दुनिया के सबसे अमीर देशों में होती है कुवैत की गिनती, लेकिन निर्जन होने की आ गई स्थिति, जानिए क्यों
कुवैत सिटी, 17 जनवरी: कुवैत दुनिया के सबसे अमीर देशों में से एक है। इसकी वजह है वहां मौजूद जीवाश्म ईंधन। तेल बेचकर उसके पास इतनी अकूत दौलत है, जिससे कई देशों की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाया जा सकता है। लेकिन, आने वाले कुछ वर्षों में ऐसी स्थिति बनने वाली है, जब वहां लोगों के लिए टिक पाना ही नाममुकिन हो जाएगा। गरीबों के लिए तो यह स्थिति अभी से आ चुकी है। इसकी वजह है कुवैत का बढ़ता हुआ तापमान। गर्मियों में अब वहां इतना ज्यादा तापमान हो जाता है कि घरों से बाहर खुले में निकलने का मतलब है मौत। लेकिन, वहां की सरकार अभी इस चिंता की ओर गंभीरता से नहीं देख पा रही है।

ग्लोबल वॉर्मिंग की मार झेल रहा है कुवैत
कुवैत ओपेक का चौथा तेल-निर्यातक देश है। इसके पास दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा सॉवरेन वेल्थ फंड है और जनसंख्या महज 45 लाख से कुछ ज्यादा। लेकिन, धीरे-धीरे यहां रह पाना असंभव होता जा रहा है। इसकी वजह है ग्लोबल वॉर्मिंग का असर। इस खाड़ी देश में धन-दौलत की कोई कमी नहीं है, लेकिन यहां के तापमान में इतनी बेतहाशा वृद्धि हो रही है कि हरियाली खत्म होने लगी है, पानी के स्रोत घटते जा रहे हैं और जीव-जंतु और जानवर दम तोड़ रहे हैं और गर्मी के दिनों में पेड़ मुरझाने शुरू हो गए हैं। आलम ये है कि गर्मी के दिनों में राजधानी कुवैत सिटी में जिन्हें बसों के इंतजार में स्टैंड पर खड़े रहना पड़ता है, उनकी सांसें फूलने लगती हैं। छातों से कोई फर्क नहीं पड़ता।

कुवैत के ज्यादातर इलाके निर्जन होने की आशंका
ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के मुताबिक ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से दुनिया भर में तापमान बढ़ता जा रहा है, लेकिन धरती के सबसे गरम देशों में से एक कुवैत तो अब तेजी से ऐसा होता जा रहा है, जो रहने लायक नहीं बचेगा। 2016 में यहां का तापमान 54 डिग्री तक पहुंच गया था। धरती पर 76 वर्षों में इतना ज्यादा तापमान नहीं पाया गया था। पिछले साल जून में पहली बार यहां का तापमान 50 डिग्री तक पहुंच गया था, जबकि इसके कई हफ्तों बाद यहां सबसे ज्यादा गर्मी पड़ती है। एनवॉयरमेंट पब्लिक अथॉरिटी के मुताबिक कुवैत के कई हिस्से 2071 से 2100 के बीच औसतन 4.5 डिग्री और गर्म हो जाएंगे, जिससे इस देश के ज्यादातर इलाके निर्जन हो जाएंगे।

