2001 में भारत और पाक पहुंच गए थे न्यूक्लियर वॉर की कगार पर
लंदन। वर्ष 2003 में शुरू हुए इराक युद्ध के से जुड़े वॉर क्राइम की जांच करन रही चिलकॉट कमेटी को पेश किए गए सबूतों के अनुसार ब्रिटेन को 2001 में भारतीय संसद पर हुए आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच न्यूक्लियर वॉर की आशंका बढ़ गई थी।
रिपोर्ट का दावा है कि ब्रिटेन ने दोनों देशों को सैन्य टकराव को समाप्त करने के लिए समझाने और मनाने का प्रयास किया था। इराक युद्ध पर जांच रिपोर्ट बुधवार को सार्वजनिक की गई।
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उस समय के ब्रिटिश विदेश मंत्री जैक स्ट्रॉ ने कमेटी के सामने गवाही के दौरान यह खुलासे किए थे।रिपोर्ट में बताया गया कि 2003 में इराक युद्ध दोषपूर्ण खुफिया जानकारी पर आधारित था।
स्ट्रॉ ने उस समय के बाकी बड़े मुद्दों का जिक्र करते हुए कहा था कि वह हर घंटे भारत-पाकिस्तान के मुद्दे पर चिंतित थे।इस युद्ध की वजह से उस समय के अमेरिकी विदेश मंत्री कॉलिन पॉवेल के साथ उनके करीबी संबंधों का आधार तैयार हुआ था।
जनवरी 2010 को कमेटी को दिए बयान में स्ट्रॉ ने कहा था कि 9-11 के तुरंत बाद ब्रिटेन के लिए विदेश नीति की प्राथमिकता अफगानिस्तान था।
वर्ष के समाप्त होते होते 13 दिसंबर, 2001 को भारतीय संसद पर आतंकवादी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच सैन्य टकराव की आशंका ने ब्रिटेन सरकार और अमेरिका के लिए चिंता पैदा कर दी।
उन्होंने कहा कि इतने गंभीर क्षेत्रीय टकराव को रोकने का अमेरिका-ब्रिटेन का संयुक्त प्रयास उस बहुत करीबी संबंध की बुनियाद बना था जो उन्होंने अमेरिका के विदेश मंत्री जनरल कॉलिन पॉवेल के साथ विकसित किए थे। स्ट्रॉ के बयान का उनके विदेश कार्यालय के प्रवक्ता और उस समय के मीडिया सलाहकार जॉन विलियम्स ने समर्थन किया था।