मुस्लिम देशों के संगठन OIC में कश्मीर का ज़िक्र क्या पाकिस्तान की जीत है?
पाकिस्तान ओआईसी के विदेश मंत्रियों की बैठक में पास किए गए प्रस्ताव में कश्मीर के ज़िक्र भर से ख़ुश है. इस प्रस्ताव को नियामे डेक्लरेशन कहा जा रहा है और पाकिस्तान ने इसका स्वागत किया है.
भारत ने इस्लामिक देशों के संगठन ऑर्गेनाइजेशन ऑफ़ इस्लामिक कोऑपरेशन यानी ओआईसी के सदस्य देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक में पास किए गए प्रस्ताव को ख़ारिज कर दिया है. इस प्रस्ताव में कश्मीर का भी ज़िक्र किया गया है.
भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा कि ओआईसी में पास किए गए प्रस्ताव में भारत का संदर्भ तथ्यात्मक रूप से ग़लत, अकारण और अनुचित है.
नाइजर की राजधानी में नियामे में 27 और 28 नवंबर को ओआईसी के काउंसिल ऑफ फॉरन मिनिस्टर्स यानी सीएफ़एम की बैठक थी और इसी बैठक में जो प्रस्ताव पास किया गया है उसमें कश्मीर का भी ज़िक्र है.
पाकिस्तान भी ओआईसी का सदस्य है. इस बैठक में पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद क़ुरैशी शामिल हुए और उन्होंने कश्मीर का मुद्दा ज़ोर-शोर से उठाया था.
पाकिस्तान ओआईसी के विदेश मंत्रियों की बैठक में पास किए गए प्रस्ताव में कश्मीर के ज़िक्र भर से ख़ुश है. इस प्रस्ताव को नियामे डेक्लरेशन कहा जा रहा है और पाकिस्तान ने इसका स्वागत किया है.
भारत ने पिछले साल पाँच अगस्त को कश्मीर का विशेष दर्जा ख़त्म कर दिया था. तब से पाकिस्तान अंतराराष्ट्रीय मंच पर इस मुद्दे को उठा रहा है लेकिन अब तक कोई ठोस सफलता नहीं मिली है. ओआईसी भी इसे लेकर अब तक बहुत सक्रिय नहीं रहा है.
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ओआईसी के सीएफ़एम में पास किए गए प्रस्ताव को लेकर भारत के विदेश मंत्रालय ने अपने बयान ने कहा है, ''हम नाइजर की राजधानी नियामे में ओआईसी के 47वें सीएफ़एम में तथ्यात्मक रूप से ग़लत, अनुचित और अकारण रूप से पास किए गए प्रस्ताव में भारत के ज़िक्र को ख़ारिज करते हैं. हमने हमेशा से कहा है कि ओआईसी को भारत के आंतरिक मामलों पर बोलने का कोई हक़ नहीं है. जम्मू-कश्मीर भी भारत का अभिन्न अंग है और ओआईसी को इस पर बोलने का कोई अधिकार नहीं है.''
भारत ने अपने बयान में कहा है, ''यह खेदजनक है कि ओआईसी किसी एक देश को अपने मंच का दुरुपयोग करने की अनुमति दे रहा है. जिस देश को ओआईसी ऐसा करने दे रहा है, उसका धार्मिक सहिष्णुता, अतिवाद और अल्पसंख्यकों के साथ नाइंसाफ़ी का घिनौना रिकॉर्ड है. वो देश हमेशा भारत विरोधी प्रॉपेगैंडा में लगा रहा है. हम ओआईसी को गंभीरता से सलाह दे रहे हैं कि वो भविष्य में भारत को लेकर ऐसी बात कहने से बचे.''
नियामे में ओआईसी के सदस्य देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक में पास किए गए प्रस्ताव में कश्मीर को भी शामिल किया गया है.
