इसराइल: मुहब्बत के जाल में फँसाने वाली मोसाद की महिला जासूसी की कहानी
इसराइल की ख़ुफिया एजेंसी मोसाद का वो गुप्त अभियान, जिसने दुनिया को चौंका दिया.
साल 1986 में दुनिया भर के अख़बारों में ये ख़बर आई कि इसराइल अपने परमाणु कार्यक्रम को आगे बढ़ा रहा है और दुनिया के कई देशों की तुलना में उसका परमाणु ज़खीरा कहीं बड़ा है.
इसराइल के गुप्त परमाणु कार्यक्रम के बारे में दुनिया को बताने वाले शख़्स का नाम था मौर्डेख़ाई वनुनु. वनुनु को पकड़ने के लिए इसराइल ने एक गुप्त अभियान चलाया और एक महिला जासूस को उन्हें प्रेम जाल में फंसाने के लिए भेजा गया जो उन्हें लंदन से बाहर किसी और देश में ले जाएं.
बाद में वनुनु को अगवा कर लिया गया और उन पर इसराइल में मुकदमा चलाया गया. आज भी वनुनु को इंतज़ार है कि वो एक आज़ाद व्यक्ति की तरह दुनिया घूम सकें.
आपको बताते हैं मौर्डेख़ाई वनुनु की कहानी और कैसे 'सिंडी' नाम की एक जासूस ने उन्हें पकड़ने में इसराइल की मदद की.
टेक्निशीयन थे, बने व्हिसलब्लोअर
वनुनु 1976 से 1985 के बीच इसराइल के बीरशेबा के नज़दीक नेगेव रेगिस्तान में मौजूद डिमोना परमाणु प्लांट में बतौर टेक्निशीयन काम करते थे, जहां वो परमाणु बम बनाने के लिए प्लूटोनियम बनाते थे.
'न्यूक्लियर वीपन्स एंड नॉनप्रोलिफिकेशन: अ रेफरेन्स हैंडबुक' के अनुसार, उन्होंने बेन गुरिओन यूनिवर्सिटी से दर्शनशास्त्र की पढ़ाई की. इसके बाद वो ऐसे समूहों से जुड़ने लगे, जो फलस्तीनियों के प्रति संवेदना रखते थे.
30 साल के मौर्डेख़ाई वनुनु जल्द की सुरक्षा अधिकारियों के रडार पर आ गए और उन्हें आख़िर 1985 में नौकरी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया.
लेकिन नौकरी छोड़ने से पहले उन्होंने डिमोना परमाणु प्लांट, हाइड्रोजन और न्यूट्रन बमों की करीब 60 सीक्रेट तस्वीरें लीं. और अपनी रील के साथ उन्होंने देश छोड़ दिया. वो ऑस्ट्रेलिया पहुंचे और सिडनी में ईसाई धर्म अपना लिया.
इसके बाद उन्होंने लंदन स्थित संडे टाइम्स के पत्रकार पीटर हूनम से संपर्क किया और ये सीक्रेट तस्वीरें साझा कीं.
वो लेख, जिसने दुनिया को चौंका दिया
5 अक्तूबर 1986, वनुनु से मिली जानकारी के आधार पर संडे टाइम्स में लेख छपा- 'रीवील्ड: द सीक्रेट्स ऑफ़ इसराइल्स न्यूक्लियर आर्सेनल'. इस एक लेख ने दुनिया में जैसे भूचाल पैदा कर दिया.
'न्यूक्लियर वीपन्स एंड नॉनप्रोलिफिकेशन: अ रेफरेन्स हैंडबुक' के अनुसार, अमरीकी ख़ुफिया एजेंसी सीआईए का अनुमान था कि इसराइल के पास बस 10-15 परमाणु हथियार हैं. लेकिन वनुनु के अनुसार, इसराइल के पास अंडरग्राउंड प्लूटोनियम सेपरेशन सुविधा थी और उसके पास लगभग 150-200 परमाणु हथियार थे.
20वीं सदी चर्चित घटनाओं पर द न्यूयॉर्क टाइम्स की किताब 'पॉलिटिकल सेन्सरशिप' ने लिखा कि बाद में वनुनु ने आरोप लगाया कि उनके खुलासे के कारण इसराइल के तत्कालीन प्रधानमंत्री शिमोन पेरेस अमरीकी राष्ट्रपति रोनल्ड रीगन को झूठ नहीं कह सकते थे कि उनके पास कोई परमाणु हथियार नहीं हैं.
