छह दिन की लड़ाई में इसराइल के 'हीरो' मोशे दायान जिन्होंने की थी भारत की गुप्त यात्रा
1967 की छह दिन की लड़ाई में इसराइल के 'हीरो' और 1973 की लड़ाई में 'विलेन' रहे मोशे दायान के जन्म की 107वीं सालगिरह 20 मई को है. इस मौक़े पर उनकी कहानी बता रहे हैं रेहान फ़ज़ल
दुनिया की बड़ी से बड़ी चेतावनी किसी भी शहर के लोगों को हवाई हमले से निपटने के लिए तैयार नहीं करती. पहली बार हवाई हमले का जब सायरन बजता है, तो लोगों को सहसा विश्वास नहीं होता.
5 जून, 1967 की सुबह जब इसराइली विमानों ने काहिरा पर हमला किया, तो वहाँ के बाज़ारों की चहल-पहल में कोई कमी नहीं आई. इसके बावजूद कि एक रात पहले ही राष्ट्रपति नासिर ने इसराइल के ख़िलाफ़ मिस्र और जॉर्डन के गठबंधन में इराक़ के शामिल होने का स्वागत करते हुए कहा था, 'हम लड़ाई करने के लिए व्याकुल हैं ताकि इसराइल को उसके सपनों से ज़बरदस्ती जगाया जा सके.'
उधर इसराइल के सबसे बड़े शहर तेलअवीव में भी लोगों की यही प्रतिक्रिया थी. तीन दिन पहले ही एक आँख वाले 'साइनाई के हीरो' मोशे दायान को इसराइल का रक्षा मंत्री बनाया गया था. उन्होंने भी पद सँभालते ही बयान दिया था, 'ये अरब देशों पर हमला करने का सही समय नहीं है.'
जब तेलअवीव में विमानों ने हमले के लिए उड़ान भरनी शुरू की, तो वहाँ के लोगों ने समझा कि ये एक अभ्यास मात्र है. लेकिन ये अभ्यास नहीं था. सुबह किए गए हवाई हमले में इसराइली वायुसेना ने अरब देशों की पूरी की पूरी वायुसेना को बर्बाद कर दिया था. साफ़ रेगिस्तान में बिना एयर कवर के मिस्र के टैंक और तोपें इसराइली विमानों के लिए एक तरह का 'टारगेट प्रैक्टिस' साबित हुए थे.
एक दिन में ही मिस्र की पूरी की पूरी वायुसेना नष्ट हुई
इस हमले में रूस में बने 200 मिग 21 विमान उड़ान भरने से पहले ही विमान पट्टी पर ही ध्वस्त कर दिए गए थे. लगभग उसी समय इसराइली विमानों ने जॉर्डन, सीरिया और इराक़ के हवाई ठिकानों पर भी बम गिराए.
एक दिन के अंदर ही अकेले मिस्र ने अपने 300 विमान खो दिए थे. इसके साथ ही सीरिया के 60, जॉर्डन के 35 और इराक़ के 16 विमान भी मार गिराए गए थे. इसराइल की 400 विमानों की वायुसेना के मात्र 19 विमान नष्ट हुए थे और वो सभी ज़मीन से विमानभेदी तोपों से की गई फ़ायरिंग के शिकार हुए थे.
इसराइल की इस पूरी जीत का श्रेय दिया गया, नए नए रक्षा मंत्री बने मोशे दायान को. जब विपक्ष के नेता मेनाचिम बेगिन ने प्रधानमंत्री एशकोल से कहा था, 'अगर आप मोशे दायान को रक्षा मंत्री बना दें, तो आधे घंटे के अंदर सारा देश आपके पीछे खड़ा हो जाएगा.'
एशकोल ने दायान को न पसंद करते हुए भी बेगिन की ये सलाह मान ली थी और 1 जून, 1967 को उन्होंने दायान को अपने मंत्रिमंडल में रक्षा मंत्री नियुक्त कर दिया था.
अनुशासन और समय के पाबंद
मोशे दायान की जीवनी में शबताई टेवेथ लिखते हैं, 'उन्होंने सैन्य अधिकारियों से मिलने के लिए शाम 7 बजे का समय निर्धारित किया था. लेकिन कुछ सैन्य अधिकारी उस समय तक बैठक के लिए नहीं पहुंच पाए थे.
जब उनसे कहा गया कि मीटिंग के लिए अभी और समय लगेगा, क्योंकि कुछ लोग पहुंच नहीं पाए हैं तो मोशे दायान ने जवाब दिया था, आपने मुझे 7 बजे आने के लिए कहा था. इसलिए मैं बैठक इसी समय शुरू करूँगा. लेकिन मैं पहले आपके प्लान देखना चाहूँगा. अगर वो आपके पास हो तो मुझे दिखाइए. इसके बाद मैं अपना प्लान आपको बताउंगा.'
