जानिए आखिर क्यों अजरबैजान और आर्मीनिया के बीच छिड़ी है जंग, क्या रूस-टर्की कर रहे हैं प्रॉक्सी वॉर?
नई दिल्ली। सेंट्रल एशिया के दो देश आर्मीनिया और अजरबैजान के बीच तनाव काफी बढ़ गया है। पिछले कुछ दिनों से दोनों देशों के बीच सैन्य टकराव काफी बढ़ गया है, दोनों ओर से हो रही गोलीबारी में कई लोगों का जान जा चुकी है, जबकि सैकड़ों लोगों के घायल होने की खबर है। अजरबैजान का दावा है कि इस सैन्य हमले में उसके 790 लोगों की जान जा चुकी है। दोनों देश एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं। ऐसे में आइए समझते हैं कि आखिर इन दोनों देशों के बीच यह विवाद क्यों है और हालात इतने मुश्किल कैसे हो गए हैं।
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दोनों देशों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
अर्मीनिया की आबादी तकरीबन 30 लाख है, जबकि अजरबैजान की आबादी तकरीबन एक करोड़ है। आर्मीनिया ईसाई बाहुल्य देश है जबकि अजरबैजान मुस्लिम बाहुल्य देश है। आर्मीनिया टर्की और जॉर्जिया व रूस से घिरा हुआ है। रुस आर्मीनिया का समर्थक है। हाल ही में रूस ने आर्मीनिया से डील की है कि वह आर्मीनिया को सुखोई 30 बेचेंगे, जिसे रूस ने भारत को बेचा था। भारत भी मुख्य रूप से आर्मीनिया का समर्थक है। भारत ने हाल ही में आर्मीनिया को सैन्य उपकरण बेचे हैं, आने वाले समय में भारत आर्मीनिया के साथ हथियारों की बिक्री को बढ़ा सकता है। वहीं आस-पास के इस्लामिक देशों की बात करें तो आर्मीनिया से इनका संबंध अच्छा नहीं है। पाकिस्तान आर्मीनिया के अस्तित्व को नहीं मानता है, पाकिस्तान का कहना है कि जैसे इजरायल कोई देश नहीं है, वैसे ही हम आर्मीनिया को देश नहीं मानता है। दरअसल पाकिस्तान का अजरबैजान और टर्की से संबंध काफी अच्छा है और उसका मानना है कि जिन देशों का इन दोनों देशों के साथ संबंध खराब होगा, हम उनका अस्तित्व भी नहीं मानेंगे। हालांकि अहम बात यह है कि टर्की और अजरबैजान दोनों ही देश आर्मीनिया के अस्तित्व को मानते हैं।
क्यों है विवाद
दोनों ही देश हाल ही में आजाद हुए हैं। 1991 से पहले दोनों ही देश यूएसएसआर का हिस्सा थे। 1991 में यूएसएसआर के टूटने के बाद यूक्रेन, बेलारूस, कजाकिस्तान जैसे कई देशों को आजादी मिली थी। आजादी के बाद से ही दोनों देशों के बीच नागोर्नो-काराबाख क्षेत्र पर अधिकार को लेकर विवाद चला आ रहा है। आर्मीनिया का कहना था कि यहां पर जो लोग रहते हैं, वह जाति के आधार पर आर्मीनिया के हैं, लिहाजा यह हिस्सा आर्मीनिया का होना चाहिए। यही नहीं आर्मीनिया का कहना है कि यह जमीन कभी भी यूएसएसआर का हिस्सा नहीं थी, आजादी से पहले भी यह क्षेत्र स्वतंत्र था, लिहाजा जाति के आधार पर यह क्षेत्र आर्मीनिया का होना चाहिए। जबकि अजरबैजान का कहना है कि आजादी के बाद से यह हिस्सा हमे विरासत के तौर पर मिला है, लिहाजा यह हमारे हिस्से में होना चाहिए। इस क्षेत्र को लेकर 1992 से दोनों ही देशों के बीच टकराव चल रहा है। इसके चलते यहां अक्सर सीमा पर तनाव बना रहता है। 2018 में जब अजरबैजान ने यहां सैन्य संख्या को बढ़ाया उसके बाद से ही यहां तनाव काफी बढ़ गया है। एक बार यहां रेफ्रेंडम हुआ था, उस वक्त लोगों ने कहा था हम किसी के साथ नहीं जाना चाहते हैं और खुद स्वतंत्र रहना चाहते हैं। लेकिन अजरबैजान ने इस रेफ्रेंडम को नहीं माना। इस छोटे से इलाके में अबतक तकरीबन 30 हजार लोगों की जान जा चुकी है।
