जलवायु परिवर्तन से होने वाले 6 बड़े बदलाव जो दुनिया देखेगी
बेंगलुरु। मोनाको में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय शिखर सम्मेलन में इंटर-गवर्नमेंटल पैनल फॉर क्लाइमेट चेंज आईपीसीसी ने ओशियन एवं क्रायोस्फियर पर एक विशेष रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट्र में दुनिया के महासागरों, ध्रुवों और ग्लेशियरों पर होने वाली कुछ विनाशकारी घटनाओं के बेहद दूरगामी प्रभावों पर चर्चा की गई है। यह रिपोर्ट आईपीसीसी के चेयरमैन होउसंग ली ने जारी की। उन्होंने बताया कि आने वाले 50 सालों में दुनिया के सभी पहाड़ों, समुद्रों और महासागरों में होने वाले परिवर्तन 1419 मिलियन यानी करीब 141 करोड़ लोगों का जीवन तय करेंगे। अगर अगले 10 वर्षों में पृथ्वी के बढ़ते तापमान को डेढ़ डिग्री तक सीमित नहीं किया गया, तो बेहद खतरनाक परिणाम देखने को मिल सकते हैं।
रिपोर्ट के मुख्य अंश
दुनिया भर में पहाड़ों पर रहने वाले लोगों की संख्या करीब 670 मिलियन है। वहीं 680 मिलियन लोग निचले एवं तटीय इलाकों में रहते हैं। 4 मिलियन लोग पूर्ण रूप से आर्कटिक क्षेत्र में हैं वहीं 65 मिलियन लोगों का बसेरा छोटे-छोटे द्वीपों पर है। जिस तरह से पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है, अगर उसे नियंत्रित नहीं किया गया, तो आने वाले 50 सालों में इन सभी का जीवन खतरे में होगा। लोगों को अपना घर छोड़ना पड़ेगा। पीने के पारी की किल्लत झेलनी पड़ेगी और तमाम तरह की बीमारियां भी घर कर सकती हैं।
आईपीसीसी के चेयरमैन ली ने कहा कि अगर कार्बन उत्सर्जन को हम तेजी से नियंत्रित करने में सफल होते हैं, तो लोगों के जीवन पर आने वाली परेशानियां फिर भी चुनौतीपूर्ण रहेंगी, लेकिन फिर भी हम उनसे निबटने में सक्षम होंगे। लेकिन अगर ऐसा नहीं हुआ, तो आने वाली मूसीबतों से निबटना संपूर्ण मानवजाति के लिये असंभव होगा। रिपोर्ट के अनुसार इंडोनेशिया, यूरोप और पूर्वी अफ्रीका में वर्ष 2100 आते-आते 80 प्रतिशत ग्लेशियर पिघल चुके होंगे। समुद्र जल स्तर तेजी से बढ़ रहा है, इसमें कोई दो राय नहीं। 20वीं सदी में समुद्र जलस्तर 15 सेमी ऊपर उठा। वही
इन सबके बीच भारत न सिर्फ अपनी सरहद के अंदर होने वाली गतिविधियों से प्रभावित होगा बल्कि बाहरी हलचलों का भी उस पर असर पड़ेगा। हालांकि केवल भारत नहीं, बल्कि दुनिया का कोई भी देश इन प्रभावों से बच नहीं सकेगा। चलिये बात करते हैं कुछ मुख्य प्रभावों की जो भारत समेत कई देशों पर पड़ेंगे।
1. पीने के पानी की किल्लत
पहाड़ मीठे पानी को बर्फ के रूप में सहेजते हैं और वह बर्फ धीरे-धीरे पिघलकर पहाड़ी क्षेत्रों और भौगोलिक रूप से सम्बद्ध अन्य इलाकों में रहने वाले लोगों को पानी मुहैया कराती है। जैसे-जैसे धरती गर्म हो रही है, ग्लेशियर पिघल रहे हैं और 21वीं सदी के दौरान एशिया, यूरोप, दक्षिणी अमेरिका और उत्तरी अमेरिका में ग्लेशियरों से होने वाली जलापूर्ति में गिरावट होने की आशंका है। एंडीज, क्विटो, लीमा और ला पाज खासतौर से खतरे के साये में हैं। हिन्दु कुश हिमालय क्षेत्र में स्थित ग्लेशियर इस विशाल इलाके में रहने वाले 24 करोड़ लोगों को जलापूर्ति करते हैं। यह क्षेत्र गंगा और यांगत्सी समेत उन 10 नदियों के जल का स्रोत भी है, जो 1.9 अरब लोगों को पानी उपलब्ध कराती हैं। मगर ये ग्लेशियर खात्मे की कगार पर हैं। अगर प्रदूषण में कमी नहीं लायी गयी तो वर्ष 2100 तक इस क्षेत्र के ग्लेशियर्स का दो-तिहाई हिस्सा पिघल जाएगा। इसका वैश्विक स्तर पर असर पड़ेगा।
2. विलुप्त हो जायेंगे पर्माफ्रॉस्ट
