मालदीव चुनाव: बड़े स्तर पर धांधली कर फिर से सत्ता हड़पने की तैयारी में यामीन, भारत चिंतित
नई दिल्ली। मुस्लिम राष्ट्र मालदीव में लोकतांत्रिक तनाव के बीच रविवार को आम चुनाव हो रहे हैं। मालदीव में इस साल देखने को मिली भारी राजनीतिक उठापठक के बाद राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन ने मध्यावधि चुनाव कराने की घोषणा की थी। मालदीव के करीब 3,50,000 वोटर आज अपना राष्ट्रपति चुनने के लिए बाहर निकल रहे हैं। इस बीच मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति समेत कई राजनीतिक संगठनों ने चुनाव में धांधली की पूरी संभावना की बात कही है। भारत इस चुनाव पर नजर रख रहा है, लेकिन सबसे बड़ी चिंता का विषय वह इंटरनेशनल कंपनी जो चीन से बाहर इस पूरे चुनाव को ऑपरेट कर रही है। हालांकि, यामीन ने 'फ्री एंड फेयर' इलेक्शन का वादा किया है।
इस चुनाव में जो इंटरनेशनल कंपनी चीन से बाहर बैठकर ऑपरेट कर रही है, वह जिम्बाब्वे और मलावी के चुनावों को भी प्रभावित कर चुकी है। इंग्लिश डेली 'टाइम्स ऑफ इंडिया' की रिपोर्ट के मुताबिक, उस कंपनी ने कथित रूप से मालदीव डिपार्टमेंट ऑफ नेशनल रजिस्ट्रेशन को एक्सेस उपलब्ध करवाए हैं। यामीन पर चीन के प्रभाव के अलावा विपक्ष का कहना है कि कई संदिग्ध गतिविधियां और कंपनी एक बार फिर यामीन के पक्ष में वोटिंग को प्रभावित कर सकती है।
मालदीव में होने जा रहा चुनाव को चीन और दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत के लिए एक निर्णायक लड़ाई के रूप में देखा जा रहा है। मालदीव चुनाव को लेकर विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने गुरुवार को आशा व्यक्त की थी, चुनाव फ्री एंड फेयर होंगे।
मालदीव के चुनाव में धांधली के आसार इसलिए है, क्योंकि वोटर लिस्ट फोर्मेट के डिस्क्रिप्शन में चुनाव आयोग ने न तो वोटर रजिस्ट्रेशन नंबर और न ही वोटर का फोटो शामिल किया है, जो कि 2013 सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार अनिवार्य है। इससे साबित होता है कि चुनाव में वोटिंग फ्रॉड किस हद तक होने की संभावना है।
इस चुनाव में धांधली से जुड़ी एक और चौंकाने वाली रिपोर्ट यह है कि सरकारी कर्मचारियों को उनके मैनेजमेंट के द्वारा ही वोटिंग रजिस्ट्रेशन के लिए कहा गया। लेकिन, माले से आई रिपोर्ट ने पूरे इंटरनेशनल कम्युनिटी को हैरानी में डाल दिया जब पता चला कि वोटिंर डाटा को चुनाव आयोग के बजाय राष्ट्रपति ऑफिस में ट्रांसफर किया जा रहा है।
इसके अलावा यामीन सरकार ने चुनाव को कवर करने वाले विदेशी मीडिया पर प्रतिबंध लगा दिया, वहीं पहली बार सामाजिक कार्यकर्ताओं और एनजीओ को भी इलेक्शन प्रोसेस पर नजर रखने के लिए आमंत्रित नहीं किया गया है।