पद्मावत की तरह द डेथ ऑफ़ स्टालिन पर रूस में विवाद क्यों?
स्टालिन से जुड़ी अरमांडो इन्नुची की ब्रिटिश कॉमेडी फ़िल्म द डेथ ऑफ़ स्टालिन पर प्रतिबंध लगा दिया गया है.
फ़िल्म पद्मावत में राजपूत रानी पद्मावती और अलाउद्दीन ख़िलजी के बीच प्रेम संबंध को लेकर भारत में उबाल फूटा. उधर रूस में भी कुछ ऐसा ही मामला सामने आया है.
वहां अरमांडो इन्नुची की फ़िल्म ब्रिटिश कॉमेडी फ़िल्म द डेथ ऑफ़ स्टालिन पर प्रतिबंध लगा दिया गया है. मॉस्को पायनियर सिनेमा ने कहा है कि इसके 'कारण हमारे नियंत्रण से बाहर' हैं, साथ ही उन्होंने टिकट खरीदने वाले ग्राहकों के पैसे लौटाने का वादा किया.
गुरुवार को ही फ़िल्म रिलीज़ होनी थी और 3 फरवरी तक के टिकट बेचे जा चुके हैं लेकिन वितरण प्रमाणपत्र वापस लेने की वजह से यह अटक गया.
पद्मावत: रान चबाता ख़िलजी और पति को पंखा झलती पद्मावती
'...इसलिए हमारे इतिहास का हिस्सा है पद्मावती'
पायनियर सिनेमा ने प्रतिबंध के बावजूद इस फ़िल्म को दिखाने का फ़ैसला लिया. कुछ लोग जिन्होंने फ़िल्म देखे उन्होंने बीबीसी रूसी सेवा से कहा कि इसमें ऐसा कुछ भी आपत्तिजनक नहीं है. लेकिन पुलिसवालों ने फ़िल्म के प्रदर्शन को रोक दिया.
https://twitter.com/olacicho/status/956844563800514562
एक महिला ने कहा, "फ़िल्म पर प्रतिबंध लगाना अतिवाद है." एक अन्य महिला ने कहा, "फ़िल्म दिखाई जानी चाहिए."
जब उनसे पूछा गया कि क्या उन्होंने इसमें कुछ अपमानजनक पाया तो उनका कहना था "निश्चित रूप से नहीं."
किसी प्रकार की अप्रिय घटना से बचने के लिए बाद में पायनियर सिनेमा हॉल में पुलिस बल को और बढ़ा दिया गया.
स्टालिन: इंक़लाबी राजनीति से 'क्रूर तानाशाह' बनने का सफ़र
https://twitter.com/olacicho/status/956850049450995712
फ़िल्म को लेकर 'वैचारिक मतभेद' और 'अतिवाद' की शिकायत की गई है.
स्टीव बुसमी और जेफ्री तंबौर अभिनीत यह फ़िल्म रूस में आगे प्रदर्शित होगी भी या नहीं यह अभी तय नहीं है.
इंटरफैक्स न्यूज़ एजेंसी को संस्कृति मंत्री ने बताया कि फ़िल्म के रूसी वितरक वोल्गा को इसकी जानकारी दे दी गई है.
मंत्रालय ने कहा, "यह फ़िल्म रूस में दिखाई जाएगी या नहीं इस पर फ़ैसला बाद में लिया जाएगा."
नज़रिया: पद्मावती सच या कल्पना?
स्टालिन की मौत के बाद सत्ता संघर्ष पर व्यंग्य
निर्देशक अरमांडो इन्नुची की यह फिल्म, 1953 में सोवियत तानाशाह जोसेफ़ स्टालिन की मौत के बाद मास्को में सत्ता को लेकर हुए संघर्ष पर एक व्यंग्य है.
अक्तूबर में ब्रिटेन में रिलीज़ हुई इस फ़िल्म की सोमवार को स्क्रीनिंग की गई, जिसमें रूसी सिनेमा समेत देश के कई सांसद देखने पहुंचे. जो देखने के बाद इस फ़िल्म से नाखुश थे.
संसद की संस्कृति समिति के निचले सदन की उप प्रमुख येलेना द्रेपेको ने आरबीके न्यूज़ से कहा, "मैंने अपने जीवन में इतनी ख़राब चीज़ कभी नहीं देखी है."
