
चीन के ‘दुश्मन’ के साथ भारत ने किया ऐतिहासिक सैन्य समझौता, जानिए ड्रैगन के ‘घर’ में भारत ने कैसे गाड़ा पैर?
हनोई, जून 12: चीन के दुश्मन वियतनाम के साथ भारत ने ऐतिहासिक सैन्य समझौता किया है और चीन के लिए लिए ये एक बड़ा झटका माना जा रहा है। भारत और वियतनाम की सरकारों ने अपने सशस्त्र बलों के लिए आपसी रसद समर्थन पर एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं। समझौते के हिस्से के रूप में, दोनों देशों के सैनिकों को अपने सैन्य उपकरणों की मरम्मत के लिए और सैन्य सामानों की फिर से आपूर्ति के लिए एक दूसरे के ठिकानों का उपयोग करने की अनुमति होगी। चीन के साथ तनाव को देखते हुए भारत के लिए ये समझौता काफी ज्यादा अहम माना जा रहा है।

भारत-वियतनाम में अहम समझौता
साउथ चायना सी में चीन के लिए चुनौती पैदा करने वाले वियतनाम के साथ भारत का ये समझौता भारत-वियतनाम रणनीतिक और द्विपक्षीय संबंधों में "प्रमुख उछाल" के रूप में देखा जा रहा है, खासकर जब से दोनों देशों ने चीन पर चिंताओं को साझा किया है। भारतीय रक्षा मंत्रालय ने एक बयान में कहा है कि, 'दोनों देशों के रक्षा बलों के बीच बढ़ती सहकारी भागीदारी के समय में, यह पारस्परिक रूप से लाभकारी रसद समर्थन के लिए प्रक्रियाओं को सरल बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है'। भारत और वियतनाम के बीच ये समझौता भारतीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के तीन दिवसीय वियतनाम दौरे के दौरान किया गया है। इस दौरान भारतीय रक्षा मंत्री ने वियतनाम के रक्षा मंत्री फान वान गियांग के साथ समझौते पर हस्ताक्षर किया। (वियतनाम सैन्य प्रमुख के साथ राजनाथ सिंह)

समझौते पर वियतनाम का बयान
वहीं, भारत के साथ ऐतिहासिक सैन्य समझौता करने के बाद वियतनाम रक्षा मंत्रालय ने कहा कि, भारत वो पहला देश है, जिसके साथ वियतनाम की सरकार ने सैन्य समझौता किए हैं। इस समझौते के तहत दोनों देशों ने एक दूसरे को पारंपरिक सहयोगी माना है और भविष्य में इस साझेदारी को और भी मजबूत करने के लिए '2030 की ओर भारत-वियतनाम रक्षा साझेदारी पर संयुक्त दृष्टि वक्तव्य" पर हस्ताक्षर किए हैं'। दोनों देशों के बीच इस रक्षा साझेदारी की शुरूआत साल 2009 में समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर के साथ आई थी। भारतीय जहाज वर्तमान में नियमित रूप से वियतनाम के बंदरगाह पर आते हैं और इस समझौते के तहत साल 2016 में पहली बार एक वियतनामी जहाज ने 2016 में विशाखापत्तनम, भारत में अंतर्राष्ट्रीय फ्लीट रिव्यू में भाग लिया था। (वियतनाम दौरे पर राजनाथ सिंह)

दोनों के लिए सामुहिक दुश्मन ही चीन
भारत-चीन सीमा विवाद सर्वविदित हैं और अपने उत्तरी और पूर्वोत्तर पड़ोसियों के संबंध में जिन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, वे भी नई नहीं हैं। जबकि, वियतनाम को भी चीन से इसी तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। सीमा विवाद और खमेर रूज और कंबोडिया में प्रभाव को लेकर दोनों देशों ने 1979 से 1990 तक अपना सबसे आधुनिक युद्ध लड़ा था, जिसमें चीन को हार मिली थी। अभी हाल ही में, चीन के साथ समुद्री सीमा साझा करने वाले कई देशों के लिए दक्षिण चीन सागर विवाद भी पैर का कांटा रहा है, जिसमें वियतनाम भी शामिल है। जबकि वियतनाम दशकों से इस क्षेत्र में द्वीपों का निर्माण कर रहा था, जबकि चीन ने साल 2014 में अभूतपूर्व पैमाने पर द्वीपों का निर्माण शुरू किया है। यहां तक कि चीन ने एक कृत्रिम द्वीप का निर्माण कर वहां सैन्य उपकरण भी लगाए हैं। यह वियतनाम सहित विवाद में शामिल किसी भी देश द्वारा कभी नहीं किया गया था। वहीं, चीन अपनी स्लाइसिंग नीति के तहत लगातार साउथ चायना सी में वियतनाम के समुद्री क्षेत्र पर कब्जा करता जा रहा हैं, जिसकी वजह से दोनों देशों के बीच हालिया समय में विवाद काफी बढ़ गये हैं। (वियतनाम के प्रधानमंत्री के साथ राजनाथ सिंह)

