रूस और अमरीका के बीच फंस गया है ईरान
ईरान को सीरिया और मध्य पूर्व में अपनी रणनीतिक पकड़ का सपना उस समय पूरा होता नज़र आने लगा, जब पिछले साल ख़ुद को इस्लामिक स्टेट कहने वाले चरमपंथी संगठन की हार और सीरियाई सेना का देश के विभिन्न इलाक़ों में दोबारा नियंत्रण बढ़ने लगा.
लेकिन आजकल ईरान बेशुमार आंतरिक और बाहरी संकट से जूझ रहा है.
सीरिया में ईरान न सिर्फ़ अपने पारंपरिक शत्रु अमरीका के दबाव में है बल्कि अपने सहयोगी रूस के भी दबाव में है.
ईरान को सीरिया और मध्य पूर्व में अपनी रणनीतिक पकड़ का सपना उस समय पूरा होता नज़र आने लगा, जब पिछले साल ख़ुद को इस्लामिक स्टेट कहने वाले चरमपंथी संगठन की हार और सीरियाई सेना का देश के विभिन्न इलाक़ों में दोबारा नियंत्रण बढ़ने लगा.
लेकिन आजकल ईरान बेशुमार आंतरिक और बाहरी संकट से जूझ रहा है.
सीरिया में ईरान न सिर्फ़ अपने पारंपरिक शत्रु अमरीका के दबाव में है बल्कि अपने सहयोगी रूस के भी दबाव में है.
हालांकि ईरान के सर्वोच्च धार्मिक नेता आयतुल्लाह खामनेई के अंतरराष्ट्रीय मामलों के सलाहकार अली अकबर अकबर विलायती के मुताबिक़ रूस अभी भी ईरान का रणनीतिक सहयोगी है.
जबकि कुछ दिनों पहले रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने इसराइली प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू से मुलाक़ात के दौरान इसराइल को विश्वास दिलाया था कि ईरान के इस पूरे क्षेत्र में बढ़ते हुए प्रभाव के मद्देनज़र रूस इसराइल की चिंताओं का ध्यान रखेगा.
ईरान परमाणु समझौता
पुतिन ने ये भी कहा था कि रूस कभी इस बात की इजाजत नहीं देगा कि सीरिया में ईरान के प्रभाव वाली ताक़तें इसराइल की सरहदों के नज़दीक जाएं.
पुतिन और नेतन्याहू की मुलाक़ात के कुछ ही घंटे बाद इसराइली लड़ाकू विमानों ने गोलान की पहाड़ियों और सीरियाई फ़ौज के कई सैन्य ठिकानों को निशाना बनाया.
पुतिन और नेतन्याहू की पिछली मई में हुई मुलाक़ात के बाद अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने ईरान न्यूक्लियर डील से क़दम खींचने की घोषणा कर दी थी.
उसके कुछ ही घंटे बाद पुतिन मॉस्को में नेतन्याहू की मेज़बानी कर रहे थे. ईरान के लिए ये दोहरा संदेश था.
उसी समय इसराइली मीडिया के कुछ हिस्से में ये ख़बर चल रही थी कि इसराइल और रूस के बीच एक ख़ुफ़िया समझौता हो गया है जिसके तहत रूस ईरान को सीरिया से बाहर निकालने के लिए तैयार हो गया है.
सीरिया का मैदान-ए-जंग
उसी ख़बर के मुताबिक़ इसके बदले गोलान हाइट्स और सीरिया-इसराइल के सीमावर्ती इलाक़े में सीरिया अपना नियंत्रण रखेगा.
सात साल से चल रहे सीरिया के मैदान-ए-जंग में शामिल ताक़तों के बीच का रिश्ता काफ़ी जटिल हो गया है.
इस संघर्ष में शामिल सभी पक्ष यानी रूस, ईरान, अमरीका और तुर्की अपने-अपने समर्थक गुटों के साथ मिलकर मध्य पूर्व के इस इलाक़े में अपना प्रभाव बढ़ाने में लगे हुए हैं.
लेकिन उनमें से कोई ये नहीं जानता कि सीरिया में चल रही इस लड़ाई का आख़िर अंज़ाम क्या होगा और ख़ुद उन पर क्या असर पड़ेगा.
अगर अंतरराष्ट्रीय कूटनीति की कड़वी हक़ीक़तों के लिहाज से देखें तो आज ईरान, रूस, अमरीका और तुर्की जिस हालत में हैं, उससे यही कहा जा सकता है कि इसमें शामिल देश अपने उलझे हुए रिश्तों को सुधारने में कुछ हद तक कामयाब रहे हैं.
