Special Report: अफगानिस्तान पर फंसा अमेरिका, जो बाइडेन हुए विकल्पहीन, अमेरिकी फौज जाएगी तो भारत क्या करेगा?
अफगानिस्तान से अमेरिकी फौज की वापसी पर अब अमेरिका फंस गया है। अमेरिका को डर है कि अगर अफगानिस्तान की शांति भंग होती है, तो इसका सीधा असर अमेरिका पर ही पड़ेगा।
वाशिंगटन/नई दिल्ली: कुछ हफ्तों का वक्त और बचा है जब अफगानिस्तान की धरती से अमेरिकी फौज वापस अमेरिका चली जाएगी मगर इससे पहले की सारे अमेरिकन फौज वापस जाएं, अफगानिस्तान पर अमेरिका बुरी तरह से फंसता नजर आ रहा है। पिछले 20 सालों से अफगानिस्तान की जमीन पर तालिबानी और अलकायदा आतंकियों से लड़ते हुए 2400 से ज्यादा अमेरिकी जान गंवा चुके हैं और अब 1 मई से पहले अमेरिका को तालिबान से करार के मुताबिक अमेरिकी फौज को अफगानिस्तान से बाहर निकालना है। लेकिन अब नाटो देशों ने अमेरिका की तरफ देखना शुरू कर दिया है कि आखिर तालिबान और अफगानिस्तान को लेकर अमेरिका का प्लान क्या है क्योंकि तालिबान अब भी अफगानिस्तान में आतंकी वारदातों को अंजाम दे रहा है और अफगानिस्तान सरकार को कमजोर कर रहा है, तो फिर अमेरिका क्या करेगा।
अफगानिस्तान पर फंस गया है अमेरिका
अमेरिका के नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल में अफगानिस्तान के मुद्दे पर बात हुई जिसमें तय किया जाना था कि अफगानिस्तान को लेकर क्या फैसला लिया जाना है। सिक्योरिटी काउंसिल की बैठक के दौरान दो मुख्य उद्येश्य थे। पहला मकसद था अफगानिस्तान से अमेरिकी फौज की शांतिपूर्ण वापसी के साथ अफगानिस्तान में शांति स्थापित करना और दूसरा मकसद था अमेरिका सुरक्षा के साथ-साथ ये सुनिश्चित करना कि कहीं अमेरिकी फौज की वापसी के साथ अफगानिस्तान में ISIS स्टाइल में आतंकवादी मॉड्यूल तैयार ना हो जाए जो अमेरिका के लिए ही आगे चलकर खतरनाक हो जाए। अमेरिकी रक्षा मंत्रालय पेंटागन के प्रवक्ता जॉन किर्बी ने अपने बयान में कहा है कि अफगानिस्तान में हिंसा काफी ज्यादा है जो अभी सबसे नीचले स्तर पर है।
दरअसल, अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के शासनकाल में अमेरिका- अफगानिस्तान और तालिबान के बीच शांति समझौता कतर में हुआ था। जिसके तहत अमेरिका अपनी फौज को अफगानिस्तान से निकाल रहा है। 13000 अमेरिकी फौज में अब अफगानिस्तान में सिर्फ 2500 सैनिक बचे हैं, जिन्हें वापस बुलाने पर अमेरिका में माथापच्ची जारी है। दरअसल, अमेरिकी फौज के कम होते ही तालिबान ने फिर से अफगानिस्तान में दहशत फैलाना शुरू कर दिया। पिछले एक महीने के दौरान अफगानिस्तान में कई बम ब्लास्ट हो चुके हैं, लिहाजा अमेरिका का सेना बुलाने का दांव उल्टा पड़ता जा रहा है। अब अमेरिका के सामने सबसे बड़ा डर ये है कि अगर अफगानिस्तान में फिर से आतंकी संगठन फलते-फूलते हैं तो उनका पहला टार्गेट अमेरिका ही होगा।
अफगानिस्तान-पाकिस्तान स्टडीज के मिडिल इस्ट इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर मार्विन वीनबम का मानना है कि 'अफगानिस्तान-तालिबान-अमेरिका शांति समझौता में तालिबान सिर्फ इतना मान रहा है कि उसने अमेरिकी फौज को निशाना बनाना बंद कर दिया है, इससे ज्यादा तालिबान कुछ नहीं मान रहा है'। दरअसल, अमेरिका ने अब मानना शुरू कर दिया है कि ताबिलान से एग्रीमेंट कर वो फंस गया है और जैसे जैसे अमेरिकी फौज को वापस बुलाने की तारीख नजदीक आ जा रही है अमेरिका के लिए स्थिति और खराब होती जा रही है, ऐसे में सवाल बस यही बचता है, कि आखिर अब जो बाइडेन प्रशासन अपनी सेना को क्या ऑर्डर देगा?
