थापित करने के लिए हतोत्साहित करती हैं.
भारत में डेटा के विस्तार पर काफ़ी नियंत्रण है क्योंकि भारत नहीं चाहता है कि चीन को कम टैरिफ़ का लाभ लेने दे. इसलिए विडंबना यह है कि मोदी ने अमरीकी कंपनियों को निवेश के लिए आकर्षित करने को लेकर जो तर्क दिया, उसी तर्क के आधार पर अमरीकी कंपनियां निवेश करने से बचती हैं.
'जनरलाइज्ड सिस्टम ऑफ़ प्रेफरेंसेस' यानी जीएसपी प्रोग्राम के तहत अमरीकी बाज़ारों तक भारतीय उत्पादों की पहुंच की बहाली भी एक अहम मसला था. जून में अमरीका ने भारत से जीएसपी का दर्जा वापस ले लिया था.
क्या चाहता है भारत?
भारत चाहता है कि एक विकासशील देश के रूप में उसकी पहचान जारी रहे और साथ ही वह चाहता है कि उसे अधिक तरजीह दी जाए.
इसके अलावा भारत चाहता है कि कृषि उत्पाद बाज़ारों में अपनाई जाने वाली प्रक्रियाओं में उसे सुविधाएं दी जाएं. हालांकि उसको अभी भी बहुत सी सुविधाएं (जैसे खाद्य उत्पाद विकिरण सुविधाओं का आसान प्रमाणीकरण) हासिल हैं और कुछ कृषि बाज़ारों में यह अधिक हैं.
इन उत्पादों में अंगूर और अनार भी शामिल हैं. अगर मोदी सरकार भारत में अमरीकी अंगूरों और अनारों के आने की अनुमति दे देती है तब महाराष्ट्र के उन किसानों का क्या होगा जो अनार और अंगूर उगाते हैं?
तो नरेंद्र मोदी और उनका प्रशासन यही जानकर ख़ुश हो सकता है कि उन्हें 'एल्विस प्रेसली' और 'भारत के पिता' की उपाधि दी गई है.
वह यह भी जानकर ख़ुश हो सकते हैं कि पाकिस्तान को भी अमरीका की ओर से कुछ नहीं मिला और हर क़दम पर वह मात खाता रहा.
लेकिन यहां अमरीका को भारत ने जो रियायतें दी हैं उस पर ध्यान दिया जाना चाहिए.
भारत में अभी और भविष्य में निवेश करने वालों को कॉरपोरेशन टैक्स में बड़ी छूट दी गई है और साथ ही डोनल्ड ट्रंप को अगले अमरीकी राष्ट्रपति का ताज पहना दिया गया है. लेकिन भारत को अपनी ओर से किए गए इस ''निवेश' के बदले कुछ ख़ास नहीं मिला.
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पाकिस्तान को क्या मिला?
भारत के मुक़ाबले पाकिस्तान को भी कुछ ख़ास नहीं मिला. प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने ख़ुद स्वीकार किया कि उनकी गवानी जिस तरह से की गई उससे वह निराश थे.
हालांकि यह भी सच है, राष्ट्रपति ट्रंप ने भारत और पाकिस्तान को बातचीत की सलाह दी थी, इस्लामाबाद इसकी लंबे समय से मांग भी कर रहा था. लेकिन पाकिस्तान को उम्मीद थी कि कश्मीर समस्या पर भारत की आलोचना की जाएगी लेकिन ऐसा हो नहीं पाया.
इमरान ख़ान ने भी भारतीय प्रवासियों के कार्यक्रम में मोदी और ट्रंप को देखा है जहां मोदी ट्रंप का हाथ उठाकर उन्हें अमरीका का हृदय सम्राट बता रहे थे.
साथ ही पाकिस्तान में एक आक्रोश है. उसको लगता है कि उसका इस्तेमाल करके फेंक दिया गया है. हालांकि, अमरीका अफ़ग़ानिस्तान की स्थिति को संभालने और स्थिर करने के लिए उसका इस्तेमाल कर रहा है लेकिन उसे बदले में कुछ नहीं मिला.
पाकिस्तान के टीवी चैनलों ने इस बात से मन को बहलाया कि राष्ट्रपति ट्रंप ने भारतीय पत्रकार की बेइज़्ज़ती की. वहीं भारतीय चैनलों ने कहा कि पाकिस्तानी पत्रकार को सार्वजनिक रूप से अपमानित किया गया.
डोनल्ड ट्रंप ने अपने राष्ट्र हित में काम किया. लेकिन भारत को इस सवाल का जवाब देना है कि क्या 1.45 ट्रिलियन रुपये काफ़ी हैं? यह वो रक़म है जो कॉरपोरेशन टैक्स में छूट दिए जाने के बाद राजकोषीय घाटे पर असर डालेगी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अमरीकी दौरे से कुछ घंटों पहले वित्त मंत्री ने इसकी घोषणा की थी.
अगर इमरान ख़ान को यह लगता है कि उनका अमरीका ने रूखा स्वागत किया था तो वह उसको कैसे जवाब देंगे? क्या वह अफ़ग़ानिस्तान में सख़्त रवैया अपनाते हुए तालिबान को अपने दिल की सुनने के लिए कहेंगे?
इस मामले में क्या दक्षिण एशिया अधिक सुरक्षित होगा या कम?
एक चीज़ साफ़ है कि अमरीकी दौरे पर सबसे बड़ा विजेता न ही नरेंद्र मोदी और न ही इमरान ख़ान रहे बल्कि मेज़बान राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप रहे.