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कोरिया सम्मेलन: क्या इस ऐतिहासिक मुलाकात से आएगी लंबी शांति

शुक्रवार को दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून जेइ-इन और उनके उत्तर कोरियाई समकक्ष, चेयरमैन किम जोंग-उन के बीच हुई नाटकीय मुलाक़ात स्पष्ट तौर पर एक ऐतिहासिक कामयाबी को दर्शाती है.

कम से कम द्विपक्षीय मेल-जोल के प्रतीक के रूप में और दक्षिण कोरिया की जनता के मन में भावनात्मक उल्लास भरने के मामले में तो यह एक कामयाबी है ही.

मगर यह सवाल बना हुआ है 

By BBC News हिन्दी
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शुक्रवार को दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून जेइ-इन और उनके उत्तर कोरियाई समकक्ष, चेयरमैन किम जोंग-उन के बीच हुई नाटकीय मुलाक़ात स्पष्ट तौर पर एक ऐतिहासिक कामयाबी को दर्शाती है.

कम से कम द्विपक्षीय मेल-जोल के प्रतीक के रूप में और दक्षिण कोरिया की जनता के मन में भावनात्मक उल्लास भरने के मामले में तो यह एक कामयाबी है ही.

मगर यह सवाल बना हुआ है कि पनमुनजोम में हुए नए समझौते में शांति, समृद्धि और कोरिया के एकीकरण की जो बात की गई है, क्या उससे दोनों कोरिया और विश्व समुदाय स्थायी शांति की तरफ़ बढ़ पाएंगे?

उत्तर कोरिया के नेता का पहली बार दक्षिण कोरिया की ज़मीन पर क़दम रखने के सांकेतिक प्रभाव को कम करके नहीं आंका जा सकता.

दुश्मन के इलाक़े में पूरे आत्मविश्वास के साथ दाख़िल होने का किम जोंग-उन का हिम्मत भरा फैसला दिखाता है कि युवा तानाशाह के अंदर कितना आत्मविश्वास भरा है और उन्हें राजनीतिक नाटक और इसकी टाइमिंग की कितनी बारीक़ समझ है.

कोरियाई देशों का एकीकरण?

किम जोंग-उन ने जिस तरह दक्षिण कोरिया में क़दम रखने के तुरंत बाद राष्ट्रपति मून को उत्तर कोरिया में क़दम रखने के लिए आमंत्रित किया, वह दोनों देशों और उनके नेताओं के बीच समानता स्थापित करने का प्रेरक तरीका था.

दोनों देशों के बीच सीमाओं को धुंधला करने की ये पहल कोरियाई देशों के एकीकरण के उद्देश्य की ओर इशारा है, जिसे दोनों कोरियाई देश काफ़ी समय से पूरा करना चाहते हैं.

इसके बाद दिन भर कई नज़ारे पहली बार देखने को मिले. चतुराई से खींची गई ऐसी तस्वीरें भी सामने आईं, जिनमें दोनों नेता खुली हवा में अनौपचारिक रूप से अंतरंगता के साथ बात करते दिखे, मानो वे दोनों कोरियाई देशों का भविष्य का नया अफ़साना गढ़ रहे हों.

दोनों देशों के नेताओं ने जिस तरह हाथ मिलाए, गले मिले और उनके चेहरों पर जो मुस्कुराहटें दिखीं उससे उस संदेश को बल मिलता है जो बताता है कि कोरियाई देश अपनी किस्मत का फ़ैसला अपने स्तर पर कर सकते हैं.

इस दौरान कोरियाई प्रायद्वीप की उन पुरानी यादों को भुलाने की कोशिश की गई, जिनमें बाहरी वैश्विक ताकतों के अपने हित हावी रहते थे. ऐसी ताकतों में चीन, जापान, अमरीका और पूर्व सोवियत संघ शामिल हैं.