(Photo credit- NASA) बड़े पैमाने पर कार्बन को खुद में समेटे पर्माफ्रॉस्ट और जमी हुई मिट्टी अब पिघल रही है और अगर प्रदूषणकारी तत्वों के उत्सर्जन में कमी नहीं की गयी तो इनके पिघलने की रफ्तार और बढ़ जाएगी। पर्माफ्रास्ट और जमी हुई मिट्टी के पिघलने से उसमें जमी रही कार्बन डाई ऑक्साइड और मीथेन फिजा में घुलेगी, जिससे जलवायु परिवर्तन का खतरा और भी बढ़ जाएगा। अगर प्रदूषण में कमी नहीं लायी गयी तो वर्ष 2100 तक कम से कम 30 प्रतिशत और अधिकतम लगभग सभी नियर सरफेस पर्माफ्रॉस्ट विलुप्त हो सकते हैं। पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से अगली सदियों के दौरान वातावरण में सैकड़ों अरब टन कार्बन घुल जाएगा।
3. पिघल रही ध्रुवीय बर्फ
अंटार्कटिका और आर्कटिक में हो रहे बदलावों से वैश्विक स्तर पर जलवायु परिवर्तन में बढ़ोत्तरी का खतरा और बढ़ जाएगा। इन क्षेत्रों में जमी बर्फ की चादरें और जमा हुआ समुद्री जल भी सूरज की गर्मी को परावर्तन के जरिये वापस अंतरिक्ष में भेजकर धरती के तापमान को कम करने में मदद करते हैं। इस बर्फ को नुकसान पहुंचने से धरती की सतह का रंग गहरा हो जाएगा। इसका मतलब यह है कि इससे धरती पर ज्यादा ऊर्जा पहुंचेगी। ध्रुवीय बर्फ का पिघलना भी वैश्विक स्तर पर समुद्र जल स्तर में बढ़ोत्तरी की एक बड़ी वजह है।
4. करोड़ों लोगों को छोड़ना पड़ेगा अपना घर
समुद्र के जलस्तर में बढ़ोत्तरी एक बड़ा वैश्विक खतरा है। अगर प्रदूषण के स्तर में कमी नहीं लायी गयी तो वर्ष 2100 तक समुद्र के जलस्तर में करीब एक मीटर की वृद्धि हो जाएगी। प्रदूषण के उत्सर्जन में अगर समय के साथ तेजी लायी जाए तो समुद्र के जलस्तर में इस वृद्धि को 50 सेंटीमीटर से नीचे रखा जा सकता है। इससे वैश्विक स्तर पर होने वाली तबाही को काफी हद तक कम किया जा सकता है। समुद्र के जलस्तर में तेजी से हो रही बढ़ोत्तरी के कारण करोड़ों लोगों को मजबूरन अपना घर छोड़ना पड़ेगा, जिससे बेहद गहरी आर्थिक क्षति भी होगी। निचले इलाकों में बसे देशों के विशाल इलाके समुद्र के बढ़ते जलस्तर की भेंट चढ़ जाएंगे और अगर प्रदूषण को कम नहीं किया गया तो कुछ मुल्क पूरी तरह डूब जाएंगे। अगर समुद्र का जलस्तर एक मीटर बढ़ा तो बांग्लादेश का करीब 20 फीसद हिस्सा डूब जाएगा और 3 करोड़ से ज्यादा लोगों को दूसरी जगह आसरा खोजना पड़ेगा।
5. 26.9 ट्रिलियन डॉलर की सम्पत्ति पर खतरा
इस सदी के अंत तक मिस्र में नील नदी डेल्टा का 30 प्रतिशत हिस्सा डूब जाएगा। इससे 53 लाख लोगों के साथ-साथ बहुत बड़े पैमाने पर कृषि भूमि भी प्रभावित होगी। समुद्र के बढ़ते जलस्तर के कारण जिन शहरों को सबसे ज्यादा खतरा है उनमें मुम्बई, शंघाई, न्यू यॉर्क, मियामी, लागोस, बैंकॉक और टोक्यो शामिल हैं। अगर समुद्र का जलस्तर मात्र 50 सेंटीमीटर भी बढ़ा तो दुनिया के सबसे ज्यादा खतरे वाले 20 तटीय शहरों में 26.9 ट्रिलियन डॉलर की सम्पत्ति को खतरा होगा।
6. खतरे में समुद्री प्रजातियां
कार्बन डाई ऑक्साइड के घुलने से समुद्र का पानी गर्म और अम्लीय हो रहा है, और अगर प्रदूषण को कम नहीं किया गया तो वर्ष 2100 तक सभी समुद्री जैव प्रजातियों की कुल तादाद में 17 प्रतिशत की गिरावट आयेगी। खासतौर से कोरल रीफ में 70 से 90 प्रतिशत तक की गिरावट आने का अनुमान है, वह भी तब जब वैश्विक तापमान में वृद्धि डेढ़ डिग्री सेल्सियस तक सीमित रहे। अगर यह बढ़ोत्तरी 2 डिग्री सेल्सियस हुई तो कोरल पूरी तरह विलुप्त हो जाएंगे। उष्ण कटिबंधीय महासागरों में मछलियों की तादाद में भी तेजी से गिरावट होने का अनुमान है। इस वक्त दुनिया की 10 से 12 प्रतिशत आबादी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मत्स्य आखेट पर निर्भर करती है और उस पर पारिस्थितिकियों में परिवर्तन के गम्भीर प्रभाव पड़ेंगे।