वियतनाम की गैस परियोजनाएं
इतना ही नहीं, दक्षिण चीन सागर, जिसपर चीन अपना अवैध दावा करता है, वहां वियतनाम के कई तेल और गैस प्रोजेक्ट भी हैं, जिसपर चीन गहरी आपत्ति जताता है। 2017 में चीनी धमकियों के बाद वियतनामी सरकार ने स्पेन के रेप्सोल को विवादित क्षेत्र में ड्रिलिंग बंद करने का आदेश दिया था। यह दक्षिण चीन सागर में ड्रिलिंग गतिविधियों को लेकर चीन द्वारा वियतनाम को धमकी देने की कई घटनाओं में से एक थी। (वियतनाम दौरे पर राजनाथ सिंह)

वियतनाम के लिए क्यों जरूरी है भारत?
वियतनाम और भारत के बीच दशकों से आपसी विश्वास और लाभ के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध रहे हैं। और जैसा कि पहले बताया गया है, वियतनाम की स्थिति और क्षेत्रीय सुरक्षा के प्रति दृष्टिकोण भी दक्षिण चीन सागर में चीन के प्रभाव की जांच करने के लिए भारत के लक्ष्यों और क्षेत्र में अन्य भागीदारों के व्यापक परिप्रेक्ष्य के मुताबिक ही है। जबकि, दक्षिण कोरिया सहित इस क्षेत्र के कई अन्य देश एससीएस पर चीन के खिलाफ सीधी आलोचना या चीन के खिलाफ सीधी नीति बनाने में अनिच्छुक रहे हैं। वहीं, चीन के भड़कने के डर से ये देश वियतनाम के साथ समुद्री सहयोग से भी बचते रहे हैं, लेकिन भारत ने चीन की चेतावनियों को नजरअंदाज करते हुए वियतनाम के साथ ना सिर्फ आर्थिक संबंझों को बढ़ावा दिया है, बल्कि वियतनाम के साथ सैन्य संबंझ भी स्थापित कर लिए हैं। भारत अपनी एक्ट-ईस्ट पॉलिसी के तहत वियतनाम को अपनी रणनीति का काफी अहम हिस्सा मानता है। (फाइल)

भारत-वियतनाम समुद्री रक्षा संबंध
वियतनाम अपने लिए दक्षिण चीन सागर और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में भारत की दीर्घकालिक उपस्थिति को मददगार और अपने हितों के अनुकूल मानता है। वहीं, भारत दक्षिण चीन सागर में समुद्री सुरक्षा को बनाए रखने और अंतरराष्ट्रीय कानूनों के अनुसार विवादों को हल करने के महत्व पर वियतनामी रुख का समर्थन करता है, जिसमें मुख्य रूप से समुद्र के कानून पर 1982 का संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (यूएनसीएलओएस) शामिल है। दूसरी ओर, भारत के लिए, वियतनाम के साथ समुद्री रक्षा संबंध अंतरराष्ट्रीय चुनौतियों पर काबू पाने और दक्षिण चीन सागर में आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए "समुद्री बहुपक्षवाद" की अपनी नीति को बढ़ाने के लिए काफी अहम है। हिंद महासागर में प्रभाव बढ़ाने की कोशिश कर रहे चीन को भारत उसी की भाषा में जवाब देने के लिए वियतनाम के रास्ते दक्षिण चीन सागर में घुसना चाहता है, जिस तरह से चीन श्रीलंका के जरिए हिंद महासागर में घुसा है। लिहाजा, वियतनाम के साथ भारत का सैन्य समझौता चीन को असहज करने वाला है। (फाइल)

भारतीय मिसाइल खरीदेगा वियतनाम
वहीं, एशिया टाइम्स की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि, वियतनाम ने भारत से आकाश मिलाइल सिस्टम खरीदने की इच्छा जताई है, जिसे वियतनाम चीन से सटती सीमा में तैनात करना चाहता है। वहीं, रिपोर्ट ये भी है, कि फिलिपींस के बाद वियतनाम भी भारत के ब्रह्मोस मिसाइल खरीदना चाहता है और दोनों देशों के बीच इस बाबत बात भी चल रही है। अगर वियतनाम और भारत के बीच आकाश मिसाइल और ब्रह्मोस मिसाइल समझौता होता है, तो भारत ड्रैगन की नाक के नीचे अपने सबसे खतरनाक मिसाइल को रखने में कामयाब हो जाएगा, जो यकीनन चीन के लिए बहुत बड़ा झटका होगा।