
यूक्रेन ने कैसे रूसी वारशिप को डूबोया? चीनी खतरे के बीच Indian Navy का रिसर्च, सेचुरेशन अटैक से टेंशन
कीव/नई दिल्ली, अप्रैल 23: युद्ध जब शुरू हुआ था, उस वक्त हर किसी ने... यहां तक कि अमेरिका, ब्रिटेन और चीन जैसे देशों ने भी यही सोचा था, कि रूस अगले 3 से 4 दिनों में यूक्रेन को हरा देगा। लेकिन, यूक्रेन युद्ध के अब दो महीने पूरे होने वाले हैं, पूरी दुनिया यूक्रेन की प्रतिरोधक क्षमता देखकर हैरान है। यूक्रेन को हराने में रूस कैसे नाकामयाब रहा है? चीन ने बकायदा इसको लेकर रिसर्च शुरू भी कर दिया है, क्योंकि चीन के निशाने पर भी ताइवान है, जबकि भारत के लिए यूक्रेन युद्ध इसलिए खतरे की घंटी बजा रहा है, क्योंकि भारत के शस्त्रागार में 60 प्रतिशत से ज्यादा रूसी हथियार हैं और यूक्रेन युद्ध में देखा जा रहा है, कि पश्चिमी देशों के हथियारों ने रूसी हथियारों को गाजर-मूली की तरह तबाह कर रहे हैं, लिहाजा भारत भी वक्त रहते सतर्क हो चुका है।

रूसी युद्धपोत डूबने पर रिसर्च
रिपोर्टों के अनुसार, भारतीय नौसेना के 'ऑपरेशनल प्लानर्स' ने रूस के विशालकाय और विध्वंसक मोस्कवा युद्धपोत के डूबने पर रिसर्च करना शुरू कर दिया है। भारत की तरफ से जो रिसर्च की जा रही है, उसमें इस बात को केन्द्र में रखा गया है, कि भारतीय युद्धपोतों को चीनी DF-21 जैसी एंटी शिप बैलिस्टिक मिसाइलों से कैसे बचाया जाए? भारत की सबसे बड़ी चिंता इस बात को लेकर है, कि वो यूक्रेन, जिसकी नेवी की क्षमता रूस के सामने शून्य के बराबर है और जिसकी मिलिट्री क्षमता को रूस ने पिछले दो महीने में पूरी तरह से तहस नहस कर दिया है, उसने भला मिसाइल क्षमता से लैस रूसी युद्धपोत को कैसे डूबो दिया? आपको बता दें कि, 14 अप्रैल को रूसी युद्धपोत मोस्कवा पर यूक्रेन की दो एंटी शिप क्रूज मिसाइलों ने हमला किया था और रूसी जहाज खुद को बचाने में नाकामाब रहा था।

यूक्रेन ने कैसे डूबोया रूसी युद्धपोत?
यूक्रेन ने जिस रूसी युद्धपोत को डूबोया है, वो रूस का एक फ्लैगशिप युद्धपोत था, जिनके पास असीमित क्षमताएं होने का दावा किया गया था। लिहाजा, भारत के लिए यूक्रेन युद्ध का स्टडी करना काफी जरूर है, क्योंकि भविष्य में अगर भारत को युद्ध के मैदान में उतरना पड़ता है, तो हम रूस की नाकामयाबी से काफी कुछ सीखकर बेहतर मुकाबला कर सकते हैं। हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, पता चला है कि रूसी युद्धपोत मोस्कवा का डूबना, भारतीय नौसेना कमांडरों के सम्मेलन में चर्चा का विषय होगा। दरअसल, रूसी युद्धपोत मोस्कवा में भी मिसाइल डिफेंस सिस्टम लगे हुए थे, बावजूद इसके यूक्रेनी मिसाइल रूसी जहाज पर आखिर कैसे गिर गया? ये सबसे बड़ी चिंता की बात है।

भारत के लिए चिंता की बात क्यों?
दरअसल, भारतीय नौसेना के जो युद्धपोत हैं, उसमें बराक-1 और बराक-8 सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइलें लगी हैं। यानि, अगर भारतीय युद्धपोत पर किसी मिसाइल से हमला किया जाता है, तो उसे हवा में ही मार गिराया जा सके और युद्धपोत को सुरक्षित रखा जा सके। लेकिन, करीब करीब ऐसी ही क्षमताएं तो रूसी युद्धपोत के पास भी थी। रिपोर्ट के मुताबिक, भारतीय युद्घपोत पर जो बराक-1 और बराक-8 मिसाइल डिफेंस सिस्टम लगे हैं, वो हवाई और क्रूज मिसाइल से हमलों को रोकने के लिए लगे हैं और इन खतरों से निपटने के लिए इनमें क्लोज-इन वेपन्स सूट (CIWS) की टेक्नोलॉजी लगी है, लेकिन इसके बाद भी रूसी युद्धपोत का डूबना भारत के लिए बड़ा खतरा है, क्योंकि यूक्रेन ने बेहद सावधानी और सटीक जानकारी के आधार पर रूसी जहाज को डूबोया है। (फाइल)

