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क्या ट्रंप की मांगों से नाराज़ है उत्तर कोरिया

उत्तर कोरिया ने अपनी मांगें स्पष्ट कर दी हैं. लेकिन इसका अमरीका और दक्षिण कोरिया के संयुक्त सैनिक अभ्यास से बहुत कम ही लेना-देना है.

उत्तर कोरिया के रुख़ में आई सख़्ती दरअसल संडे के उस टॉक शो की वजह से है जिसमें राष्ट्रपति ट्रंप के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन बोल्टन और विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने इसका ज़िक्र किया अपने परमाणु हथियार नष्ट क

By BBC News हिन्दी
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किम जोंग उन, डोनल्ड ट्रंप
EPA
किम जोंग उन, डोनल्ड ट्रंप

उत्तर कोरिया ने अपनी मांगें स्पष्ट कर दी हैं. लेकिन इसका अमरीका और दक्षिण कोरिया के संयुक्त सैनिक अभ्यास से बहुत कम ही लेना-देना है.

उत्तर कोरिया के रुख़ में आई सख़्ती दरअसल संडे के उस टॉक शो की वजह से है जिसमें राष्ट्रपति ट्रंप के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन बोल्टन और विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने इसका ज़िक्र किया था कि अगर उत्तर कोरिया अपने परमाणु हथियार नष्ट कर देता है, तो उसे क्या-क्या मिल सकता है.

उत्तर कोरिया में लोगों की इस पर पैनी नज़र थी और जो कुछ भी उन्होंने सुना, वो उन्हें अच्छा नहीं लगा.

दरअसल उत्तर कोरिया ने परमाणु हथियार बनाने में कई वर्ष लगाए और इस पर भारी-भरकम ख़र्च भी आया. ये सब कुछ उत्तर कोरिया ने अपना अस्तित्व बचाने के लिए किया.

इसलिए जब रविवार को जॉन बोल्टन ने उत्तर कोरिया के परमाणु हथियार ख़त्म करने की तुलना लीबिया से की, तो उत्तर कोरिया में इससे बेचैनी हुई. लीबिया में न सिर्फ़ सरकार पलट गई, बल्कि इसके नेता भी नहीं बच पाए.

माइक पोम्पियो और किम जोंग उन
Reuters
माइक पोम्पियो और किम जोंग उन

उत्तर कोरिया के परमाणु हथियार

इस पूरी समस्या की जड़ में भाषा और उसका मतलब निकालना है.

महीनों तक दुनिया ने ये सुना कि उत्तर कोरिया अपने परमाणु हथियार ख़त्म करने को तैयार है. हालाँकि कई विश्लेषकों ने इस पर हैरानी जताई थी.

उन्होंने चेतावनी दी थी कि अमरीका और उत्तर कोरिया इसका क्या मतलब निकालेंगे, इसमें फ़र्क है.

अमरीका चाहता है कि उत्तर कोरिया एक तय समयसीमा के अंदर अपने परमाणु हथियार त्याग दे और सिर्फ़ इस स्थिति में ही उसे आर्थिक पुरस्कार मिलेंगे.

अमरीका ये भी चाहता है कि ये पूरी प्रक्रिया जल्द से जल्द निपटे, शायद एक-दो साल के अंदर.

लेकिन परमाणु हथियार मुक्त होने को लेकर उत्तर कोरिया की परिभाषा बिल्कुल अलग है. उत्तर कोरिया इसे पूरे प्रायद्वीप के हिसाब से मानता है.

इसका मतलब ये भी हुआ कि अमरीका को दक्षिण कोरिया में अड्डा जमाए अपने सैनिकों की संख्या में कमी करनी होगी और इस क्षेत्र की सुरक्षा के लिए लगाई गई परमाणु छतरी भी उसे छोड़नी होगी.

उत्तर कोरियाई मिसाइलें
EPA
उत्तर कोरियाई मिसाइलें

साथ ही अगर उत्तर कोरिया अपने हथियार छोड़ता है, तो उसे अपनी सुरक्षा की गारंटी भी चाहिए.

इन सबके बीच अब सवाल ये है कि क्या ऐतिहासिक सम्मेलन से शांति स्थापित हो पाएगी.

एसान इंस्टीट्यूट के गो म्योंग ह्युन के मुताबिक़ आख़िरकार डोनल्ड ट्रंप को इस तरह की बातचीत में अपनी तरह मोल-भाव करने वाला मिल गया है.

वे कहते हैं, "ऐसा लगता है कि अमरीका ऐसी अतिरिक्त और कड़ी मांगें कर रहा है, जो उत्तर कोरिया को पसंद नहीं है. उत्तर कोरिया का ये कहना है कि अगर आप ऐसी मांगें करते रहोगे, जो हमें पसंद नहीं, तो हम बातचीत से अलग हो जाएँगे."

हालांकि ऐसा नहीं है कि रास्ते पूरी तरह बंद हो गए हैं. संकेत ये भी हैं कि अब भी कोई समझौता हो सकता है.

