Corona के खिलाफ जंग में बहुत बड़ी कामयाबी, 'भारतीय' वैज्ञानिकों ने वायरस के कमजोर पार्ट को खोजा
रिसर्च टीम के प्रमुख सुब्रमण्यम ने कहा कि, इस रिसर्च के दौरान उस कमजोर जगह का पता लगा लिया गया है, जिससे हम वायरस को खत्म कर सकते हैं और ये स्पॉट बड़े पैमाने पर हर तरह के वेरिएंट में अपरिवर्तित रहते हैं।
टोरंटो, अगस्त 20: कोरोना वायरस के खिलाफ इंसानों की जंग में भले ही दर्जनों वैक्सीन बन चुके हैं और लाखों इंसानों की जान बच रही हो, लेकिन अभी तक कोरोना वायरस को खत्म करने के तरीके का इजाद नहीं हुआ था, लेकिन अब भारतीय मूल के वैज्ञानिकों ने कोरोना वायरस के कमजोर नस को को खोज लिया है, लिहाजा अब कोरोना वायरस को ही खत्म किया जा सकता है। कोरोना के खिलाफ जंग में इंसानों को मिली ये बहुत बड़ी कामयाबी है।
कोरोना का मिला कमजोर नस
भारतीय मूल के एक शोधकर्ता के नेतृत्व में एक टीम ने SARS-CoV-2 के सभी प्रमुख वेरिएंट्स के कमजोर स्पॉट की खोज कर ली है, जिसकी वजह से अब कोरोना वायरस को काफी आसानी से खत्म किया जा सकता है। यानि, अब उन दवाओं का काफी आसानी से निर्माण किया जा सकता है, जिसके खाने के बाद इंसानों के शरीर में मौजूद कोरोना का वायरस खत्म हो जाएगा और इंसान इस जानलेवा वायरस से बच जाएगा। रिपोर्ट के मुताबिक, वैज्ञानिकों की टीम ने कोरोना के कई वेरिएंट, जिनमें BA.1 और BA.2 Omicron भी शामिल हैं, उनके वीक स्पॉट की भी खोज कर ली है।
पूरी दुनिया के लिए एक दवाई
कोरोना वायरस के कमजोर स्पॉट को खोजने वाले रिसर्चर्स ने कहा कि, अब एंटीबॉडी के जरिए सीधे कोरोना वायरस के कमजोर स्पॉट को हम निशाना बना सकते हैं और उसे फौरन खत्म कर सकते हैं। जिसका मतलब ये हुआ, कि अब कोरोना वायरस का असल इलाज मिलने के रास्ते खुल गये हैं, जो इसके सभी प्रकार के वेरिएंट्स पर प्रभावी होंगे। वैज्ञानिकों के मुताबिक, अब अगर एक दवा का निर्माण होता है, तो वो पूरी दुनिया में और कोरोना वायरस के करीब करीब हर वेरिएंट्स पर प्रभावी होगी। वैज्ञानिकों के इस रिसर्च को नेचर कम्युनिकेशंस नामक पत्रिका में गुरुवार को प्रकाशित किया गया है और इस स्टडी के मुताबिक, क्रायो-इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी (क्रायो-ईएम) का उपयोग वायरस के स्पाइक प्रोटीन के कमजोर स्थान को खोजने के लिए किया गया, इसमें वायरस के परमाणु-स्तर की संरचना को खोजा गया, से एपिटोप-या भाग के रूप में जाना जाता है, जो खुद को इंसानों के शरीर में मौजूद एंटीबॉडी से खुद को जोड़ लेता है।
क्या होता है स्पाइक प्रोटीन
स्पाइक प्रोटीन का उपयोग SARS-CoV-2 वायरस, मानव कोशिकाओं में प्रवेश करने और उन्हें संक्रमित करने के लिए करते हैं। शोधकर्ताओं ने वीएच एबी6 नामक एक एंटीबॉडी खंड के बारे में भी बताया है, जो इस साइट से जुड़ने और प्रत्येक प्रमुख संस्करण को बेअसर करने में सक्षम है। ब्रिटिश कोलंबिया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और अध्ययन के वरिष्ठ लेखक श्रीराम सुब्रमण्यम ने कहा कि, "यह एक अत्यधिक अनुकूलनीय वायरस है जो अधिकांश मौजूदा एंटीबॉडी उपचारों से बचने के लिए विकसित हुआ है, साथ ही साथ टीकों और प्राकृतिक संक्रमण द्वारा प्रदान की जाने वाली अधिकांश प्रतिरक्षा भी इसमें मौजूद है।"
काफी आसानी से किया जा सकता है निष्क्रीय
रिसर्च टीम के प्रमुख सुब्रमण्यम ने कहा कि, इस रिसर्च के दौरान उस कमजोर जगह का पता लगा लिया गया है, जिससे हम वायरस को खत्म कर सकते हैं और रिसर्च के दौरान देखा गया है, कि ये स्पॉट बड़े पैमाने पर हर तरह के वेरिएंट में अपरिवर्तित रहता है, यानि बदलता नहीं है, जिसे एक एंटीबॉडी के टुकड़े से बेअसर किया जा सकता है। लिहाजा, अब पूरी दुनिया में इलाज के एक रास्ते का डिजाइन मिल गया है, जो संभावित तौर पर बहुत सारे कमजोर लोगों की मदद कर कर सकता है। आपको बता दें कि, संक्रमण से लड़ने के लिए हमारे शरीर द्वारा स्वाभाविक रूप से एंटीबॉडी का उत्पादन किया जाता है, लेकिन इसे एक प्रयोगशाला में भी बनाया जा सकता है और रोगियों को उपचार के रूप में प्रशासित किया जा सकता है। जबकि COVID-19 के लिए कई एंटीबॉडी उपचार विकसित किए गए हैं, ओमाइक्रोन जैसे अत्यधिक उत्परिवर्तित वेरिएंट के सामने उनकी प्रभावशीलता कम हो गई है।
ताले और चाबी का उदाहरण
डॉ. सुब्रमण्यम ने उदाहरण देते हुए कहा कि, एंटीबॉडी इस तरह से काम करता है, जैसे ताले के अंदर चाबी डाला जाता है और ताला खुल जाता है, उसी तरह से एंटीबॉडी भी वायरस के अंदर जाता है और वायरस को खत्म कर देता है, लेकिन जब ये वायरस अपना स्वरूप बदल लेता है, यानि अपना नया वेरिएंट तैयार कर लेता है, तो फिर वो एंटीबॉडी नाम का वो चाबी, वायरस नाम के ताले में नहीं जा पाता है, क्योंकि उस ताले का स्वरूप बदल चुका होता है, लिहाजा "हम मास्टर कुंजी की तलाश कर रहे हैं, जो एंटीबॉडी के व्यापक उत्परिवर्तन होने के बाद भी वायरस को बेअसर करना जारी रखते हैं।" रिसर्चर्स की टीम ने कहा कि, शोधकर्ताओं द्वारा पहचानी गई 'मास्टर कुंजी' एंटीबॉडी टुकड़ा वीएच एबी 6 है, जिसे अल्फा, बीटा, गामा, डेल्टा, कप्पा, एप्सिलॉन और ओमाइक्रोन वेरिएंट के खिलाफ प्रभावी दिखाया गया था। यह टुकड़ा स्पाइक प्रोटीन पर एपिटोप से जुड़कर और वायरस को मानव कोशिकाओं में प्रवेश करने से रोककर SARS-CoV-2 को बेअसर कर देता है।