किम की छवि में बदलाव

अंतरराष्ट्रीय मीडिया के सामने दोनों नेताओं का संयुक्त बयान किम जोंग-उन के लिए दुनिया में उनके लिए बने पूर्वाग्रहों को चुनौती देने का मौका था.

किम जोंग-उन की आत्मविश्वास से भरी घोषणा ने एक झटके में ही प्रेस के सामने एक सख़्त और तानाशाह नेता की जगह एक मानवीय नेता की छवि पेश की जो शांति और मेल-मिलाप पर काम करना चाहता है.

आलोचक इसे किम की प्रोपगैंडा में मिली जीत भी मान सकते हैं और उत्तर कोरिया की अपने परमाणु और मिसाइल कार्यक्रम को रोकने की कोशिश भी मान सकते हैं. उत्तर कोरिया ने पहले ही 'चरणबद्ध निशस्त्रीकरण' की बात की है ताकि उससे इस मामले तुरंत कुछ करने की उम्मीद न की जाए.

शुक्रवार को दिए गए सयुंक्त बयान में दोनों कोरिया के बीच हुए पिछले समझौतों की झलक भी मिलती है. इसमें 2000 से 2007 के बीच दोनों देशों के बीच हुए समझौते, 1991 का द्विपक्षीय समझौता और आक्रामकता से बचने का करार शामिल है.

इससे पहले के समझौतों में मेल-जोल बढ़ाने, सेनाओं के बीच संवाद स्थापित करने, विश्वास पैदा करने, आर्थिक सहयोग बढ़ाने और दोनों देशों के नागरिकों के बीच संपर्क के अवसर बढ़ाने जैसे मुद्दे शामिल थे.

घोषणापत्र की प्रमुख बातें

हालांकि, शुक्रवार का घोषणापत्र अपने प्रस्तावों को लेकर स्पष्ट है. इसमें दोनों देशों द्वारा हर क्षेत्र (जल, थल और वायु) में किसी भी तरह की दुश्मनी की भावना से प्रेरित कार्रवाइयों पर रोक लगाना शामिल है. इसके साथ ही इस बार एक दूसरे के प्रति विश्वास बढ़ाने के लिए तारीखें भी तय हुई हैं.

इन तारीखों में 1 मई तक डीएमज़ेड के पास दुश्मनी की भावना से प्रेरित कार्रवाई को रोकना, मई में द्विपक्षीय सैन्य बातचीत, 2018 के एशियाई खेलों में संयुक्त प्रतिनिधित्व, 15 अगस्त को परिवारों को आपस में मिलवाना और इस साल के पतझड़ के महीने (सितंबर) तक दक्षिण कोरियाई राष्ट्रपति का उत्तर कोरिया दौरा शामिल है.

शांति की ओर तेज़ी से लेकिन चरणबद्ध ढंग से उठते हुए क़दम कोरियाई नेताओं की उस कोशिश की ओर इशारा करते हैं जिसमें वे बताना चाहते हैं कि ऐसे प्रयास कोरियाई प्रायद्वीप के लिए कितने जरूरी थे.

इस घोषणा में दोनों कोरियाई देशों के साथ-साथ चीन या अमरीका या दोनों देशों के साथ भविष्य में होने वाली शांति वार्ता किए जाने का भी ज़िक्र है.

प्रमुख मुद्दों पर बाहरी कारकों को एक निश्चित सीमा तक शामिल करने के पीछे यह तर्क दिया जा रहा है कि इससे कोरियाई प्रायद्वीप में टकराव की स्थिति से बचा जाएगा.

घोषणापत्र
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ट्रंप का रवैया

साथ ही ये दोनों कोरियाई देश अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप के गुस्सैल रवैये और लड़ाकू भाषा को भी नज़रअंदाज करने की कोशिश करेंगे.

इस मामले में जल्दबाज़ी न करना व्यावहारिक है, क्योंकि दक्षिण कोरियाई राष्ट्रपति मून अभी अपने कार्यकाल की शुरुआत में ही हैं. 2000 और 2007 में जब समझौते हुए थे, तब क्रमश: किम देई-जुंग और रो मू-ह्यून दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति थे और अपने कार्यकाल के आख़िरी दौर में थे.