संस्कृति मंत्रालय की सलाहकार समिति के सदस्य यूरी पोलिकोव ने कहा कि "इसमें वैचारिक मतभेद" जैसे पहलू दिखते हैं.
इस नए विवाद के साथ ही फरवरी में ही रूस के सैन्य इतिहास में लड़ी गई सबसे बड़ी लड़ाई में से एक स्टालिनग्राड के युद्ध की सालगिरह मनाई जाती है. मार्शल जॉर्जी झुकोव के नेतृत्व में रूसी सेना को जर्मन नाज़ियों पर जीत मिली थी.
स्टालिन की अकेली तस्वीर का राज
मार्शल झुकोव की बेटी ने भी जताई आपत्ति
फ़िल्म में झुकोव का किरदार जेसन इसाक ने निभाया है. संस्कृति मंत्री व्लादिमीर मेडिंस्की को लिखे खुले ख़त पर हस्ताक्षर करने वालों में झुकोव की 21 वर्षीय बेटी भी शामिल हैं. ख़त में देश के इतिहास को हास्यपूर्ण व्यंग्य के रूप में और रूसी नागरिकों की यादों को कलंकित करने की आलोचना की गई है.
हस्ताक्षर करने वालों ने कहा कि यह फ़िल्म रूस के लोगों और यहां तक कि सोवियत संघ के राष्ट्रगान का भी अपमान है. फ़िल्म के ट्रेलर में इस्तेमाल इसके कुछ हिस्से को ग़लत तरीके से दिखाया गया है (इसका कुछ हिस्सा लोगों को अप्रिय लग सकता है).
मंत्री मेडिन्स्की ने बाद में इस विवाद पर कहा, "पुरानी पीढ़ी के कई लोग न केवल इसे सोवियत संघ का अपमान मान सकते हैं. यहां तक कि स्टालिन से पीड़ित लोग भी."
उन्होंने कहा, "हमारे यहां सेंसरशिप नहीं है. और न ही हम अपने इतिहास के महत्वपूर्ण और अप्रिय आकलनों से डरते हैं."
लेकिन अरमांडो इन्नुची ने कहा कि वो अब भी निश्चिंत हैं कि उनकी यह फ़िल्म रूस में दिखाई जाएगी, यह प्रतिक्रिया आम जनता से नहीं आई है.
उन्होंने गार्डियन से कहा, "रूसी प्रेस समेत हमने रूस के जितने भी लोगों को यह फ़िल्म दिखाई है, उन्हें यह पसंद आई और उन्होंने इसकी सराहना भी की है. वो दो बातें कहते हैं- यह मजाकिया है, लेकिन यह सच है."
फ़िल्म को प्रतिबंधित करने के बाद रूस के अख़बारों में इस पर गंभीर चर्चा देखने को मिली.
बिज़नेस डेली www.kommersant.ru ने लिखा "संस्कृति मंत्रालय नियमों को बदल रहा है. फ़िल्मों के वितरण प्रमाण पत्र जारी करने के लिए नियमित प्रक्रिया को बदल कर सेंसरशिप जैसी चीज़ें लायी जा रही हैं. इसके अलावा, अगर फ़िल्म निर्माताओं ने इसे खुद से वापल ले लिया होता और संस्कृति मंत्रालय इस निर्णय में अपनी भागीदारी नहीं दर्शाता (स्टालिन युग में भी एक सीरियल किलर की खोज पर आधारित चाइल्ड 44 फ़िल्म के साथ ऐसा ही हुआ था). अब संस्कृति मंत्रालय खुलेआम यह घोषणा करता है कि यह राज्य है और बाज़ार का फ़ैसला नहीं है कि फ़िल्म वितरण कैसे किया जाये और लोग क्या देखेंगे."
बिज़नेस डेली www.vedomosti.ru ने लिखा, "अतिवाद के ख़िलाफ़ संघर्ष एक सामान्य हथियार बन गया है. फीचर फ़िल्मों का राजनीतिक 'ग़लत' इस्तेमाल किया जा रहा है. यह पहली बार है कि वितरण प्रमाणपत्र राजनीतिक कारणों से रद्द कर दिया गया."
आरबीसी www.rbcdaily.ru लिखता है, "यह स्पष्ट है कि इस स्कैंडल को पूर्व चुनाव अभियान के संदर्भ में देखा जाएगा. यदि मंत्री इससे नहीं निपटते तो उन्हें इसके परिणाम में बर्खास्तगी तक का सामना करना पड़ सकता था."