कुवैत में विलुप्त होने लगे हैं जानवर
जंगली जानवरों के लिए ऐसी स्थिति लगभग आ चुकी है। गर्मियों के दिनों में पानी और छांव की कमी के चलते पक्षियां छतों पर मरी पाई जाती हैं। पशु चिकित्सों के पास आवारा बिल्लियों की भरमार रहती है, जिन्हें गर्मी और डिहाइड्रेशन की स्थिति में लोग उठाकर उनके पास ले आते हैं। जंगली लोमड़ियों की भी हालत बुरी हो चुकी है। कुवैती चिड़ियाघर और वन्यजीव पशुचिकित्सक तमारा क्वाबाजार्द ने कहा, 'इसलिए हमें कुवैत में बहुत ही कम जंगली जानवर देखने को मिल रहे हैं, क्योंकि ऐसे मौसम को झेल नहीं पा रहे।........पिछले साल जुलाई के आखिर तीन-चार दिनों में अत्यधिक गर्मी और आश्चर्यजनक रूप से उमस की वजह से घरों के बार टहलना भी नामुमकिन हो गया था, कोई हवा नहीं चल रही थी। काफी सारे जानवरी को सांस संबंधी दिक्कतें शुरू हो गई थीं।'
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जलवायु परिवर्तन पर गंभीर नहीं है कुवैत
जलवायु परिवर्तन की समस्या तो बांग्लादेश से लेकर ब्राजील तक सभी देश झेल रहे हैं। लेकिन, उनकी तरह कुवैत में धन-संसाधनों की कोई कमी नहीं है, लेकिन फिर भी ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को यह कम नहीं कर पा रहा है, इसकी वजह यहां की राजनीतिक उदासीनता बताई जा रही है। कुवैत के पड़ोसी मुल्कों जैसे कि सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात सभी स्वच्छ ऊर्जा पर काम कर रहे हैं। इन देशों की अर्थव्यस्था भी जीवाश्म ईंधन के भरोसे है। लेकिन, कुवैत क्लीन एनर्जी पर ऐक्शन लेने में काफी पीछे है और इसकी दुर्दशा पूरा देश, वहां के नागरिक और रोजगार की तलाश में जाने वाले बाहरी देशों के लोग झेल रहे हैं। पिछले साल जब दुनिया भर के देश जलवायु परिवर्तन पर मंथन कर रहे थे, तब एक ट्विटर यूजर ने सूखे हुए पाम के पेड़ों की तस्वीर डालकर अपनी सरकार को नींद से जगाने की थी।

पेट्रोल है कोका कोला से सस्ता
कुवैत की युवा पीढ़ी में कई लोग हैं, जो अपने देश के भविष्य को लेकर चिंतित हो रहे हैं। कुछ ने तो अपनी नौकरी छोड़कर जलवायु परिवर्तन की दिशा में काम करना शुरू कर दिया है। इनका फोकस बसों के अलावा यातायात के बाकी सार्वजनिक परिवहनों पर फोकस करने की है, ताकि जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल से बढ़ रही समस्या को कम किया जा सके। लेकिन, जिस देश में तेल की कमी नहीं है, पेट्रोल कोका कोला से सस्ता है, शहर का इंफ्रास्ट्रक्चर कारों के लिए बना हुआ है, उसमें लोगों को इसके इस्तेमाल कम करने के लिए कहना आसान नहीं है। लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के एक सर्वे में तो पाया गया है कि खासकर उम्रदराज लोग तो पब्लिक ट्रांसपोर्ट की बातों को साजिश बता रहे हैं। उन्हें क्लाइमेट चेंज की समस्या सरकार की समस्या लगती है। लेकिन, इसके चक्कर में इस देश का पर्यावरण बेकाबू होता जा रहा है।

ज्यादातर लोग आने वाले संकट के प्रति लापरवाह हैं
इसकी वजह ये है कि कुवैत के ज्यादातर लोगों के पास धन-दौलत की कोई कमी नहीं है। उनके घर, दफ्तर और गाड़ियां सभी बढ़ते तापमान का सामना करने के हिसाब से बने हुए हैं। शॉपिंग मॉल और बाकी जगह जहां भी वे जाते हैं, वहां विलासिता की कोई कमी नहीं है। गर्मियों में बहुत ज्यादा दिक्कत हुई तो वह छुट्टियां मनाने के लिए यूरोप जाने में भी सक्षम हैं। जबकि, उनके एयरकंडीशनरों की वजह से ग्लोबल वॉर्मिंग पर दबाव और ज्यादा बढ़ता रहा है और तापमान भी लगातार बढ़ता चला जा रहा है।

गर्मियों में बढ़ जाता है मौत का आंकड़ा
फिलहाल इस बढ़ते तापमान का सबसे ज्यादा जोखिम विकासशील देशों से रोजी-रोटी की तलाश में आए मजदूरों को उठाना पड़ रहा है। जिन गर्मियों में सरकार बाहर काम करने पर रोक लगा देती है, तब भी वह आग उगलते सूरज के नीचे काम करते नजर आ जाते हैं। साइंस डायरेक्ट ने पिछले साल इसको लेकर शोध किया था तो पता चला था कि जिन दिनों बहुत ही ज्यादा गर्मी पड़ती है, मौतों की संख्या दोगुनी हो जाती है। लेकिन, जो गरीब रोजगार की तलाश में वहां जाते हैं, गर्मी से मौत में उनका आंकड़ा तीन गुना तक हो जाता है।