मलेशिया: शरिया अदालत की महिला जज जो बहुविवाह मामलों में सुनाती हैं फ़ैसले #100 Women
बीबीसी 100 महिलाएं हर साल दुनिया भर की 100 प्रभावशाली और प्रेरणादायक महिलाओं का चयन करती है और इसके तहत उनकी कहानियां साझा की जाती हैं.
यह दुनिया भर में महिलाओं के अधिकारों के लिए एक यादगार साल रहा है, इसलिए 2018 बीबीसी 100 महिलाएं उन पथप्रदर्शक महिलाओं की कहानी पेश करता है,
इस्लामी कानून यानी शरिया की अक्सर आलोचना की जाती है कि यह बहुत कठोर सज़ा और कट्टरपंथी सोच वाला है.
लेकिन मलेशिया शरिया हाईकोर्ट की पहली महिला जजों में से एक का कहना है कि उनकी भूमिका उन्हें इस मुस्लिम बहुसंख्यक देश में महिलाओं की हिफाजत करने का मौका देती है.
जज नेनी शुशाइदा एक दिन में पांच मुकदमों की सुनवाई करती हैं और हफ्ते में 80 तक मामले सुन लेती हैं.
मलेशिया इस्लाम के उदार स्वरूप का पालन करता है लेकिन यहां कट्टरपंथी सोच बढ़ रही है और शरिया का इस्तेमाल भी बढ़ रहा है.
एक डबल ट्रैक कानूनी प्रणाली के तहत, हजारों मुस्लिम परिवारिक और नैतिकता के मामलों के निपटारे के लिए इसका सहारा लेते हैं. गैर-मुस्लिमों को इस तरह के मामलों के निपटारे के लिए धर्मनिरपेक्ष कानूनों का सहारा लेना होता है.
वह वित्तीय मामलों से लेकर शरिया के तहत खलवत (अविवाहित मुस्लिम जोड़ों का आपत्तिजनक हालत में पकड़ा जाना) से संबंधित सभी तरह के मामलों पर फैसले देती हैं.
जिन मामलों में नेनी शुशाइदा को है महारत
बच्चे की कस्टडी और बहुविवाह के मामलों में उनकी ख़ास महारत है- इस्लामी व्यवस्था पुरुषों को चार बीवियां रखने की इजाजत देती है, जो मलेशिया में कानूनसम्मत है.
जज शुशाइदा का कहना है कि कई कारक हैं जिन पर वह फैसला देने से पहले विचार करती हैं, जैसे एक से अधिक पत्नी रखने की इजाज़त देने का ही मामला ले लें.
वह कहती हैं, "हर मामला जटिल और अलग है. आप इस्लामी कानून का सामान्यीकरण नहीं कर सकते और यह नहीं कह सकते कि यह पुरुषों का पक्ष लेता है और महिलाओं से खराब बर्ताव करता है. मैं इस गलतफहमी को दुरुस्त करना चाहती हूं."
बहुविवाह से जुड़े हर पक्ष को जज शुशाइदा की अदालत में व्यक्तिगत रूप से हाज़िर होना होता है.
वह कहती हैं, "मैं सिर्फ पुरुषों की ही नहीं, बल्कि हर किसी की बात सुनना चाहती हूं. यह जानने के लिए क्या पहली पत्नी भी इस फैसले पर राज़ी है, मैं उससे भी बात करती हूं. यह ज़रूरी है कि वो भी इससे सहमत हो क्योंकि अगर मुझे जरा भी अंदेशा हुआ तो मैं इजाज़त नहीं दूंगी."
"मैं स्त्री हूं और मैं समझ सकती हूं कि ज्यादातर महिलाओं को यह बात पसंद नहीं होगी. इस्लाम के तहत इसकी इजाज़त है, लेकिन हमारी मलेशियाई अदालतों ने इस पर नियंत्रण रखने के लिए सख्त कानून बनाए हैं."
वह कहती हैं, "एक पुरुष के पास एक और बीवी रखने की ख्वाहिश को पूरा करने लिए बहुत मज़बूत कारण होना चाहिए."
"उसे निश्चित रूप से बताना होगा कि वह अपनी पहली पत्नी के साथ-साथ नई आने वाली महिला की देखभाल कर सकता है. उसे किसी की भी ज़रूरतों की उपेक्षा करने की इजाजत नहीं है." जज शुशाइदा यह भी जोड़ती हैं कि कुछ पत्नियां इस विचार का समर्थन कर सकती हैं.
वह याद करते हुए बताती हैं, ''एक ऐसा मामला था जिसमें गंभीर रूप से बीमार महिला अब बच्चों को संभाल नहीं पा रही थी. वो अपने शौहर से प्यार करती थी और चाहती थी कि मैं उसको दूसरी शादी करने की इजाजत दे दूं. मैंने ऐसा ही किया."
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शरिया क्या है?
- शरिया इस्लाम का कानूनी ढांचा है, जो इस्लाम की पाक किताब कुरान पर आधारित है; हदीस, पैगंबर मुहम्मद के कथन और आचरण हैं; और फतवा, इस्लामी विद्वानों के फैसले.
- मलेशिया में, यह देश भर के राज्यों में विभिन्न स्तरों पर लागू होता है.
- वह सख्त कानूनों के लिए अपने मज़हब की तरफदारी करते हुए कहती हैं, यह निष्पक्षता में सक्षम है.
- लेकिन आलोचकों और राइट्स ग्रुप का तर्क है कि शरिया का अक्सर दुरुपयोग होता है.
ह्यूमन राइट्स वाच के एशिया डिप्टी डायरेक्टर फिल रॉबर्टसन बीबीसी 100 वूमेन से बातचीत में कहते हैं, "हमें शरिया कानून से कोई दिक़्क़त नहीं है. यह महिलाओं, समलैंगिकों या सामाजिक और धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ भेदभाव नहीं करता है."