Today, in my address to the #OIC47CFMNiamey, I spoke of the pressing issues confronting the Muslim Ummah including rising Islamophobia & the deteriorating humanitarian situation in #IIOJK and #Palestine. pic.twitter.com/sz9kq09pkL
— Shah Mahmood Qureshi (@SMQureshiPTI) November 27, 2020
हालांकि कश्मीर ओआईसी के सीएफ़म के एजेंडे में शामिल नहीं था. कहा जा रहा है कि पाकिस्तान की ज़िद के कारण इसमें महज़ शामिल किया गया है. प्रस्ताव में कहा गया है कि कश्मीर विवाद पर ओआईसी का रुख़ हमेशा से यही रहा है कि इसका शांतिपूर्ण समाधान संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव के अनुसार होना चाहिए.
हालांकि ये बात भी कही जा रही है कि ओआईसी के प्रस्ताव में कश्मीर का ज़िक्र रस्मअदायगी भर है और ये भारत के लिए हैरान करने वाला नहीं है. पाकिस्तान के भारी दबाव के बावजूद इस बैठक में कश्मीर को एक अलग एजेंडे के तौर पर शामिल नहीं किया गया.
ओआईसी में सऊदी अरब और यूएई का दबदबा है. पाकिस्तान के इन दोनों देशों से रिश्ते ख़राब चल रहे हैं. सऊदी अरब चाहता है कि पाकिस्तान उसके क़र्ज़ों का भुगतान जल्दी करे. ख़ास करके तब से जब पाकिस्तानी पीएम इमरान ख़ान ने ओआईसी के समानांतर तुर्की, ईरान और मलेशिया के साथ मिलकर एक संगठन खड़ा करने की कोशिश की थी. पिछले हफ़्ते यूएई ने पाकिस्तानी नागिरकों के लिए नया वीज़ा जारी करने पर अस्थायी रूप से प्रतिबंध लगा दिया था.
पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद क़ुरैशी ने इस मुद्दे को भी ओआईसी की बैठक में अलग से यूएई के विदेश मंत्री के सामने उठाया लेकिन अभी तक कोई ठोस आश्वासन नहीं मिला है.
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पिछले साल मार्च महीने में अबू धाबी में यह बैठक हुई थी. इस बैठक भारत की तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को भी यूएई ने बुलाया था.
पाकिस्तान ने सुषमा स्वराज के बुलाए जाने का विरोध किया था और उसने उद्घाटन समारोह का बहिष्कार किया था. सुषमा स्वराज ने तब ओआईसी के सीएफएम की बैठक को संबोधित किया था.
इस बैठक में जो प्रस्ताव पास किया गया था उसमें कश्मीर का कोई ज़िक्र नहीं था. इसमें पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान ख़ान के उस फ़ैसले का स्वागत किया गया था जिसमें उन्होंने भारत के विंग कमांडर अभिनंदन को वापस भेजा था.
ओआईसी के विदेश मंत्रियों की बैठक के बाद आने वाले प्रस्ताव में कश्मीर का ज़िक्र कोई नई बात नहीं है. इसे पहले भी ज़िक्र होता रहा है. इस बार के प्रस्ताव को नियामे डेक्लेरेशन कहा जा रहा है. इसके ऑपरेटिव पैराग्राफ़ आठ में कहा गया है कि ओआईसी जम्मू-कश्मीर विवाद का समाधान यूएन सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव के हिसाब से शांतिपूर्ण चाहता है और उसका यही रुख़ हमेशा से रहा है.
केवल रस्मअदायगी?
पिछले साल पाँच अगस्त को जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा ख़त्म किए जाने के बाद ओआईसी के विदेश मंत्रियों की यह पहली बैठक थी. पाकिस्तान को उम्मीद थी कि इस बार भारत के ख़िलाफ़ कश्मीर को लेकर कोई कड़ा बयान जारी किया जाएगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ. भारत में पाकिस्तान के राजदूत रहे अब्दुल बासित ने ट्विटर पर एक वीडियो पोस्ट किया है और उन्होंने इसमें नियामे डेक्लरेशन को लेकर कई बातें कही हैं.