अफगानिस्तान में तालिबान की स्थिति
अफगानिस्तान के पहाड़ियों पर सक्रिय तालिबान असल मायनों में कभी हारा ही नहीं और अमेरिका के सामने सबसे बड़ा डर ये है कि जैसे ही आखिरी अमेरिकी सैनिक अफगानिस्तान से वापसी के लिए प्लेन पर बैठेगा ठीक वैसे ही तालिबान अपनी जीत की घोषणा कर देगा। अफगानिस्तान की जनता के सामने पहला मैसेज तालिबान की तरफ से ये दिया जाएगा कि उसकी वजह से ही अमेरिकी सेना वापस गई है और दूसरा मैसेज ये दिया जाएगा कि अब तालिबान के खिलाफ बोलने की हिम्मत कोई ना करे। इसके साथ तालिबान का आतंकी संगठन फिर से तैयार हो जाएगा। इसके साथ ही पिछले 2 महीने से जिस तरह आतंकी घटनाओं में फिर से इजाफा हुआ है वो अमेरिकी सैनिकों के घटने के साथ और भी बढ़ सकता है।
सेन्टर ऑफ मिलिट्री एंड पॉलिटिकल पॉवर के सीनियर डायरेक्टर ब्रेडली बॉउमैन कहते हैं कि 'डोनाल्ड ट्रंप ने अफगानिस्तान को लेकर जो बाइडेन के सामने बेहद खराब स्थिति रखी है। जो बाइडेन के पास कोई ऑप्शन नहीं बचता दिख रहा है। डोनाल्ड ट्रंप को अधिकारियों और सैन्य जनरलों ने अफगानिस्तान से सैनिकों की वापसी के लिए कोई निश्चित तारीख तय करने से मना किया मगर डोनाल्ड ट्रंप ने किसी की भी बात को नहीं माना, जिसका खामियाजा अब अमेरिका भुगतने के लिए मजबूर है'
अमेरिकी एक्सपर्ट का कहना है कि डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन ने सिर्फ और सिर्फ डोनाल्ड ट्रंप के चुनावी कैंपेन को पूरा करने पर ध्यान दिया। और उसी के तहत हर स्थिति-परिस्थिति को किनारे रखते हुए आनन-फानन में अमेरिकी सैनिकों के वापसी के लिए तालिबान के साथ तमाम समझौते कर लिए जो अफगानिस्तान की शांति के साथ साथ अमेरिका के लिए भी खतरनाक है। और अब जो बाइडेन की टीम अफगानिस्तान को लेकर क्या कदम उठाता है इसका भी पता नहीं चल रहा है जो आखिरकार अफगानिस्तान के लिए ही नुकसानदायक है।
अमेरिकी रक्षामंत्री लॉयड ऑस्टिन के सीनियर डिफेंस ऑफिसर बताते हैं कि 'हर किसी को पता है कि एक मई आने वाला है और हमलोग अमेरिका-तालिबान के बीच कतर के दोहा में हुए शांति समझौते पर फिर से विचार कर रहे हैं। हम इस स्थिति का भी आंकलन करने की कोशिश कर रहे हैं कि अफगानिस्तान शांति समझौते के तहत तालिबान अपने वादों पर कितना खरा उतरा है'। अमेरिकी रक्षामंत्री के सीनियर ऑफिसर का ये बयान जताने के लिए काफी है कि अफगानिस्तान को लेकर अमेरिका पेशोपेश कि स्थिति में है। अमेरिका किस विकल्प पर विचार करे ये तय नहीं कर पा रहा है या फिर अमेरिका के पास अब कोई विकल्प नहीं बचे हैं, सवाल ये भी हैं।
NATO देशों के सामने समस्या