फिल रॉबर्टसन ने कहा, ''मलेशिया में शरिया कानून के साथ समस्या यह है कि यह अक्सर ऐसा ही करता है. मज़हब कभी भी समानता और गैर-भेदभाव के अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार मानकों का उल्लंघन करने का स्वीकार्य कारण नहीं हो सकता है."
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मलेशियाई महिलाओं की कोड़े मारने की सज़ा
उदाहरण के लिए हाल ही में समलैंगिक संबंध रखने की दोषी दो मलेशियाई महिलाओं को कोड़े मारने की सजा दिए जाने का मामला ले लें, जिसे लेकर राइट्स एक्टिविस्ट नाराज हैं.
उनका आरोप है कि इस मामले में शरिया कानून का दुरुपयोग किया गया.
जज शुशाइदा ने इस मामले की सुनवाई नहीं की थी. लेकिन उनका कहना है, "शरिया कानून के तहत कोड़े मारने की सजा अपराधियों को सबक सिखाने में मदद करती है, ताकि वह ऐसा दोबारा न करें."
जज शुशाइदा का यह भी कहना है कि शरिया हमेशा पुरुषों के पक्ष में काम नहीं करता है.
वो कहती हैं, "हमारा कानून महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए है. यह उनके कल्याण को देखता है और उनकी आजीविका की रक्षा करता है. इस्लाम महिलाओं को ऊंचा दर्जा देता है और एक जज के तौर पर हमें इसकी शिक्षाओं को लागू करना चाहिए और शरिया का इस्तेमाल इसकी अच्छाइयों को बचाए रखने के लिए करना चाहिए."
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मुस्लिम मर्द कैसे दे रहे हैं शरिया अदालत को गच्चा?
उनकी सबसे बड़ी चिंता यह है कि मुस्लिम पुरुष विदेशों में शादी करके सख्त शरिया अदालत की प्रक्रियाओं को गच्चा दे रहे हैं.
वह कहती हैं, "अगर वह विदेश में शादी करते हैं तो मलेशियाई कानून से बंधे नहीं होंगे. कुछ पत्नियां सचमुच अपने पतियों की रक्षा के लिए सहमति दे देती हैं लेकिन उन्हें नहीं पता कि यह किस तरह उन्हीं के खिलाफ काम करता है. हमारा शरिया कानून महिलाओं के हितों की रक्षा करने और पुरुषों को जवाबदेह बनाने के लिए है."
सिस्टर्स इन इस्लाम जैसे महिला संगठनों ने अदालतों में "महिलाओं की नुमाइंदगी की गंभीर कमी" और समग्र प्रणाली में "गहरी पितृसत्तात्मक भावना" का मुद्दा उठाया.
इसकी प्रवक्ता माजिदा हाशिम कहती हैं, "मलेशिया में शरिया का कानूनी ढांचा न सिर्फ चुनिंदा तौर पर महिलाओं के खिलाफ भेदभाव करता है, बल्कि उन्हें सामाजिक अनैतिकताओं का दोषी भी बना देता है."
"इस्लामी राज्य की संस्थाओं ने… महिलाओं को समुचित न्याय सुनिश्चित करने के लिए कुछ खास नहीं किया है. वास्तव में, शरिया कानून के तहत महिलाओं के हालिया अभियोजन ने स्पष्ट रूप से दर्शाया है कि उनकी आवाज खतरनाक तरीके से दबा दी गई है और इंसाफ पाने के रास्ते बंद कर दिए गए हैं."
यह बातें जज शुशाइदा की नियुक्ति को खासतौर से और महत्वपूर्ण बना देती हैं.
जज शुशाइदा कहती हैं, "जब मैं वकालत करती थी तो ज्यादातर शरिया जज पुरुष थे जो महिलाओं के प्रैक्टिस करने की ज़रूरत पर सवाल उठाते थे."
वह स्वीकार करती हैं, "मैंने कभी जज बनने का सपना नहीं देखा था. एक वकील के रूप में, मुझे नहीं पता था कि क्या मैं जटिल मामलों से निपटने वाली ऐसी जिम्मेदारी की भूमिका निभा सकती हूं. और एक महिला के रूप में, मुझे संदेह और डर महसूस हुआ."
"मैं कई बार असहज महसूस करती हूं. एक औरत के रूप में, मुझे महसूस करना चाहिए, और अगर मैं कहती हूं कि मुझे कुछ भी महसूस नहीं होता है तो मैं झूठ बोलूंगी. लेकिन मैं एक जज हूं और मुझे यह सुनिश्चित करना है कि मैं हमेशा स्पष्ट और तथ्यपरक रहूं. इसलिए मैं अपने फैसलों में इसकी कोशिश करती हूं और ध्यान रखती हूं. मैं अदालत के सामने आऩे वाले सर्वोत्तम सबूतों पर इंसाफ करती हूं."
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100 महिलाएं क्या है?
बीबीसी 100 महिलाएं हर साल दुनिया भर की 100 प्रभावशाली और प्रेरणादायक महिलाओं का चयन करती है और इसके तहत उनकी कहानियां साझा की जाती हैं.
यह दुनिया भर में महिलाओं के अधिकारों के लिए एक यादगार साल रहा है, इसलिए 2018 बीबीसी 100 महिलाएं उन पथप्रदर्शक महिलाओं की कहानी पेश करता है, जो अपने जुनून, आक्रोश और क्रोध का इस्तेमाल अपने आसपास की दुनिया में वास्तविक परिवर्तन के लिए कर रही हैं.