संडे टाइम्स को पूरी जानकारी देने के लिए वनुनु लंदन पहुंचे थे. लेकिन 1986 में लेख छप सके उससे पहले ही उन्हें किसी तरह ब्रिटेन से बाहर निकाल कर गिरफ्तार करने की साजिश रची गई. ये साजिश रची इसराइल की जासूसी एजेंसी मोसाद ने.
किताब 'पॉलिटिकल सेन्सरशिप' के अनुसार, मोसाद ने उन्हें किसी तरह बहला कर लंदन से इटली लाने के लिए एक महिला जासूस को भेजा. उनकी कोशिश थी कि ब्रिटेन में वनुनु के साथ ज़बरदस्ती ना की जाए और वो खुद ही ब्रिटेन से बाहर निकलें ताकि कोई विवाद ना हो.
मोसाद की 'सिंडी' के जाल में फंसे वनुनु
पीटर हूनम अपनी किताब 'द वूमन फ्रॉम मोसाद' में लिखते हैं कि एक दिन (24 सितंबर 1986) लंदन में वनुनु ने एक सड़क पर एक सुंदर लड़की को देखा, जो खोई-खोई दिख रही थी. वनुनु ने उन्हें कॉफ़ी की दावत दी तो वो शरमाते हुए राज़ी हो गई. बातचीत के दौरान उस लड़की ने बताया कि उसका नाम 'सिंडी' है और वो एक अमरीकी ब्यूटिशियन है.
पहली मुलाक़ात में दोनों इतने घुलमिल गए कि वो साथ में घूमने जाने का प्लान बनने लगे थे. पीटर हूनम लिखते हैं कि वनुनु ने बताया था कि 'सिंडी' अपने घर का पता नहीं बताना चाहती थीं लेकिन वनुनु ने उन्हें बता दिया था कि वो द माउंटबेटन होटल के कमरा नंबर 105 में जॉर्ज फॉर्स्टी के फर्जी नाम से ठहरे हैं.
इसके बाद एक तरफ संडे टाइम्स के साथ कहानी पर बातचीत चल रही थी तो दूसरी तरफ 'सिंडी' के साथ वनुनु की मुलाकातें बढ़ रही थीं. यहां तक कि वनुनु कुछ वक्त के लिए ब्रिटेन से बाहर जाने की योजना भी बना रहे थे और आख़िर 30 सितंबर को वो 'सिंडी' के साथ रोम पहुंच गए.
ब्रिटेन से ग़ायब हुए वनुनु इसराइल पहुंचे
पीटर हूनम के अनुसार, वनुनु के ब्रिटेन से ग़ायब होने की ख़बर के करीब तीन सप्ताह बाद न्यूज़वीक ने ख़बर छापी कि वनुनु इसराइल में हैं और वहां उन्हें 15 दिन की कस्टडी में लिया गया है.
न्यूज़वीक के अनुसार वनुनु को 'उनकी एक महिला मित्र' ने एक यॉट में बैठकर इटली में समंदर में जाने के लिए राज़ी किया था. इटली और किसी और देश की समुद्री सीमा से बाहर जाने के बाद उन्हें मोसाद के एजेंटों ने गिरफ्तार कर इसराइल को सौंप दिया था.
1986 दिसंबर में लॉस एजेंलेस टाइम्स ने पूर्वी जर्मनी की समाचार एजेंसी के हवाले से ख़बर दी कि 30 सितंबर को वनुनु को रोम से अगवा किया गया था.
पीटर हूनम लिखते हैं कि वनुनु ये मानने के लिए तैयार ही नहीं थे कि उनकी मित्र 'सिंडी' मोसाद एजेंट थीं. द संडे टाइम्स ने साल भर बाद 1987 में 'सिंडी' की पहचान से संबंधित एक कहानी छापी लेकिन इस पर भी वनुनु ने यकीन करने से इंकार कर दिया था.
हालांकि बाद में उन्होंने माना कि 'सिंडी' मोसाद एजेंट थी और उन्हें फंसाया गया था.
'सिंडी' की असली पहचान क्या थी?
पीटर हूनम के अनुसार 'सिंडी' का असली नाम शेरिल हैनिन बेनटोव है.
साल 2004 में सेंट पीटर्सबर्ग टाइम्स ने लिखा था कि शेरिल हैनन बेनटोव 1978 में इसराइली सेना में शामिल हुई थीं. बाद में वो मोसाद में शमिल हुईं और इसराइल के दूतावासों से जुड़ कर काम करने लगीं.