जो बाइडेन प्रशासन अफगानिस्तान को लेकर क्या फैसले लेता है, इसपर नाटो देश की गहरी नजर है। अमेरिका की वजह से ही अफगानिस्तान में सेना भेजने वाले नाटो देश पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के फैसले से हैरान रह गये थे। खासकर अब जर्मनी अमेरिका के फैसले को गंभीरता से देख रहा है। शांति समझौते के वक्त से ही जर्मनी का मानना है कि अफगानिस्तान से अमेरिकी फौज के हटते ही नाटो फौज पर भी अफगानिस्तान से हटने का दबाव बनेगा जो बेहद खतरनाक स्थिति को जन्म दे सकता है। जर्मनी मानता है कि फौज हटने के बाद तालिबान सबसे खतरनाक आतंकी संगठन के तौर पर विश्व की शांति को खत्म करने की क्षमता रखता है।
तालिबान-अमेरिका
समझौते
के
बाद
अफगानिस्तान
की
स्थिति
पर
नजर
रखने
वाला
अफगानिस्तान
स्टडी
ग्रुप
ने
चेतावनी
जारी
की
है
कि
अमेरिकी
सैनिकों
के
अफगानिस्तान
से
हटते
ही
अफगानिस्तान
में
गृहयुद्ध
शुरू
हो
जाएगा।
इसके
साथ
ही
अमेरिका
के
खिलाफ
रहे
आतंकी
संगठनों
के
बीच
यह
मैसेज
जाना
शुरू
हो
चुका
है
कि
उन्होंने
विश्व
की
सर्वशक्तिशाली
सैनिकों
को
हरा
दिया
है
वो
फिर
से
एक्टिव
हो
जाएंगे।
खासकर
अलकायदा,
जिसने
तालिबान-अमेरिका
शांति
समझौते
का
समर्थन
किया
था,
उसने
पीछे
की
वजह
ही
यही
है
कि
अलकायता
चाहता
है
कि
अफगानिस्तान
से
किसी
भी
तरह
अमेरिकी
सैनिक
चले
जाएं
फिर
वो
अफनागिस्तान
की
चुनी
सरकार
को
अस्थिर
कर
सकता
है।
यानि,
अफगानिस्तान
को
लेकर
अमेरिका
बुरी
तरह
से
फंस
चुका
है।
भारत क्या करेगा ?
इन सबके बीच अफगानिस्तान की लोकतांत्रिक सरकार को सपोर्ट करने वाला भारत भी पेशोपेश में है कि वो क्या करे। पाकिस्तान बेसब्री से अमेरिकी फौज के हटने की तारीख देख रहा है क्योंकि सेना हटते ही पाकिस्तान के लिए अफगानिस्तान में दावत हो जाएगी। आतंकी संगठनों को समर्थन करने वाला पाकिस्तान अफगानिस्तान की चुनी सरकार को खत्म कर वहां तालिबानी हुकूमत चाहता है ताकि अफगानिस्तान के जरिए वो भारत में शांतिभंग करे। ऐसे में सवाल ये उठता है कि आखिर भारत के पास अफगानिस्तान को लेकर क्या विकल्प हैं।
तालिबान-अमेरिका शांति समझौते में भारत को भी शामिल होने का न्योता दिया गया था मगर भारत ने आतंकी संगठन से किसी भी तरह का समझौता करने से इनकार करते हुए अफगानिस्तान की लोकतांत्रिक सरकार को सपोर्ट करने का फैसला किया था। अफगानिस्तान में भारत के कई प्रोजेक्ट चल रहे हैं। वहीं, अफगानिस्तानी संसद का निर्माण भी भारत ने ही किया था और अफगानिस्तान के नागरिक भारत के काफी करीब हैं। अफगानिस्तानी छात्रों के लिए भारत कई योजनाएं भी चलाता है तो अफगानिस्तान क्रिकेट टीम का होम ग्राउंड भारत ही है। अफगानिस्तान सरकार भारत को सबसे अच्छा दोस्त मानती है, लिहाजा अफगानिस्तान की शांति ही भारत के लिए जरूरी है। ऐसे में अमेरिका के द्वारा अफगानिस्तान पर लिया गया फैसला भारत के लिए भी काफी महत्वपूर्ण होने वाला है।