अबू धाबी में बनने जा रहा मंदिर क्या वाक़ई हिन्दू मंदिर है?
प्रधानमंत्री मोदी ने रविवार को अबू धाबी में किया था मंदिर का शिलान्यास, जिसे आबू धाबी का पहला हिंदू मंदिर बताया गया.
संयुक्त अरब अमीरात की राजधानी अबू धाबी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक मंदिर का शिलान्यास किया है. यह मंदिर स्वामिनारायण संप्रदाय के बीएपीएस सेक्ट का है. बाप्स सेक्ट में पाटीदारों का वर्चस्व रहा है. दिल्ली का अक्षरधाम मंदिर भी इसी संप्रदाय का है. स्वामिनारायण संप्रदाय के विदेशों में दर्जनों मंदिर है.
पीएम मोदी ने अबू धाबी में इस मंदिर का शिलान्यास किया तो मीडिया ने इसे अबू धाबी का पहला हिन्दू मंदिर कहा. क्या इसे हिन्दू मंदिर कहा जाना उचित है?
गुजरात यूनिवर्सिटी में सोशल साइंस के प्रोफ़ेसर गौरांग जानी कहते हैं, ''मेरे हिसाब से इसे हिंदू मंदिर कहना उचित नहीं होगा. स्वामिनारायण के लोग भी हिन्दू ही हैं पर सवाल यह है कि जिसको हम हिन्दू बोलते हैं उसके प्रतीक क्या हैं, उसके संदेश क्या हैं. स्वामीनारायण गुजरात का एक प्रादेशिक संप्रदाय है. ये हमेशा अपने संप्रदाय की आभा और गौरव के साथ रहा है. इसी आभा की छाया में ये संप्रदाय अपना काम करता है.''
''इसको हिन्दू धर्म से जोड़ना पहली नज़र में तो ठीक लगता है, लेकिन गौर से देखें तो साफ़ पता चलता है कि स्वामिनारायण संप्रदाय में उनके संत ही सर्वोपरि हैं. स्वामिनारायण संप्रदाय का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जो विकास हुआ है उसकी मुख्य वजह एनआरआई गुजराती हैं. इस संप्रदाय का राजनीति से सीधा संबंध रहा है. प्रधानमंत्री मोदी कुछ महीने पहले ही प्रमुख स्वामी के निधन पर दिल्ली से गुजरात श्रद्धांजलि देने पहुंचे थे.''
''देश की हर राजनीतिक पार्टी को यह संप्रदाय रास आता है क्योंकि इनके पास पैसे ख़ूब हैं. हिन्दू धर्म में जितनी विविधता है और जो परंपरा है वो यहां किसी भी रूप में प्रतिबिंबित नहीं होती है. इस संप्रदाय को हम सीधे हिन्दू धर्म से नहीं जोड़ सकते हैं.''
किसका प्रतिनिधित्व करता है स्वामिनारायण संप्रदाय?
विदेशों में स्वामिनारायण संप्रदाय अपने संप्रदाय का प्रतिनिधित्व कर रहा है या हिन्दू धर्म का? गौरांग जानी कहते हैं, ''यह बिल्कुल क्षेत्रीय संप्रदाय की आभा के साथ है न कि हिन्दू धर्म की विविधता और उसकी परंपरा के साथ.''
''अभी जो हिन्दुस्तान की राजनीति है उसमें राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रभाव हासिल करने के लिए तो उसमें ऐसे ही संप्रदायों का सहारा लिया जाता है.''
''गुजरात के भीतर ही ऐसे कई संप्रदाय हैं, लेकिन उनके पास पैसे नहीं हैं इसलिए किसी राजनीतिक पार्टी से कोई क़रीबी नहीं है. मुझे लगता है कि स्वामिनारायण मंदिर एक ख़ास संप्रदाय का मंदिर है या हिंदू मंदिर - इस पर बहस करने की ज़रूरत है.''
गौरांग जानी कहते हैं, ''स्वामिनारायण संप्रदाय के लोगों ने पिछले कुछ दशकों में ख़ुद को ही ईश्वर बना लिया है. ख़ुद को ही ईश्वर बना लेने की प्रवृत्ति हिन्दू धर्म की किस परंपरा में फिट बैठती है इस पर बहस करने की ज़रूरत है.''
''जब हम स्वामिनारायण मंदिर में जाते हैं तो वहां हिन्दू देवी-देवताओं की भी मूर्तियां होती हैं, लेकिन इनके जो विचार और तौर-तरीक़े हैं वो हिन्दू परंपरा से अलग हैं. स्वामिनारायण संप्रदाय के जो नियम हैं उनमें तो कई जातियां शामिल ही नहीं हो पाएंगी.''
भारतीय जनता पार्टी के स्वामिनारायण संप्रदाय से मधुर संबंध है और अबू धाबी में मंदिर को इस रूप में प्रचारित करना उसी का हिस्सा है.''
