सीरिया से वाक़ई आईएसआईएस का अंत हो चुका है?
पांच साल पहले तक इस्लामिक स्टेट का पश्चिमी सीरिया से लेकर पूर्वी इराक़ के 88,000 वर्ग किलोमीटर इलाक़े पर क़ब्ज़ा था. आज ये आंकड़ा सिमटकर लगभग 300 लड़ाकों और सिर्फ़ 0.5 वर्ग किलोमीटर तक रह गया है.
बाग़ूज़ गांव से लोगों को निकाला जाना और सेना का अंतिम लड़ाई के लिए तैयार होना अपने आप में बेहद महत्वपूर्ण है. लेकिन विशेषज्ञों की मानें तो इसे इस्लामिक स्टेट समूह का ख़ात्मा मानने की ग़लती नहीं की जानी चाहिए.
सीरिया के उस आख़िरी गांव से लोगों को सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया है जहां ख़ुद को इस्लामिक स्टेट कहने वाले चरमपंथी संगठन का क़ब्ज़ा है.
बुधवार को एक क़ाफ़िले ने इराक़ की सीमा के पास स्थित सीरिया के बाग़ूज़ गांव से सैकड़ों पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को बाहर निकाला.
अमरीका समर्थित सीरियन डेमोक्रेटिक फ़ोर्सेज़ (एसडीएफ़) समूह ने कहा है कि वो इस्लामिक स्टेट के लड़ाकों के ख़िलाफ़ ऑपरेशन लॉन्च करने से पहले गांव से सभी लोगों को बाहर निकाले जाने का इंतज़ार कर रहा है.
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एसडीएफ़ ने कहा कि वो इसकी पुष्टि नहीं कर सकता कि गांव से बाहर निकाले गए लोगों में कोई चरमपंथी था या नहीं. एसडीएफ़ के प्रवक्ता मुस्तफ़ा बाली के मुताबिक़ गांव से बाहर ले आए गए लोगों को एक 'स्क्रीनिंग पॉइंट' पर ले जाया जाएगा.
हालांकि मीडिया रिपोर्ट्स में इस बात को लेकर मतभेद है कि एसडीएफ़ आईएस लड़ाकों के गढ़ का सफ़ाया करने के असल में कितने क़रीब है.
अमरीका समर्थित एसडीएफ़ सीरिया में इस्लामिक स्टेट का मुक़ाबला कर रहा है. इसका कहना है कि आईएस के सबसे ख़तरनाक लड़ाके बाग़ूज़ गांव में ही हैं.
एसडीएफ़ ने कहा है कि वो इस पुष्टि के इंतज़ार में हैं कि बाग़ूज गांव के सभी लोगों को सुरक्षित बाहर निकाला जा चुका है. समूह का कहना है कि सबको निकाले जाने की पुष्टि हो जाने के बाद ही वो गांव में आईएस के ठिकानों को निशाना बनाना शुरू करेंगे.
समूह के प्रवक्ता मुस्तफ़ा बाली ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स से कहा, "हमारी सेना के सामने शुरू से सिर्फ़ दो विकल्प रहे हैं-या तो आईएस के लड़ाकों से बिना शर्त के समर्पण करवाना या फिर उनके ख़ात्मे तक युद्ध जारी रखना."
वहीं, एक निगरानी समूह का मानना है कि ऐसा भी हो सकता है कि एसडीएफ़ के साथ हुए समझौते के बाद आईएस के लड़ाके अपने ठिकाने छोड़कर चले गए हों.
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पत्रकारों ने देखीं 15 गाड़ियां
समाचार एजेंसी रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार बुधवार को 2,000 लोगों ने गांव ख़ाली कर दिया है. इससे एक दिन पहले उन्हें बाहर निकालने के लिए 50 ट्रक गांव से लगी इराक़ की सीमा पर पहुंचे थे.
संयुक्त राष्ट्र ने गांव में फंसे 200 परिवारों के लिए चिंता ज़ाहिर की थी जिसके बाद गांव ख़ाली कराने के लिए ये गाड़ियां भेजी गई थीं.
संयुक्त राष्ट्र में मानवाधिकार प्रमुख मिशेल बैचेलेट ने कहा कि इन परिवारों को आईएस द्वारा गांव ख़ाली करने से रोका जा रहा था और वो अमरीका समर्थित सेना की तरफ़ से लगातार होने वाली बमबारी का शिकार हो रहे थे.
पत्रकारों ने बुधवार को कम से कम 15 गाड़ियों को गांव से निकलते हुए देखा.
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भागने वालों में आईएस लड़ाकों के बीवी-बच्चे भी शामिल
हालांकि अभी ये ठीक से नहीं पता है कि बाग़ूज़ गांव में अब कितने लोग फंसे हुए हैं. हालिया हफ़्तों में तक़रीबन 20,000 लोग इस इलाक़े से जान बचाकर भागे हैं. इन लोगों को एसडीएफ़ द्वारा अल-होल के एक कैंप में ले जाया गया है.
जान बचाकर भागे इन 20,000 लोगों में आईएस लड़ाकों की पत्नियां, बच्चे और कई विदेशी नागरिकों समेत ब्रिटेन की शमीमा बेगम भी शामिल हैं. शमीमा 15 साल की उम्र में आईएस में शामिल होने के लिए घर से भाग गई थीं.
शमीमा ने हाल ही में एक बच्चे को जन्म दिया है और अब वो वापस ब्रिटेन लौटना चाहती हैं. हालांकि ब्रिटेन सरकार उनकी ब्रितानी नागरिकता ख़त्म कर दिया है, जिसे शमीमा ने 'अन्यायपूर्ण' बताया है.
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क्या ये इस्लामिक स्टेट का अंत है?
पांच साल पहले तक इस्लामिक स्टेट का पश्चिमी सीरिया से लेकर पूर्वी इराक़ के 88,000 वर्ग किलोमीटर इलाक़े पर क़ब्ज़ा था. आज ये आंकड़ा सिमटकर लगभग 300 लड़ाकों और सिर्फ़ 0.5 वर्ग किलोमीटर तक रह गया है.
बाग़ूज़ गांव से लोगों को निकाला जाना और सेना का अंतिम लड़ाई के लिए तैयार होना अपने आप में बेहद महत्वपूर्ण है. लेकिन विशेषज्ञों की मानें तो इसे इस्लामिक स्टेट समूह का ख़ात्मा मानने की ग़लती नहीं की जानी चाहिए.
जानकारों ने चेतावनी दी है कि इस्लामिक स्टेट की विचारधारा अब भी ज़िंदा है. अगर सीरिया में मौजूद आईएस के सभी लड़ाकों को हरा भी दिया जाता है तो भी इससे जुड़े तमाम समूहों के सदस्य दुनिया भर में फैले हुए हैं.
विशेषज्ञों ने चेताया है कि इस्लामिक स्टेट से प्रेरित लोग और समूह उनके गढ़ के ख़ात्मे के बाद भी दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में हमले जारी रखेंगे.