लद्दाख में तनाव की वजह से क्या चीन गंवा सकता है संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की कुर्सी!
न्यूयॉर्क। भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख में लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) पर जारी टकराव को कुछ ही दिनों बाद दो माह पूर हो जाएंगे। पांच मई से दोनों देशों की सेनाएं आमने-सामने हैं। 15 जून को तो यह तनाव हिंसक हो गया जिसमें इंडियन आर्मी के 20 सैनिक शहीद हो गए थे। लेकिन अब इस घटना के बाद ट्विटर और दूसरे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर भारतीयों की तरफ से मांग उठने लगी है कि चीन को यूनाइटेड नेशंस सिक्योरिटी काउंसिल (यूएनएससी) से हटा दिया। चीन पर नाराजगी जायज है लेकिन जो मांग भारतीयों की तरफ से की जा रही है क्या वैसा हो पाना वाकई संभव है।
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अमेरिकी सीनेटर ने किया समर्थन
एक
अमेरिकी
सीनेटर
टेड
योहो
ने
मई
माह
के
अंत
में
एक
टीवी
इंटरव्यू
में
इसी
तरह
की
बात
कही
थी।
उनका
कहना
था
कि
अमेरिकी
नागरिक
चाहते
हैं
कि
चीन
को
कोरोना
वायरस
महामारी
के
लिए
जिम्मेदार
ठहराया
जाए।
उन्होंने
कहा
था
कि
यूएन
के
पास
कोई
भी
नीतिगत
अधिकार
नहीं
है
कि
वह
किसी
सदस्य
को
जिम्मेदार
ठहरा
सके।
ऐसे
में
इसकी
जरूरूत
है।
उन्होंने
कहा
था
कि
अगर
सुरक्षा
परिषद
के
सदस्य
अपनी
प्रतिबद्धताओं
पर
खरे
नहीं
उतरते
हैं
तो
फिर
उन्हें
यूएनएससी
में
होने
की
जरूरत
नहीं।
टेड
योहो
के
मुताबिक
उन्होंने
इस
बारे
अमेरिकी
विदेश
मंत्री
माइक
पोंपेयो
और
विदेश
विभाग
के
दूसरे
लोगों
से
भी
बात
की
है।
यूएनएससी
को
दुनिया
की
एक
ताकतवर
संस्था
माना
जाता
है।
पांचवें चैप्टर में सदस्यता पर बात
यूएन चार्टर का पांचवां चैप्टर इसकी सदस्यता पर बात करता है। इस चैप्टर में 10 अस्थायी सदस्यों के चुनाव के बारे में बातें कही गई हैं। हाल ही में भारत को दो सालों के लिए इस संस्था का अस्थायी सदस्य चुना गया है। इसका मतलब यह है कि चीन या फिर कोई और स्थायी सदस्य संस्था से हटाया जा सकता है। चार्टर में संशोधन करके नए सदस्य को सुरक्षा परिषद में जगह मिल सकती है। चार्टर के 18वां चैप्टर में संशोधन की प्रक्रिया के बारे में बताया गया है। चार्टर में संशोधन के लिए 193 सदस्यों वाली महासभा के दो तिहाई सदस्यों की मंजूरी जरूरी होती है। इसके अलावा इसमें संशोधन के लिए सुरक्षा परिषद के पांचों स्थायी सदस्यों की मंजूरी अनिवार्य है।
ताइवान की जगह चीन को मिली ताकत
यूएनएससी में दूसरे देशों के पास भी वीटो पावर है। चीन हर हाल में अपने खिलाफ आने वाले प्रस्ताव पर अपनी वीटो पावर का प्रयोग करेगा। साल 1971 में ताइवान को कानूनी नियम की मदद से यूएनएससी से हटा दिया गया था। ताइवान की जगह सीट चीन को मिली थी। यूएन की जनरल एसेंबली ने ताइवान को बाहर किया था। उस समय तक ताइवान संगठन में रिपब्लिक ऑफ चाइना के तौर पर मौजूद था। सन् 1949 में चीन के गृह युद्ध में क्यूमिंटाग पार्टी के शासन को शिकस्त मिली और चीन में कम्युनिस्ट पार्टी की सत्ता आई और आज तक यह कायम है। इसके दो दशक बाद यूएन की जनरल एसेंबली ने रिपब्लिक ऑफ चाइना को बाहर कर दिया और उसकी जगह पर पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना को जगह मिली।
कोविड-19 के बाद चीन के खिलाफ
उस समय ताइवान के पास यूएनएससी में सीट थी और फिर यह सीट चीन के पास चली गई। यूएन चार्टर के चैप्टर टू के आर्टिकल 6 के मुताबिक कोई भी सदस्य उस समय बाहर हो सकता है जब उसने चार्टर के सिद्धांतों का सही ढंग से पालन न किया हो। चीन सन् 1950 से ही दूसरे सदस्य देशों की सीमाई संप्रभुता का उल्लंघन करता आ रहा है। ऐसे में विशेषज्ञ मानते हैं कि चीन कड़ी सजा का हकदार बन जाता है। लेकिन दुनिया के बाकी ताकतवर देशों ने इस सच से मुंह मोड़ा हुआ है। हालांकि कोविड-19 के बाद कई देश चीन के खिलाफ हुए हैं और कई लोग मान रहे हैं कि अब चीन के खिलाफ एक मजबूत केस बन जाता है।