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दुनिया में इंसानी दिमाग की तरह काम करने वाला सुपर कंप्‍यूटर एक्टिव, मैनचेस्‍टर यूनिवर्सिटी ने किया है तैयार

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लंदन। मैनचेस्‍टर यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स ने एक ऐसे सुपर कंप्‍यूटर को स्विच ऑन कर दिया है, जो बिल्‍कुल किसी इंसानी दिमाग की तरह काम करेगा। इस सुपर कंप्‍यूटर को न्‍यूरोमोरफिक सुपर कंप्‍यूटर नाम दिया गया है। कहा जा रहा है कि आर्टिफिशियल ब्रेन यानी कृत्रिम दिमाग की तरफ यह आविष्‍कार पहला और बड़ा कदम है। यह सुपर कंप्‍यूटर बिल्‍कुल वैसा ही है जैसा आपने किसी साइंस फिक्‍शन फिल्‍मों जैसे मैट्रेक्सि रेवाल्‍यूशंस में देखा था। रिसर्चर्स ने इसे एक बेहतरीन वस्‍तु करार दिया है।

12 साल से प्रोजेक्ट पर हो रहा था काम

12 साल से प्रोजेक्ट पर हो रहा था काम

न्‍यूरोमोरफिक सुपरकंप्‍यूटर बिल्‍कुल किसी इंसानी दिमाग की ही तरह काम करेगा। इसकी एक्टिविटीज बिल्‍कुल किसी इंसानी दिमाग जैसी ही होंगी। देखने में यह बिल्‍कुल किसी साधारण कंप्‍यूटर के प्रोसेसर जैसा ही दिखता है। इस सुपर कम्प्यूटर को बनाने में 141.38 करोड़ रुपए खर्च हुए हैं। रिसर्चर्स ने इस सुपर कंप्‍यूटर पर साल 2006 में काम करना शुरू किया था। रिसर्चर्स की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक यह कंप्यूटर सिर्फ एक सेकंड में 20 हजार करोड़ से ज्यादा कमांड को एक बार में पूरा कर सकता है। इसके प्रोसेसर में लगी चिप्स में 100 अरब ट्रांजिस्टर्स हैं। इस कंप्यूटर के जरिए वैज्ञानिकों को न्यूरोलॉजी से संबंधित बीमारियों की पहचान और उसके इलाज में मदद मिलेगी।

कई काम ऐसे जिन्‍हें कंप्‍यूटर नहीं कर सकता

कई काम ऐसे जिन्‍हें कंप्‍यूटर नहीं कर सकता

सुपर कंप्यूटर की इस मशीन को 'स्पिननेकर' नाम दिया गया है। स्पिननेकर प्रोजेक्‍ट को लीड कर रहे स्टीव फरबेर ने एक वेबसाइट को दिए इंटरव्‍यू में बताया कि यह सुपर कंप्‍यूटर दुनिया का अब तक का सबसे तेज और रीयल टाइम में सबसे ज्‍यादा बायोलॉजिकल न्यूरॉन्स की नकल कर सकता है। उन्होंने बताया कि कम्प्यूटर में बहुत सी ऐसी चीजें हैं जिन्‍हें करने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है लेकिन उसी काम को कोई आम इंसान आसानी से पूरा कर लेता है। नवजात शिशु भी अपनी मां को पहचान लेते हैं लेकिन किसी खास व्यक्ति को पहचानने वाला कम्प्यूटर बनाने का काम हमने संभव कर दिखाया।

रंग लाई 12 वर्षों की मेहनत

रंग लाई 12 वर्षों की मेहनत

स्‍टीव ने कहा कि इस सुपर कंप्‍यूटर की मदद से दिमाग के काम करने की प्रक्रिया को आसानी से पहचाना जा सकता है। स्‍टीव के मुताबिक अब वह कह सकते हैं कि 12 वर्षो की मेहनत और कोशिशें आखिरकार रंग लाई हैं और उनका मकसद पूरा हो सका। इस प्रोजेक्‍ट से जुड़े प्रोफेसर हेनरी मार्कराम कहते हैं कि इंसान का दिमाग इतना खास क्यों होता है? ज्ञान और व्यवहार के पीछे का मूल ढांचा क्या है? दिमागी बीमारियों का इलाज कैसे किया जाए सुपर कम्प्यूटर के जरिए हम अब इन सभी उपायों का आसानी से विश्लेषण कर सकते हैं।

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English summary
Manchester University switched on world's largest neuromorphic supercomputer.
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