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रिप्रोगाम्‍ड किया गया था एमएच 370 का रूट!

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वाशिंगटन। मलेशियन फ्लाइट एमएच 370 को गायब हुए 10 दिन का समय पूरा हो चुका है और इस पर रहस्‍य गहराता जा रहा है। अमेरिकी जांचकर्ताओं की मानें तो इस फ्लाइट का रूट मैनुअली बदला गया था लेकिन इसके लिए एक ऐसे कंप्‍यूटर प्रोग्राम की मदद ली गई थी जिसे कॉकपिट में ही डेवलप किया गया था। इस प्रोग्राम को डेवलप करने वाला शख्‍स के पास एयरक्राफ्ट के हर सिस्‍टम के बारे में पूरी जानकारी थी।

न्‍यूयॉर्क टाइम्‍स की एक रिपोर्ट के मुताबिक फ्लाइट एमएच 370 को मैनुअली ऑपरेट करने के बजाय किसी व्‍यक्ति ने इसके कॉकपिट में जाकर सात से आठ अहम शब्‍द कंप्‍यूटर पर टाइप किए थे। फ्लाइट के कंप्‍यूटर को

फ्लाइट मैनेजमेंट सिस्‍टम के तौर पर भी जाना जाता है। यह सिस्‍टम प्‍लेन को प्‍वाइंट टू प्‍वाइंट निर्देश देता रहता है और किसी भी फ्लाइट से पहले जो फ्लाइट प्‍लान जमा किया जाता है उसमें यह सारे प्‍वाइंट्स मौजूद होते हैं।

रडार से बचने के लिए टीररेन मास्किंग तकनीक का सहारा

अभी यह बात साफ नहीं है कि फ्लाइट के रूट को रि-प्रोग्राम्‍ड इसके टेक ऑफ करने से पहले किया गया या फिर इसे बाद में अंजाम दिया गया।

जांचकर्ता यह भी मान रहे हैं कि जिस समय फ्लाइट को इसके नियमित रूट से वापस लाया गया इसकी हाइट सिर्फ 5,000 फीट तक कर दी गई थी ताकि यह किसी भी कमर्शियल रडार से बचा रहे।

जांचकर्ताओं के मुताबिक बोइंग 777 कई देशों में मौजूद रडार से बचने के लिए कम हाइट पर बंगाल की खाड़ी और इसके आसपास काफी देर तक मंडराता रहा है।

जांचकर्ताओं ने यह भी दावा किया कि इस फ्लाइट को गायब करने के पीछे 'टीररेन मास्किंग' सिस्‍टम का प्रयोग किया गया है। इस सिस्‍टम के तहत किसी भी एयरक्राफ्ट को जमीन से बस कुछ ही फीट की हाइट पर ऑपरेट किया जाता है। अगर किसी मिलिट्री रडार ने इसे डिटेक्‍ट भी किया होगा तो यह सिर्फ एक छोटे से बिंदु की ही तरह उस पर नजर आया होगा।

टीररेन मास्किंग तकनीक का प्रयोग अक्‍सर मिलिट्री एयरक्राफ्ट्स के पायलट करते हैं ताकि वह अपने टारगेट पर बिना डिटेक्‍शन के हमला कर सकें। यह काफी खतरनाक तकनीक है और अंधेरे में तो ऐसा करना काफी मुश्किल है।

बोइंग 777 जिसका वजन 200 टन है, उसका 5,000 फीट की हाइट पर उड़ना काफी मुश्किल है। लेकिन जांचकर्ता इस बात पर कायम है कि इस जेट को 5,000 फीट या इससे भी नीचे उड़ाया गया था।

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English summary
US investigators are believed that a computer program was developed in cockpit only and then the final route was changed. 
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