जानिए क्या है QUAD? जिसके जरिए भारत हिंद महासागर और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन को रोक सकता है
QUAD के बाकी तीनों देश लगातार चीन के खिलाफ आक्रामक बयान दे रहे हैं। लेकिन, भारत ने अब तक चीन को लेकर अपने पत्ते नहीं खोले हैं। क्या भारत अभी भी अमेरिका की नीयत को आजमाने में लगा हुआ है?
नई दिल्ली, सितंबर 24: भारत, ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका के राष्ट्राध्यक्षों के बीच ऐतिहासिक मुलाकात और बातचीत होने जा रही है और ये बातचीत 'क्वाड' के बैनर तले होगी। लेकिन, क्या आप जानते हैं, कि क्वाड आखिर है क्या? भारत को क्वाड से क्या फायदा होने वाला है और चीन को आखिर क्वाड से ही क्यों डर लगता है और कैसे भारत चीन को क्वाड के जरिए हिंद महासागर में आने से रोक सकता है? इन सवालों के बेहद दिलचस्प जवाब हम आपको बताने जा रहे हैं।
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गुटनिरपेक्ष आंदोलन का अगुवा भारत
आजादी के बाद से भी भारत पूरी दुनिया में आदर्शवादी और लोकतांत्रित मूल्यों का समर्थन करने वाला एक प्रमुख देश रहा है, जिसने गुटनिरपेक्ष रहकर अपना विकास करने की योजना के साथ काम शुरू किया। लेकिन, शीत युद्ध ने भारत की उम्मीदों पर बहुत हद तक पानी फेरा। 1970 के दशक में भारत ने गुटनिपपेक्ष आंदोलन का नेतृत्व किया और 'नई अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था' का मॉडल भी दुनिया के सामने पेश किया, लेकिन भारत के लिए परिणाम सीमित ही रहे। शीत युद्ध खत्म होने के बाद और सोवियत संघ के विघटन के बाद यह तय हो गया कि अमेरिका ही असली सुपरपावर है और इसके बाद भारतीय अर्थव्यवस्था बुरी तरह से गिरने लगी। भारत को धीरे-धीरे लगने लगा कि आर्थिक विकास के लिए राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को छोड़ना पड़ेगा और फिर भारत ने विकास की गति को बढ़ाने के लिए पश्चिमी देशों के साथ हाथ मिलाने को प्राथमिकता देने का फैसला किया, लेकिन पश्चिमी देशों ने विकास के लिए इतने प्रतिबंध बना रखे थे, कि भारत के लिए अपनी जरूरतों को पूरा करना आसान नहीं था।
ब्रिक्स समुह का गठन
अमेरिका समेत पश्चिमी देशों ने भारत के विकास के रास्ते में कई कांटे बिछा रखे थे। खासकर कश्मीर मुद्दे पर अमेरिका लगातार भारत को परेशान करता था तो परमाणु कार्यक्रम चलाने पर भारत के सामने अमेरिकी प्रतिबंध का डर था। लिहाजा भारत ने अपने प्रमुख दोस्त रूस के साथ मिलकर ब्रिक्स (BRICS) की स्थापना की। जिसमें चीन को शामिल होने के लिए भारत ने ही मनाया था, ताकि अमेरिका के विरोध को नियंत्रित किया जा सके और विश्व में कई ध्रुवों का निर्माण हो सके। भारत ने इसके लिए रूस और चीन का समर्थन किया। लेकिन, जब जॉर्ज बुश ने अमेरिका की सत्ता संभाली तो कश्मीर मुद्दे के साथ साथ परमाणु कार्यक्रम को लेकर भी अमेरिका के रूख मे परिवर्तन आना शुरू हो गया। कई एक्सपर्ट्स का मानना है कि अमेरिका को समझ में आने लगा कि एशिया में पाकिस्तान को सहयोग कर वो चीन को रोक नहीं सकता है, लिहाजा उसने अपनी नीति बदलते हुए भारत की मदद करने का फैसला लिया और यहीं से भारत और चीन के संबंध में फिर से तनाव आने शुरू हो गये।
क्वाड की स्थापना
2007 में जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने क्वाड की अवधारणा प्रस्तुक की थी, लेकिन चीन के दवाब में ऑस्ट्रेलिया के आने के बाद इसका गठन टाल दिया गया था। लेकिन, 2012 में जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे की पहल पर हिंद महासागर से प्रशांत महासागर तक समुद्री सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए ऑस्ट्रेलिया, भारत और अमेरिका के साथ मिलकर एक 'डेमोक्रेटिक सिक्योरिटी डायमंड' स्थापित करने के लिए विचार प्रस्तुत किया गया और फिर नवंबर 2017 में हिंद-प्रशांत क्षेत्र में किसी भी बाहरी शक्ति के प्रभाव को खत्म करने के लिए क्वाड समूह की स्थापना की गई और आसियान शिखर सम्मेलन के एक दिन पहले इसकी बैठक का आयोजन किया गया था।
