भारतीय विदेशी मुद्रा भंडार में भारी गिरावट, दो साल पीछे पहुंचे हम, इस साल 100 अरब डॉलर खत्म
डॉलर के मजबूत होने के असर से अमीर देश अछूते नहीं हैं। यूरोप में, जो पहले से ही ऊर्जा की बढ़ती कीमतों के बीच मंदी की ओर तेजी से बढ़ रहा था, वहां 20 वर्षों में पहली बार एक यूरो की कीमत 1 डॉलर से कम हो गई है।
India's forex reserves: वैश्विक आर्थिक संकट के बीच भारत का विदेशी मुद्रा भंडार घटकर पिछले दो सालों में अपने न्यूनतम स्तर तक आ गया है। विदेशी मुद्रा भंडार में आई ये कमी भारत के लिए बहुत बड़ा झटका माना जा रहा है। समाचार एजेंसी एएनआई की रिपोर्ट के मुताबिक, 14 अक्टूबर को खत्म हुए सप्ताह के दौरान भारत का विदेशी मुद्रा भंडार गिरकर दो साल के निचले स्तर पर आ गया है। रिपोर्ट के मुताबिक, 14 अक्टूबर तक भारतीय विदेशी मुद्रा भंडार में 528.367 अरब डॉलर ही बचे थे। जो पिछले दो सालों में सबसे कम है।
विदेशी मुद्रा भंडार में भारी कमी
एएनआई की रिपोर्ट के मुताबिक, आरबीआई के आंकड़ों से पता चला है कि, पिछले हफ्ते के मुकाबले भारतीय विदेशी मुद्रा भंडार में 4.5 अरब डॉलर की और कमी आई है। पिछले हफ्ते भारतीय विदेशी मु्द्रा भंडार में 532.868 अरब अमेरिकी डॉलर था। आरबीआई के आंकड़ों के अनुसार, भारत की विदेशी मुद्रा संपत्ति, जो कि विदेशी मुद्रा भंडार का सबसे बड़ा घटक है, वो पिछले हफ्ते के मुकाबले इस हफ्ते में 2.828 अरब डॉलर और कम हो गया है और अब वो घटकर 468.668 अरब अमेरिकी डॉलर पर आ गया है। वहीं, भारतीय सोने के भंडार का मूल्यांकन भी पिछल हफ्ते के मुकाबले इस हफ्ते कम हुआ है और सोने के भंडार में 1.5 अरब डॉलर की कमी आई है और अब भारतीय सोने का भंडार का मूल्य 37.453 अरब डॉलर रह गया है। इसके साथ ही आरबीआई के आंकड़ों से पता चलता है कि, आईएमएफ में भारत का स्पेशल ड्राविंग राइट्स (SDRs) में भी 149 मिलियन डॉलर की कमी आई है और अब ये घटकर 17.433 अरब डॉलर पर आ गया है।
रुपये को बचाने की हो रही है कोशिश
दरअसल, भारतीय विदेशी मुद्रा भंडार में लगातार गिरावट के पीछे दो सबसे महत्वपूर्ण कारक एक अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत में वृद्धि और दूसरी वजह डॉलर के मुकाबले रुपये को धड़ाम से गिरने से बचाने के लिए आरबीआई के हस्तक्षेप हैं। रुपये को गिरने से बचाने के लिए आरबीआई भारी मात्रा में डॉलर्स खर्च कर रहा है और इसीलिए रुपया आहिस्ता आहिस्ता गिर रहा है। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में पूरी दुनिया की प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले डॉलर लगातार मजबूत होता जा रहा है, लिहाजा भारतीय रुपया पिछले कुछ हफ्तों से लगातार कमजोर होता आया है और नए सर्वकालिक निचले स्तर पर पहुंच गया है। बुधवार को रुपया इतिहास में पहली बार 83 अंक के पार गया।
रुपये में गिरावट लगातार जारी
बाजार के आंकड़ों से पता चलता है कि, इस साल अब तक रुपये में करीब 11-12 फीसदी की गिरावट आई है। आमतौर पर, रुपये में भारी गिरावट को रोकने के लिए, आरबीआई डॉलर की बिक्री सहित लिक्विडिटी मैनेजमेंट के जरिए बाजार में हस्तक्षेप करता है। फरवरी के अंत में यूक्रेन पर रूसी आक्रमण के बाद से भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में लगभग 100 अरब अमरीकी डालर की गिरावट आई है। वैश्विक ऊर्जा आपूर्ति में लागत बढ़ने का सीधा असर भारतीय विदेशी मुद्रा भंडार पर पड़ा है। पूरी दुनिया के लिए ये एक वित्तीय संकट का समय है, जब यूक्रेन पर रूसी आक्रमण ने लोगों के सामने खाद्य और ऊर्जा संकट की गंभीर स्थिति पैदा कर दी है। अलजजीरा की एक रिपोर्ट के मुताबिक, कॉर्नेल विश्वविद्यालय में व्यापार नीति के प्रोफेसर ईश्वर प्रसाद कहते हैं, "एक मजबूत डॉलर दुनिया के बाकी हिस्सों में खराब स्थिति को और खराब कर देता है।" वहीं, कई अर्थशास्त्रियों को चिंता है कि डॉलर की तेज वृद्धि से अगले साल किसी समय वैश्विक मंदी की संभावना बढ़ रही है।
