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भारत के ब्रह्मोस मिसाइल एक्सपोर्ट प्लान को अमेरिका देने वाला है बड़ा झटका !

भारत सरकार की सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल ब्रह्मोस को बेचने की तैयारी को बड़ा झटका लग सकता है। स्वदेशी सुपरसोनिक मिसाइल बेचने की तैयारी में कोई और नहीं बल्कि भारत का सहयोगी देश अमेरिका ही अड़ंगा लगा रहा है।

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नई दिल्ली/वाशिंगटन: भारत सरकार की सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल ब्रह्मोस को बेचने की तैयारी को बड़ा झटका लग सकता है। स्वदेशी सुपरसोनिक मिसाइल बेचने की तैयारी में कोई और नहीं बल्कि भारत का सहयोगी देश अमेरिका ही अड़ंगा लगा रहा है और डर है अगर भारत सरकार ब्रह्मोस मिसाइल का सौदा करती है तो अमेरिका भारत पर भी प्रतिबंध लगा सकता है। ऐसे में सवाल ये उठता है कि भारत के 'डिफेंस मिशन' को क्या अमेरिका से ही सबसे बड़ा झटका मिलने वाला है?

ब्रह्मोस मिसाइल बेचेगा भारत

ब्रह्मोस मिसाइल बेचेगा भारत

भारत सरकार अपने डिफेंस प्रोग्राम के तहत स्वदेश में निर्मित सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल ब्रह्मोस को अलग अलग देशों को बेचना चाहती है। ब्रह्मोस की खासियत ऐसी है कि इसे खरीदने को लेकर कई देशों ने दिलचस्पी दिखाई है। फिलिपिन्स, वियतनाम और संयुक्त अरब अमीरात से भारत सरकार के ब्रह्मोस मिसाइल की बिक्री को लेकर बातचीत काफी आगे तक पहुंच चुकी है। वहीं, अर्जेंटीना, ब्राजील, इंडोनेसिया और साउथ अफ्रीका से भी ब्रह्मोस मिसाइल सिस्टम को लेकर भारत सरकार की बातचीत जारी है। लेकिन, अमेरिका का एक कानून भारत सरकार की इस कोशिश में सबसे बड़ा बाधा बन रहा है और डर है कि अगर भारत ब्रह्मोस मिसाइल की बिक्री करता है तो अमेरिका कहीं भारत पर प्रतिबंध ना लगा दे।

ब्रह्मोस मिसाइल का निर्माण रूस की मदद से भारत में किया गया है। ब्रह्मोस मिसाइल सिस्टम बनाने में DRDO 50.5 प्रतिशत हिस्सा है तो रूसी डिफेंस NPO का इसमें 49.5 प्रतिशत हिस्सेदारी है।

अमेरिका का CAATSA कानून

अमेरिका का CAATSA कानून

ब्रह्मोस मिसाइल भारत में बनाया गया सुपरसोनिक मिसाइल सिस्टम है और इसे बनाने में भारत के सबसे पुराने और सबसे विश्वसनीय दोस्त ने मदद की है। लेकिन अमेरिका और रूस के बीच की लड़ाई से सब वाकिफ हैं और यहीं से दिक्कतें शुरू हो रही हैं। अमेरिका ने कुछ दिनों पहले ही रूस पर विपक्षी नेता एलेक्सी नवेलनी को जहर दिए जाने को लेकर प्रतिबंध भी लगाया है वहीं अमेरिका का सीएएटीएसए कानून भारत के ब्रह्मोस मिसाइल एक्सपोर्ट के बीच आ रहा है।

दरअसल, अमेरिका ने कुछ साल पहले एक कानून बनाया था। कानून का नाम है सीएएटीएसए यानि काउंटरिंग अमेरिकाज एडवर्सरीज थ्रू सेंक्सन। अमेरिका के इस कानून बनाने का लक्ष्य रूसी खुफिया एजेंसियों और साइबर हमलों से जुड़ी अन्य संस्थाओं को अमेरिका में किसी भी तरह की जासूसी करने से रोकना है। वहीं, इस कानून में बाद में संशोधन भी किया गया। इस कानून के तहत रूस से तेल, गैस और रक्षा एवं सुरक्षा उद्योग और रूस के वित्तीय संस्थानों को भी प्रतिबंधित दायरे में लाया गया। इस कानून के तहत जो भी देश रूस से रक्षा उपकरण खरीदेगा या फिर रूस के द्वारा बनाए गये रक्ष उपकरणों को बेचेगा, अमेरिका उसपर प्रतिबंध लगा देगा। और यही दिक्कत ब्रह्मोस मिसाइल को बेचने और रूस से S-400 मिसाइल सिस्टम खरीदने के सामने आ रहा है।