अपनी सेना से वो इस हद तक अपना आदेश मानने की उम्मीद रखते थे कि एक बार जब उनके आदेश के ख़िलाफ़ उनके सैनिकों की एक एक ब्रिगेड पूर्व में क़रीब क़रीब ज़ॉर्डन नदी तक बढ़ गई, तो उन्होंने उसे वापस आने का आदेश दिया. ये सुनिश्चित करने के लिए कि उनके सैनिक जॉर्डन में न घुसें, उन्होंने नदी पर बने पुल को विस्फोट से उड़ा देने का आदेश दिया.
छह दिनों की लड़ाई ख़त्म होने के अगले छह सालों तक मोशे दायान इसराइल के बादशाह की तरह रहे. उनको इसराइल के लोगों ने सिर माथे बैठाया और हमेशा ये माना गया कि एक दिन वो इसराइल के प्रधानमंत्री बनेंगे.
आँख में लगी गोली
20 मई, 1915 को जन्मे मोशे दायान ने अपने करियर की शुरुआत भूमिगत यहूदी आंदोलन 'हगानाह' का सदस्य बन कर की थी. बाद में उन्होंने सीरिया में आस्ट्रेलिया की तरफ़ से विची फ़्रेंच के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ी थी.
8 जून, 1941 को सुबह 7 बजे मोशे छत पर मारे गए एक फ़्रेंच सैनिक की दूरबीन से सामने का जायज़ा ले रहे थे कि दूर से चलाई गई गोली उनकी बाईं आँख में लगी. दूरबीन के शीशे और लोहे के टुकड़े उनकी आँख में जा घुसे. उनके साथी मार्ट ने उनके चेहरे और आँख पर पट्टी लगाई और उन्हें एक ट्रक पर बैठाकर अस्पताल ले गए.
शबताई टेवेश अपनी किताब 'मोशे दायान: द सोलजर, द मैन, द लीजेंड' में लिखते हैं, 'इस दौरान मोशे दायान ने तो कोई आह भरी और न ही वो चिल्लाए, रोए या कोई आवाज़ निकाली. अस्पताल पहुंचते ही उन्हें ऑपरेशन थियेटर में ले जाया गया, लेकिन उनकी चोट इतनी गंभीर थी कि सर्जन कुछ भी न कर सके. उनके लिए यही चारा बचा कि वो आँख से सारा शीशा और लोहे के टुकड़े निकाल कर ख़ाली आई सॉकेट को बंद कर दें.'
वर्ष 1957 में दक्षिण अफ़्रीका के मशहूर प्लास्टिक सर्जन डॉक्टर जैक पेन ने उनकी नष्ट हुई आँख की जगह शीशे की एक आँख लगाने की कोशिश की, लेकिन उनका ये प्रयास सफल नहीं हो सका. तब से मोशे दायान ने अपनी बाईं आँख में काले रंग का पैच पहनना शुरू किया, जो सारी ज़िंदगी उनका ट्रेड मार्क बना रहा.
इसे लेकर उन्हें हमेशा एक तरह का कॉम्प्लेक्स रहा. जब भी उनसे इस बारे में सवाल पूछा जाता, वो असहज हो जाते. वर्ष 2005 में उनकी मौत के 24 साल बाद उनके आई पैच को 75,000 डॉलर में नीलाम किया गया.
कृषि और रक्षा मंत्री की ज़िम्मेदारी
आँख में चोट लगने के कुछ सालों बाद मोशे दायान ने फिर वापसी की और वो 1948 में हगानाह कमांडोज़ के प्रमुख बन गए. उसी साल अरबों के ख़िलाफ़ लड़ाई में उन्हें येरूसलम फ़्रंट का कमांडर बनाया गया. वर्ष 1953 में वो इसराइली सेना के प्रमुख बने. 1956 में उन्होंने अरब देशों के ख़िलाफ़ इसराइल को जीत दिलाई.
एक साल बाद उन्होंने सेना से अवकाश ग्रहण कर राजनीति में प्रवेश किया. वो बेन गुरियों मंत्रिमंडल में कृषि मंत्री बने और वहाँ भी उन्होंने उतना ही नाम कमाया, जितना कि युद्ध के मैदान में.
'टाइम' पत्रिका ने अपने 16 जून, 1967 के अंक में लिखा, 'जब मोशे दायान रक्षा मंत्री बने तो उनकी एक ही शिक़ायत थी कि उन्हें अपने सैनिकों के साथ न रह कर अपना अधिकतर समय मेज़ के पीछे बिताना पड़ा रहा है.'