क्या कहते हैं एक्सपर्ट्स?
भारतीय नौसेना के एक पूर्व एडमिरल ने हिंदुस्तान टाइम्स से बात करते हुए कहा कि, 'एंटी शिप मिसाइल युग की शुरूआत 1960 के दशक में हुआ था और हमारे पूरे करियर में ध्यान इस बात पर रखा जाता है, कि हमारे जहाजों को मिसाइल हमलों और आग से कैसे बचाया जाए?' उन्होंने कहा कि, 'एक एंटी-शिप मिसाइल हमले को रोकने की कुंजी यह सुनिश्चित करना है, कि युद्ध के समय दुश्मन को किसी भी हाल में युद्धपोत का वास्तविक समय स्थान किसी भी हाल में नहीं मिलना चाहिए और दूसरी बात ये, कि अगर कोई मिसाइल हमारे युद्धपोत की तरफ लांच का गया है, तो हमें उसकी जानकारी मिलनी चाहिए, तभी हम अपने जहाज को डूबने से बचा सकते हैं'। इसको आप इस तरह से समझ सकते हैं, कि रूसी युद्धपोत कहा था, इसकी सटीक जानकारी सैटेलाइट के जरिए अमेरिका ने यूक्रेन को दी और फिर यूक्रेन ने रूसी युद्धपोत पर 'सेचुरेशन अटैक' कर दिया। (तस्वीर- फाइल)

क्या होता है ‘सेचुरेशन अटैक’?
यूक्नेन ने रूसी युद्धपोत को डूबोने के लिए 'सेचुरेशन अटैक' का सहारा लिया। आपको बता दें कि, 'सेचुरेशन अटैक' युद्ध की उस टेक्निक का नाम है, जिसके तहत दुश्मन के मिसाइल सिस्टम को चकमा देने के लिए या फिर उसे मात देने के लिए एक साथ कई सारे मिसाइल सटीक लोकेशन पर दाग दिए जाएं। इसके लिए सटीक लोकेशन की जानकारी होना सबसे ज्यादा जरूरी होता है। इस बात को ऐसे समझिए, कि यूक्रेन को अमेरिकी सैटेलाइट से रूसी युद्धपोत को लेकर बिल्कुल सटीक जानकारी मिल गई, कि आखिर रूसी युद्धपोत समुद्र में कहां खड़ा है, जिसके बाद यूक्रेनी सेना ने एक ही साथ ताबड़तोड़ मिसाइलों की बरसात रूसी युद्धपोत पर शुरू कर दी। रूसी युद्धपोत ने कई मिसाइलों को तो मार गिराया, लेकिन हर मिसाइल सिस्टम की एक क्षमता होती है, कि वो एक मिनट में कितनी मिसाइलों को मार सकता है। अब यूक्रेन ने इतने ज्यादा मिसाइल युद्धपोत पर दाग दिए, कि रूसी युद्धपोत पर लगा मिसाइल सिस्टम सभी मिसाइलो को नहीं मार पाया और एक मिसाइल युद्धपोत पर गिर गया और रूसी युद्धपोत का काम तमाम हो गया। भारत को भी इसी बात का डर है, क्योंकि चीनी सैटेलाइट भी युद्ध के समय सटीक लोकेशन बता सकते हैं।

इंडियन नेवी की क्या है तैयारी?
ऐसा भी नहीं है, कि भारतीय नेवी इसके लिए तैयार नहीं है। इंडियन नेवी पिछले कई सालों से सेचुरेशन अटैक से बचने के लिए तैयारी कर रही है और इसके लिए इंडियन नेवी ने साल 2021 में बैलिस्टिक मिसाइल ट्रैकिंग जहाज आईएनएस ध्रुव को लांच किया है, जिसका काम समुद्र में तैनात होकर दुश्मनों की तरफ से आने वाली किसी भी मिसाइल, रॉकेट या फिर ड्रोन का पता लगाना और उसे नष्ट करना है। इंडियन नेवी का आईएनएस ध्रुप एक बेहद खतरनाक युद्धपोत है, जिससे चीन भी डरता है। (तस्वीर- फाइल)

डीआरडीओ का CHAFF सिस्टम
इतना ही नहीं, इंडियन नेवी को 'सेचुरेशन अटैक' जैसी किसी भी परिस्थिति से बचाने के लिए DRDO ने CHAFF सिस्टम विकसित किया है। CHAFF सिस्टम के बारे में विस्तार से बताएं, उससे पहले आपके लिए ये जानना जरूरी है, कि पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा मजबूत CHAFF सिस्टम भारत के अलावा सिर्फ और सिर्फ अमेरिका के पास है। यानि, CHAFF सिस्टम में अमेरिका के बाद भारत दूसरे नंबर पर है। इस टेक्निक के जरिए कोशिश ये होती है, कि दुश्मन ने जिन मिसाइलों को लांच किया है, उसे किसी और दिशा में डायवर्ट कर दे। इसके लिए समुद्र में बहुत सारे मेटल्स को गिरा दिया जाता है और युद्धपोत की तरफ आने वाले मिसाइल भ्रम में पड़ जाते हैं और उनका रास्ता डायवर्ट हो जाता है। इंडियन नेवी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि, 'एक बार ऑन-बोर्ड शिप रडार आने वाले मिसाइल खतरे का पता लगा लेता है, तो CHAFF सिस्टम वास्तविक जहाज से दूर धातु के बादलों को फायर करके सक्रिय कर देता है, जिससे दुश्मन देश के मिसाइल अपने लक्ष्य से भटक जाते हैं और युद्धपोत पर नहीं गिरकर वो कहीं और गिर जाते हैं'। (तस्वीर- फाइल)