इमरान ख़ान के ख़िलाफ़ हज़ारों की भीड़ बढ़ रही इस्लामाबाद
पाकिस्तान में इमरान ख़ान सरकार के ख़िलाफ़ जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम की राजनीतिक शाखा अंसार उल इस्लाम का आज़ादी मार्च गुरुवार को इस्लामाबाद पहुंच रहा है. जमीयत के नेता मौलाना फज़लुर्रहमान का बलूचिस्तान और ख़ैबर पख़्तूनख्वा में आधार है. उन्होंने इमरान ख़ान से इस्तीफ़े की मांग की है और दोबारा चुनाव कराए जाने की मांग की है.
मीयत-उल-इस्लाम पाकिस्तान (फ़ज़लुर्रहमान गुट)
पाकिस्तान में इमरान ख़ान सरकार के ख़िलाफ़ जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम की राजनीतिक शाखा अंसार उल इस्लाम का आज़ादी मार्च गुरुवार को इस्लामाबाद पहुंच रहा है.
जमीयत के नेता मौलाना फज़लुर्रहमान का बलूचिस्तान और ख़ैबर पख़्तूनख्वा में आधार है. उन्होंने इमरान ख़ान से इस्तीफ़े की मांग की है और दोबारा चुनाव कराए जाने की मांग की है.
मीयत-उल-इस्लाम पाकिस्तान (फ़ज़लुर्रहमान गुट) पाकिस्तान की एक विपक्षी पार्टी और पाकिस्तान के सबसे बड़े धार्मिक गुटों में से एक है.
आज़ादी मार्च का मक़सद प्रधानमंत्री इमरान ख़ान की नीतियों का विरोध करना और उन्हें इस्तीफ़ा देने के लिए मजबूर करना है.
सरकार ने जेयूआई से अपील की थी कि वो आज़ादी मार्च नहीं निकालें. हालांकि सरकार की अपील का इस पर कोई असर नहीं पड़ा.
जेयूआई को दूसरी विपक्षी पार्टियों पीपीपी और मुस्लिम लीग (नवाज़) का समर्थन हासिल है.
لاکھوں لوگوں کا پر امن مارچ کامیابی کیساتھ جاری ہے پشتونخوا ملی عوامی پارٹی کے کارکنان بڑی تعداد میں شریک ہے.#آزادی_مارچ #آزادی_مارچ_سویلین_راج #ChalloAzadiMarchKeSath #AzadiMarch4CivilSupremacy pic.twitter.com/3E5wb5sacd
— پشتونخوا ملی عوامی پارٹی میڈیا سیل (@MediaCellPMAP) October 30, 2019
ये पूरा मामला समझा रहे हैं बीबीसी उर्दू सेवा के संवाददाता उमर दराज़ नांगियाना
क्या हैं इनकी मांगें?
जमीयत के नेता मौलाना फ़जलुर्रहमान और दूसरी विपक्षी पार्टियां अपनी कई मांगों पर अड़ी हैं.
उन्होंने हुकूमत के सामने जो मांगें रखी हैं, उनमें से कुछ प्रमुख मांगें इस तरह हैं:
- प्रधानमंत्री इमरान ख़ान इस्तीफ़ा दें.
- नए सिरे से दोबारा आम चुनाव कराए जाएं
- पाकिस्तान में इस्लामिक क़ानूनों से छेड़छाड़ न की जाए.
- पाकिस्तान में इस्लामिक संस्थाओं का सम्मान किया जाए.
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जहां तक बात इमरान ख़ान के इस्तीफ़े की मांग है तो इससे हुकूमत ने तुरंत इनकार कर दिया था और कहा था कि इसका सवाल ही नहीं उठता और इस बारे में बात भी नहीं होगी.
अभी फ़िलहाल प्रदर्शनकारी अपनी मांगों के साथ क्वेटा और कराची से निकल रहे हैं. दो दिन पहले शुरू हुई यह यात्रा बुधवार को लाहौर पहुंची और गुरुवार को इस्लामाबाद पहुंचेगी.
इस दौरान प्रदर्शनकारी पंजाब प्रांत के कई बड़े शहरों से होकर भी गुज़रेंगे.
रास्ते में मौलाना फ़जलुर्रहमान जहां भी रुकते हैं और प्रदर्शनकारियों को सम्बोधित करते हैं, वहां वो बार-बार अपनी मांगें भी दुहराते हैं और सबसे ज़्यादा ज़ोर वो 'इमरान ख़ान के इस्तीफ़े की मांग' पर देते हैं.
लेकिन चूंकि सरकार पहले ही साफ़ कर चुकी है कि इमरान ख़ान के इस्तीफ़े का सवाल ही नहीं उठता इसलिए ये निर्देश भी स्पष्ट दे दिया गया है कि प्रदर्शनकारी इस्लामाबाद में 'रेड ज़ोन' में प्रवेश नहीं कर सकेंगे.