इस बार क्यों बढ़ा विवाद
इस बार जो तनाव बढ़ा है, उसमे आर्मीनिया का कहना है कि अजरबैजान ने गोलीबारी शुरू की, जिसके चलते हमारे कुछ आम लोगों की जान चली गई, इसके जवाब में हमने अजरैजान के दो हेलीकॉप्टर को गिरा दिया और कुछ टैंक को नुकसान पहुंचाया है। हालांकि अजरबैजान ने इस दावों को खारिज किया है। अब इस पूरे विवाद में आर्मीनिया ने दावा किया है कि टर्की ने उसके फाइटर जेट को मार गिराया है। आर्मीनिया की सरकार ने कहा है कि टर्की ने आर्मीनिया के एक फाइटर जेट को ढेर कर दिया है। आर्मीनिया का कहना है कि टर्की ने आर्मीनिया की जमीन पर एफ-16 फाइटर जेट ने आर्मीनिया के सुखोई 25 फाइटर जेट को ढेर किया है, जिसमे पायलट की भी मौत हो गई है। अहम बात यह है कि एफ-16 रूस में बना फाइटर जेट है। हालांकि टर्की ने इस आरोप से इनकार किया है। लेकिन आर्मीनिया की ओर से विमान की तस्वीरें जारी करके अपने दावे की पुष्टि की गई है।
आखिर क्यों टर्की कर रहा इनकार
सामान्य तौर पर जब एक देश दूसरे देश का फाइटर प्लेन गिराता है तो वह कहता है कि हमने फाइटर प्लेन गिराया है, लेकिन इस मामले में आर्मीनिया का कहना है कि टर्की ने हमारे फाइटर प्लेन को गिराया है। जबकि टर्की ने इससे इनकार किया है। ऑर्मीनिया के रक्षा मंत्रालय ने कहा है कि टर्की ने हमारे फाइटर प्लेन को गिराया है। दरअसल रूस और टर्की के कलेक्टिव सिक्योरिटी ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन संगठन के सदस्य हैं। इस सैन्य संगठन में फिलहाल 6 देश आर्मीनिया, बेलारूस, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, रूस और तजाकिस्तान हैं। पहले इस संगठन में आर्मीनिया और अजरबैजान दोनों थे, लेकिन बाद में अजरबैजान इस संगठन से अलग हो गया था। इस संगठन के 6 देशो में से अगर एक भी देश पर कोई हमला करता है तो सभी देश एक साथ उसके खिलाफ कार्रवाई करेंगे। लेकिन इस संगठन ने यह साफ किया था कि आर्मीनिया और अजरबैजान के बीच नागोर्नो-काराबाख क्षेत्र को लेकर टकराव की स्थिति में यह संगठन सक्रिय नहीं होगा।
रूस और टर्की की प्रॉक्सी वॉर
इस पूरे मामले में रूस यह नहीं चाहता है कि इस विवाद में सीएसटीओ को लागू किया जाए। अगर रूस इस विवाद में शामिल होता है तो अपने आप नाटो का आर्टिकल 5 भी सक्रिय हो जाएगा, जिसके बाद अमेरिका और कई यूरोप के देश टर्की के बचाव में आ सकते हैं। नाटो यह भी कह सकता है कि टर्की ने पहले हमला किया है, लिहाजा इस मामले में नाटो सक्रिय हो। फिलहाल रूस किसी भी सूरत में अभी इस मामले से दूर रहना चाहता है और पर्दे के पीछे से ही अपनी रणनीति बना रहा है। वहीं ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इंटरनेशनल को-ऑपरेशन ने अजरबैजान का समर्थन किया है, इनका कहना है कि आर्मीनिया गलत है। वहीं टर्की के राष्ट्रपति एर्दोगान का कहना है कि आर्मीनिया इस पूरे क्षेत्र में शांति के लिए सबसे बड़ा खतरा है, जबकि पाकिस्तान ने खुले तौर पर कहा है कि हम अजरबैजान के साथ खड़े हैं।