डॉलर दे रहा पूरी दुनिया को दर्द
डॉलर के लगातार मजबूत होने के पीछे कोई खास रहस्य नहीं हैं। अमेरिका में महंगाई से निपटने के लिए अमेरिकी केन्द्रीय बैंक फेडरल रिजर्व ने इस साल अपनी अल्पकालिक ब्याज दर को अब तक पांच गुना बढ़ा चुका है और संकेत यही मिल रहे हैं, कि इसमें और बढ़ोतरी की संभावना है। इसकी वजह से अमेरिकी सरकार के कॉरपोरेट बॉन्ड के वैल्यू में इजाफा हुआ है, जिसकी वजह से अमेरिका में निवेश करने के लिए निवेशक काफी उत्सुक हो गये हैं, लिहाजा अमेरिका में निवेशक लगातार निवेश कर रहे हैं, लिहाजा डॉलर मजबूत होता जा रहा है। सिर्फ इस साल निवेशक भारतीय बाजार से 26 अरब डॉलर निकालकर उसे अमेरिका में निवेश कर चुके हैं, जिससे रूपये पर गंभीर प्रभाव पड़ा है। यही हाल दुनिया के बाकी देशों में भी हो रहा है। ज्यादातर देशों की मुद्राएं इस वजह से डॉलर के सामने कमजोर हो गईं हैं, खासकर गरीब देशों पर इसका गंभीर प्रभाव पड़ा है। डॉलर के मुकाबले इस साल भारतीय रुपया करीब 11 प्रतिशत, मिस्र पाउंड 20 फीसदी और तुर्की लीरा में 28 प्रतिशत की गिरावट आई है।
अमीर देशों पर भी गंभीर असर
डॉलर के मजबूत होने के असर से अमीर देश अछूते नहीं हैं। यूरोप में, जो पहले से ही ऊर्जा की बढ़ती कीमतों के बीच मंदी की ओर तेजी से बढ़ रहा था, वहां 20 वर्षों में पहली बार एक यूरो की कीमत 1 डॉलर से कम हो गई है। वहीं, यूनाइटेड किंगडम का पाउंड एक साल पहले की तुलना में 18 प्रतिशत गिर गया है। ब्रिटेन की स्थिति तो इतनी खराब हो गई है, कि नई प्रधानमंत्री लिज ट्रस को अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी। यूक्रेन में युद्ध के कारण ऊर्जा और कृषि बाजारों में व्यवधान ने COVID-19 मंदी और वसूली से उपजी आपूर्ति बाधाओं को बढ़ा दिया। भारतीय राजधानी नई दिल्ली में, रवींद्र मेहता दशकों से अमेरिकी बादाम और पिस्ता निर्यातकों के ब्रोकर के रूप में फल-फूल रहे हैं। लेकिन रुपये में रिकॉर्ड गिरावट ने कच्चे माल और शिपिंग लागत को भारी स्तर तक बढ़ा दिया है, जिसका गंभीर असर उनके व्यापार पर पड़ा है।
फिर भी भारतीय रुपया है सबसे बेहतर
हालांकि, उसके बाद भी भारतीय रुपये ने दूसरी करेंसी के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन किया है। जबकि रुपया सितंबर में डॉलर के मुकाबले 2.6% गिर गया था और 81 और 82 के मनोवैज्ञानिक सीमारेखा को तोड़ते हुए, यह वर्तमान परिवेश में दुनिया की सबसे स्थिर मुद्राओं में शामिल हो गया है। क्योंकि, अस्थिर बाजार ने लगभग दुनिया की सभी मुद्राओं और अर्थव्यवस्थाओं को प्रभावित किया है। इसलिए, सितंबर में डॉलर के मुकाबले कोरियाई मुद्रा में लगभग 6 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई थी और ब्रिटिश मुद्रा पाउंड को भी लगभग उतना ही नुकसान हुआ था। ऑस्ट्रेलियाई डॉलर में 4.8% की गिरावट आई और स्वीडिश मुद्रा क्रोना, चीनी मुद्रा युआन और फिलीपीन की मुद्रा पेसो में क्रमशः 4.6%, 4.1% और 4.1% की गिरावट आई। लिहाजा, जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है, इन मुद्राओं के विपरीत रुपये में तुलनात्मक रूप से कम गिरावट आई है। भारतीय रुपये में सिर्फ 2.6% की ही गिरावट आई है, जो यूरोपीय मुद्रा यूरो में आई गिरावट के बराबर है, जिसमें सितंबर में 2.4% की गिरावट आई थी।
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