How Did Pakistan Do On Kashmir At Niamey OIC Meeting | Ambassador Abdul Basit - YouTube https://t.co/lHMK0i5rbD
— Abdul Basit (@abasitpak1) November 29, 2020
बासित ने कहा है, ''पाँच अगस्त के बाद ओआईसी के विदेश मंत्रियों की यह पहली बैठक थी और हमें उम्मीद थी कि भारत को लेकर कुछ कड़ा बयान जारी किया जाएगा. हमें लगा था कि भारत के फ़ैसले की निंदा की जाएगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ. डेक्लरेशन में पाकिस्तान के लिए बहुत ख़ुश करने वाली बात नहीं है.''
उन्होंने कहा, ''जिस तरह से इस डेक्लरेशन में फ़लस्तीन, अज़रबैजान और आतंकवाद को लेकर ज़िक्र है वैसा कश्मीर का नहीं है. पिछले साल की तुलना में इस बात से ख़ुश हो सकते हैं कि चलो इस बार कम से कम ज़िक्र तो हुआ. पाँच अगस्त को भारत ने जो किया उसकी निंदा होनी चाहिए थी लेकिन ये ऐसा नहीं हुआ. नाइजर के भारत के साथ अच्छे ताल्लुकात हैं और जिस कन्वेंशन सेंटर में यह कॉन्फ़्रेंस हुई है वो भारत की मदद से ही बना है.''
The 47th Council of Foreign Ministers of @OIC_OCI, taking place at the beautiful Mahatma Gandhi International Conference Center in Niamey, at this time of crisis, it is crucial to build solidarity, togetherness and friendship to overcome the many challenges the world faces today! pic.twitter.com/RM9C2MNq1x
— Abdulla Shahid (@abdulla_shahid) November 27, 2020
मालदीव भी ओआईसी का सदस्य है. इस बैठक में मालदीव के विदेश मंत्री अब्दुल्ला शाहिद शामिल हुए. अब्दुल्ला ने 27 नंवबर को एक ट्वीट किया था जिसमें नियामे के उस कॉन्फ़्रेंस सेंटर की तस्वीरें पोस्ट की थीं. इन तस्वीरों के साथ अब्दुल्ला ने अपने ट्वीट में लिखा है, ''ओआईसी की 47वीं सीएफ़एम की बैठक नियामे के ख़ूबसूरत महात्मा गाँधी इंटरनेशनल कॉन्फ़्रेंस सेंटर में हो रही है. जब दुनिया कई चुनौतियों और संकट से जूझ रही है ऐसे में साथ मिलकर ही इनका सामना किया जा सकता है.''
हालांकि पाकिस्तान कश्मीर का ज़िक्र भर होने से अपनी जीत के तौर पर देख रहा है. पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने ट्वीट कर कहा है, ''नियामे डेक्लरेशन में जम्मू-कश्मीर विवाद को शामिल किया जाना बताता है कि ओआईसी कश्मीर मुद्दे पर हमेशा से साथ खड़ा है.''
The inclusion of Jammu and Kashmir dispute in the #Niamey Declaration – being an important part of the CFM’s outcome documents - is yet another manifestation of the @OIC_OCI’s consistent support to the Kashmir Cause. 2/2#OIC47CFMNiamey
— Spokesperson 🇵🇰 MoFA (@ForeignOfficePk) November 29, 2020
भारत ने कश्मीर का विशेष दर्जा जब से ख़त्म किया है तब से पाकिस्तान ओआईसी के सदस्य देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक बुलाने की मांग कर रहा था लेकिन उसका कोई असर नहीं हुआ था.
पाकिस्तान इसे लेकर इस क़दर परेशान था कि विदेश मंत्री शाह महमूद क़ुरैशी ने इसी साल अगस्त महीने में ओआईसी से अलग होकर कश्मीर का मुद्दा उठाने की धमकी दे डाली थी. इससे सऊदी अरब नाराज़ हो गया था और पाकिस्तान को स्पष्टीकरण जारी करना पड़ा था. लेकिन तब तक बात बिगड़ गई थी और इसे संभालने के लिए पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल क़मर जावेद बाजवा को सऊदी का दौरा करना पड़ा था.
पाकिस्तान में लगातार सवाल उठते रहे हैं कि कश्मीर पर इमरान ख़ान इस्लामिक देशों का समर्थन भी जुटाने में नाकाम रहे.