ब्रिटेन में कोविड मरीजों के इलाज के नये तरीका का ट्रायल, गंभीर मरीजों की बच सकेगी जान
ब्रिटेन में कोरोना वायरस संक्रमित गंभीर लोगों को जल्द ठीक करने के लिए नये ट्रीटमेंट का ट्रायल शुरू हो चुका है। उम्मीद की जा रही है, कि इलाज का ये तरीका अगर कामयाब होता है, तो कोरोना संक्रमित गंभीर लोगों की जिंदगी बचेगी
Corona trial update: ब्रिटेन: ब्रिटेन में कोरोना वायरस संक्रमित गंभीर लोगों को जल्द ठीक करने के लिए नये ट्रीटमेंट का ट्रायल शुरू हो चुका है। उम्मीद की जा रही है, कि इलाज का ये तरीका अगर कामयाब होता है, तो कोरोना संक्रमित गंभीर लोगों की जिंदगी बचाई जा सकेगी। हल रॉयल इनफ़र्मरी में कोविड का ये नया ट्रीटमेंट कोविड संक्रमित एक महिला पर इस्तेमाल किया गया है। इलाज के इस नये तरीके में मरीज के शरीर में इंटरफेरॉन बीटा नामक एक प्रोटीन को शामिल कराया जाता है, जो वायरल संक्रमण होने पर शरीर उत्पन्न करता है। उम्मीद की जा रही है, इससे मरीज के शरीर का एंटीबॉडी डेवलप होकर कोरोना वायरस को खत्म करने के काबिल हो सकेगा।
इलाज में आएंगे 2000 पाउंड का खर्च
कोविड मरीजों के इलाज का ये तरीका इंग्लैंड के साउथेम्पटन यूनिवर्सिटी अस्पातल ने इजाद किया है, जिसे साउथेम्पटन स्थित सिनायरजेन बायोटक कंपनी में तैयार किया गया है। कंपनी का कहना है, कि इलाज के इस तरीके के तहत एक मरीज के इलाज में करीब 2 हजार पाउंड का खर्च आएगा। जो एक अस्पताल में इलाज कराए आए कोरोना संक्रमित के लिए ज्यादा नहीं है। सिनायरजेन बायोटेक के चीफ एग्जक्यूटिव रिचर्ड मार्सडेन ने इलाज में आए खर्च को लेकर कहा, कि ''इस इलाज के बाद ठीक हो चुके गंभीर कोरोना मरीजों को 2 हजार पाउंड ज्यादा नहीं लगेगा''
34 साल की महिला पर ट्रायल
34 साल की एलेग्जेन्ड्रा कन्सेन्टिन विश्व की वो पहली महिला मरीज हैं, जिनपर इलाज का ये नया तरीका ट्रायल किया गया है। एलेग्जेन्ड्रा कन्सेन्टिन को दो दिन पहले कोविड संक्रमित होने के बाद अस्पताल में भर्ती कराया गया है और वो जल्द से जल्द अपने घर बच्चों के पास लौटना चाहती हैं। अस्पताल में इलाज के दौरान मरीज एलेग्जेन्ड्रा कन्सेन्टिन को एक नेबुलाइजर के जरिए दवा दी गई, मुंह से खींचने पर दवा सीधे महिला की छाती तक चला गया।
क्या है ट्रीटमेंट का ये नया तरीका
इंटरफेरॉन बीटा, वायरस के खिलाफ शरीर की पहली पंक्ति का हिस्सा है, जो वायरल हमले के वक्त वायरस से लड़ता है। लेकिन, कोरोना वायरस शरीर में इंटरफेरॉन बीटा के उत्पादन को अचानक से बेहद कम कर देता है, जिससे शरीर का इम्यूनिटी सिस्टम खत्म होने लगता है, और मरीजों की स्थिति बिगड़ जाती है, लेकिन इलाज के इस नये तरीके में इंटरफेरॉन बीटा को डस्ट के रूप में मुंह के जरिए नेबुलाइज कर सीधे फेफड़े तक भेजा जाता है, जिससे ये प्रोटीन शरीर के अंदर फेफड़े में जाकर एयरोसोल का बन जाता है। शरीर के अंदर डायरेक्ट भेजा गया ये प्रोटीन लंग्स को मजबूत बनाते हुए वायरस के खिलाफ लड़ना शुरू कर देता है, और मरीज के शरीर का इम्यून सिस्टम रिस्टोर होने लगता है। आपको बता दें, कि आमतौर पर मल्टीपल स्केलेरोसिस के उपचार में इंटरफेरॉन बीटा का उपयोग किया जाता है।
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