हथियार एक्सपोर्टर बनने की तरफ कदम

हथियार एक्सपोर्टर बनने की तरफ कदम

पूरी दुनिया में भारत उन देशों शामिल है जो सबसे ज्यादा हथियार खरीदते हैं। मगर पिछले कुछ सालों में भारत ने अपना लक्ष्य बदलते हुए हथियार एक्सपोर्टर बनने की तरफ किया है। सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल ब्रह्मोस, जिसकी मारक क्षमता 292 किलोमीटर है, भारत उसे अपने मित्र देशों को बेचना चाहता है और इस मिसाइल में इतनी खूबियां हैं कि कई छोटे देशों के लिए ब्रह्मोस मिसाइल फायदे का सौदा साबित हो रहा है। लिहाजा DRDO और डिपार्टमेंट और डिफेंस प्रोडक्शन यानि डीडीपी के लिए ब्रह्मोस 'हॉट सेलिंग' वीपन बन गया है। भारत सरकार ने 2025 तक ब्रह्मोस मिसाइल बेचकर 5 बिलियन डॉलर जुटाने का लक्ष्य रखा है।

ब्रह्मोस मिसाइल के साथ दूसरी दिक्कत ये है कि भले ही इसका निर्माण हैदराबाद में हुआ है और इसकी रिपेयरिंग और मेंटिनेंस हैदराबाद में किया जाता हो मगर इसके क्रूशियल पार्ट्स रसियन हैं। इसमें लगा इंजन और रडार सिस्टम रूस का है। जो टेक्निकली अमेरिकन कानून सीएएटीएसए के अंदर आ जाता है। अधिकारियों के मुताबिक, ब्रह्मोस बनाने में 65 प्रतिशत रूस के सामानों का इस्तेमाल किया गया है।

भारत का स्वदेशी ब्रह्मोस मिसाइल

भारत का स्वदेशी ब्रह्मोस मिसाइल

ब्रह्मोस एक कम दूरी की रैमजेट सुपरसोनिक मिसाइल है और इस मिसाइल को रूस के साथ मिलकर भारत में बनाया गया है। इस मिसाइल में कई तरह की खासियतें हैं। इसे पनडुब्बी से, पानी के जहाज से, विमान से या फिर जमीन से...कहीं से भी छोड़ा जा सकता है। रूस की एनपीओ मशीनोस्ट्रोयेनिया और भारत के रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन यानि डीआरडीओ ने मिलकर सुपरसोनिक ब्रह्मोस मिसाइल को बनाया है। यह मिसाइल रूस की पी-800 ओकिंस क्रूज मिसाइल टेक्नोलॉजी पर आधारित है। ब्रह्मोस मिसाइल को भारतीय सेना इस्तेमाल कर रही है।

ब्रह्मोस मिसाइल हवा में ही अपना टार्गेट बदल सकती है यानि हवा में ही ब्रह्मोस के रास्ते को बदला जा सकता है और ये चलते चलते लक्ष्य भेदने में सक्षम है। इसे वर्टिकल या फिर सीधे, कैसे भी दागा जा सकता है। सबसे खास बात ये है कि ब्रह्मोस मिसाइल थल सेना, वायु सेना और जल सेना तीनों के काम आ सकत है। ब्रह्मोस 10 मीटर की ऊंचाई पर भी उड़ान भरने में समझ है और दुनिया की कोई रडार इसे पकड़ नहीं सकती है। रडार ही नहीं किसी भी मिसाइल डिटेक्टिव प्रणाली को धोखा देने में ब्रह्मोस सझम है और इसको मार गिराना करीब करीब असम्भव है। ब्रह्मोस मिसाइल अमेरिका की टॉम हॉक से करीब दुगनी रफ्तार से वार करने में सक्षम है। भारत सरकार ने अगले 10 साल में करीब 2 हजार ब्रह्मोस मिसाइल बनाने का लक्ष्य रखा है और ब्रह्मोस मिसाइलों को रूस से लिए गये सुखोई विमानों में लगाया जाएगा।

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English summary
India is having trouble selling BrahMos missile because of America
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