चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को जापान में नहीं मिलेगी एंट्री, पीएम आबे नहीं करेंगे वेलकम!
टोक्यो। जापान और चीन के रिश्ते हमेशा से खटास भरे रहे। इस वर्ष इन रिश्तों में कुछ नरमी आने की उम्मीद थी। लेकिन पहले कोरोना वायरस महामारी और फिर चीन की दूसरे देशों पर लालची नजरें, अब लगता है कि रिश्तों में शायद ही कुछ सुधार हो पाए। ऐसी खबरें हैं कि जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग का दौरा कैंसिल कर सकते हैं। आबे को यह कदम उनकी ही पार्टी लिबरल डेमोक्रेटिक के अंदर जारी विरोध की वजह से उठाना पड़ सकता है। साल 2008 के बाद से कोई चीनी राष्ट्रपति, जापान के दौरे पर जाने वाला था। अब लगता है कि ऐसा संभव नहीं है।
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आबे की पार्टी में जिनपिंग का विरोध
लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी जापान की सत्ताधारी पार्टी है और इसके सांसदों ने सरकार ने कहा है कि वह चीनी राष्ट्रपति के जापान दौरे पर फिर से विचार करे। पिछले कुछ समय से ही दोनों देशों के बीच तनाव जारी है लेकिन अब जापान का फैसला चीन को भड़का सकता है। जापान में हांगकांग पर आए नए सुरक्षा कानून को लेकर लगातार चीनी सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन जारी हैं। जापान को डर है कि चीन का यह सुरक्षा कानून हांगकांग में मौजूद जापानी कंपनियों और उसके नागरिकों के हितों के लिए खतरा हो सकता है।
महामारी का फायदा उठा रहा चीन
जापान ने इसके साथ ही चीन पर यह आरोप भी लगाया है कि वह कोरोना वायरस महामारी का फायदा उठाने की ताक में है। जापान का कहना है कि महामारी की वजह से चीन अपनी आक्रामक कूटनीति को आगे बढ़ा रहा है और हांगकांग पर अपनी पकड़ मजबूत कर रहा है। हांगकांग में जापान की कई कंपनियां हैं और उसके अपने हित यहां से जुड़े हुए हैं। जापान की करीब 1400 कंपनियां हांगकांग में हैं। हांगकांग, जापान से सबसे ज्यादा कृषि आधारित उत्पादों का आयात करता है। जापान की बिजनेस कम्युनिटी भी चीन के नए कानून से परेशान हैं। जापानी कंपनियों का मानना है कि चीनी कानून हांगकांग की नींव को कमजोर कर सकता है।
हांगकांग में चीनी कानून का विरोध
जापान ने चीन के इस कदम का कड़ा विरोध किया है। जापान ने साफ कर दिया है कि हांगकांग में आया चीन का नया सुरक्षा कानून उस वादे के खिलाफ है जो ब्रिटेन से उस समय किया गया था जब इस देश को फिर से चीनी सत्ता के हाथों में सौंपा गया था। ब्रिटेन ने साल 1997 में हांगकांग का शासन चीन के हाथों में सौंप दिया था। जापान के विदेश मंत्री तोहिमित्सु मोतेगी की तरफ से एक बयान जारी किया गया था। इस बयान में चीन से अपील की गई थी कि वह जापान के लोगों और उन कंपनियों का ध्यान रखे जो हांगकांग में हैं।
चीनी कोस्ट गार्ड के जहाजों ने की घुसपैठ
जापान और चीन के बीच पिछले कुछ समय से लगातार तनाव बढ़ता जा रहा है। चीन ने अप्रैल माह से अब तक नौसेना के 67 जहाजों को टोक्यों के नियंत्रण वाले द्वीप सेनकाकू के करीब भेजा है। चीन की गतिविधियों को रोकने के लिए सोमवार को जापान के ओकिनावा शहर की काउंसिल में एक बिल पास हुआ है। इस बिल को चीन की तरफ से खासा विरोध झेलना पड़ रहा है। अमेरिकी मीडिया सीएनएन की तरफ से कहा गया है कि चीन की तरफ से जो 67 जहाज भेजे गए थे वो सभी कोस्ट गार्ड के जहाज थे। ओकिनावा की इशीगाकी सिटी काउंसिल की तरफ से इस बिल को मंजूरी दी गई है।
जापान कर रहा 1972 से शासन
इस बिल के तहत जापान के हिस्से वाले सेनकाकू और चीन के डायोयूस द्वीप के प्रशासनिक स्थिति में बदलाव हो गया है। जापान के एनएचके न्यूज की तरफ से बताया गया है कि अब द्वीप का नाम तोनोशिरो सेनकाकू हो गया है ताकि इशीगाकी पर स्थित दूसरे द्वीप के साथ किसी तरह का कोई भ्रम न होने पाए। यह द्वीप जापान की राजधानी टोक्यो से 1200 मील यानी 1,931 किलोमीटर दक्षिण पश्चिम में है। जापान इस पर सन् 1972 से ही शासन कर रहा है। लेकिन चीन हमेशा इस पर अपना दावा जताता है।