WHO की फंडिंग में चीन और पाकिस्तान से काफी ऊपर है भारत, हर साल देता है इतनी रकम
वॉशिंगटन। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) की हर तरह की फंडिंग को रोक दिया है। ट्रंप ने कोरोना वायरस महामारी से निबटने को लेकर संगठन की आलोचना की। उन्होंने कहा कि संगठन सही तरह से महामारी का सामना नहीं कर सका और इसलिए वह इसे मिलने वाले अमेरिकी मदद पर रोक लगा रहे हैं। अगले 60 से 90 दिनों तक यह मदद बंद रहेगी और इसके बाद एक रिव्यू होगा फिर कोई फैसला लिया जाएगा। अमेरिका की तरफ से संगठन को सबसे ज्यादा मदद मिलती है। वहीं चीन जहां से महामारी निकली है, वह इस संगठन को सबसे कम अनुदान देता है।
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कहां ठहरते है भारत, पाकिस्तान और चीन
पहले बात करते हैं चीन, भारत और पाकिस्तान की। चीन जो आज दुनिया में महामारी की वजह बन गया है और जहां के वुहान से निकले जानलेवा वायरस ने दुनियाभर में त्राहि-त्राहि मचा दी है, उसका योगदान डब्लूएचओ में बस 0.21 प्रतिशत है। यह न सिर्फ भारत बल्कि उसके करीबी दोस्त पाकिस्तान से भी कम है। भारत की तरफ से डब्लूएचओ में 0.48 प्रतिशत है और पाकिस्तान का 0.36 प्रतिशत है। फ्रांस की तरफ से संगठन को 0.50 प्रतिशत की आर्थिक मदद दी जाती है। यूनाइटेड नेशंस (यूएन) के मानवाधिकार कार्यालय की तरफ से पांच प्रतिशत से ज्यादा की आर्थिक मदद डब्लूएचओ को मिलती है।
अमेरिका का 400 मिलियन डॉलर
ट्रंप ने डब्लूएचओ पर चीन पर केंद्रित होने का आरोप लगाया है। अमेरिका संगठन को करीब 15 प्रतिशत की आर्थिक मदद देता है। संगठन का बजट करीब 6.2 बिलियन डॉलर है। वेबसाइट पर जो जानकारी दी गई है उसके मुताबिक 14.67 प्रतिशत बजट के साथ अमेरिका टॉप पर है। अमेरिका ने साल 2018-2019 में संगठन को 400 मिलियन डॉलर की मदद की थी। इसके बाद बिल और मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन है जो करीब 9.76 प्रतिशत का योगदान देती है। इसके बाद तीसरा नंबर जेनेवा स्थित गावी अलायंस का नंबर है और इसकी तरफ से 8.39 प्रतिशत का योगदान संगठन को हर वर्ष होता है। यूनाइटेड किंगडम (यूके) की तरफ से 7.79 प्रतिशत और जर्मनी 5.68 प्रतिशत की आर्थिक मदद संगठन को देता है।
और किसका है संगठन में योगदान
वर्ल्ड बैंक की तरफ से 3.42 प्रतिशत, रोटरी इंटरनेशनल की तरफ से 3.3 प्रतिशत, यूरोपियन कमीशन 3.3 प्रतिशत और जापान की तरफ से 2.7 प्रतिशत की मदद संगठन को मिलती है। ऐसे में चीन जो कि वर्तमान समय में विवाद में है उसकी तरफ से इतनी कम आर्थिक मदद वाकई हैरान करने वाली है। डब्लूचओ को जो रकम मिलती है वह जरूरत और प्राथमिकताओं के आधार पर खर्च की जाती है। इसके अलावा किसी विशेष अभियान के लिए भी इसी मदद से रकम खर्च की जाती है। संगठन को चार प्रकार से फंड मिलता है और स्वेच्छा से होने वाली मदद इसमें सबसे ऊपर है। करीब 80 प्रतिशत आर्थिक मदद इसी तरह से संगठन को मिलती है।
सदस्यता के लिए फीस भी बड़ा सहारा
वर्तमान समय में 194 देश इसके सदस्य हैं और ये सभी स्वेच्छा से योगदान करते हैं। इसके बाद सदस्यता फीस के जरिए भी संगठन को सबसे ज्यादा आर्थिक मदद मिलती है। किसी भी देश को अगर इसका सदस्य बनना है तो उसे उसकी माली हालत और जनसंख्या के आधार फीस देनी होती है। अमेरिका जो दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है वह करीब 15 प्रतिशत का योगदान करता है और चीन जो दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, उसका योगदान बस 0.21 प्रतिशत ही है। फीस के जरिए संगठन को कुल 17 प्रतिशत तक आर्थिक मदद मिलती है। इस रकम से संगठन ने साल 2011 में स्वाइन फ्लू के बाद स्पेशल फंडिंग की शुरुआत की थी।