ऐसे में मून बाद में भी किम के साथ बैठकें जारी रख सकते हैं. दोनों लोग संवाद जारी रखने और घोषणा में शामिल विभन्न विषयों पर आगे बढ़ने के इच्छुक नज़र आ रहे हैं.

किम जोंग उन ने भी खुलकर अपने बयानों में पहचान की राजनीति के पक्ष में तर्क रखे. उन्होंने अपने भाषण में 'एक देश, एक भाषा, एक खून' पर ज़ोर दिया. उन्होंने आने वाले वक्त में कोरियाई देशों के बीच किसी तरह के टकराव की संभावनाओं से भी लगातार इनकार किया.

दोनों कोरिया अगर अपने साझे भविष्य पर ज़ोर देना चाहते हैं तो उसमें अमरीका के महत्व को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता.

ट्रंप
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अब किम और ट्रंप की मुलाक़ात का इंतज़ार

मई या जून की शुरुआत में किम जोंग उन और डोनल्ड ट्रंप के बीच होने वाली बहुप्रतिक्षित मुलाक़ात यह जानने में महत्वपूर्ण साबित होगी कि उत्तर कोरिया शांतिपूर्ण समझौते की प्रतिबद्धता को लेकर कितना गंभीर है.

प्योंगयांग का परमाणु निरस्त्रीकरण का वादा अमरीका की उस मांग से बहुत अलग है जिसमें वह 'व्यापक, स्पष्ट और कभी ना बदलने वाले' परमाणु निरस्त्रीकरण की बात करता है.

किम और ट्रंप की मुलाक़ात न सिर्फ़ यह समझने में मददगार होगी कि परमाणु निरस्त्रीकरण को लेकर दोनों देशों के नज़रिये में कितना अंतर है, बल्कि इससे यह समझने का महत्वपूर्ण मौका मिलेगा कि उत्तर कोरिया के साथ अपने मतभेद कम करने के लइए अमरीका ने क्या रणनीति अपनाई है.

दक्षिण कोरियाई राष्ट्रपति मून ने बड़ी ही चालाकी से अमरीकी राष्ट्रपति ट्रंप को भी इस बात का श्रेय लेने का अवसर दे दिया कि ट्रंप के चलते ही दोनों कोरिया के बीच जमी बर्फ़ पिघलने में मदद मिली. शायद वह समझ गए थे कि युद्ध को टालने और ट्रंप को उत्तर कोरिया के साथ संवाद में लगाए रखने के लिए ज़रूरी है कि अमरीकी राष्ट्रपति के अहं को बनाए रखा जाए.

ख़ैर, पनमुनजोम में हुई दोनों कोरियाई नेताओं की मुलाक़ात का परिणाम तो आने वाले वक्त में ही देखने को मिलेगा लेकिन फिलहाल तो इस मुलाकात ने दोनों कोरियाई नेताओं के राजनीतिक चातुर्य, कूटनीतिक दक्षता और रणनीतिक दूरदृष्टि को सभी के सामने यादगार ढंग से पेश किया है.

शुक्रवार को हुई नाटकीय घटनाक्रम और तमाम दूसरे कार्यक्रम इस बात की याद दिलाते रहे कि ऐतिहासिक परिवर्तनों के लिए व्यक्तित्व और नेतृत्व बेहद महत्वपूर्ण तत्व हैं.

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लेखक डॉक्टर जॉन निल्सन-राइटचटम हाउस में एशिया पैसिफ़िक प्रोग्राम के उत्तर पूर्वी एशिया विषय के सीनियर रिसर्च फेलो हैं. साथ ही कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में जापान की राजनीति और अंतरराष्ट्रीय संबंधों के सीनियर लेक्चरर भी हैं.

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English summary
Korea Conference Will This Historic Meet Come From Longer Peace
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