बताया जाता है कि पीटर हूनम ने इसराइल के शहर नेतन्या में शेरिल को ढूंढ निकाला, जहां वो अपने पति के साथ रह रही थीं. उन्होंने अपने 'सिंडी' होने की ख़बरों से इंकार किया और वहां से चली गईं. लेकिन पीटर ने उसकी कुछ तस्वीरें कैमरे में क़ैद कर ली थीं. इस घटना के बाद शेरिल कई साल तक नज़र नहीं आई थीं.
गोर्डन थोमस अपनी किताब 'गीडोन्स स्पाईस: मोसाद्स सीक्रेट वॉरियर्स' में लिखा है कि 1997 में शेरिल को ऑरलैंडो में देखा गया था. यहां संटे टाइम्स के एक पत्रकार के सवाल करने पर उन्होंने वनुनु को अगवा करने में अपनी भूमिका से इंकार नहीं किया था.
वनुनु को सज़ा और आज़ादी की मुहिम
मौर्डेख़ाई वनुनु को 1988 में इसराइल में 18 साल के जेल की सज़ा सुनाई गई, जिसमें से उन्होंने 13 साल जेल में गुज़ारे. साल 2004 में उन्हें जेल से तो छोड़ा गया लेकन उन पर कई तरह की बंदिशें लगा दी गईं.
लेकिन परमाणु मुक्त दुनिया बनाने में उनके सहयोग की भी जमकर तारीफ हुई. उन्हें बचाने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मुहिम चालू की गई.
वनुनु की आज़ादी के लिए चलाए एक अभियान के अनुसार 21 अप्रैल जेल से छूटने के बाद वनुनु सेंट जॉर्ज कैथेड्रल में रह रहे थे. वहां येरूशलम के एपिस्कोपल बिशप ने उन्हें पनाह दी थी. 11 नवंबर 2004 को लगभग 30 इसराइली सुरक्षाबलों ने उन्हें हिरासत में ले लिया. बाद में उसी रात उन्हें छोड़ गिया गया.
लेकिन इसराइल ने उन पर पबंदिया लगाईं, जो 32 साल बाद आज भी लागू हैं. बीते साल नॉर्वे ने वनुनु को ऑस्लो में रहने के लिए शरण देने की पेशकश की थी. वनुनु की पत्नी ऑस्लो में रहती हैं.
इसराइल का परमाणु कार्यक्रम
इसराइल ने साल 1950 में फ्रांस की मदद से नेगेव में परमाणु संयंत्र बनाया गया था. पूरी दुनिया यही मानती रही कि ये कपड़े का कारखाना है, एग्रीकल्चर सेट्शन है या फिर कोई रिसर्च केंद्र है.
1958 में यू-2 जासूसी हवाई जहाज़ों ने आशंका जताई थी कि इसराइल परमाणु कार्यक्रम पर आगे बढ़ रहा है. 1960 में आख़िर तत्कालीन प्रधांनमंत्री डेविड बेन-गुरियोन ने डिमोना के बारे में कहा कि ये परमाणु रिसर्च केंद्र है जो 'शांतिपूर्ण उद्देश्यों' के तहत बनाया गया है.
इसराइल परमाणु कार्यक्रम पर कितना आगे बढ़ रहा है, इसका पता लगाने के लिए अमरीका से कई अधिकारियों ने इसराइल का दौरा किया. लेकिन यहां क्या हो रहा है, इसकी सही तस्वीर उन्हें नहीं मिली.
1968 में जारी सीआईए की एक रिपोर्ट में कहा गया कि इसराइल ने परमाणु हथियार बनाना शुरू कर दिया है. बाद में वनुनु के खुलासे ने अमरीका समेत कई देशों को झकझोर कर रख दिया.
शिमोन पेरेस ने इसराइल के सीक्रेट परमाणु कार्यक्रम की शुरुआत की थी. बेन्यामिन नेतन्याहू ने साल 2016 में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका के लिए कैबिनेट की एक अहम बैठक में कहा कि नेगेव के परमाणु संयंत्र का नाम बदल कर शिमोन पेरेस के नाम पर किया जाएगा.
तीन धर्मों वाले यरूशलम की आंखोंदेखी हक़ीक़त
फीका पड़ गया है भारत और इसराइल का रोमांस?