दिल्ली में अक्षरधाम मंदिर स्वामीनारायण का ही है. इस मंदिर के पीआरओ जेएम दवे का कहना है कि स्वामिनारायण संप्रदाय हिन्दू धर्म का ही हिस्सा है, लेकिन स्वामिनारायण मंदिर में हिन्दू धर्म के देवी-देवताओं की मूर्तियां सहजानंद स्वामी के मुक़ाबले छोटी क्यों होती है?
इसके उत्तर में जेएम दवे कहते हैं, ''हमारा अलग संप्रदाय है और इसमें हमारे जो इष्ट देव हैं वो स्वामिनारायण हैं. इसीलिए वो मध्य में होते हैं. बहुत से मंदिरों कई देवी-देवताओं की मूर्तियां आकार में छोटी होती हैं, लेकिन जिसका मंदिर होता है उसकी मूर्ति मध्य में और बड़ी होती है. हर संप्रदाय के अपने इष्ट होते हैं और हमारे इष्ट स्वामिनारायण हैं.''
विदेशों में स्वामिनारायण के मंदिर
स्वामिनारायण संप्रदाय भले गुजरात में प्रभावी है, लेकिन इसका संबंध उत्तर प्रदेश से भी है. उत्तर प्रदेश में छप्पैया के घनश्याम पांडे ने स्वामिनारायण संप्रदाय की ऐसी दुनिया रची कि साल 2000 तक केवल अमरीका में स्वामिनारायण के 30 मंदिर हो गए. अमरीका के साथ दक्षिण अफ़्रीका, पूर्वी अफ़्रीका और ब्रिटेन में भी स्वामिनारायण के कई मंदिर हैं.
अहमदाबाद के वरिष्ठ गांधीवादी राजनीतिक विश्लेषक प्रकाश शाह कटाक्ष करते हुए कहते हैं, ''6 दिसंबर 1992 के पहले भी गुजरात का अयोध्या कनेक्शन था और इसके लिए हमें घनश्याम पांडे का शुक्रगुज़ार होना चाहिए. घनश्याम पांडे द्वारका आए थे. यहां आने के बाद सहजानंद स्वामी बने और आगे चलकर स्वामिनारायण बन गए. उन्हें श्रीजी महाराज भी कहते थे.''
ऐसा नहीं है कि खाड़ी के देशों में हिन्दू मंदिर नहीं है. क़तर, कुवैत और दुबई में पहले से ही हिन्दू मंदिर मौजूद हैं. हालांकि जब ये मंदिर बने थे तो उस रूप में प्रचार प्रसार नहीं किया गया था. इन मंदिरों के बनाने में वहां रह रहे हैं हिन्दुओं का बड़ा योगदान रहा है.
खाड़ी के देशों में भारत के राजदूत रहे तलमीज़ अहमद कहते हैं, ''अरब देशों की बात करें तो कुवैत, बहरीन, कतर, दुबई, शारजाह और ओमान में पहले से ही मंदिर हैं, सिर्फ अबू धाबी में नहीं था, क्योंकि वहां ज़्यादा भारतीय आबादी नहीं थी. सिर्फ़ सऊदी अरब ऐसा देश है जहां कोई हिंदू मंदिर नहीं है क्योंकि वहां ग़ैर मुस्लिम के लिए प्रार्थना की जगह ही नहीं है.''
अहमद कहते हैं, ''अरब देशों में तो बहुत सालों से मंदिर बनते आ रहे हैं. इस इलाक़े में भारतीय समुदाय के लोग एक हज़ार साल से रह रहे हैं. अगर ओमान को ही देखें तो वहां पुरातत्वविदों को मस्कट के पास हड़प्पा के ज़माने के ऐसे साक्ष्य मिले हैं जिसमें भारतीय और अरबों के पुराने ताल्लुकात देखने को मिलते हैं. वहीं कुवैत में भी काफ़ी पुराने मंदिर थे, कुवैत से 250 साल पुरानी मूर्ति ओमान के लिए लाई गई थी.''
तलमीज़ अहमद आगे कहते हैं, ''अरब देशों में भारतीयों की आबादी 1970 के बाद ही बढ़ी है. आज़ादी के बाद भी कई मंदिर अरब देशों में बने. दुबई और शारजाह में आज़ादी के बाद ही मंदिर बने. इन मंदिरों को बनाने में वहां रहने वाले भारतीय समुदाय के लोग ही क़दम उठाते हैं इसमें सरकारों का हाथ नहीं होता.''
''गल्फ़ में जितने भी मंदिर बने हैं वे वहां के समुदायों के प्रयासों से ही बने हैं. कई सालों तक इन देशों में भारतीय दूतावास तक नहीं था, लेकिन फिर भी वहां मंदिर बन रहे थे. अरब देशों में हिंदू धर्म को काफ़ी इज्ज़त से देखा जाता है. इस्लाम के आने से क़रीब 2 हज़ार साल पहले हिंदू और अरबियों का रिश्ता रहा है.''