ईरान का असर
रूस भी अपनी सैन्य और कूटनीतिक पहल के ज़रिए और बशर-उल असद की सुरक्षा के लिए विद्रोहियों के ख़िलाफ़ लड़ाई जारी रखते हुए अपने सामरिक हितों की रक्षा करने में कामयाब रहा है.
उधर, अमरीका भी रूस के साथ अपने संबंधों को नई शक्ल दे रहा है और राष्ट्रपति असद के कुर्सी पर बने रहने को स्वीकार करने लगा है.
इसके अलावा अमरीका ईरान पर सख़्त से सख़्त दबाव डालते हुए, इस पूरे क्षेत्र में ईरान के असर को कम करने में लगा हुआ है.
लेकिन ईरान बेइन्तहा पैसा ख़र्च करने के बावजूद अपने सभी सामरिक लक्ष्यों को हासिल करने में चुनौतियों का सामना कर रहा है.
ईरान का सबसे बड़ा मक़सद बशर अल असद का सत्ता में बनाए रखना है, इसके अलावा इस्लामिक स्टेट के असर को कम करना है और पूरे इलाक़े में अपने प्रभाव को बढ़ाना है.
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रूस की रणनीति
ईरान के साथ परमाणु समझौते से बाहर आने के ट्रंप के फ़ैसले के बाद आने वाले महीनों में ईरान पर और अधिक पाबंदियां लगेंगी.
इसके अलावा सीरिया में सैन्य ऑपरेशन को जल्द से जल्द ख़त्म करने की रूस की सरगर्मी और सीरिया में ईरानी सलाहकारों के प्रभाव को कम करने से ईरान के सामने एक बड़ा मसला खड़ा हो गया है.
लेबनान में सक्रिय ईरान समर्थित गुट हिज़बुल्लाह के मामले में भी अमरीका और रूस के बीच समझौता हो गया है.
इससे भी ईरान को बड़ा झटका लगा है. ईरान इस समय दो बड़ी ताक़तों के बीच स्टैपलर के पिन की तरह फंसा हुआ है.
एक तरफ़ अमरीका ईरान के साथ परमाणु समझौते से अलग होकर इस कोशिश में लगा हुआ है कि ईरान को सीरिया से पूरी तरह से बाहर निकाल दिया जाए.
और दूसरी तरफ़ रूस ने ईरान की पश्चिमी देशों, ख़ासकर अमरीका से वर्षों से चल रहे ख़राब संबंधों का फ़ायदा उठाकर ईरान को अपने आप पर इतना निर्भर करा लिया है कि अब ईरान के लिए रूस की तयशुदा लाइन से अलग होना संभव नहीं है.
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पुतिन और नेतन्याहू
रूस ने ईरान के तेल और गैस के क्षेत्र में 50 अरब डॉलर के निवेश की पेशकश की है.
ऐसे समय में जब पश्चिमी देशों की कंपनियां ईरान को छोड़कर जा रही हैं, रूस अपने इस पेशकश की कुछ तो क़ीमत वसूलेगा ही.
हालांकि इस तरह के समझौते आम तौर से गुप्त ही रखे जाते हैं.
लेकिन ऐसा लगता है कि दक्षिणी पश्चिमी सीमा से 80 किलोमीटर तक पीछे हटने के लिए ईरान तैयार हो गया है.
और ऐसा माना जा रहा है कि पुतिन और नेतन्याहू की मुलाक़ात के बीच यही समझौता हुआ था.
ईरान और सीरिया के रिश्ते
हालांकि पुतिन ये अच्छी तरह जानते हैं कि ईरान का सीरिया से पूरी तरह से बाहर आना इस समय संभव नहीं है.
क्योंकि ईरान ने सीरिया में बेइन्तहा पैसा ख़र्च किया है और ईरान और सीरिया के बीच ऐतिहासिक तौर पर गहरे संबंध रहे हैं.
ऐसे में रूस की कोशिश ये होगी कि अमरीका और इसराइल को सीरिया में ईरानी सेना की हवाई सरगर्मी पर पाबंदी के आइडिया पर राज़ी कर लिया जाए ताकि भविष्य में जब सीरिया पर राजनीतिक बातचीत शुरू हो जाएगी तो सीरिया से विदेशी सैनिकों का बाहर आना संभव हो सके.
रूस को पूरा यक़ीन है कि ईरान के ख़िलाफ़ दोबारा आर्थिक प्रतिबंध लगने और अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ने और ख़ुद ईरान का आर्थिक संकट गहराने की हालत में ईरानी नेतृत्व के लिए ये संभव नहीं होगा कि वो सिर्फ़ तेल बेचकर सीरिया में अपने सामरिक हितों की हिफ़ाज़त कर सके.