क्वाड में भारत की भूमिका
दक्षिण एशिया के साथ साथ विश्व के सबसे बड़े बाजारों में भारत का प्रमुख स्थान है और हाल के सालों में स्वास्थ्य, रक्षा और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में भी भारत एक बड़ी शक्ति बनकर उभरा है। अमेरिका भी क्वाड की संभावनों को सिर्फ रक्षा क्षेत्र तक सीमित नहीं रखता है, बल्कि 'फाइव आइज' में भी भारत को शामिल करना चाहता है, ताकि क्वाड को और ज्यादा मजबूत किया जा सके। इसके साथ ही अमेरिका के प्रयास पर कोविड-19 संकट से निपटने के लिए क्वाड प्लस संवाद की भी शुरूआत की गई, जिसमें ब्राजील, इजरायल, न्यूजीलैंड, दक्षिण कोरिया और वियतनाम को शामिल किया गया। अब ब्रिटेन द्नारा भारत समेत विश्व के 10 लोकतांत्रित देशों के साथ मिलकर एक गठबंधन बनाने पर विचार किया जा रहा, जिसका उद्येश्य चीन पर निर्भरता को कम करते हुए, सभी देशों के सामूहिक योगदान के जरिए एक सुरक्षित 5G नेटवर्क का निर्माण करना है। वहीं, भारत द्वारा चीन पर निर्भरता कम करने के लि एजापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ मिलकर एक मजबूत आपूर्ति श्रृंखला विकसित करने के लिए तेजी से काम किया जा रहा है।
भारत के लिए क्वाड का महत्व
भारत का मकसद चीन और पाकिस्तान के साथ सीमा विवादों को देखते हुए हिंद महासागर में क्वाड देशों के साथ मिलकर एक ऐसी व्यवस्था की स्थापना करना है, जिसके रहते हुए चीन हिंद महासागर में किसी भी कीमत पर अपना पैर आगे नहीं बढ़ा सके। दरअसल, वैश्विक व्यापार के लिहाज से हिंद महासागर का समुद्री मार्ग चीन के लिए काफी ज्यादा महत्वपूर्ण है और अभी भी हिंद महासागर में भारत काफी मजबूत है। लेकिन, श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगार पर कब्जा करने के बाद चीन की महत्वाकांक्षा हिंद महासागर में काफी बढ़ चुकी है, लिहाजा क्वाड की मदद से भारत चीन को काफी आसानी से हिंद महासागर से दूर रख सकता है। वहीं, पिछले कुछ सालों में विश्व के कई देशों ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपनी सक्रियता बढ़ा दी है, जिसमें भारत भी शामिल है। वहीं, फ्रांस और जर्मनी भी हिंद-प्रशांत क्षेत्र में रणनीतिक तौर पर आगे बढ़ रहे हैं। लिहाजा सभी देश मिलकर चीन को आसानी से रोक सकते हैं।
चीन को घेरने की रणनीति क्या है?
भारत ने भारत-चीन सीमा पर काफी आक्रामका दिखानी शुरू कर दी है और इसमें भारत को क्वाड का साथ मिल रहा है। वहीं, क्वाड की बैठक में हांगकांग, ताइवान, ताइवान स्ट्रेट और सेनकाकू विवादों पर भी चर्चा की जाएगी, जिससे चीन का तिलमिलाना तय है। चीन क्वाड को नाटो जैसा सैन्य गठबंधन मानता है, लेकिन क्वाड असल में सैन्य गठबंधन से कहीं आगे है और आने वाले वक्त में ये चीन की अर्थव्यवस्था पर सीधा चोट करेगा। इसके साथ ही ऑस्ट्रेलिया और चीन के संबंध काफी खराब हो चुके हैं, वहीं अमेरिका भी चीन को लेकर काफी आक्रामक है, जबकि जापान और चीन पिछले कुछ महीनों में कई बार आमने-सामने आ चुके हैं। लेकिन, भारत की तरफ से चीन के खिलाफ ना ही आक्रामक बयान दिया गया है और ना ही अपना पक्ष पूरी तरह से साफ किया गया है। लिहाजा ऐसी उम्मीद है कि इस बार क्वाड की बैठक में भारत चीन को लेकर अपनी रणनीति स्पष्ट कर सकता है।