मोशे दायान का पूरा जीवन अंतर्विरोधों से भरा पड़ा था. दायान का कई बार इंटरव्यू ले चुके माइकल हैडो ने लिखा था, 'उन्हें सिर्फ़ तर्कों के लिए किसी भी विचार को ध्वस्त करने में मज़ा आता था. अक्सर वो उसी विचार की आलोचना करते देखे जाते थे, जिसकी एक दिन पहले उन्होंने तारीफ़ की थी. इसराइली होते हुए भी अरबों के लिए उनके मन में बहुत सम्मान था. उनमें वो लोग भी शामिल थे, जिन्होंने 30 के दशक में उनके गाँव नहालल पर हमला किया था और उन्होंने उनकी बुरी तरह से पिटाई की थी.'
मोशे बहुत अच्छी अरबी बोलना जानते थे और मिस्र के नेताओं से अरबी में ही बात करते थे.
दिलफेंक इंसान
माइकल बी ओरेन अपनी किताब 'सिक्स डेज़ ऑफ़ वॉर: जून 1967 एंड मेकिंग ऑफ़ द मॉडर्न मिडिल ईस्ट' में लिखते हैं, 'एक कवि और बच्चों की कहानियाँ लिखने वाले मोशे दायान ने सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया था कि उन्हें बच्चे पैदा करने का दुख है. वो अपनी बेवफ़ाई के लिए भी पूरे इसराइल में कुख्यात थे. उन्होंने एक बार कहा था कि अगर उन्हें एक जीवन और मिले तो वो अविवाहित रहना पसंद करेंगे.'
वर्ष 1971 में उनकी पहली पत्नी रूथ दायान ने मोशे के विवाहेत्तर संबंधों के चलते उन्हें तलाक दे दिया था. तलाक के दो साल बाद उन्होंने एक तलाकशुदा महिला रशेल करेम से शादी कर ली. इस शादी में न तो मोशे के बच्चे और न ही पूर्व पति से हुए रशेल के बच्चे शामिल हुए.
विरोधाभास भरा व्यक्तित्व
उनके बारे में लोगों के विचारों में काफ़ी असमानता थी. उनके कुछ प्रशंसक जैसे मीर अमित उन्हें 'असली, साहसी, मौलिक और ध्यान केंद्रित करने वाला एक ऐसा कमांडर बताते थे, जिनके रोम रोम से रोब टपकता था,' जबकि गिडियॉन राफ़ेल जैसे आलोचक उनका दूसरा ही रूप देखते थे.
उनकी नज़र में 'नाव को हिलाना उनका प्रिय शगल था. वो नाव को पूरी तरह से पलटते नहीं थे, लेकिन इतनी ज़ोर से हिलाते थे कि कुछ अवांछित लोग छिटक कर नीचे जा गिरें.'
इसराइल के प्रधानमंत्री रहे लेवाई एशकोल की पत्नी मिरियम एशकोल निजी तौर पर उनकी तुलना एक अरब डाकू अबू जिल्दी से करती थीं, जिसकी भी एक आँख नहीं थी.
दायान मात्र 38 साल की उम्र में इसराइल के सेना प्रमुख बन गए थे. उन्होंने बदले की ऐसी नीति अपनाई, जिसका पूरी दुनिया में विऱोध हुआ लेकिन इसने अपने देश में उन्हें बहुत लोकप्रिय बना दिया.
गिडियॉन रफ़ेल अपनी किताब 'डेस्टिनेशन पीस: थ्री डिकेड्स ऑफ़ इसराइली फॉरेन पॉलिसी' में लिखते हैं, 'मोशे दायान एकल प्रदर्शन में यकीन रखते थे. कुछ लोग उनका सम्मान करते थे, लेकिन कुछ लोग उनके कथित राजनीतिक स्टंट की वजह से उनसे डरते भी थे.'
दूसरी तरफ़ इसराइल की पैराट्रूप बटालियन के उप कमांडर गडालिया गाल का मानना था, 'दायान की नियुक्ति ताज़ी हवा के झोंके की तरह थी. वो परिवर्तन के प्रतीक थे.'
यौम किप्पूर लड़ाई में बने विलेन
मोशे दायान को लोगों का साथ पसंद नहीं था, खासतौर से राजनीतिज्ञों का. शबताई टेवेथ लिखते हैं, 'दायान के साथी जानते थे कि वो 15 से 20 मिनट तक ही उनका साथ बर्दाश्त कर पाते थे. अगर वो अपनी कुर्सी में कसमसाना शुरू कर दें, तो इसका मतलब ये होता था कि उनका मिलने का समय अब समाप्त हो गया है. अगर कोई ये संकेत पढ़ने में नाकामयाब रहता था, तो कुछ मिनटों बाद दायान ख़ुद खड़े हो कर उनसे विदा ले लेते थे. वो अपनी इस हरक़त को ये कह कर सही ठहराते थे कि उनकी प्रधानमंत्री बनने में कोई रुचि नहीं है.'