ट्रंप के लिए चेतावनी

योन्सेई यूनिवर्सिटी में इतिहास के प्रोफ़ेसर जॉन डेल्यूरी आशावादी हैं. वे इसे एक हल्के अवरोध के रूप में देखते हैं. लेकिन साथ ही ये भी मानते हैं कि एक सही संदेश से स्थिति संभाली जा सकती है.

वे कहते हैं, "उत्तर कोरिया ने ये नहीं कहा है कि वो अपने परमाणु हथियार छोड़ रहा है. उसने कहा है कि अगर आप हमारे सिर पर बंदूक तानोगे, तो हम परमाणु हथियार मुक्त नहीं होंगे. उत्तर कोरिया चाहता है कि कार्रवाई दोनों तरफ़ से हो. हम भी कुछ करेंगे और आप भी कुछ करो."

ये ट्रंप सरकार के लिए चेतावनी भी है.

उत्तर कोरिया को ये भी पता है कि डोनाल्ड ट्रंप चाहते हैं कि ये सम्मेलन हो.

ट्रंप
EPA
ट्रंप

गो म्योंग ह्युन कहते हैं, "उत्तर कोरिया ये समझ गया है कि ट्रंप ने अपने राजनीतिक करियर का बहुत कुछ दांव पर लगा रखा है. वो इसके सकारात्मक नतीजे का क्रेडिट भी लेना चाहते हैं. अगर इसे दूसरे तरीक़े से कहें तो ट्रंप इस प्रक्रिया में फँस गए हैं. अगर ट्रंप अपनी मांगों को रोकते नहीं हैं और बदले में उत्तर कोरिया को कुछ ऑफ़र नहीं करते हैं, तो वो इस सम्मेलन से कुछ हासिल नहीं कर पाएँगे."

क्रेडिट लेने की होड़ से भी उत्तर कोरिया नाराज़ है. इसके संकेत उस समय भी मिले थे जब माइक पोम्पियो ने हाल ही में उत्तर कोरिया की यात्रा की थी.

उस दौरान उत्तर कोरिया के एक वरिष्ठ अधिकारी ने पोम्पियो को याद दिलाया था कि अभी तक जो भी हुआ है, वो ट्रंप सरकार की दबाव देने की रणनीति या प्रतिबंधों की वजह से नहीं है.

तीन अमरीकी नागरिकों की रिहाई उत्तर कोरिया की ओर से एक बड़ी रियायत थी.

उत्तर कोरिया दुनिया को ये भी जताना चाहता है कि वो अपनी ओर से मज़बूती के साथ बातचीत की टेबल पर आ रहा है. ये भी बताने की कोशिश की जा रही है कि वही सभी रियायतें दे रहा है. मसलन उसने सभी मिसाइल टेस्ट रोक दिया है और तीनों अमरीकी नागरिकों को रिहा भी किया है.

संदेह बरकरार

उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग उन ने दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून जे इन से मुलाक़ात की और एक घोषणापत्र पर दस्तख़त भी हुए. अंतरराष्ट्रीय मीडिया के सामने ये तय हुआ कि वे एक परमाणु परीक्षण ठिकाने को नष्ट कर देंगे.

किम जोंग उन और मून जे इन
Getty Images
किम जोंग उन और मून जे इन

इन सबके बावजूद ये सुनना कि ट्रंप सरकार समझौते के लिए श्रेय ले रही है, ये क़दम बढ़ाने की दिशा में ठीक नहीं माना जा रहा है.

कई लोग कह सकते हैं कि उत्तर कोरिया जो कर रहा है ये उसकी रणनीति के अनुरूप ही है क्योंकि उत्तर कोरिया का इतिहास रहा है बातचीत और समझौतों से दूर हट जाने का.

साथ ही इस तरह की कूटनीति के मामले में उत्तर कोरियाई सत्ता का अनुभव मौजूदा अमरीकी शासन के अनुभव से ज़्यादा ही है.

जो कुछ हो रहा है उसे संदेह से देखने वाले यही कहेंगे कि ये सबकुछ अप्रत्याशित नहीं है जैसा कि कई लोग उम्मीद भी कर रहे थे.

और ये भी कि किम जोंग उन और राष्ट्रपति मून जे इन के बीच जो मुस्कुराहटें, हैंडशेक और साथ-साथ चलने के विज़ुअल दिखे थे वो अविश्वसनीय ही लग रहे हैं.

ऐसे में आगे की राह आसान नहीं नज़र आती. उत्तर कोरिया और अमरीका को अब ये फ़ैसला करना होगा कि उन्हें क्या करना है.

क्या वे एक-दूसरे को रियायत देने को तैयार हैं? सैन्य अभ्यास कम करने को सहमत हैं? या फिर वे इन सब से ऊपर उठकर सोचेंगे और ऐसा देखने को मिलेगा कि इस ऐतिहासिक मुलाकात के लिए किम जोंग उन उतने ही उत्सुक हैं जितने कि अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप.

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English summary
Is angry with the demands of Trump North Korea
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