रेड ज़ोन वो इलाका है जहां पाकिस्तानी संसद, सुप्रीम कोर्ट, प्रधानमंत्री आवास और प्रधानमंत्री कार्यालय है.
सरकार ने ये भी कहा है कि प्रदर्शनकारियों के लिए रेड ज़ोन से दूर ठहरने की व्यवस्था की जाएगी जहां वो जलसा करेंगे.
सरकार ने ये भी कहा है कि अगर उन्होंने रेड ज़ोन में घुसने की कोशिश की तो उनसे सख़्ती से निबटा जाएगा.
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मौलाना फ़जलुर्रहमान कौन हैं और कितने प्रभावी हैं?
मौलाना फ़जलुर्रहमान पाकिस्तान की सियासत में अहम नाम रहे हैं लेकिन उनकी राजनीति कुछ ऐसी रही है कि वो हर सरकार के साथ जुड़ जाते हैं.
हर सरकार में उन्हें कोई न कोई पद मिल जाता था. जैसे कि कोई मंत्रालय या किसी समिति में अध्यक्ष पद. इस तरह वो सरकारों के साथ गठजोड़ बनाए रखते थे.
हालांकि इमरान ख़ान की पार्टी तहरीक-ए-इंसाफ़ और ख़ुद इमरान ख़ान से फ़जलुर्रहमान की कभी नहीं बनी.
यहां तक कि आम चुनाव में इमरान ख़ान की पार्टी ने बलूचिस्तान और ख़ैबर पख़्तूनख्वा में से फ़जलुर्रहमान की पार्टी को हरा दिया था. ख़ुद फ़जलुर्रहमान भी अपनी सीट नहीं बचा पाए थे.
इसलिए जब इमरान ख़ान ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली तब से फ़जलुर्रहमान नहीं चाहते थे कि विपक्षी पार्टी का कोई नेता शपथ ग्रहण समारोह में जाए लेकिन उस वक़्त विपक्षी पार्टियों ने उनकी बात नहीं सुनी. हालांकि अब यही पार्टियां उनका साथ दे रही हैं.
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मार्च में क्या-क्या हो सकता है?
फ़जलुर्रहमान की राजनीति ऐसी है कि वो 10-12 से ज़्यादा सीटें जीतने का लक्ष्य ही नहीं रखते. उनका जनाधार भी कमोबेश बलूचिस्तान और ख़ैबर पख़्तूनख्वा में ही है.
अभी इस मार्च में जो लोग हिस्सा ले रहे हैं, उनमें से ज़्यादातर इसी इलाक़े से हैं. मार्च में कितने लोग शामिल हैं, इसका ठीक-ठीक अंदाज़ा लगाना मुश्किल है.
फ़जलुर्रहमान दावा करते हैं कि उनके साथ हज़ारों लोग हैं और एरियल फ़ुटेज देखकर भी ऐसा ही लगता है लेकिन पक्के तौर पर समर्थकों की संख्या के बारे में अभी कुछ कहा नहीं जा सकता है.
अभी तक कि स्थिति को देखकर ऐसा लग रहा है कि ये एक 'चेतावनी मार्च' जैसा होगा. फ़जलुर्रहमान अपने समर्थकों के साथ इस्लामाबाद में एक जलसा करेंगे और फिर वापस लौट जाएंगे.
हां, अगर इस्लामाबाद जाकर उनकी रणनीति बदल जाती है या समर्थकों की संख्या अप्रत्याशित रूप से बढ़ जाती है, तब ऐसी स्थिति में कुछ कहा नहीं जा सकता.
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अंसार उल-इस्लाम पर पाबंदी लगाना चाहती है सरकार
इधर पाकिस्तान की सरकार उलेमा-ए-इस्लाम की शाखा अंसार उल-इस्लाम की मान्यता रद्द करने के लिए क़दम उठाना शुरू कर चुकी है.
इस सिलसिले में गृह मंत्रालय ने क़ानूनी राय लेने के लिए एक नोट क़ानून मंत्रालय को भेजा है.
क़ानून मंत्रालय को बताया गया है कि जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम ने अंसार उल-इस्लाम के नाम से एक चरमपंथी गुट क़ायम किया है जिसमें आम लोगों को कार्यकर्ताओं के तौर पर शामिल किया गया है.
गृह मंत्रालय का कहना है कि हालिया दिनों में सामने आए कुछ वीडियो में देखा जा सकता है कि दल के कार्यकर्ताओं के हाथों में लाठियां हैं जिन पर लोहे के तार लगे हुए हैं और इस दल का उद्देश्य सरकार को चुनौती देना है.
इस नोट में इस संभावना को भी ख़ारिज नहीं किया गया है कि इस दल में शामिल लोगों के पास प्रतिबंधित हथियार हो सकते हैं.
नेशनल एक्शन प्लान का हवाला देते हुए कहा गया है कि किसी भी सशस्त्र और चरमपंथ पसंद पार्टी को देश में काम करने की इजाज़त नहीं दी जा सकती.
(बीबीसी संवाददाता संदीप राय से बातचीत पर आधारित)