मोशे दायान के इसराइल का सर्वोच्च पद न पाने की वजह थी टीम के सदस्य के रूप में काम न कर पाने की उनकी अनिच्छा या अक्षमता. लेकिन 1973 की यौम किप्पूर लड़ाई मे इसराइली सैनिकों की कम तैयारी का ठीकरा भी उनके सिर पर फोड़ा गया. उन्होंने अरब देशों पर पहले हमला न करने का कारण ये बताया कि वो नहीं चाहते थे कि दुनिया उनके देश को हमलावर समझे. लड़ाई के तुरंत बाद उन्होंने इसराइली लोगों के एक बड़े हिस्से का विश्वास खो दिया था.
मोरारजी देसाई से दिल्ली में गुप्त मुलाकात
लेकिन इसके बावजूद वो मेनाचिम बेगिन के मंत्रिमंडल में विदेश मंत्री बने. मिस्र के साथ शांति समझौता करवाने में उनकी बड़ी भूमिका रही, लेकिन इसके बाद उन्होंने फ़लस्तीनी अरबों के पश्चिमी किनारे पर बसाए जाने के मुद्दे पर बेगिन से मतभेद होने पर अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया.
विदेश मंत्री रहते हुए वो 1977 में गुप्त रूप से भारत के दौरे पर आए, जहाँ उन्होंने प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई और विदेश मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से एक घंटे की मुलाक़ात की. मोरारजी देसाई की सरकार इसराइल के साथ कूटनीतिक संबंध स्थापित करने की इच्छुक तो थी, लेकिन वो अरब देशों को भी नाराज़ नहीं करना चाहती थी.
मोशे दायान ने भी भारत के साथ राजनीतिक संबंध स्थापित करने की इच्छा दिखाई. मोरारजी देसाई ने इसके लिए क़ब्ज़ा किए हुए अरब क्षेत्रों को ख़ाली करने और फ़लस्तीनी लोगों को बसाए जाने की इसराइली नीति में परिवर्तन की शर्त रखी, जिसे दायान ने ये कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि इससे इसराइल की सुरक्षा को ख़तरा होगा.
मोरारजी देसाई ने भारत से राजनीतिक संबंध स्थापित करने और इसराइल की यात्रा करने के प्रस्ताव को भी ठुकरा दिया. बाद में विकीलीक्स द्वारा जारी अमेरिकी दूतावास के केबिल में कहा गया कि मिस्र के राष्ट्रपति अनवर सादात ने देसाई से मध्य पूर्व शांति प्रक्रिया में भारत के प्रभाव का इस्तेमाल करने का अनुरोध किया था.
इसी क्रम में देसाई ने मोशे दायान से मिलने की इच्छा प्रकट की थी. लेकिन बातचीत का सिलसिला आगे नहीं चल सका और दो सालों के अंदर ही मोरारजी सरकार गिर गई. उधर मोशे दायान ने भी विदेश मंत्री के पद से इस्तीफ़ा दे दिया.
दिल का दौरा पड़ने से मौत
जून, 1979 में मोशे दायान को कोलोन और आँतों में कैंसर का पता चला. कुछ लोगों ने ये भी नोट किया कि उनकी दूसरी आँख की रोशनी भी कम होती जा रही है. दायान ताउम्र गंभीर बीमारियों से झूझते रहे. उनके गले और हर्निया का ऑपरेशन भी किया गया. उनको हमेशा कम सुनने की शिक़ायत भी रही.
16 अक्तूबर, 1981 को 66 साल की उम्र में दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया. वो सारी उम्र इसराइली लोगों के 'हीरो' ज़रूर रहे, लेकिन उनका राजनीतिक जीवन एकाकी था.
मशहूर इसराइली लेखक अमोस एलन की नज़र में वो एक 'उदास, एकाकी और बला के प्रतिभा संपन्न शख़्स थे. साथ ही वो बेहद चालाक, महत्वाकांक्षी और ग्लैमरस भी थे, जिन्हें लोग पसंद भी करते थे और नफ़रत भी. मोशे दायान हमेशा 100 नए विचारों के साथ जागते थे. उनमें से 98 बहुत ख़तरनाक होते थे, लेकिन दो विचार ऐसे होते थे जिनका कोई सानी नहीं होता था.'
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